Sunday, September 22, 2024
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गिरफ्तारी क्या है | गिरफ्तारी की प्रक्रिया Arrest Under Crpc in Hindi

गिरफ्तारी क्या है एवं गिरफ्तारी की प्रक्रिया Arrest Under Crpc in Hindi

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 यह प्रावधान करता है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से अन्यथा वंचित नहीं किया जा सकता है। और वहीं अनुच्छेद 21 प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा से जीने का अधिकार भी देता है। यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो वह कहीं न कहीं उस व्यक्ति को दैहिक स्वतंत्रता से वंचित करती है, इसलिए गिरफ्तारी हमेशा विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही की जानी चाहिए। इसके संबंध में भारत में दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में वह प्रक्रिया स्थापित की गई है, जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है। आज के इस लेख में हम भारत में गिरफ्तारी से संबंधित इसी विधि पर चर्चा करेंगे।इस लेख में हम जानेंगे कि

गिरफ्तारी का अर्थ क्या होता है ?
गिरफ्तारी कब की जाती ?
गिरफ्तारी कैसे की जाती है ?
गिरफ्तारी कितने प्रकार से की जाती है ?
आदि बिंदुओं पर चर्चा करेंगे?
सबसे पहले तो यही जान लेते है कि गिरफ्तारी क्या होती है ?

अरेस्ट का अर्थ (What is arrest meaning)

Arrest यानी गिरफ्तारी को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है, इसे निम्न प्रकार से समझने का प्रयास किया जा सकता है –
सामान्य शब्दों में कहें तो-
“गिरफ्तारी से तात्पर्य विधि द्वारा प्राधिकृत अधिकारी के द्वारा, किसी व्यक्ति को अपराध करने या उसके किए जाने के संदेह के आधार पर उसे अभिरक्षा में लेना है ।”
डिक्शनरी ऑफ़ लेक्सिकन ‘ के अनुसार
“किसी विधायी प्राधिकारी द्वारा किसी व्यक्ति को इस प्रकार रोक कर रखना जिससे उसकी स्वतंत्रता समाप्त हो जाए “
Britainica के अनुसार –
“गिरफ्तारी, आमतौर पर विधि का पालन करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से,किसी व्यक्ति को हिरासत में या अभिरक्षा में रखना,।”
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर देखा जाए तो गिरफ्तारी किसी व्यक्ति को विधि द्वारा प्राधिकृत अधिकारी के द्वारा अभिरक्षा में लेना गिरफ्तारी कहलाता है।

गिरफ्तारी कौन से मामलों में की जाती है?

किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी सिविल एवं दाण्डिक दोनों प्रकृति के मामलों में की जा सकती है।

सिविल मामलों में गिरफ्तारी –

सिविल अर्थात दीवानी मामलों में भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके जेल भेजा जा सकता है । दीवाने मामलों में गिरफ्तारी डिक्री के निष्पादन में की जाती है तथा कुछ दशाओं में न्यायालय द्वारा न्याय के उद्देश्य को विफल होने से रोकने के लिए डिक्री से पहले भी गिरफ्तारी की जा सकती है। सिविल मामलों में गिरफ्तारी से संबंधित जानकारी को अन्य लेख में जानेंगे।

दाण्डिक मामलों में गिरफ्तारी –

दाण्डिक मामलों में किसी व्यक्ति कि गिरफ्तारी तब की जाती है, जब उसके द्वारा कोई अपराध किया जाता सामान्य भाषा में कहें तो जब कोई व्यक्ति ऐसा कोई कार्य करता है जिसका उल्लंघन करना विधि द्वारा दंडनीय है।
उदाहरण के तौर पर – A नामक व्यक्ति B के घर में घुसकर चोरी करता है, उसके बाद B अपने घर में चोरी होने से संबंधित f.i.r. पुलिस थाने में A के नाम से कराता है, तब पुलिस A को गिरफ्तार करेगी यदि वह फरार नहीं हुआ है तो।
यहां पर A ने जो कार्य किया है, वह भारतीय दंड संहिता की धारा 380 के द्वारा दंडनीय है। इसलिए उसने विधि द्वारा निषिद्ध कार्य करके, विधि का उल्लंघन किया है अतः उसे गिरफ्तार किया जा सकता है।

गिरफ्तारी के प्रकार या दशाएं –

दंड विधि के अंतर्गत गिरफ्तारी दो प्रकार से हो सकती है –
A.वारंट के बिना
B. वारंट के द्वारा

