झारखंड राज्य बनाम शैलेंद्र कुमार राय
निर्णय दिनांक: 31 अक्टूबर 2022
पीठ: जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली
मामले के तथ्य
प्रत्यर्थी 7 नवंबर 2004 को दोपहर में पीड़िता और मृतिका के नारंगी ग्राम में स्थित घर में प्रवेश किया।उसने पीड़िता को धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया और शोर मचाने पर जान से मारने की धमकी देते हुए बलात्कार किया । वह मदद के लिए चिल्लाई जिस पर से प्रत्यर्थी ने मिट्टी का तेल डाला और माचिस की तीली से आग लगा दी। मदद के लिए चीख सुनकर ,दादा मां और गांव के निवासी, उसके कमरे में आ गए उन्हें देखकर प्रत्यर्थी मौके से फरार हो गया। पीड़ित का परिवार उसे गांव के व्यक्ति के साथ सदर हॉस्पिटल देवगढ़ लेकर गए जहां उसे भर्ती किया गया और कारित चोटों का इलाज करवाया गया l
थाना प्रभारी यह सरवन को प्राप्त जानकारी के आधार पर देवगढ़ हॉस्पिटल गया और पीड़िता के बयान दर्ज किए जिस पर से प्रथम सूचना रिपोर्ट क्रमांक 2004 का163 लेखबद्घ की गई। अन्वेषण अधिकारी ने 14 नवंबर 2004 को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 341 376 और 448 के अपराध के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के अंर्तगत आरोप पत्र प्रस्तुत किया। अभियोजन की ओर से मामले के समर्थन में 12 साक्ष्यों का परीक्षण कराया गया।
सेशन न्यायालय का निर्णय
सेशन न्यायालय ने प्रत्यर्थी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 341 376 और 448 के अपराध के लिए दंडित किया धारा 302 के अंतर्गत आजीवन कारावास , 376 के अंतर्गत 10 साल के कठोर कारावास का दंड दिया ।
उच्च न्यायालय का निर्णय:
प्रत्यर्थी द्वारा झारखंड उच्च न्यायालय के समक्ष अपील अपील प्रस्तुत करने पर सेशन न्यायालय के जजमेंट को निम्नलिखित कारणों से अपास्त कर दिया:
a. मृतिका के परिवार के सदस्य पक्षी द्रोही घोषित हो गए थे
b. डॉक्टर आरके पांडे की उपस्थिति में मृत्यु कालीन कथन के अभिलखित किए जाने संबधी कथनों में मख्य परीक्षण में विरोधाभास है।
c. प्रति परीक्षण के दौरान डॉक्टर महत्व से पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवार को पीड़िता को बेहतर इलाज के लिए बोकारो बर्न अस्पताल ले जाने संबंधी सलाह दी गई थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
d, मोती सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य निर्णय में की गई घोषणा के कारण मृतका के द्वारा किए गए कथन मृत्यु काले कथन के रूप में स्वीकार्य नहीं है।
e. डॉक्टर मीनू मुखर्जी को पीड़िता के परीक्षण के दौरान संभोग का कोई संकेत नहीं मिला।
इन आधारों पर उच्च न्यायालय के द्वारा अभियोजन प्रत्यर्थी के विरुद्ध युक्तियुक्त संदेह से परे मामला साबित करने में असफल रहा।
पक्षकारों की ओर से प्रस्तुत किए गए आधार पर मामले के निर्धारण के लिए दो प्रश्न उत्पन्न होते हैं:
- क्या मृतिका का कथन भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 (1) के अंतर्गत सुसंगत है?
- क्या अभियोजन पक्ष ने प्रत्यर्थी के विरुद्ध आरोपों को युक्तियुक्त संदेह से परे साबित किया है?
निर्णय:
मामले में निर्णय करते हुए उच्चतम न्यायालय ने टू फिंगर टेस्ट पर निम्नलिखित टिप्पणियां की:
जब मेडिकल बोर्ड ने पीड़िता का परीक्षण किया तब उसने यह निर्धारित करने के लिए कि क्या वह यौन संभोग की अभ्यस्थ थी, वह किया जिसे “दो उंगली परीक्षण (टू फिंगर टेस्ट)” के नाम से जाना जाता है। इस न्यायालय ने बार-बार बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में इस प्रतिगामी और आक्रमणशील परीक्षण के उपयोग की निंदा की है। इस तथाकथित परिक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, यह न तो बलात्कार के आरोपों का खंडन करता है और न उसे साबित करता है। इसके बजाय यह उन महिलाओं को फिर से प्रताड़ित करता है और फिर से अघात पहुंचाता है, जिनका यौन उत्पीड़न किया गया हो और यह उनकी गरिमा का प्रत्यक्ष अपमान है। टू फिंगर टेस्ट या प्री वेजाइनम टेस्ट नहीं किया जाना चाहिए। (पैरा 60)
क्या एक महिला संभोग की अभ्यस्त थी या है, निर्धारित करने के लिए यह विसंगत है कि क्या विशिष्ट मामले में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 के तत्व उपस्थित है। तथाकथित परीक्षण इस गलत धारणा पर आधारित है कि एक यौन सक्रिय महिला का बलात्कार नहीं किया जा सकता है। सत्य से आगे कुछ भी नही हो सकता है- एक महिला का यौन इतिहास यह निर्णयन करते समय पूर्ण रूप से यह तत्वहीन है कि क्या अभियुक्त ने उसका बलात्कार किया था। इसके अतिरिक्त एक महिला की गवाही का संभावित मूल्य उसके यौन इतिहास पर निर्भर नहीं करता है। यह सुझाव पितृसत्तात्मक और सेक्सियस्ट है कि, एक महिला पर विश्वास नहीं किया जा सकता है, जब वह कहती है कि उसके साथ बलात्कार किया गया था, मात्र इसलिए कि वे यौन रूप से सक्रिय है। (पैरा 62)
हालांकि इस मामले में टू फिंगर टेस्ट एक दशक पूर्व किया गया था यह खेद जनक तथ्य है की यह टेस्ट आज भी संचालित किया जा रहा है ।(65)
हम केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी निर्देश करते हैं:
a. सुनिश्चित करें कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा तैयार दिशा निर्देश सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में प्रसारित किया जाता है।
b. बलात्कार और यौन उत्पीड़न से ग्रसित लोगों की परीक्षण करते समय अपनाई जाने वाली समुचित प्रक्रिया के बारे में बताने के लिए स्वास्थ्य प्रदाताओं के लिए कार्यशाला आयोजित की जाए और
c. यह सुनिश्चित करने के लिए मेडिकल विद्यालयों के पाठ्यक्रमों की समीक्षा करें कि जब बलात्कार और यौन उत्पीड़न से पीड़ितों की परीक्षा करते समय “टू फिंगर टेस्ट” या “प्री वेजाइनम” परीक्षण के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं में से एक के रूप में निर्धारित नहीं है। (पैरा 66)
कोई भी व्यक्ति जो टू फिंगर टेस्ट या फ्री वेजाइनम परीक्षण संचालित करता है (बलात्कार या यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला का परीक्षण करते समय) इस न्यायालय के निर्देशों के उल्लंघन पर कदाचार का दोषी होगा। (पैरा 68)