important judgements of 2022 pdf | landmark judgements of supreme court of india 2022 | 2022 के महत्वपूर्ण निर्णय
भारत संघ बनाम अलापन बंद्योपाध्याय (06 January 2022)
पीठ : जस्टिस ए.एम. खानविलकर एवं जस्टिस सी.टी. रविकुमार
निर्णय : “संविधान के अनुच्छेद 323A और अनुच्छेद 323B के अधीन गठित किए गए न्यायाधिकरणों (Tribunals) के सभी निर्णय, उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के समक्ष जांच के अधीन होंगे, जिसके क्षेत्राधिकार में संबंधित न्यायाधिकरण आता है”
दूसरे शब्दों में, ट्रिब्यूनल के किसी भी निर्णय की जांच, उस उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष जाएगी, जिसके जिसके क्षेत्राधिकार में संबंधित ट्रिब्यूनल आता है।
लॉयर्स वॉयस बनाम पंजाब राज्य ( January 12, 2022)
पीठ : ..सीजेआई एन.वी. रमण, जस्टिस सूर्यकांत, व जस्टिस हिमा कोहली
5 जनवरी 2022 को प्रधनमंत्री फिरजोपुर (पंजाब) की यात्रा के दौरान सुरक्षा में हुई चूक की गंभीरता की जांच करने के लिए उच्चतम न्यायालय की से सेवानिवृत्त न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया गया ।
अरुणाचल गौंडर (मृत)द्वारा वि.प्र. बनाम पोन्नुसामी व अन्य (20January2022)
पीठ : जस्टिस अब्दुल नजीर व जस्टिस कृष्ण मुरारी
निर्णय: एक पुत्री अपने पिता की स्वा-अर्जित (self acquired) को पुत्र के समान प्राप्त करने की अधिकारणी होती है, तथा निर्वसीयत मृत हिन्दू पुरुष की पुत्री अन्य संपार्श्विक की तुलना में ऐसी संपत्ति को प्राप्त करने की हकदार होगी।
यदि किसी महिला की मृत्यु बिना संतान के होती है तब यदि उसने अपने माता- पिता से उत्तराधिकार में संपत्ति प्राप्त की है तब पिता के उत्तराधिकारियों को चली जाएगी और यदि संपत्ति अपने पिता या श्वसुर से विरासत में प्राप्त की है , तो वह उसके पति के उत्तराधिकारियों को चली जाएगी।
यदि महिला की मृत्यु के बाद पति या संतान जीवित हैं तब हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धार 15(1) के खंड(a) के क्रमानुसार न्यायगत होगी ।
नील ऑरेलियो नून्स व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य (January 20, 2022)
पीठ : जस्टिस डॉ. धनंजय वाई चंद्रचूड़, व जस्टिस एएस बोपन्ना
निर्णय:
यूजी और पीजी मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रमों के लिए अखिल भारतीय कोटा(AIQ) सीटों में ओबीसी उम्मीदवारों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण संवैधानिक रूप से विधिमान्य है अर्थात संवैधानिक है ।
अनुच्छेद 15(4) और 15 (5) अनुच्छेद 15 (1) के अपवाद नहीं हैं, जो स्वयं मौलिक समानता के सिद्धांत ( विद्यमान असमताओं की मान्यता सहित) को निर्धारित करता है, इस प्रकार, अनुच्छेद 15 (4) और 15 (5) मौलिक समानता (substantive equality) के नियम के एक विशेष खंड (facet) का पुनर्कथन बन जाते हैं, जिसे अनुच्छेद 15 (1) में उपवर्णीत किया गया है;
उमादेवी नाम्बियार बनाम थामरासेरी रोमन केथोलिक डायोसी (April 01, 20222)
पीठ : जस्टिस हेमन्त गुप्ता, व जस्टिस वी. रामासुब्रमनियन
निर्णय:
यदि पॉवर ऑफ एटार्नी विलेख के द्वारा उसके धारक को मात्र सम्पत्ति प्रबंधन का
अधिकार दिया गया है तथा उसमें सम्पत्ति विक्रय करने की शक्ति एटार्नी धारक उसे नहीं दी है ,तब पॉवर ऑफ एटार्नी के धारक को सम्पत्ति विक्रय करने का अधिकार नहीं होगा और यदि इस प्रकार विक्रय किया गया है, तब सम्पत्ति का मूल स्वामी (पॉवर ऑफ एटार्नी का निष्पादक) सम्पत्ति वापस प्राप्त करने का हकदार होगा क्यों की ऐसा अंतरण संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 41 के अधीन अवैध है ।
अकिला ललिता (ललिथा) बनाम कोन्डा हनुमंथा राव व अन्य (July 28, 2022)
पीठ : जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और कृष्ण मुरारी,
निर्णय:
