शुक्रवार, फ़रवरी 28, 2025
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डिक्री एवं इसके आवश्यक तत्व What Is Decree In Cpc In Hindi

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डिक्री एवं इसके आवश्यक तत्व | What Is Decree In Cpc In Hindi

डिक्री एवं आदेश क्या है। [decree in Cpc in hindi ]

आज के इस लेख में बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक पर डिस्कस करने जा रहे है ।

इस लेख के माध्यम से जानेंगे डिक्री क्या है? डिक्री के अंतर्गत क्या शामिल है क्या नहीं है?  डिक्री कब अंतिम हो जाती हैं ? इसके प्रकार कितने है?
साथ ही आदेश के बारे में भी बात करेंगे ।
सबसे पहले  सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2 की उपधारा 2 में डिक्री की जो परिभाषा दे रखी है, वह इस प्रकार है।

 

डिक्री एवं इसके आवश्यक तत्व [what is decree in Cpc in hindi ]

Section 2(2) of CPC

डिक्री से ऐसे न्यायनिर्णयन की प्रारूपिक अभिव्यक्ति अभिप्रेत है, जो, जहां तक कि वह उसे अभिव्यक्त करने वाले न्यायालय से संबंधित है, वाद में के सभी या किन्हीं विवादग्रस्त विषयों के संबंध में पक्षकारों के अधिकारों का निश्चायक रूप से अवधारण करता है और वह या तो प्रारंभिक या अंतिम हो सकेगी। यह समझा जायेगा कि उसके अंतर्गत 

वादपत्र का नामंजूर किया जाना और धारा 144 के भीतर के किसी प्रश्न का अवधारणा आता है किंतु इसके अंतर्गत

(क) न तो कोई ऐसा न्याय निर्णयन आएगा जिस की अपील आदेश की अपील की भांति होती है और 

(ख) न व्यतिक्रम के लिए खारिज करने का कोई आदेश आएगा

 

स्पष्टीकरण – डिक्री तब प्रारंभिक होती है जब वाद के पूर्ण रूप से निपटा दिए जा सकने से पहले आगे और कार्यवाहियाँ की जानी है। वह तब अंतिम होती है जबकि ऐसा न्यायनिर्णयन बाद को पूर्ण रूप से निपटा देता है। वह भागत: प्रारंभिक और भागत: अंतिम हो सकेगी।

डिक्री के आवश्यक तत्व [essential elements of Decree]–

डिक्री के आवश्यक तत्व  निम्नलिखित है

1. न्यायालय द्वारा न्यायनिर्णयन

न्यायनिर्णयन न्यायालय द्वारा किसी विषय के बारे में दिया गया न्यायिक निष्कर्ष होता है, जिसे हम सामान्य रूप से जजमेंट कहते हैं, निर्णय अर्थात जजमेंट को सीपीसी की धारा 2(9) में बताया है कि निर्णय से डिक्री या आदेशों का कथन अभिप्रेत है। ऐसे निर्णय दो प्रकार से होते हैं–
•डिक्री के रूप में 
•आदेश के रूप में

2.न्यायनिर्णयन की औपचारिक अभिव्यक्ति– 

यहां औपचारिक अभिव्यक्ति का तात्पर्य है कि जिस अनुतोष का दावा किया गया है, उसमें से किसी को स्वीकार या अस्वीकार करना आवश्यक है । जो अनुतोष चाहा गया है उसका दावा वाद पत्र में किया जाना चाहिए।

3.वाद में न्यायनिर्णयन

न्यायालय द्वारा न्याय-निर्णयन किसी वाद में होना चाहिए। वाद को संहिता में कही भी परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन प्रिवी कौंसिल ने 1935 में हंसराज बनाम देहरादून मसूरी इलेक्ट्रिक कंपनी लिमिटेड के वाद में वाद को परिभाषित करने का प्रयत्न किया,
वाद से अभिप्राय ऐसी सिविल कार्यवाहियो से है जो सामान्यतः वादपत्र प्रस्तुत करके संस्थित की जाती हैं।

4.वाद में विवादग्रस्त सभी या किन्हीं विषयो के संबंध में पक्षकारों के अधिकारों का अवधारण

 इसका मतलब है कि पक्षकारों ने जो भी राइट क्लेम किए हैं न्यायालय उन सभी का अवधारण करेगा।

