भारत के राष्ट्रपति | योग्यता | निर्वाचन president of India| election in Hindi

भारत के राष्ट्रपति | योग्यता | निर्वाचन president of India| election in Hindi

भारत में संसदीय प्रणाली की सरकार की स्थापना की गई है, जिसमें राष्ट्रपति नाममात्र का संवैधानिक प्रमुख होता है,जबकि वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित होती है, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। भारतीय संविधान के भाग 5 में संघीय कार्यपालिका शक्ति के अधीन अनुच्छेद 52 से लेकर 62 तक में राष्ट्रपति के संबंध में प्रावधान किए गए हैं।

 

 

 

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राष्ट्रपति कौन होता है?

राष्ट्रपति किसी भी देश का संवैधानिक मुखिया होता है यानी किसी भी राष्ट्र का सर्वोच्च अधिकारी होता है, जिसके नाम से ही संपूर्ण कार्यपालिका कार्य करती है।

भारत के राष्ट्रपति

भारत के राष्ट्रपति के संबंध में अनुच्छेद 52 में कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा। राष्ट्रपति में कार्यपालिका शक्ति निहित होगी, वह अपनी इस कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग संविधान के अनुसार या अपने अधीनस्थ अधिकारियों की सहायता से करता है अर्थात मंत्रिपरिषद की सहायता से भारत के राष्ट्रपति अपनी कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करते हैं, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। साथ ही भारत के राष्ट्रपति भारत की संसद का एक अभिन्न अंग होते हैं राष्ट्रपति के बिना भारतीय संसद की कल्पना करना अवांछनीय है।

भारत के राष्ट्रपति की योग्यताएं/अर्हताएं 

भारत में संविधान द्वारा तथा समय- समय पर सृजित विधि ने राष्ट्रपति पद के लिए कुछ योगताएं निर्धारित की है जो की निनलिखित है –
1.भारत का नागरिक हो।
2. 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो। 
3. लोकसभा का सदस्य चुने जाने के लिए अर्हित हो
4. सरकार के अधीन लाभ का पद धारण नहीं करता हो।
यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि यदि कोई व्यक्ति पहले से ही राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या संघ या राज्य में मंत्री पद पर होते हुऐ, राष्ट्रपति का चुनाव लड़े तो उसे लाभ का पद धारण करने वाला नहीं माना जाएगा।[Article 58]
5. राष्ट्रपति संसद के किस सदन का या किसी राज्य विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि ऐसा कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है, तब उसके पद ग्रहण करने की तारीख से यह समझा जाएगा की उसने ऐसे सदन में अपना पद रिक्त कर दिया है ।[article 59(1)]
6. निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान करता है और उसपर हस्ताक्षर करता है। यहाँ बता देना आवश्यक है कि संसद ने राष्ट्रपति एंव उपराष्ट्रपति निर्वाचन (संशोधन) अधिनियम 1997 के माध्यम से अब राष्ट्रपति के नामांकन के लिए कम से कम पचास निर्वाचको ( मतदाताओं ) के प्रस्थापको के रूप में और कम से कम पचास ‘ निर्वाचकों के समर्थको के  रूप में हस्ताक्षर किए जाएंगे। 
6.1 जमानत स्वरूप 5,000 रुपए जमा किये हो।
[अनुच्छेद 84 & राष्ट्रपति एंव उपराष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम1952 ]

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राष्ट्रपति के लिये निरर्हताएं

संविधान में राष्ट्रपति पद के निरर्हताओं के संबंध में विशेष रूप से कोई प्रावधान नहीं किये गये हैं, लेकिन अनुच्छेद 54 में राष्ट्रपति पद के लिए “लोकसभा का सदस्य चुने जाने के लिए योग्य होने” को एक अर्हता के रूप में समाविष्ट किया गया है। अनुच्छेद 84 में लोकसभा के सदस्य होने के लिए अर्हताएं वर्णित है। दरअसल लोकसभा का सदस्य ही संसद का सदस्य  होता है, और संसद के सदस्यों के लिए निरर्हताएं अनुच्छेद 102 में वर्णित की गई हैं, इसलिए राष्ट्रपति के लिए भी लागू होंगी जो कि निम्न है –
1.लाभ का पद धारण करता है।
2. विकृतचित है और सक्षम न्यायालय की घोषणा मौजूद है।
3.वह अनुन्मोचित ( undischgaged ) दिवालिया है।
4. वह भारत का नागरिक नहीं रहा है।
5. वह स्वेच्छा से किसी देश की नागरिकता प्राप्त कर ले।
6. किसी विदेशी राष्ट्र के प्रति निष्ठा रखता है या अनुषक्ति ( alligoince ) को अभिस्वीकार किए हुए है।
7. संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन निरर्ह घोषित किया है ।  [Article 102]

