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अंगडी चंद्रन्ना बनाम शंकर | संयुक्त व स्व-अर्जित संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय|निर्णय दिनांक : 22 अप्रैल, 2025

परिचय

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में, हिंदू विधि के अधीन विभाजन के बाद स्व-अर्जित संपत्ति की स्थिति को स्पष्ट किया। न्यायालय ने अवधारित किया कि वैध विभाजन के पश्चात निजी धन या ऋण का उपयोग करके सहदायिक द्वारा क्रय की गई संपत्ति को स्व-अर्जित संपत्ति माना जाएगा, और मात्र सहदायिक स्थिति के आधार पर विधिक उत्तराधिकारियों द्वारा पैतृक संपत्ति के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है।

यह निर्णय संयुक्त परिवार की संपत्ति, स्व-अधिग्रहण, तथा धारा 100 सीपीसी के अधीन अपीलीय हस्तक्षेप की सीमाओं के संबंध में स्थापित विधिक सिद्धांतों को पुष्ट करता है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद प्रतिवादी क्र. 1 (सी. जयरामप्पा) की संतान द्वारा 1994 में शुरू किए गए  विभाजन एवं पृथक कब्जे के लिए सिविल वाद से उत्पन्न हुआ। वादी ने महादेवपुरा गांव, चल्लकेरे तालुक में स्थित 7 एकड़ 20 गुंटा की भूमि पर पैतृक संपत्ति के आधार पर अपने अधिकार का दावा किया।

मामले के तथ्य :

  • 1986 में तीन भाइयों – प्रतिवादी क्र. 1 और उसके भाई-बहनों के बीच एक पंजीकृत विलेख के द्वारा विभाजन  हुआ। इस विभाजन के अधीन विवादित संपत्ति मूल रूप से सी. थिप्पेस्वामी (प्रतिवादी क्र. 1 के भाई) को आवंटित की गई थी।
  • 16 अक्टूबर 1989 को प्रतिवादी क्र. 1 ने पंजीकृत विक्रय  विलेख के माध्यम से थिप्पेस्वामी से विवादित संपत्ति क्रय की।
  • 11 मार्च 1993 को प्रतिवादी क्र. 1 ने प्रतिवादी क्र. 2 (अंगडी चंद्रन्ना) को भूमि विक्रय कर दी।
  • वादी (प्रतिवादी क्र.1 की संतान ) ने विक्रय को चुनौती दी और विभाजन की एवं पृथक कब्जे की मांग की, जिसमें दावा कि भूमि पैतृक है तथा संयुक्त परिवार की संपत्ति का भाग है।

प्रक्रियात्मक पृष्ठभूमि:

न्यायालय परिणाम
विचारण न्यायालय (2001) वादीगण के पक्ष में डिक्री दी गई; संपत्ति को पैतृक घोषित किया गया।
प्रथम अपीलीय न्यायालय (2006) विचारण न्यायालय के निर्णय को उलट दिया गया; अवधारित किया कि भूमि प्रतिवादी क्र.1 द्वारा स्व अर्जित की गई थी।
कर्नाटक उच्च न्यायालय (2021) अपीलीय न्यायालय के निर्णय को अपास्त कर दिया; ट्रायल कोर्ट के निर्णय को पुन:स्थापित किया।
उच्चतम न्यायालय (2025) अपील स्वीकार की व प्रतिवादी क्र. 2 के पक्ष में अपीलीय न्यायालय के निर्णय को बहाल किया गया।

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचारणीय प्रश्न :

1. क्या वाद संपत्ति पैतृक थी या स्व-अर्जित?(मुख्य प्रश्न)

2. क्या उच्च न्यायालय ने तथ्यों का पुनर्मूल्यांकन करके धारा 100 सीपीसी के अधीन अपने क्षेत्राधिकार के भीतर कार्य किया?

3. क्या संयुक्त परिवार अधिग्रहण की धारणा को उचित ठहराने वाले एकल परिवार  का साक्ष्य था

4. क्या स्वअर्जित संपत्ति को संयुक्त परिवार की संपत्ति के साथ मिलाने का सिद्धांत लागू था?