5.अवधारण का निश्चयात्मक होना चाहिए –

न्यायालय द्वारा पक्षकारों के विवादग्रस्त अधिकारों पर जो भी निर्णय दिया गया हो वह निश्चित रूप से उस विषय के संबंध में पूर्ण व अंतिम होना चाहिए।
 
किसी डिक्री को हम तभी डिक्री कह सकते हैं जब उपर्युक्त आवश्यक तत्व शामिल हो इनमें से किसी की भी अनुपस्थिति में न्यायालय का न्यायनिर्णयन डिक्री नहीं हो सकता है।
इस बात की पुष्टि स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने सतनाम सिंह  बनाम  सुरेंद्र कौर AIR 2009 SC 1089 में की थी और इन सभी आवश्यक तत्वों को डिक्री में शामिल होना जरूरी बताया।
 
इसके अलावा आदेश 45 नियम 1 में भी डिक्री को परिभाषित किया गया है जिसमे डिक्री पद के अंतर्गत अंतिम आदेश को भी शामिल किया गया है। यह परिभाषा केवल सुप्रीम कोर्ट में अपीलों की दशा में ही लागू होती है।

डिक्री एवं इसके आवश्यक तत्व [what is decree in Cpc in hindi ]

यह भी जाने –

डिक्री का प्रारूप एवं अंतर्वस्तु

आदेश 20 में डिक्री के प्रारूप के बारे में बात की गई है–
डिक्री की अंतर्वस्तु को नियम 6 में बताया गया है–
1 वाद का संख्याक
2 पक्षकारों के नाम व रजिस्ट्रीकृत पत्ते
3 वादकृत दावे का वर्णन
4 प्रदत अनुतोष
5 वाद के खर्चे की रकम किसके द्वारा तथा किस अनुपात में देय होगी तथा किस संपत्ति में से उसकी वसूली की जाएगी
6 वह तारीख जिस दिन निर्णय सुनाया गया
7 न्यायाधीश के हस्ताक्षर ।
डिक्री हमेशा निर्णय के अनुरूप होगी।

डिक्री मे शामिल है –

धारा 2 के उपधारा 2 में परिभाषा में आगे बताया गया है, डिक्री की परिभाषा के अनुसार डिक्री में वाद पत्र का नामंजूर किया जाना, और धारा 144 के भीतर किसी प्रश्न का अवधारण डिक्री में सम्मिलित है। वाद पत्र का नामंजूर किया जाना मेरिट के अनुसार होना चाहिए अन्यथा वह डिक्री नहीं माना जाएगा।
धारा 36 से 74 तथा ऑर्डर 21 में डिक्री के निष्पादन के संबंध में प्रावधान किए गए हैं। 
इसके अलावा हम ऐसे कुछ उदाहरण पर देख लेते हैं जो  डिक्री माने गए हैं-
1. वाद के अवसान का आदेश 
2. वाद हेतु के कारण वाद को खारिज करने का आदेश
3. समझौते के आधार पर दिया गया न्यायनिर्णयन
4. धारा 92 के तहत किसी योजना को निर्धारित करने का आदेश आदि।

डिक्री में शामिल नहीं ( not include in Decree)

धारा 2(2) के अंतर्गत में परिभाषा में आगे बताया गया हैं डिक्री में निनलिखित शामिल नहीं है–
(I) ऐसा कोई ऐसा न्याय निर्णयन जिसकी अपील आदेश की अपील की भांति होती हैं और
(II)व्यतिक्रम के लिए खारिज करने का कोई आदेश ।
 इसके अलावा हम ऐसे कुछ उदाहरण जो  डिक्री नहीं माने गए हैं। जो डिक्री नहीं माने गए हैं वे हैं –
1 पंचाट को डिक्री नहीं माना जाएगा
2. सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 49 के अंतर्गत दिया गया कोई अवधारण डिक्री नहीं है
3. डिक्री के निष्पादन की कार्यवाही में दिया गया आदेश
4. अनुच्छेद 226 के अधीन हाई कोर्ट द्वारा दिया गया कोई आदेश आदि।

डिक्री एवं डिक्री के प्रकार ( Types of Decree)

न्यायालय द्वारा पारित की जाने वाली डिक्री भी कई प्रकार की होती है , सिविल प्रक्रिया संहिता में डिक्री के प्रकार को जानने के लिए, सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2(2) का स्पष्टिकरण को जानना आवश्यक है , जो की इस प्रकार है –