राष्ट्रपति की पदावधि

भारत का राष्ट्रपति जिस दिन अपना पद ग्रहण करता है उस दिन से 5 वर्ष तक, राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है। [Article 56(1)]

राष्ट्रपति के पद की रिक्ति 

भारत का राष्ट्रपति वैसे तो अपने पद ग्रहण की तारीख से 5 वर्ष के लिए पद धारण करता है किंतु उक्त अवधि से पहले भी उनका पद रिक्त हो सकता है जैसे-
  1. यदि उनकी मृत्यु हो जाए। 
  2. यदि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंप देते हैं और इसकी सूचना तुरंत लोकसभा के अध्यक्ष को दे दी जाती है।
  3. संविधान का अतिक्रमण करने के आधार पर उन पर महाभियोग लगाया गया हो और दोनों सदनों के द्वारा उस अभियोग के संबंध में दोषी पाया गया हो।
  4. यदि राष्ट्रपति चुनाव उच्चतम न्यायालय के द्वारा शून्य घोषित कर दिया जाता है। 
 
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कार्यवाहक राष्ट्रपति

यदि मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है, उस दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा, जिस तारीख को नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करता है। इस प्रकार राष्ट्रपति का पद रिक्त होने की तारीख से छह माह के भीतर ही नए राष्ट्रपति को चुना जाता है । रिक्ति की दशा में उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में 6 माह तक कार्य कर सकता है।
यदि राष्ट्रपति, अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ होता है, तो उपराष्ट्रपति उस तारीख तक उसके कृत्यों का निर्वहन करेगा, जिस तारीख को राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है। [Article 62 & 65]

फिर से चुने जाने के लिए पात्रता

यदि भारत में व्यक्ति एक बार राष्ट्रपति चुन लिया जाता है,तब क्या वही व्यक्ति को फिर से राष्ट्रपति चुना जा सकता है? इस संबंध में अनुच्छेद 57 यह प्रावधान करता है कि यदि कोई व्यक्ति जो पहले राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है या पद धारण कर चुका है, तो वह राष्ट्रपति चुनाव के लिए संविधान में विहित प्रावधानों के अधीन रहते हुए, फिर से चुनाव लड़ने के लिए पात्र होगा। यानी एक बार राष्ट्रपति बन जाने के बाद फिर से वही व्यक्ति राष्ट्रपति बन सकता है।[Article 57]
 

राष्ट्रपति का निर्वाचन कब होता है?

राष्ट्रपति का निर्वाचन हमेशा वर्तमान राष्ट्रपति के 5वर्ष की पदावधि के समाप्त होने से पहले ही कराना अनिवार्य होता है। यदि राष्ट्रपति का पद उक्त अवधि की समाप्ति होने से पहले ही अर्थात राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने के बाद मृत्यु, पद त्याग या पद से हटाए जाने या अन्य किसी कारण से  रिक्त हो जाता है, तब ऐसी दशा में 6माह के भीतर निर्वाचन कराना अनिवार्य होता है और इस प्रकार चुना हुआ राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पूरी 5 वर्ष तक पद धारण करने का हकदार होता है। [Article 62]

 

राष्ट्रपति का निर्वाचन 

राष्ट्रपति के निर्वाचकगण

राष्ट्रपति का निर्वाचन निर्वाचकगण के सदस्य करते हैं और ऐसे निर्वाचकगण का गठन –
संसद के दोनो सदनों के निर्वाचित सदस्य और
राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों से मिलकर होता है। निर्वाचकगण में उन केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भी शामिल होते हैं,जिनमें विधान सभा का गठन किया गया है। ऐसा प्रावधान संविधान (सत्तरवा संशोधन) अधिनियम 1992 से किया गया है। राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा एवं राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्दिष्ट एवं प्रत्येक राज्यों की विधानसभाओं में राज्यपाल द्वारा नाम निर्दिष्ट सदस्यों को निवाचकगण में शामिल नहीं किया जाता है। यानी उन्हें राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान करने का अधिकार नहीं होता है।
[Article 54]

राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति

राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है।जहां तक संभव हो राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापमान में एकरूपता होगी। राज्यों में एकरूपता तथा सभी राज्यों एवं संघ में समतुल्यता प्राप्त करने के लिए संसद तथा राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य अर्थात विधायक राष्ट्रपति के निर्वाचन में जितने मत देने के हकदार होंगे उनकी संख्या निम्नलिखित रीति से अवधारित की जाती है –
  • (A) एक राज्य के प्रत्येक निर्वाचित विधानसभा सदस्य के मत की संख्या अवधारित करने के लिए राज्य की कुल जनसंख्या में विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या और 1000 के गुणित करने पर जो भागफल प्राप्त होता है, वही एक राज्य के एक विधायक का मत मूल्य होता है। यदि इस प्रकार शेष फल 500 से कम नही होता है, तब उसमे 1 जोड़ दिया जाता है।
  • (B) संसद के निर्वाचित सदस्य का मत मूल्य प्राप्त करने के लिए सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों( विधायकों) के मतों की कुल संख्या को, संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर जो भागफल प्राप्त होता है, वह एक सांसद का मत मूल्य होगा। यदि प्राप्तांक भिन्न के रूप में आधे से अधिक है तो उसे एक गिना जाएगा।
इस तरह से एकरूपता और समतुल्यता को ज्ञात किया जाता है इनका समेकित रूप को ही आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति कहा जाता है।
 

एकल संक्रमणीय मत पद्धति

राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा कराया जाता है। राष्ट्रपति के निर्वाचन मतपत्र के द्वारा होता होता और ऐसा मतदान गुप्त होता है । मतपत्र में दो कॉलम होते है जिसमे पहले कॉलम में अभ्यर्थी का नाम  अंकित होता है तथा दूसरे कॉलम में अधिमान का क्रम अंकित होता है। इस प्रकार निर्वाचकगण अपनी पसंद के अभ्यर्थी के नाम के आगे अपना अधिमान अर्थात वरीयता का क्रम 1 2 3 के रूप में, जितने अभ्यर्थी  है, उस संख्या तक लिखते हुए अपना मतपत्र मतपेटी में डाल देता है। अभ्यर्थी को विजेता होने के लिए एक निश्चित संख्या में मत प्राप्त करने होते हैं, इसी संख्या को  निर्धारित कोटा कहते हैं।
 

निर्धारित कोटा 

राष्ट्रपति के निर्वाचन में विजेता होने के लिए निर्धारित कोटा को प्राप्त करना होता है। निर्धारित कोटा निकालने के लिए विधिमान्य मतों की कुल संख्या को 2 से भाग देना के उपरांत एक जोड़ देने पर जो संख्या प्राप्त होती है, वही निर्धारित कोटा होता है। 
जैसे मान लेते है की राष्ट्रपति के निर्वाचन में कुल वैध मत 1000 है तब इसे 2 से भाग देने पर 500 प्राप्तांक होता है इसमें 1 और जोड देने पर 501 निर्धारित कोटा होगा। 
जब कोटा तय हो जाता है,उसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर यह देखता है कि, किसी अभ्यर्थी को प्रथम अधिमान (वरीयता) प्राप्त मतों का योग निर्धारित कोटा को पूरा प्राप्त किया है। यदि प्राप्त कर लेता है तो उस अभ्यर्थी को विजेता घोषित किया जाता है। यदि प्रथम अधिमान (वरीयता) के मतों के योग करने पर कोई भी अभ्यर्थी निर्धारित कोटा प्राप्त नहीं कर पाता है तब फिर रिटर्निंग ऑफिसर दूसरे दौर की प्रक्रिया शुरू करता है, इसमें प्रथम प्रक्रिया में जिस अभ्यर्थी को सबसे कम मत प्राप्त हुए थे उसे बाहर कर दिया जाएगा और उसके द्वितीय अभिमान (वरीयता) के मतों  को अन्य शेष अभ्यर्थियों के प्रथम वरीयता के मतों में जोड़ दिया जाएगा और इस  प्रकार जोड़ने पर यदि कोई अभ्यर्थी निर्धारित कोटा को प्राप्त कर लेता है तो उसे विजेता घोषित किया जाता है। यदि दूसरे दौर किए प्रक्रिया में भी कोई अभ्यर्थी कोटा को प्राप्त नहीं करता है, तब इसी प्रकार तीसरे, चौथे आदि दौर की प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक कोई व्यक्ति निर्धारित कोटा को प्राप्त नहीं कर लेता है।
 
निर्वाचन से संबंधित विवाद
यदि राष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न या उससे जुड़ी कोई शंका रहती है और निर्वाचन  से संबंधित कोई विवाद होता है तब इसका निपटारा उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है और उसका निर्णय अंतिम होता है। [ Article 71]
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