समान नागरिक संहिता की उत्पत्ति (Origin of Uniform Civil Code):
भारत में समान सिविल संहिता का बीज ब्रिटिश काल के दौरान पड़ा, जब देश में कानूनों का संहिताकरण के लिए विभिन्न विषयों पर मसौदा तैयार करने के लिए चार्टर अधिनियम 1833 की धारा 53 के द्वारा 1835 में पहले विधि आयोग का गठन किया गया। टी.बी .मैकाले,की अध्यक्षता मे चार सदस्य सी.एच. कैमरून, जे.एम. मैकलियोड, जी.डब्ल्यू. एंडरसन और एफ. मिलेट से मिलकर आयोग गठन हुआ। आयोग का प्रमुख कार्य
1.दंडात्मक कानून का संहिताकरण;
- गैर-हिन्दुओं और गैर-मुसलमानों पर लागू होने वाला कानून उनके विभिन्न अधिकार (लेक्स लोकी रिपोर्ट);
- सिविल और आपराधिक प्रक्रियात्मक कानून का संहिताकरण आदि, थे ।
इस तरह आयोग का ध्यान नागरिक कानून की अनिश्चितता पर गया जो मुफस्सिल क्षेत्रों में गैर-हिन्दुओं और गैर-मुसलमानों पर लागू होता था।
अध्ययन के बाद इस संबंध में एंड्रयू आमोस की अध्यक्षता में 31 अक्टूबर, 1840 को अपनी रिपोर्ट(लेक्स लोसी) प्रस्तुत की, जिसमें इंग्लैंड में लागू कानून को भारत में लागू करने की सिफारिश की गई थी हालांकि हिन्दू और मुसलमानों को इससे बाहर रखा गया था।
इसके बाद सिविल एवं दांडिक कानूनों का पेश किया गया, लेकिन 1859 में महारानी के द्वारा की गई घोषणा के अनुसार, धार्मिक मामलों में व्यक्तियों को स्वतंत्रता प्रदान की गई और न्यायालयों को लोगों के व्यक्तिगत विधि के अनुसार उनके मामलों को निस्तारित करने के यथा आवश्यक निर्देश दिए गए।
इसके बाद वर्ष 1941 में बी एन राव की अध्यक्षता में हिन्दू विधि समिति का गठन किया। इस समिति ने, एक संहिताबद्ध हिंदू कानून की सिफारिश की जिसमें महिलाओं को समान अधिकार देने का प्रावधान किया गया, साथ ही इस समिति द्वारा वर्ष 1937 के अधिनियम की समीक्षा भी की गई।
तत्पश्चात 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ। बी आर अंबेडकर जी ने एक समान सिविल संहिता का समर्थन किया और एक लंबी बहस के बाद अनुच्छेद 44 के रूप में शामिल कर लिया गया ।
अनुच्छेद 44 के अनुसार:
44 नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता- राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा ।
इस तरह भारत में नीति निदेशक तत्व के रूप में समान सिविल संहिता को अपनाया गया और राज्य पर इसे बनाने का दायित्व सौंपा गए है । संविधान लागू होने के 72 वर्ष बाद भी राज्य के द्वारा समान सिविल संहिता को लागू नहीं किया जा सका है। हालांकि गोवा एकमात्र राज्य है जहां समान सिविल संहिता लागू है ।