अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य 2 july 2014

अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य
अर्नेश कुमार दिशा निर्देश

अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य | arnesh kumar guidelines in hindi 2 july 2014

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में

आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार

आपराधिक अपील सं. 2014 का 1277 (2013 का विशेष अवकाश याचिका (सीआरएल) संख्या 9127)

अर्नेश कुमार

अपीलार्थी

बनाम

बिहार राज्य

प्रत्यर्थी 

पीठ : जस्टिस चंद्रमौली के.आर. प्रसाद व जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष

निर्णय दिनांक: 2 जुलाई 2014 

मामले के तथ्य

अपीलार्थी का विवाह प्रत्यर्थी संख्या 2 श्वेता किरण के साथ 1 जुलाई, 2007 को  संपन्न हुआ था। पत्नी द्वारा अपीलकर्ता (पति ) के विरुद्ध लगाया गया आरोप, संक्षेप में यह है कि, उसकी सास और ससुर द्वारा आठ लाख रुपये, एक मारुति कार, एक एयर कंडीशनर, टेलीविजन सेट आदि की मांग की गई थी, और जब यह तथ्य अपीलकर्ता के ध्यान में लाया गया, तब उसने अपनी मां का समर्थन किया और दूसरी महिला से शादी करने की धमकी दी। अभिकथित किया कि, दहेज की मांग पूरी नहीं करने पर उसे ससुराल से निकाल दिया गया।

इन आरोपों से इनकार करते हुए, अपीलकर्ता ने अग्रिम जमानत के लिए एक आवेदन किया , जिसे पहले विद्वान सत्र न्यायाधीश और उसके पशचात् उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। इस प्रकार अग्रिम जमानत हासिल करने का उनका प्रयास असफल रहा।  इसलिए उन्होंने इस विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

उन सभी मामलों में जहां किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की सीआरपीसी की धारा 41(1) के अधीन आवश्यकता नहीं है,  पुलिस अधिकारी को अभियुक्त (आरोपी) को एक निर्दिष्ट स्थान और समय पर उसके समक्ष पेश होने का निर्देश देते हुए, नोटिस जारी करना आवश्यक है। कानून ऐसे अभियुक्त (आरोपी) को पुलिस अधिकारी के सामने पेश होने के लिए बाध्य करता है और आगे  यह आदेश करता है कि यदि ऐसा अभियुक्त (आरोपी) नोटिस की शर्तों का अनुपालन करता है, तो उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक कि अभिलिखित किए जाने वाले कारणों से पुलिस कार्यालय की राय न हो कि, गिरफ्तारी आवश्यक है । इस स्तर पर भी, सीआरपीसी की धारा 41 के अधीन परिकल्पित गिरफ्तारी के लिए पूर्ववर्ती शर्त का पालन करना होगा और पूर्वोक्त मजिस्ट्रेट द्वारा जांच का विषय होगा। (पेज 16)

अर्नेश कुमार दिशा निर्देश :

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय में यह सुनिश्चित करने के लिए कि पुलिस अधिकारी अभियुक्त को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार न करे और न ही मजिस्ट्रेट यंत्रवत और आकस्मिक रुप से अभिरक्षा अधिकृत करे, इस क्रम में निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए –
1.सभी राज्य सरकारें अपने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दें, कि वे भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के अधीन अपराध पंजीबद्ध होने पर किसी व्यक्ति को स्वत: गिरफ्तार न करें बल्कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के संबंध मे ऊपर निर्धारित मापदंडों के अधीन, गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे मे स्वयं को संतुष्ट करें । 
2.सभी पुलिस अधिकारियों को धारा 41 (1) (b) (ii) के अन्तर्गत विशिष्ठ उपखंड युक्त एक जांच-सूची(check-list) प्रदत की जाए।
3. पुलिस अधिकारी अभियुक्त को आगे और निरोध में रखने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करते समय गिरफ्तारी के लिए आवश्यक कारण और सामग्री के साथ सम्यक रूप से दायर और चेक लिस्ट को अग्रेषित करेगा।
4. मजिस्ट्रेट अभियुक्त को निरोध प्राधिकृत करते हुए, पुलिस अधिकारी द्वारा पूर्वोक्त अनुसार प्रस्तुत रिर्पोट का अवलोकन करेगा तथा अपनी संतुष्टि को अभिलिखित करने के बाद ही , मजिस्ट्रेट निरोध प्राधिकृत करेगा।
5. अभियुक्त को गिरफ्तार न करने के निश्चय को ,मामला संस्थित होने की तारीख से 2 सप्ताह के भीतर , मजिस्ट्रेट के पास प्रतिलिपि सहित प्रेषित किया जाए, जिसे लिखित में कारणों को अभिलिखित करते हुए जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
6.दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41A की शर्तों में हाजिरी की सूचना मामला संस्थित होने की तारीख से 2 सप्ताह के भीतर अभियुक्त पर तामील की जाए,जिसे लिखित में कारणों को अभिलिखित करते हुए जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
7. उपर्युक्त निर्देशों के अनुपालन में असफल रहने पर संबंधित पुलिस अधिकारी विभागीय कार्रवाई के अलावा, वे क्षेत्रीय अधिकारिता रखने वाले उच्च न्यायालय के समक्ष न्यायालय की अवमानना के दंड के लिए भी उत्तरदायी होंगे।
8. संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उपयुक्त कारणों को अभिलिखित किए बिना निरोध प्राधिकृत करने पर, समुचित उच्च न्यायालय के द्वारा विभागीय कार्यवाही के लिए उत्तरदाई होगा।
हम शीघ्रता से जोड़ते हैं कि उपयुक्त निर्देशों को ना केवल दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 4 या भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के अंतर्गत मामलों में लागू होंगे बल्कि ऐसे मामलों में भी लागू होंगे, जहां अपराध ऐसी अवधि के कारावास के दंडनीय है, जो 7 वर्ष से कम की हो सकती है या 7 वर्ष तक की हो सकती है चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित।
उपरोक्त बिंदुओं को अरनेश कुमार दिशा निर्देश के नाम से जाना जाता है , जिन्हे पुलिस व मजिस्ट्रैट द्वारा अनुसरित  करना आज्ञापक है ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here