A. वारंट के बिना गिरफ्तारी –

arrest without warrant

वारंट के बिना गिरफ्तारी का मतलब है कि अपराध किए जाने के बाद पुलिस,अपराध करने वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना ही गिरफ्तार कर सकती है। वे परिस्थितियां निम्नलिखित हैं, जिनमें पुलिस अधिकारी वारंट के बिना गिरफ्तारी कर सकती है-
  1. जहां पुलिस की मौजूदगी में ही संज्ञेय अपराध किया जाता है।
  2. जहां किसी व्यक्ति के विरुद्ध युक्तियुक्त परिवाद किया जाता है या कोई विश्वसनीय सूचना दी जाती है या युक्तियुक्त संदेह है कि उसने 7 वर्ष तक के कारावास से दंडनीय अपराध किया है, जो भले ही जुर्माने सहित या उसके बिना हो । यदि निम्नलिखित शर्तों का समाधान कर दिया जाता है-
  • ऐसे परिवाद सूचना एवं संदेह के आधार पर पुलिस अधिकारी को विश्वास करने का आधार है कि उसने अपराध किया है।
  • पुलिस अधिकारी का समाधान हो जाता है कि गिरफ्तारी इसलिए आवश्यक है क्योंकि ऐसा व्यक्ति-
  • कोई अन्य अपराध ना कर सके।
  • साक्ष्य मिटाने या उससे छेड़छाड़ करने से रोका जा सके।
  • मामले से परिचित व्यक्तियों को धमकी प्रलोभन देने से रोका जा सके।जब न्यायालय में हाजिरी आवश्यक हो तो उसे हाजिर किया जा सके।
3.किसी व्यक्ति के विरुद्ध यह सूचना दी जाती है कि उसने जुर्माने सहित या रहित 7 वर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय या मृत्यु दंड तक दंडनीय अपराध किया है और पुलिस के पास यह विश्वास करने के लिए पर्याप्त आधार है कि ऐसा अपराध उस व्यक्ति ने किया है।
4. किसी व्यक्ति को राज्य सरकार ने अपराधी उद्घोषित किया है।
5.जहां किसी व्यक्ति के कब्जे में चुराई हुई संपत्ति होने और उसके संबंध में अपराध करने का उचित संदेह मौजूद है।
6. जहां पुलिस अधिकारी को अपने ड्यूटी के दौरान बाधा पहुंचाता है या विधि पूर्ण अभिरक्षा से भाग जाता है या भागने का प्रयास करता है।
7. सशस्त्र बलों का अभित्यजक होने का संदेह है।
8. जहां किसी व्यक्ति ने भारत से बाहर किसी जगह पर ऐसा अपराध किया है, यदि वह अपराध भारत में किया जाता तो दंडनीय होता और ऐसा व्यक्ति प्रत्यर्पण की संधि के अधीन है और भारत में मिले तो गिरफ्तार किया जा सकेगा ।यदि इस संबंध में युक्तियुक्त परिवाद किया जा चुका है यह विश्वसनीय जानकारी दी जा चुकी है या उचित संदेह विद्यमान रह चुका है ।
9. जहां छोड़ा गया व्यक्ति सिद्धोष है अपने निवास संबंधी जानकारी देने की शर्त का उल्लंघन करता है।
10. किसी अन्य पुलिस अधिकारी से उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने का लिखित अनुरोध प्राप्त हो चुका है।
(धारा 41 दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973)
11. जहां किसी व्यक्ति से असंज्ञेय अपराध की दशा में पुलिस द्वारा नाम व निवास संबंधी जानकारी पूछे जाने पर बताने से इंकार करता है या झूठी जानकारी देता है, तब उसे वारंट के बिना गिरफ्तारी किया सकता है।
(दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 42)
12.जहां पुलिस अधिकारी को किसी संज्ञेय अपराध के किए जाने की परिकल्पना अर्थात अपराध की योजना का पता है, तब उसे रोकने के लिए वारंट के बिना गिरफ्तारी की जा सकती है।
(दंड प्रक्रिया संहिता की धारा151)
13. जब किसी व्यक्ति को दंडादेश का निलंबन या परिहार अर्थात दंड से माफी सशर्त दी गई है । यदि ऐसा व्यक्ति ऐसी शर्तों को भंग करता है, तब उसे वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है।
– दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 432(3)

B. वारंट के द्वारा गिरफ्तारी

arrest with warrant

वारंट के द्वारा गिरफ्तारी का मतलब यह है कि जब मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए आदेश या वारंट जारी करेगा, तभी पुलिस अधिकारी उसे गिरफ्तार कर सकता है अन्यथा नहीं। मजिस्ट्रेट धारा 70 से 81 के उपबंधों के अधीन रहते हुए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए वारंट जारी कर सकता है। गिरफ्तारी का वारंट दो प्रकार का होता है –
गिरफ्तारी का जमानती वारंट
गिरफ्तारी का अजमानती वारंट