 स्पष्टीकरण -डिक्री प्रारंभिक होती है जब वाद के पूर्ण रूप से निपटा दिए जा सकने के पहले आगे और कार्यवाही की जानी है वह तब अंतिम होती हैं जबकि ऐसा न्याय निर्णय वाद को पूर्ण रूप से निपटा देता है वह भागत: प्रारंभिक और भागत: अंतिम भी हो सकेंगी।

हम बात करें कि डिक्री कितने प्रकार की होती हैं तो इसके बारे में भी धारा 2 की उपधारा 2 के स्पष्टीकरण के अनुसार तीन प्रकार की होती हैं–
(i) प्रारंभिक डिक्री 
(ii) अंतिम डिक्री 
(iii) भागत: प्रारंभिक और भागत: अंतिम।

(I)प्रारम्भिक डिक्री [preliminary Decree]– 

कोई डिक्री प्रारंभिक तब होती है जब वाद को पूर्ण रूप से निपटाने से पहले आगे और कार्यवाही की जानी हो यानी कि मामले का फाइनल डिसीजन होने से पहले कोई कार्यवाही करने के लिए न्यायालय द्वारा कोई डिक्री दी जाती है तो वह प्रारंभिक डिक्री कहीं जाती हैं।
जैसे – ए और बी की एक पार्टनरशिप फॉर्म है ए बी के विरुद्ध भागीदारी को विघटित करने के लिए सूट फाइल करता है
तब ऐसे विघटन के वाद में न्यायालय उस भागीदारी के पक्षकारों के अंश को निर्धारित करता है कि किसकी कितनी हिस्सेदारी होगी तो वह प्रारंभिक डिक्री कहलाती हैं।

(II) अंतिम डिक्री [Final Decree]–

 डिक्री अंतिम तब होती है जब वह वाद को पूर्ण रूप से निपटा देती हैं यानी कि समाप्त कर देती हैं तो वह अंतिम डिक्री कहलाती हैं।
जैसा हमने प्रारंभिक डिक्री के अंतर्गत पार्टनरशिप वाला उदाहरण देखा था पार्टनरशिप के विघटन के वाद जिसमें शेयर का निर्धारण प्रारंभिक डिक्री होता है तथा जहां न्यायालय द्वारा विघटन के लिए डिक्री पारित की जाती है वह अंतिम डिक्री होगी।

(III) अंशत: प्रारंभिक अंशत: अंतिम डिक्री [ partly preliminary partly final Decree]– 

 डिक्री अंशत: प्रारंभिक व अंशत: अंतिम भी हो सकती हैं।
यदि अंतः कालीन लाभ के साथ कब्जे के लिए वाद संस्थित किया गया है तो इस मामले में कब्जे के संबंध में जो डिक्री दी जाएगी और अंतः कालीन लाभ के निर्धारण के लिए जो डिक्री दी जाएगी वह प्रारंभिक डिक्री कहलाएगी।

डीम्ड डिक्री 

इसके अलावा डीम्ड डिक्री को भी डिक्री समझा जाता है। यह मूल रूप से डिक्री तो नहीं है किंतु विधि यह अपेक्षा करती है कि इसे डिक्री माना जाए। इसके पीछे उद्देश्य है कि न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके एवं वाद की बाहुल्यता को रोका जा सके

यह भी जानें – बियोंड रीजनेबल डाउट क्या होता है ? इसका दंड विधि में क्या महत्व है?

 आदेश क्या है ? What is Order

 आदेश को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 2(14) में आदेश की परिभाषा दी गई है जिसके अनुसार–
आदेश से सिविल न्यायालय के निर्णय की प्रारूपिक अभिव्यक्ति हैं जो डिक्री नहीं है।
आदेश भी न्यायालय के न्याय निर्णयन की प्रारुपिक अभिव्यक्ति होती है । आदेश  समान्यत: किसी आवेदन पर आरंभ की गई कार्यवाही से प्रारंभ की जाती हैं, किसी कार्यवाही में आदेशों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है। अर्थात कार्यवाही में एक से अधिक आदेश दिए जा सकते हैं।
 

डिक्री एवं इसके आवश्यक तत्व [WHAT IS DECREE IN CPC IN HINDI ]

संभावित प्रश्न: डिक्री से आप क्या समझते हो ? इसके प्रकार बताते हुए आदेश को भी समझाइए ?

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