जैसा हम जानते हैं की ऑल इंडिया लेवल पर पर जुडिशरी का एग्जाम नहीं होता है अभी इस पर ऑल इंडिया जुडिशल सर्विसेज के लिए सरकार कई राज्यों से इसके संबंध में बात कर रही है जुडिशरी एग्जाम राज्यवार होता है कई राज्य में राज्य PSC अर्थात राज्य लोक सेवा आयोग इसका exam कराता है तो कहीं हाई कोर्ट ।
Judiciary के exam कानून एवं संवैधानिक प्रावधानों की बात करें हम तो सबसे पहले संविधान में कुछ प्रावधान किए गए हैं उन्हीं को जान लेते हैं।
सबसे पहले बात करें संविधान के अनुच्छेद 233 व 234 की
“अनुच्छेद 233 (1) किसी राज्य में जिला न्यायाधीश नियुक्त होने वाले व्यक्तियों की नियुक्ति तथा जिला न्यायाधीश की पदस्थापना और प्रोन्नति उस राज्य का राज्यपाल ऐसे राज्यों के संबंध में अधिकार ता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामर्श करके करेगा।
(2 )वह व्यक्ति जो संघ या राज्य की सेवा में पहले से ही नहीं है ,जिला न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए केवल तभी पात्र होगा जब वह कम से कम 7 वर्ष तक अधिवक्ता या प्लीडर रहा है और उसकी नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालय ने सिफारिश की है।”
अनुच्छेद234 “जिला न्यायाधीशों से भिन्न व्यक्तियों की किसी राज्य की न्यायिक सेवा में नियुक्ति राज्यपाल द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग से और ऐसे राज्य के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात और राज्यपाल द्वारा निर्मित बनाए गए नियमों के अनुसार की जाएगी।”
इसी अनुच्छेद के आधार पर बनाए गए नियमों के अनुसार व्यवहार न्यायधीश अर्थात सिविल जज के लिए जुडिशरी की परीक्षा होती है।
इस पद के लिए विभिन्न राज्यों में भिन्न नाम से परीक्षा ली जाती है :
जैसे : राजस्थान में – सिविल जज संवर्ग परीक्षा
मध्यप्रदेश में – व्यवहार न्यायाधीश वर्ग 2 परीक्षा अर्थातसिविल जज क्लास 2
उत्तर प्रदेश में – सिविल जज( जूनियर डिविजन )
छत्तीसगढ़ में – सिविल जज (प्रवेश स्तर) परीक्षा आदि
इस तरह जुडिशरी के एग्जाम से हम हम सिविल जज बनते हैं जो केवल सिविल मामलों में ही अधिकारिता का प्रयोग करता है किंतु वही जज आपराधिक मामलों को तभी देख सकता है जबकि उसे न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी गई हो।
न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां कहां दी जाती है इस समय की धारा 11 के प्रावधानों को जानते हैं जो कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय के गठन के बारे में प्राप्त करती है।
धारा 11: न्यायिक मजिस्ट्रेटों के न्यायालय
(1) प्रत्येक जिले में जो महानगरी क्षेत्र नहीं है प्रथम वर्ग द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के इतने न्यायालय, ऐसे स्थानों में स्थापित किए जाएंगे जितनी और जो राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें:
परंतु राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात , किसी स्थानीय क्षेत्र के लिए, प्रथम वर्ग द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के ,एक या अधिक विशेष न्यायालय,किसी विशेष मामले में विशेष वर्ग के मामलों का विचारण करने के लिए स्थापित कर सकती है और जहां कोई ऐसा विशेष न्यायालय स्थापित किया जाता है उसे स्थानीय क्षेत्र मजिस्ट्रेट के किसी अन्य न्यायालय को किसी ऐसे मामले ऐसे वर्क के मामलों का विचारण करने की अधिकारिता नहीं होगी, जिनके विचरण के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट का ऐसा विशेष न्यायालय स्थापित किया गया है।
(2) ऐसे न्यायालय के पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किए जाएंगे।
(3) “उच्च न्यायालय ,जब कभी उसे यह समीचीन या आवश्यक प्रतीत हो, किसी सिविल न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत राज्य की न्यायिक सेवा के किसी सदस्य को प्रथम भर गया द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान कर सकता है।”
“धारा 11 की उपधारा 3 के आधार पर हाई कोर्ट सिविल जज को उसकी नियुक्ति के साथ ही न्यायिक मजिस्ट्रेट के सकते हैं प्रदान करता है। ट्रेनिंग काल के दौरान प्रारंभ में द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी जाती है ,जिसे एक वर्ष तक का कारावास और पांच हज़ार तक का जुर्माना देने की शक्ति होती है । पश्चात में नियमित बोर्ड मिलने पर प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी जाती है। यह इस संबध बनाए गए नियमों के अनुसार होती है।”
निष्कर्ष हम कह सकते हैं की judiciary ke Exam से सिविल जज बनते हैं तथा न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी जाती हैं।