गिरफ्तारी कैसे की जाएगी

How made arrest

गिरफ्तारी कैसे की जाएगी इसके संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 46 की उपधारा (1) में प्रावधान किए गए हैं, यानी की गिरफ्तारी करने का तरीका बताया गया है। इसके अनुसार पुलिस अधिकारी या अन्य कोई व्यक्ति गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के शरीर को छू कर या उसको निरोध करके गिरफ्तारी कर सकेगा लेकिन ऐसा तभी किया जाएगा जब उसने अपने वचन या कार्य द्वारा स्वयं को अभिरक्षा में समर्पित कर दिया हो। यदि गिरफ्तार किए जाने वाला व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी का विरोध करता है । तब पुलिस अधिकारी आवश्यक अन्य सभी साधनों का प्रयोग करके, गिरफ्तारी कर सकता है।
यदि वह अपराध जिसके लिए गिरफ्तारी की जा रही है मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडनीय हैं और अपनी गिरफ्तारी का विरोध करता है तब पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु तक कारित कर सकता है इसे ही पुलिस मुठभेड़ अर्थात एनकाउंटर कहा जाता है।

महिला की गिरफ्तारी कैसे की जाएगी-

जब किसी महिला को गिरफ्तार किया जाता है, जब तक की परिस्थितियां अन्यथा संकेत ना करें तो उसको मौखिक सूचना देकर पुलिस अभिरक्षा में समर्पण करने की अवधारणा की जाएगी। ऐसी दशा में सामान्यत: कोई भी पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी कर सकता है, लेकिन यदि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान है जिनमें गिरफ्तारी उक्त प्रकार से संभव नहीं है, तब महिला पुलिस अधिकारी उसके शरीर को छू कर गिरफ्तार कर सकती है।
किसी महिला को सूर्यास्त के बाद यह सूर्योदय से पहले अर्थात रात में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक असाधारण दशाएं मौजूद ना हो। यदि असाधारण दशाएं मौजूद हैं, तब महिला पुलिस अधिकारी उस स्थान में जहां गिरफ्तारी की जानी है या जहां पर अपराध किया गया है, वहां के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी को लिखित में रिपोर्ट करके तथा उसकी पूर्व अनुमति से रात में भी महिला को गिरफ्तारी किया जा सकता है।

पुलिस से भिन्न प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी

एक प्राइवेट व्यक्ति अर्थात आम व्यक्ति भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है इसके संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 43 में प्रावधान किया गया है जो कि यह है कि यदि किसी व्यक्ति की उपस्थिति में अजमानतीय और संज्ञेय अपराध करता है या कोई उदघोषित अपराधी है। तब कोई भी व्यक्ति उसे गिरफ्तार कर सकता है या गिरफ्तार करवा सकता है ।

प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तार किए जाने पर प्रक्रिया:

जब प्राइवेट अर्थात आम व्यक्ति किसी को गिरफ्तार करता है तो वह उसे बिना विलंब के पुलिस अधिकारी के हवाले कर देगा या हवाले करवा देगा यदि पुलिस अधिकारी की उपस्थित नहीं है, तो उसके जो भी निकटतम पुलिस थाना होगा वहां ले जाएगा या भिजवाएगा। जब इस प्रकार पुलिस अधिकारी के पास गिरफ्तार व्यक्ति को लाया जाता है, तब वह यदि विश्वास करता है कि वह धारा 41 के उपबंधों के अंतर्गत आता है, तो उसको फिर से गिरफ्तार करेगा।
यदि यह विश्वास करने का कारण है कि उसने असंज्ञेय अपराध किया है तो पुलिस अधिकारी उससे नाम निवास संबंधी जानकारी पूछेगा यदि बताने से इंकार करता है, या झूठी जानकारी देता है, तो उसे धारा 42 के अंतर्गत कार्रवाई करते हुए गिरफ्तार करेगा, किंतु यदि उसके पास विश्वास करने के पर्याप्त कारण है कि उसने कोई अपराध नहीं किया है तो उसको तुरंत छोड़ दिया जाएगा ।
( दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 43)

मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी

मजिस्ट्रेट भी अपराधी को दो दशाओं में गिरफ्तार कर सकते हैं, इस संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 44 में प्रावधान किए गए हैं जो इस प्रकार हैं
पहली मजिस्ट्रेट भी चाहे वह कार्यपालक हो या न्यायिक, यदि किसी व्यक्ति ने उसकी उपस्थिति में उसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर कोई अपराध किया है, तो वह अपराधी को स्वयं गिरफ्तार कर सकता है या चाहे तो वह गिरफ्तार करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को आदेश दे सकता है।
दूसरी मजिस्ट्रेट अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर किसी भी व्यक्ति को किसी भी समय गिरफ्तार कर सकता है, यदि वह उसके गिरफ्तार करने के लिए वारंट जारी करने के लिए सक्षम है।
गिरफ्तारी से संबंधित महत्वपूर्ण मामला जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी के संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जिन का अनुपालन करना सभी पुलिस अधिकारियों व मजिस्ट्रेट के लिए आज्ञापक है, वह मामला है –

अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014SCC)

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय में यह सुनिश्चित करने के लिए कि पुलिस अधिकारी अभियुक्त को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार न करे और न ही मजिस्ट्रेट यंत्रवत और आकस्मिक रुप से अभिरक्षा अधिकृत करे, इस क्रम में निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए –
1.सभी राज्य सरकारें अपने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दें, कि वे भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के अधीन अपराध पंजीबद्ध होने पर किसी व्यक्ति को स्वत: गिरफ्तार न करें। गिरफ्तारी की आवश्यकता तब उत्पन्न होती है, जब मामला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के मापदंडों के अधीन आता है।
2.सभी पुलिस अधिकारियों को धारा 41 (1) (B) (ii) के अन्तर्गत विशिष्ठ उपखंड युक्त एक जांच-सूची(check-list) प्रदत की जाए।
3. जब अभियुक्त को आगे और निरोध में रखने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करते समय गिरफ्तारी के लिए आवश्यक कारण और सामग्री के साथ सम्यक रूप से दायर और चेक लिस्ट को अग्रेषित करेगा।
4. मजिस्ट्रेट अभियुक्त को निरोध प्राधिकृत करते हुए, पुलिस अधिकारी द्वारा पूर्वोक्त अनुसार प्रस्तुत रिर्पोट का अवलोकन करेगा तथा अपनी संतुष्टि को अभिलिखित करने के बाद ही , मजिस्ट्रेट निरोध प्राधिकृत करेगा।
5. अभियुक्त को गिरफ्तार न करने के विनिश्चय को मजिस्ट्रेट के पास प्रतिलिपि सहित, मामला संस्थित होने की तारीख से 2 सप्ताह के भीतर प्रेषित किया जाए, जिसे लिखित में कारणों को अभिलिखित करते हुए जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
6.दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41A की शर्तों में हाजिरी की सूचना मामला संस्थित होने की तारीख से 2 सप्ताह के भीतर अभियुक्त पर तामील की जाए।
7. उपर्युक्त निर्देशों के अनुपालन में असफल रहने पर संबंधित पुलिस अधिकारी विभागीय कार्रवाई के लिए उत्तरदाई होंगे, वे क्षेत्रीय अधिकारिता वाले उच्च न्यायालय के समक्ष स्थापित न्यायालय की अवमानना के दंड के लिए भी उत्तरदायी होंगे।
8. संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उपयुक्त कारणों को अभिलिखित किए बिना निरोध प्राधिकृत करने पर, समुचित उच्च न्यायालय के द्वारा विभागीय कार्यवाही के लिए उत्तरदाई होगा।
हम शीघ्रता से जोड़ते हैं कि उपयुक्त निर्देशों को ना केवल दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 4 या भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के अंतर्गत मामलों में लागू होंगे बल्कि ऐसे मामलों में भी लागू होंगे, जहां अपराध ऐसी अवधि के कारावास के दंडनीय है, जो 7 वर्ष से कम की हो सकती है या 7 वर्ष तक की हो सकती है चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित।
गिरफ्तारी से संबंधित महत्वपूर्ण बातों को इस लेख में हमने जाना इसके अगले भाग में हम गिरफ्तारी के बाद अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को जानेंगे ।
इस लेख पर आधारित संभावित प्रश्न
– Q. गिरफ्तारी से आप क्या समझते हैं ? तथा वे कौन सी परिस्थितियां हैं जिनमे पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है?
Q. गिरफ्तारी कैसे की जाती है? तथा पुलिस से भिन्न व्यक्ति और एक मजिस्ट्रेट कब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते है?
Q. गिरफ्तारी से आप क्या समझते हैं तथा गिरफ्तारी से संबंधित प्रक्रिया को समझाइए?
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