धारा 14. मन या शरीर की दशा या शारीरिक संवदेना का अस्तित्व दर्शित करने वाले तथ्य — मन की कोई भी दशा जैसे आशय, ज्ञान, सद्भाव, उपेक्षा, उतावलापन किसी विशिष्ट व्यक्ति के प्रति वैमनस्य या सदिच्छा दर्शित करने वाले अथवा शरीर की या शारीरिक संवेदना की किसी दशा का अस्तित्व दर्शित करने वाले तथ्य तब सुसंगत हैं, जबकि ऐसी मन की या शरीर की या शारीरिक संवेदन की किसी ऐसी दशा का अस्तित्व विवाद्य वा सुसंगत है।
स्पष्टीकरण 1 – जो इस नाते सुसंगत हैं कि वह मन की सुसंगत दशा के अस्तित्व को दर्शित करता है उससे यह दर्शित होना ही चाहिए कि मन की वह दशा साधारणतः नहीं, अपितु प्रश्नगत विशिष्ट विषय के बारे में, अस्तित्व में है ।
स्पष्टीकरण 2 किन्तु जब कि किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण में इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत उस अभियुक्त द्वारा किसी अपराध का कभी पहले किया जाना सुसंगत हो, तब ऐसे व्यक्ति की पूर्व दोषसिद्धि भी सुसंगत
तथ्य होगी ।
दृष्टांत
(क) क चुराया हुआ माल यह जानते हुए कि वह चुराया हुआ है, प्राप्त करने का अभियुक्त है। यह साबित कर दिया जाता है। कि उसके कब्जे में कोई विशिष्ट चुराई हुई चीज थी ।
यह तथ्य कि उसी समय उसके कब्जे में कई अन्य चुराई हुई चीजें थीं यह दर्शित करने की प्रवृत्ति रखने वाला होने के नाते सुसंगत है कि जो चीजें उसके कब्जे में थीं उनमें से हर एक और सब के बारे में वह जानता था कि वह चुराई हुई हैं।
(ख) क पर किसी अन्य व्यक्ति को कूटकृत सिक्का कपटपूर्वक परिदान करने का अभियोग, है, जिसे वह परिदान करते समय जानता था कि वह कूटकृत है।
यह तथ्य कि उसके परिदान के समय के के कब्जे में वैसे ही दूसरे कूटकृत सिक्के थे, सुसंगत है।
यह तथ्य कि क एक कूटकृत सिक्के को यह जानते हुए कि वह सिक्का कूटकृत है, उसे असली के रूप में किसी अन्य व्यक्ति को परिदान करने के लिए पहले भी दोषसिद्ध हुआ था, सुसंगत हैं।
(ग) ख के कुत्ते द्वारा, जिसका हिंस्र होना ख जानता था, किए गए नुकसान के लिए ख पर के बाद लाता है। ये तथ्य कि कुत्ते ने पहले, भ, म और य को काटा था और यह कि उन्होंने ख से शिकायतें की थीं, सुसंगत हैं।
(घ) प्रश्न यह है कि क्या विनिमयपत्र का प्रतिगृहीता क यह जानता था कि उसके पाने वाले का नाम काल्पनिक है। यह तथ्य कि क ने उसी प्रकार से लिखित अन्य विनिमयपत्रों को इसके पहले कि वे पाने वाले द्वारा, यदि पाने वाला वास्तविक व्यक्ति होता तो, उसको पारेपित किए जा सकते, प्रतिगृहीत किया था. यह दर्शित करने के नाते सुसंगत है कि क यह जानता था कि पाने वाला व्यक्ति काल्पनिक है । क पर ख की ख्याति की अपहानि करने के आशय से एक लांछन प्रकाशित करके ख की मानहानि करने का अभियोग है।
यह तथ्य कि ख के बारे में क ने पूर्व प्रकाशन किए, जिनसे ख के प्रति क का वैमनस्य दर्शित होता है, इस कारण सुसंगत है कि उससे प्रश्नगत विशिष्ट प्रकाशन द्वारा ख की ख्याति की अपहानि करने का क का आशय साबित होता है।
ये तथ्य कि क और ख के बीच पहले कोई झगड़ा नहीं हुआ और कि क ने परिवादगत बात को जैसा सुना था वैसा ही दुहरा दिया था, यह दर्शित करने के नाते कि क का आशय ख की ख्याति की अपहानि करना नहीं था. सुसंगत हैं।
(च) ख द्वारा क पर यह वाद लाया जाता है कि ग के बारे में क ने ख से यह कपटपूर्वक व्यपदेशन किया कि ग
शोधक्षम है जिससे उत्प्रेरित हो कर ख ने ग का, जो दिवालिया था, भरोसा किया और हानि उठाई।
यह तथ्य कि जब क ने ग को शोधक्षम व्यपदिष्ट किया था, तब ग को उसके पड़ोसी और उससे व्यौहार करने
वाले व्यक्ति शोधक्षम समझते थे, यह दर्शित करने के नाते कि क ने व्यपदेशन सद्भापूर्वक किया था, सुसंगत
