कौन सी संपत्ति अंतरित नहीं की जा सकती है? properties which cannot be transferred under tpa in hindi | संपत्तियां जो अंतरित नहीं की जा सकती | section 6 tpa in hindi
भारत मे संपत्ति कैसे अंतरित की जाती है इसके लिए, संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 लागू है । इस कानून के अधीन रहते हुए कोई संपत्ति अंतरित की जा सकती है, इस कानून मे अंतरण के मुख्यता 5 प्रकार बताये हैं , जिनके माध्यम से संपत्ति का हस्तांतरण एक जीवित व्यक्ति के द्वारा दूसरे जीवित व्यक्ति को किया जा सकता है ।
सामान्यता संपत्ति का अंतरणीय होना उसका एक गुण होता है, लेकिन कुछ संपतियाँ ऐसे होती है जिनका अंतरण किया जा सकता है और नहीं किया जा सकता है , इस संबंध उपबंध संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 6 मे किया गया है।
धारा 6 के अनुसार क्या अन्तरित किया जा सकेगा – –
किसी भी किस्म की सम्पत्ति, इस अधिनियम या किसी भी अन्य तत्समय-प्रवृत्त विधि द्वारा उपबंधित के सिवाय, अन्तरित की जा सकेगी ।
(क) किसी प्रत्यक्ष वारिस की सम्पदा का उत्तराधिकारी होने की संभावना, कुल्य की मृत्यु पर किसी नातेदार की वसीयत-सम्पदा अभिप्राप्त करने की संभावना या इसी प्रकृति की कोई अन्य संभावना मात्र अन्तरित नहीं की जा सकती;
(ख) किसी उत्तरभाव्य शर्त के भंग के कारण पुनःप्रवेश का अधिकार मात्र उस सम्पत्ति का, जिस पर तद्द्वारा प्रभाव पड़ा है, स्वामी के सिवाय किसी अन्य को अन्तरित नहीं किया जा सकता;
(ग) कोई सुखाचार अधिष्ठायी स्थल से पृथक्तः अन्तरित नहीं किया जा सकता;
(घ) सम्पत्ति में का ऐसा हित, जो उपभोग में स्वयं स्वामी तक ही निर्बन्धित है, उसके द्वारा अन्तरित नहीं किया जा सकता;
(घघ) भावी भरणपोषण का अधिकार, चाहे वह किसी भी रीति से उद्भूत, प्रतिभूत या अवधारित हो, अन्तरित नहीं किया जा सकता ।
(ङ) वाद लाने का अधिकार मात्र अन्तरित नहीं किया जा सकता
(च) लोक पद अन्तरित नहीं किया जा सकता, और न लोक आफिसर का संबलम् उसके देय होने से, चाहे पूर्व या पश्चात् अन्तरित किया जा सकता;
(छ) वृत्तिकाएँ, जो सरकार के सैनिक, नौसैनिक वायुसैनिक और सिविल पेंशन भोगियों को अनुज्ञात हों, और राजनैतिक पेन्शनें अन्तरित नहीं की जा सकती!
(ज) कोई भी अन्तरण (1) जहाँ तक वह तद्द्वारा उस हित की, जिस पर, प्रभाव पड़ा है, प्रकृति के प्रतिकूल हो, या (2) जो भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) की धारा 23 के अर्थ के अन्तर्गत किसी विधिविरुद्ध उद्देश्य या प्रतिफल के लिये हो, या (3) जो ऐसे व्यक्ति को, जो अन्तरिती होने से विधित: निरर्हित हो, नहीं किया जा सकता;
(झ) इस धारा की कोई भी बात अधिभोग का अनन्तरणीय अधिकार रखने वाले किसी अभिधारी को, उस सम्पदा के फार्मर को, जिस सम्पदा के लिये राजस्व देने में व्यतिक्रम हुआ है, या किसी प्रतिपाल्य अधिकरण के प्रबन्ध के अधीन किसी सम्पदा के पट्टेदार को, ऐसे अभिधारी, फार्मर या पट्टेदार के नाते अपने हित का समनुदेशन करने के बारे में प्राधिकृत करने वाली नहीं समझी जाएगी ।
कौन सी संपत्ति अंतरित की जा सकती है ?