माँ बच्चे का एकमात्र संरक्षक होने के कारण बच्चे का कुलनाम (उपनाम) विनिश्चित करने का अधिकार धारण करती है। वह बच्चे को दत्तक में देने का भी अधिकार धारण करती है। न्यायालय हस्तक्षेप करने की शक्ति धारण कर सकता है, किन्तु केवल तब ही जब इस प्रभाव को कोई विनिर्दिष्ट प्रार्थना किया गया हो और ऐसी प्रार्थना अवश्य ही ऐसी धारणा पर केन्द्रित होना चाहिए कि बच्चे का कल्याण प्राथमिक प्रतिफल (विचार) है।
मोहम्मद लतीफ़ माग्रे बनाम जम्मू एवं कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र (September12, 2022)
पीठ : जस्टिस सूर्यकांत और जे. बी. पारदीवाला,
निर्णय:
संविधान के अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत गरिमा और उचित व्यवहार का अधिकार न केवल एक जीवित व्यक्ति को उपलब्ध है, बल्कि एक व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसके शरीर (शव) को भी प्राप्त है। किसी शव को दफन कर दिए जाने के बाद, वह विधि के अभिरक्षा में होना माना जाता है,
एक्स बनाम मुख्य सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग दिल्ली सरकार (September 29, 2022)
पीठ: न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ए.बी.बोपन्ना न्यायमूर्ति जे.बी. पर्दीवाला
निर्णय: मेडिकल टर्मिनेशन एंड प्रेगनेंसी अधिनियम(MTP Act) की धारा 3(2)(b) सहपठित नियम 3B का उद्देश्य महिला की तात्विक परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण अवांछित बना दिए गए 20से 24 सप्ताह के बीच के गर्भपात प्रदान करना है।
इस प्रावधान के अंतर्गत गर्भपात कराने का अधिकार केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित था जो अनुच्छेद14 के प्रतिकूल है,। अनुच्छेद14 सभी को विधि के समक्ष समता और समान संरक्षण प्रदान करता है, इसलिए अविवाहित एवं एकल महिलाओं को, जिनका गर्भ 20 से 24 सप्ताह के बीच है, विवाहित महिलाओं के समान ही गर्भपात करने का अधिकार होगा।
अविवाहित एवं एकल महिलाओं को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गरिमा, निजता तथा प्रजनन स्वायतता का अधिकार एक विवाहित महिला के समान ही बच्चे को जन्म देने या न् देने के विकल्प का अधिकार प्रदान करता है ।
सुनील लोरा बनाम राजस्थान राज्य ( )
पीठ: न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न
निर्णय: अभियुक्त की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि, आर्य समाज के द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र मान्य नहीं है। आर्य समाज का कार्य विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं है, यह कार्य केवल इस हेतु सक्षम प्राधिकारी के द्वारा ही किया जा सकता है।
जैकब पुलियेल बनाम भारत संघ (May 2, 2022)
पीठ: न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव. न्यायमूर्ति बी.आर. गवई
निर्णय: इस मामले में याचिकाकर्ता राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह का सदस्य था। जिसने लोकहित में विभिन्न अनुतोष प्राप्त करने के लिए याचिका फाइल की, जिसमें से एक अनुतोष यह मांगा कि कोविड-19 वैक्सीन को किसी भी तरीके से अनिवार्य किया जाए ।
कोविड 19 महामारी से निपटने के लिए शुरू टीकों एवं स्वास्थ्य उपायों के आलोक में हमारी राय यह है कि शारीरिक अखंडता संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत संरक्षित है और यह एक व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वायत्तता,जो अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गारंटीकृत सुरक्षा का एक मान्यता प्राप्त पहलू है, जिसके अंर्तगत व्यक्तिगत स्वास्थ्य के क्षेत्र में किसी भी स्वास्थ्य उपचार अर्थात मेडिकल ट्रीटमेंट से इनकार का अधिकार भी शामिल है।
एस जी बोमबाटकरे बनाम भारत संघ (May 2, 2022)
पीठ: सीजेआई एन.वी. रमणा न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति हिमा कोहली