है।
(छ) क पर ख उस काम की कीमत के लिए बाद लाता है जो ठेकेदार ग के आदेश से किसी गृह पर, जिसका के स्वामी है, ख ने किया था। क का प्रतिवाद है कि ब का ठेका ग के साथ था। यह तथ्य कि क ने प्रश्नगत काम के लिए ग को कीमत दे दी इसलिए सुसंगत है कि उससे यह साबित होता है कि क ने सद्भावपूर्वक ग को प्रश्नगत काम का प्रबन्ध दे दिया था, जिससे कि ख के साथ ग अपने ही निमित्त, न कि क के अभिकर्ता के रूप में, संविदा करने की स्थिति में था।
(ज) क ऐसी सम्पति का, जो उसने पड़ी पाई थी, बेइमानी से दुर्विनियोग करने का अभियुक्त है और प्रश्न यह है कि क्या जब उसने उसका विनियोग किया उसे सद्भावपूर्वक विश्वास था कि वास्तविक स्वामी मिल नहीं सकता।
यह तथ्य कि सम्पत्ति के खो जाने की लोक सूचना उस स्थान में, जहां क था, दी जा चुकी थी, यह दर्शित करने के नाते सुसंगत है कि क को सद्भावपूर्वक यह विश्वास नहीं था कि उस सम्पत्ति का वास्तविक स्वामी मिल नहीं सकता।
यह तथ्य कि क यह जानता था या उसके पास यह विश्वास करने का कारण था कि सूचना कपटपूर्वक ग द्वारा दी गई थी जिसने संपत्ति की हानि के बारे में सुन रखा था और जो उस पर मिच्या दावा करने का इच्छुक था यह दर्शित करने के नाते सुसंगत है कि क का सूचना के बारे में ज्ञान क के सद्भाव को नासाबित नहीं करता ।
(झ) क पर ख को मार डालने के आशय से उस पर असन करने का अभियोग है। क का आशय दर्शित करने के लिए यह तथ्य साबित किया जा सकेगा कि क ने पहले भी ब पर असन किया था ।
(ञ) क पर ख को धमकी भरे पत्र भेजने का आरोप है। इन पत्रों का आशय दर्शित करने के नाते क द्वारा ख को पहले भेजे गए धमकी भरे पत्र साबित किए जा सकेंगे।
(ट) प्रश्न यह है कि क्या क अपनी पत्नी ख के प्रति क्रूरता का दोषी रहा है।
अभिकथित क्रूरता के थोड़ी देर पहले या पीछे उनके एक दूसरे के प्रति भावना की अभिव्यक्तियां सुसंगत तथ्य हैं।
(ठ) प्रश्न यह है कि क्या क की मृत्यु विष से कारित की गई थी।
अपनी रुग्णावस्था में के द्वारा अपने लक्षणों के बारे में किए हुए कथन सुसंगत तथ्य हैं।
(ड) प्रश्न यह है कि क के स्वास्थ्य की दशा उस समय कैसी थी जिस समय उसके जीवन का बीमा कराया गया था। प्रश्नगत समय पर या उसके लगभग अपने स्वास्थ्य की दशा के बारे में के द्वारा किए गए कथन सुसंगत तथ्य हैं।
(ढ) क ऐसी उपेक्षा के लिए ख पर वाद लाता है जो ख ने उसे युक्तियुक्त रूप से अनुपयोग्य गाड़ी भाड़े पर देने द्वारा की
जिसमे को क्षति हुई थी। यह तथ्य कि उस विशिष्ट गाड़ी की त्रुटि की ओर अन्य अवसरों पर भी व का ध्यान आकृष्ट किया गया था, सुसंगत है। यह तथ्य कि उन गाड़ियों के बारे में, जिन्हें वह भाड़े पर देता था, अभ्यासतः उपेक्षावान था, विसंगत
है।
(ण) क साशय असन द्वारा ख की मृत्यु करने के कारण हत्या के लिए विचारित है। यह तथ्य कि क ने अन्य अवसरों पर ख पर असन किया था, क का ख पर असन करने का आशय दर्शित करने के नाते सुसंगत है।
यह तथ्य कि क लोगों पर उनकी हत्या करने के आशय से असन करने का अभ्यासी था, विसंगत है।
(त) क का किसी अपराध के लिए विचारण किया जाता है।
यह तथ्य कि उसने कोई बात कही जिससे उस विशिष्ट अपराध के करने का आशय उपदर्शित होता है, सुसंगत है। यह तथ्य कि उसने कोई बात कही जिससे उस प्रकार के अपराध करने की उसकी साधारण प्रवृत्ति उपदर्शित होती है, विसंगत है।
FAQ:
Q.मन या शरीर की दशा से संबंधित तथ्य साक्ष्य अधिनियम की कौन सी धारा मे सुसंगत होते हैं ?
A.धारा 14
Q. पूर्व दोषसिद्धि साक्ष्य अधिनियम के किस प्रावधान मे सुसंगत होती हैं ?
A.धारा 14 का स्पष्टीकरण (II)