उक्त धारा 6 के पैरा 1 मे यह बताया गया है कि किसी भी किस्म की संपत्ति का अंतरण किया जा सकता सिवाय निम्नलिखित उपबंध के अधीन रोक गया हो तब :
- इस अधिनियम के उपबंध या
- किसी भी अन्य तत्समय-प्रवृत्त विधि उपबंध उपबंध द्वारा
कौन सी संपत्ति अंतरित नहीं की जा सकती है ?
उक्त धारा के खंड (क)/(a) से (झ)/(i) तक मे उन संपत्तियों का उपबंध किया गया है जिनका अंतरण नहीं किया जा सकता है जिन्हे क्रम से निम्नानुसार समझा जा सकता है :
A) संभावना मात्र:
ऐसी कोई भी संपत्ति अंतरित नहीं की जा सकती है जिसके प्राप्त होने की मात्र संभवना है,जैसे
- किसी प्रत्यक्ष वारिस की सम्पदा का उत्तराधिकारी होने की संभावना अर्थात यदि कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष वारिस होने के आधार पर उत्तराधिकार मे प्राप्त होने वाली संभावित संपती को अंतरित करना कहता है तो वह ऐसा नहीं कर सकता क्यों की यह निश्चित नहीं है कि, कौन किसका उत्तराधिकारी होगा , इसलिय ऐसी संभावना मात्र अंतरित नहीं की जा सकती है ।
- कुल्य (सम्पूर्ण) की मृत्यु पर किसी नातेदार की वसीयत-सम्पदा अभिप्राप्त करने की संभावना अर्थात किसी नातेदार की मृत्यु पर वसीयत के द्वारा पाने की संभावना है तो ऐसी संपत्ति का अंतरण नहीं किया जा सकता है ।
- अन्य ऐसी ही कोई संभावना है तब उसका अंतरण नहीं हो सकता है , जैसे दान मे संपत्ति प्राप्त होने की संभावना है ।
B) पुन: प्रवेश का अधिकार :
जहां कोई संपत्ति अंतरक द्वारा अपने पुन: प्रवेश का अधिकार की शर्त के साथ अंतरण किया है तब , पुन : प्रवेश का अधिकार का अंतरण नहीं किया जा सकता , सिवाय जब तक ऐसे सम्पूर्ण संपत्ति ही अंतरित न कर दी गई हो ।
जैसे – अ ने अपना घर ब को 2 वर्ष के लिए पट्टे पर इस शर्त के साथ अंतरित किया कि उस घर मे खड़े पेड़ पौधों को काटेगा नहीं वह ऐसे करता है तो उसे /अ को पुन : प्रवेश का अधिकार होगा । यदि इस दशा मे ऐसा अंतरण करता है तो वह अवैध होगा । लेकिन वह अपनी सम्पूर्ण संपती स को अंतरित कर देता है तो उसके साथ ऐसे अधिकार का भी अंतरण हो जाता है ।
C)सुखाचार:
कोई सुखाचार मुख्य स्थान से प्रथक करके अन्तरित नहीं किया जा उस सकता. अर्थात सुखाचार का प्रमुख स्थान से, जिसके साथ वह अधिकार जुड़ा है, अलग करके अन्तरित नही किया जा सकता हैं जब तक कि मुख्य स्थान भी उनके साथ अन्तरित न किया गया हो।
जैसे:- A ” का एक घर है जिसके पास से B का एक प्लाट है, जिससे A को जान-जाने का सुखाधिकार प्राप्त है। यदि मार्ग के सुखाधिकार को C को अन्तरित करना चाहें तो ऐसा नही कर सकता, जब तक कि अपना मकान ही C को अन्तरित नही कर देता।
D) वैयक्तिक अधिकार :-
सम्पति में का कोई भी ऐसा हित अन्तरित नही किया जा सकता, जिसका उपयोग केवल स्वामी तक ही निर्बन्धित है ।
जैसे- किसी पद की प्राप्त करना,धार्मिक पद, पुरुस्कार पाना आदि