निर्णय: इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए अर्थात राजद्रोह को नए मामले दर्ज करने पर रोक लगाई गई। यह रोक तब तक प्रभावी रहेगी जब तक कि केंद्र सरकार इस प्रावधान पर पुनर्विचार ना कर ले।
आईपीसी की धारा 124ए के अंतर्गत विरचित आरोपों के संबंध में सभी लंबित विचारण, अपील और कार्यवाहियों को प्रास्थगित (निलंबित) रखा जाए। अन्य धाराओं के संबंध में न्याय-निर्णयन यदि कोई हो, तो आगे कार्यवाही कर सकते हैं, यदि न्यायालयों की राय है कि अभियुक्तों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा
प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी (May12, 2022)
पीठ: न्यायमूर्ति एम आर शाह न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न
निर्णय: घरेलू हिंसा की धारा 2(F) में संयुक्त परिवार का अर्थ परिवार के रूप में एक साथ रहने से है ना कि ऐसे संयुक्त परिवार से है जैसा, हिंदू विधि में समझा जाता है।
इसका अर्थ होगा एक परिवार के रूप में संयुक्त रूप से रहने वाले व्यक्ति। इसमें न केवल एक साथ रहने वाले परिवार के वे सदस्य शामिल होंगे, जो रक्त, विवाह या दत्तक से संबंधित हों, बल्कि वे व्यक्ति भी जो संयुक्त परिवार के रूप में एक साथ या संयुक्त रूप से रह रहे हैं जैसे पोषित बच्चे जो अन्य सदस्यों के साथ रहते हैं, जो सगोत्र, विवाह या दत्तक से संबंधित हैं।
इन री :एनआई एक्ट1881 की धारा 138 के तहत मामलों का त्वरित परीक्षण (May19, 2022)
निर्णय:
एनआई एक्ट1881 की धारा 138 के अधीन लंबित मामलों की संख्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए न्याय मित्र द्वारा प्रारंभिक अध्ययन(Pilot study) के लिए सुझाए गए प्रस्तावों के आधार पर एनआई एक्ट1881 की धारा 138 के सबसे अधिक लंबित मामलों वाले पाँच उच्च न्यायालय (महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और उत्तर प्रदेश) में से हर एक में प्रारंभिक अध्ययन (Pilot study) के अधीन विशेष न्यायालयों की स्थापना की जाएगी :
अध्ययन की अवधि: प्रारंभिक अध्ययन(Pilot study) 01.09.2022 से 31.08.2023 तक 1 वर्ष की अवधि के लिए आयोजित किया जाएगा।
न्यायालयों की संख्या: प्रारंभिक अध्ययन(Pilot study ) कुल 25 विशेष न्यायालयों में आयोजित किया जाएगा। 5 न्यायिक जिलों में से प्रत्येक में एक विशेष न्यायालय की स्थापना की जाएगी, जिसकी पहचान राज्यों के पांच उच्च न्यायालयों (ऊपर उल्लिखित) में से प्रत्येक में सबसे अधिक पेंडेंसी के रूप में की गई है, जिसमें एनआई एक्ट के मामले सबसे अधिक लंबित हैं।
सत्येन्द्र कुमार आंतिल बनाम सीबीआई (July,11 2022)
पीठ :जस्टिस संजय किशन कौल व जस्टिस एम.एम.सुंदरेश
निर्णय : दंड प्रक्रिया संहिता (‘सीआरपीसी’) के अंतर्गत अपराधों की विभिन्न श्रेणियों में जमानत पर विचार करते समय, पालन किए जाने वाले कई निर्देश जारी किए।
झारखंड राज्य बनाम शैलेंद्र कुमार राय (October 31 2022)
पीठ: जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, व जस्टिस हिमा कोहली
निर्णय :
यौन मामलों उसकी यौन संभोग की अभ्यस्थता के चिकित्सीय परीक्षण के समय टू फिंगर टेस्ट (दो उंगली परीक्षण) नहीं किया जाना चाहिए क्यों की यह अनुच्छेद 21 के अधीन स्त्री के गरिमा का उल्लंघन है। …………….. पूरा निर्णय पढे
नारायण मेडिकल कॉलेज बनाम संबंधित प्रदेश राज्य (November 07, 2022)
पीठ: न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया
निर्णय: इस मामले में क्षेत्रों राज्य सरकार के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसके द्वारा मेडिकल आवेदनों में लाइसेंस 7 गुना बढ़ाकर 24 लाख प्रति वर्ष कर दिया गया।
आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम “न्यायालय ने कहा कि शिक्षा लाभ कमाने का व्यवसाय नहीं होना चाहिए, शिक्षण शुल्क हमेशा वहनीय(सस्ता )होना चाहिए।”
अंजू गर्ग व अन्य बनाम दीपक कुमार गर्ग (28.09.2022)