सर्वोच्च न्यायालय का विश्लेषण एवं निष्कर्ष

उच्च न्यायालय द्वारा द्वितीय अपीलीय क्षेत्राधिकार का दुरुपयोग

न्यायालय ने धारित किया कि उच्च न्यायालय ने वैध विधि का सारवान प्रश्न विरचित किए बिना, सीपीसी की धारा 100 के अधीन तथ्यों के निष्कर्ष में त्रुटिपूर्ण ढंग से हस्तक्षेप किया ।

 “जब तक निष्कर्ष अनुचित या विधि के प्रतिकूल न हों, तब तक साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन द्वितीय अपील में अनुमेय नहीं है।”

सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि द्वितीय अपील केवल सारवान विधि विवाद्यक तक ही सीमित है, न कि तथ्य-निष्कर्ष या वैकल्पिक निर्वचनों के लिए।

वाद संपत्ति स्व-अर्जित है

न्यायालय ने इस पर निष्कर्ष निकाला कि:

प्रतिवादी क्र.1 ने विभाजन के पश्चात अपने भाई से वाद भूमि क्रय की। उसने क्रय को व्यक्तिगत ऋण (प्र.सा.3 सहित कई साक्षियों द्वारा साबित) के माध्यम से वित्तपोषित किया न कि संयुक्त परिवार की आय से।

विक्रय विलेख (प्रदर्श. D1) तथा  प्र.सा.1 लगायत प्र.सा. 4 के कथनों ने समर्थन किया कि संपत्ति ऋण धन का उपयोग करके क्रय गई थी, और बाद में ऋण संदाय के लिए एक प्रथक भूमि विक्रय की गई थी।

इसलिए, न्यायालय ने पाया कि कोई संयुक्त एकल परिवार(joint family nucleus) या कोई साक्ष्य नहीं है, जो यह दर्शाता हो की वाद संपत्ति का क्रय पैतृक धन का उपयोग करके किया गया था ।

पैतृक स्थिति के दावेदार पर सबूत का भार है

आर. देवनाई अम्मल बनाम मीनाक्षी अम्मल जैसे निर्णयों का निर्देश करते हुए, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया:

मात्र संयुक्त हिंदू परिवार का अस्तित्व संयुक्त परिवार की संपत्ति की उपधारण नहीं करता।

वादीगण यह साबित करने में विफल रहे कि क्रय धन पैतृक आय का केंद्र(nucleus) था। यह दावा कि प्रतिवादी क्र. 1 की दादी ने 10,000 रुपये का योगदान दिया या यह कि आय पैतृक भूमि से आई, दस्तावेजी साक्ष्य या विश्वसनीय गवाही द्वारा समर्थित नहीं थे।

मिश्रण का सिद्धांत (Doctrine of Blending) लागू नहीं

उच्चत्तम न्यायालय ने  उच्च न्यायालय  द्वारा मिश्रण के सिद्धांत  लागू किए जाने को नामंजूर कर दिया, जो तब लागू होता है जब सहदायिक स्वेच्छा से स्व-अर्जित संपत्ति को संयुक्त परिवार की संपत्ति मानता है।

वर्तमान मामले में:

प्रतिवादी क्र.1 द्वारा पृथक स्वामित्व को त्यागने का कोई आशय दर्शित नहीं गया था। केवल सह-निवास या खातों का अपृथक्करण मिश्रण के अर्थ में नहीं है।

विभाजन के पश्चात ऋण के साथ क्रय गई संपत्ति स्व-अर्जित रहती है।

विक्रय विधिक आवश्यकता के लिए था

यह भी नोट किया गया कि प्रतिवादी क्र. 1 ने अपनी बेटी का विवाह करने के लिए विक्रय आय का उपयोग किया, जिसे हिंदू विधि के अधीन विधिकआवश्यकता एवं कुटुंब कर्ता द्वारा संपत्ति के हस्तांतरणके लिए एक वैध आधार माना जाता है।

याद रखने योग्य बातें (Key Takeaways)

  • व्यक्तिगत ऋण या अलग आय का उपयोग करके पैतृक संपत्ति के वैध विभाजन के बाद खरीदी गई संपत्ति स्व-अर्जित संपत्ति होती है।
  • उच्च न्यायालयों को साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन नहीं करना चाहिए जब तक कि विधि का कोई सारवान प्रश्न शामिल न हो।
  • यदि स्व-अर्जित संपत्ति स्वेच्छा से संयुक्त परिवार कोष (family pool) में नहीं डाली जाती है, तो मिश्रण का सिद्धांत(Doctrine of blending) लागू नहीं होता है। इसके  के लिए संपत्ति पर पृथक स्वामित्व को त्यागने का आशय होना आवश्यक है।
  • यह साबित करने का भार दावेदार पर होता है कि संपत्ति पैतृक है या संयुक्त परिवार के धन से खरीदी गई है।
  • विवाह व्यय कर्ता द्वारा संपत्ति की विक्रय के लिए वैध आधार हैं।

उद्धरण और संदर्भ

निर्णय का शीर्षक: अंगडी चंद्रन्ना बनाम शंकर और अन्य

उद्धरण: 2025 आईएनएससी 532

निर्णय दिनांक: 22 अप्रैल, 2025

पीठ: न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन

 

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