धारा 12 संविदा करने के प्रयोजनों के लिए स्वस्थचित्त क्या है– कोई व्यक्ति संविदा करने के प्रयोजन के लिए स्वस्थचित्त कहा जाता है, यदि वह उस समय, जब वह संविदा करता है उस संविदा को समझने में और अपने हितों पर उसके प्रभाव के बारे में युक्तिसंगत निर्णय लेने मैं समर्थ है। जो व्यक्ति प्रायः विकृतचित्त रहता है किन्तु कभी-कभी स्वस्थचित्त हो जाता वह जब स्वस्थचित्त हो तब है, संविदा कर सकेगा।

जो व्यक्ति प्रायः स्वस्थचित्त रहता है किन्तु कभी-कभी विकृतचित्त हो जाता है, वह जब विकृतचित्त हो तब संविदा नहीं कर सकेगा।

दृष्टांत

(क) पागलखाने का एक रोगी, जो अन्तरालों में स्वस्थचित्त हो जाता है, उन अन्तरालों के दौरान में संविदा कर सकेगा।

(ख) वह स्वस्थचित्त मनुष्य, जो ज्वर से चित्तविपर्यस्त है या जो इतना मत्त है कि वह संविदा के निबंधनों को नहीं समझ सकता या अपने हितों पर उसके प्रभाव के बारे में युक्तिसंगत निर्णय नहीं ले सकता तब तक संविदा नहीं कर सकता जब तक ऐसी चित्तविपर्यस्तता या मत्तता बनी रहे।


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व्याख्या (explanation)

संविदा अधिनियम की धारा 12 यह प्रावधान करती है कि संविदा करने के लिए स्वस्थ्यचित (sound mind ) व्यक्ति कौन होता है । इस धारा के अनुसार प्रत्येक वह व्यक्ति संविदा करने के लिए स्वस्थ्यचित (sound mind ) माना जाएगा जो संविदा करते समय :

(I) जो संविदा को ही समझता हो और

(II) संविदा मे के अपने हित के सम्बध मे युक्तिसंगत निर्णय ले सकता हो

(III) यदि कोई व्यक्ति सामान्यता विकृतचित/पागल रहता है  वह कभी -कभी स्वस्थ्यचित (sound mind ) हो

(IV) सामान्यता ठीक हो तब स्वस्थचित होगा लेकिन कभी -कभी विकृतचित/पागल हो तो स्वस्थचित नहीं होगा

अर्थात उक्त दशाओं मे ही एक व्यक्ति व्यक्ति  संविदा करने के लिए स्वस्थचित होता है और यह संविदा के लिए व्यक्ति की सक्षमता की आवश्यक शर्तों मे से एक है ।

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