उक्त ऐसा अधिकार है, जिसे व्यक्ति ही उपयोग सकता है, वह चाहे भी तो अन्तरित नही कर कर सकता है।
E) भावी भरण पोषण का अधिकार :
ऐसा अधिकार जिसके माध्यम से भविष्य में भरण-पोषण मिलना हो अन्तरित नही किया सकता है भले ही भाव भरण-पोषण अधिकार किसी भी ढंग से उद्भूत,प्रतिभूत या अवधारित हुआ हो।
जैसे तलाक के बाद धरण-पोषण का पति से पत्नि को मिलने वाला अधिकार।
F) वाद लाने अधिकार का अधिकार मात्र:
कोई भी ऐसे अधिकार का अन्तरण नहीं किया जा सकता है, जो केवल वाद लाने के लिए हो अर्थात मात्र वाद लाने का अधिकार अन्तरित नही होगा।
A को B के विरुद्ध मानहानि के लिए वाद लाने का अधिकार है। A अपने अधिकार को C को अन्तरित करता है, तो ऐसा अन्तरण नहीं किया जा सकता है
G) लोकपद व वेतन :
लोकपद अन्तरित नही सकता है। लोकपद वैसे तो संपत्ति अंतरण में परिभाषित नहीं किन्तु सिविल प्रक्रिया संहिता में ‘”लोक आफिसर” को धारा 2(17) मे अवश्य परिभाषित किया गया है। वह व्यक्ति जो सरकार की सेवा में है, और उसके एवज में सरकार से पारिश्रमिक पाता है। ऐसा व्यक्ति लोक आफिसर होता है और उसका वह पद लोक पद कहलाता है।
ऐसे अधिकारी का वेतन भी अन्तरित नहीं किया सकता है, भले ही उसके संदाय- योग्य होने से पहले किया जाए या बाद मे। क्यों कि वेतन अधिकारी को उसके स्तर व सुख-सुविधाओं को बनाये रखने हेतु दिया जाता है।
H) पेंशन व प्रतिकार :
व्रतिकाएं जो सरकार के सैनिक, नौसैनिक, वायुसैनिक व सिविल पेन्सन पेन्शन भोगियों को प्राप्त होती है, उनको अन्तरित नही किया जा सकता है और न ही उनको रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन अन्तरित की सकती, इसमें राजनैतिक पेंशन भी आती है।
I) हित की प्रकृति के विरुद्ध अंतरण
- सम्पति अन्तरण अधीन ऐसा कोई भी सम्पति अन्तरित नही किया सकता है, जो हित की प्रकृिति के जा प्रतिकूल (विपरीत) है।जैसे- सूर्य का प्रकाश हवा आदि का अन्तरण नही हो सकता है।
- ऐसी कोई भी सम्पति का अन्तरण नही की जा जो भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 23 अधीन विधि विरुद्ध उद्देश्य व प्रतिफल लिए हो।
- ऐसा कोई भी अंतरण किसी भी संपत्ति का नही किया जा सकता है जिसके अन्तरिती को अन्तरिती होने से विधिपूर्वक निर्योग्य घोषित लिया हो।
J) अनन्तरनीय अनन्तरणीय हित का अन्तरण:
कोई भी अभिधारी जिसे उपभोग का अनन्तरणीय अधिकार प्राप्त है , पट्टेदार जिसे प्रतिपालय अधिकरण के प्रबंध के अधीन किसी सम्पति का प्रबंध करता है या किसी ऐसे फार्मर को जिसकी सम्पदा का राजस्व देने में व्यतिक्रम किया हुआ है। उक्त सभी की प्राप्त अपने हित को समानुदेशित करने का प्राधिकार नही होगा। अर्थात वे अपने हित को किसी अन्य को नहीं दी सकते है
उक्त सभी सम्पतियां अन्तरित नहीं की जा सकती हैं । यदि उनका अंतरण किया जाता है तो ऐसा अन्तरण विधि विरुद्ध होगा और अंतरण अवैध होगा।