शुक्रवार, फ़रवरी 28, 2025
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भारत बनाम इंडिया | Bharat vs India |

भाग II -भारत बनाम इंडिया

भारत बनाम इंडिया लेख का यह दूसरा भाग है। इस भाग मे आगे के शीर्षकों पर चर्चा करेंगे । पिछले भाग में भारत बनाम इंडिया के मूल विवाद क्या है ? तथा भारत और इंडिया नाम कैसे पड़े ?  इसके साथ ही भारत के संविधान मे देश को क्या नाम दिया गया है। शीर्षकों पर चर्चा की थी ।

भाग I को पढ़ने के लिए यहन् क्लिक करें 

नाम को लेकर पहले क्या प्रयास हुए?

भारत बनाम इंडिया शब्द को लेकर बहस आजादी के समय से ही रही। जब हमारा देश आजाद हुआ,उसके बाद इसके नाम को लेकर संविधान सभा में तीखी बहस हुई। 18 सितंबर 1949 को फारवर्ड ब्लाक के सदस्य हरि विष्णु कामत ने अंबेडकर जी की उपस्थिति में अनुच्छेद 1 में भारत के नाम को लेकर बहस शुरू की और देश का नाम भारत या भारतवर्ष होने के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया।

डॉ.अंबेडकर, शंकर राव देव, केएम मुंशी और गोपाल स्वामी अयंगर ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और जिस पर कामत जी भड़क गए। बहस को बता दे अध्यक्ष महोदय ने कहा कि यह भाषा का मामला है, इसे आसानी से सुलझा लेना चाहिए। कई तर्क वितर्क हुए और एक लंबी बहस चली।

इस बहस में सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, श्री राम सहाय और हरगोविंद पंत ने भी भाग लिया उन्होंने देश का नाम ऐतिहासिक संदर्भों के हवाला देते हुएभारत या भारतवर्ष करने पर जोर दिया और विष्णु कामत जी के प्रस्ताव का समर्थन किया। कमलापति त्रिपाठी जी ने बहस को बढ़ता दिखे बीच का रास्ता निकाला और कहा कि फिलहाल देश कानाम इंडिया अर्थात भारत है देश की अध्यक्षता को देखते हुए इसे बदलकर भारत अर्थात इंडिया कर देना चाहिए।

गैर हिंदी भाषा भारत के सदस्यों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई इसके बाद वोटिंग करनी पड़ी। जिसमें दूसरे नाम के प्रस्ताव गिर गए और इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ होगा सदन से पारित हो गया इस तरह अनुच्छेद एक में इंडिया अर्थात भारत को स्थान मिला।

इसके अलावा 9 अगस्त 2012 को कांग्रेस के सांसद शांताराम नायक ने एक निजी विधेयक में इंडिया को भारत करने एवं अनुच्छेद 1 में केवल एकल शब्द भारत करने और संविधान में इंडिया के स्थान पर भारत शब्द को प्रतिस्थापित करने संबंधी विधेयक पेश किया हालांकि यह आगे न बड़ सका । योगी आदित्यनाथ ने भी भारत का नाम हिंदुस्तान करने पर जोर दिया हालांकि यह दोनों ही प्रयास सफल न हो सके।

संविधान में देश का नाम बदलने की प्रक्रिया?

संविधान में कुछ भी परिवर्तन करना हो तो इसके लिए अनुच्छेद 368 में विहित प्रक्रिया का अनुपालन करना होता है। इसे संविधान संशोधन की प्रक्रिया कहते हैं।

वैसे तो अनुच्छेद एक का खंड एक भारत व इंडिया दोनों शब्दों को देश के नाम के रूप में प्रयोग करने की संवैधानिक मान्यता देता है। लेकिन यदि इंडिया शब्द को हटाना चाहते हैं या अनुच्छेद एक में वर्णित नाम को किसी और ढंग से लिखना चाहते हैं तो इसके लिए संशोधन करने की आवश्यकता होगी।

संशोधन करने के लिए संसद के किसी भी सदन से इस आशय का विधेयक लाना होगा जो प्रत्येक सदन लोकसभा एवं राज्यसभा से स्पेशल मेजॉरिटी यानी सदन के कुल सदस्यों की संख्या का बहुमत और उपस्थिति और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत के द्वारा पारित होना चाहिए।

ऐसा विधेयक एक सदन से पारित होने के बाद दूसरे सदन के द्वारा भी समान रूप से पारित होना चाहिए। उसके बाद राष्ट्रपति के पास अनुमति के लिए भेजा जाना चाहिए और अनुमति दे दी गई हो ।

यदि इसके अलावा इस अनुच्छेद के परंतु में दिए गए प्रावधानों के अधीन आने वाले कैसे अनुच्छेद में परिवर्तन करना है, तो स्पेशल मेजॉरिटी के साथ-सा कम से कम आधे राज्यों का समर्थन भी जरूरी होगा। इस तरह से सांसद संविधान संशोधन की प्रक्रिया का पालन करके संविधान में देश के नाम को परिवर्तन कर सकती है।

देश का नाम बदलना सही या गलत?

देश का नाम भारत हो या इंडिया दोनों ही संविधान के अनुसार सही है। भारत हमारी प्राचीन संस्कृति की पहचान है अर्थात हमारे ऐतिहासिकता का प्रमाण है वहीं इंडिया बाहरीलोगों के द्वारा अपनी समाज व सहूलियत के हिसाब से दिया गया एक नाम है एक लंबे समय से हमारे देश की पहचान बना हुआ है।

 

इसलिए यदि भारत हमारे देश के लिए प्रयोग किया जा रहा है या हमारे देश का नाम अब भारत कर दियाजाता है, तो इसमें किसी को भी विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि आप असल में माइनो में अपनी संस्कृति व धरोहर से प्यार करते हैं। न ही इसमें किसी को कोई भी दिक्कत होनी चाहिए।

लेकिन एक बात अवश्य है कि यह राजनीति से परे होना चाहिए इस विषय पर किसी भी राजनीतिक दलको राजनीति नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि हमारे देश का नाम ही राजनीतिक भवन में फस गया तो हमारी राष्ट्रीय एकता, अखंडताबंधुता को प्रभावित कर सकता है।

इसलिए हम सभी को भारत या इंडिया नाम के बीच एक बात अवश्य ध्यान रखना चाहिए किसी भी हाल में हमारे राष्ट्र की एकता व अखंडता बंधुता प्रभावित न हो क्योंकि यही हमारी मूल नीव है। यदि हमारे देश का नाम बदलकर भारत किया भी जाता है,तो इसका हम सभी को स्वागत करना चाहिए, क्योंकि यह हमारी असल संस्कृति व ऐतिहासिकता को प्रदर्शित करेगा।

इसलिए सभी को इसका समर्थन करते हुए, स्वागत करना चाहिए क्योंकि भारतीयता हमारे दिल में है और भारत हमारी शान है।

नोट : यह लेखक के अपने विचार हैं।

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