पीठ: न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति बेला एम.त्रिवेदी
निर्णय: दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन पति एक सक्षम शरीर होने के नाते, वह वैध तरीकों से कमाने और अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे का भरण पोषण लिए बाध्य है। वह यह बचाव नहीं ले सकता है की उसका व्यापार बंद हो गया है।
सुनीता नरेड्डी व अन्य बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो व अन्य (NOVEMBER 29 2022)
पीठ : जस्टिस एमआर शाह व जस्टिस एम.एम. सुंदरेश
निर्णय :
न्याय प्राप्त करना पीड़ित का मौलिक अधिकार है, तथा ऋजु और निष्पक्ष विचारण के लिए लिए पीड़ित या उसके आश्रित मामले का अंतरण करा सकते हैं।
जनहित अभियान बनाम भारत संघ (November 7, 2022)
पीठ: सीजेआई उदय उमेश ललित,न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ,न्यायमूर्ति स. रवींद्र भट ,न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति जे.बी. परदीवाला
निर्णय :
आरक्षण राज्य के द्वारा सकारात्मक कार्रवाई का एक साधन है ताकि असमानताओं का सामना करते हुए एक समतावादी समाज के लक्ष्यों की ओर सर्व-समावेशी मार्च (सीमा) सुनिश्चित की जा सके; यह न केवल सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्य धारा मे शामिल करने का एक साधन है बल्कि किसी कमजोर वंचित वर्ग या अनुभाग के कमजोर वर्ग के लिए भी उत्तर देना है । इस पृष्ठभूमि में, आरक्षण को आर्थिक मापदंड पर ही संरचित किया गया है, यह भारत के संविधान की किसी भी आवश्यक विशेषता का उल्लंघन नहीं करता है और न ही संविधान के आधरभूत ढांचे को कोई नुकसान कारित करता है।
- b) अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) के अधीन आने वाले वर्गों को, आर्थिक रूप से कमजोर (ews) के रूप में आरक्षण का लाभ प्राप्त करने से अपवर्जित करना, गैर-भेदभाव और प्रतिपूरक भेदभाव की आवश्यकताओं को संतुलित करने की प्रकृति में होने के कारण, समता संहिता का उल्लंघन नहीं करता है और न् ही किसी भी तरह से भारत के संविधान की आधारभूत संरचना को नुकसान कारित करता है।
c ) आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के नागरिकों लिए विद्यमान आरक्षण के अतिरिक्त दस प्रतिशत तक आरक्षण से , भारत के संविधान की किसी भी आवश्यक विशेषता का उल्लंघन नहीं होता है तथा पचास प्रतिशत की उच्चतम सीमा के उल्लंघन के कारण, भारत के संविधान की आधारभूत संरचना को नुकसान कारित करता है, क्योंकि यह सीमा अपने आप में अनम्य नहीं है और किसी भी मामले में, केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) द्वारा परिकल्पित आरक्षणों पर लागू होती है।
ससंविधान का 103 वां संशोधन अधिनियम संवैधानिक है यह किसी भी प्रकार से संविधान के आधारभूत ढ़ाचे के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं है
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सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य (December 5, 2022)
पीठ :जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, जस्टिस वी.रामसुब्रमण्यम, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना
निर्णय :
सीआरपीसी की धारा 319 के अधीन अतरिक्त समन आदेश यदि दोषमुक्त होने के आदेश के बाद या दोषसिद्धि के मामले में दंड अधिरोपित करने के बाद पारित किया जाता है, तो वह दीर्घकालिक/स्थाई (sustainable) नहीं होगा। तथा धारा 319 के प्रयोग हेतु विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किए गए ।
सत्येन्द्र कुमार आंतिल बनाम सीबीआई (July,11 2022)
पीठ :जस्टिस संजय किशन कौल व जस्टिस एम.एम.सुंदरेश
निर्णय : दंड प्रक्रिया संहिता (‘सीआरपीसी’) के अंतर्गत अपराधों की विभिन्न श्रेणियों में जमानत पर विचार करते समय, पालन किए जाने वाले कई निर्देश जारी किए।