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मूल अधिकार (fundamental rights in hindi) : अर्थ, उत्पत्ति एवं प्रकार ज्यूडिशरी & यूपीएससी

भारत का संविधान, देश की सर्वोच्च विधि है। संविधान अपने नागरिकों को अपरिहार्य आधारभूत मानव अधिकार प्रत्याभूत करता है । जिन्हें मूल अधिकार(Fundamental Right ) के रूप में जाना जाता है। भाग III (अनुच्छेद 12-35) भारत के मैंग्नाकार्टा में निहित ये अधिकार न केवल व्यक्ति की गरिमा एवं स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं, बल्कि एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज की नींव भी रखते हैं।

मूल अधिकार राज्य के मनमाने कार्यों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करते है । व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करके मूल अधिकार सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं और व्यक्तियों को अपने व्यक्तित्व के पूर्ण विकास करने का अवसर देते हैं ।

judiciaryexam.com पर इस लेख में हम मूल अधिकारों के अर्थ, उनके ऐतिहासिक उद्भव, विभिन्न प्रकारों, विशेषताओं, महत्व और निलंबन आदि के विभिन्न पहलूओं पर गहनता से चर्चा करेंगे।

मूल अधिकार का अर्थ ( Meaning of Fundamental Rights):

सामान्य अर्थ में मूल अधिकार वे बुनियादी मानवाधिकार हैं जो भारत के प्रत्येक नागरिक को जन्मजात प्राप्त हैं। ये अधिकार संविधान द्वारा प्रत्याभूत और संरक्षित हैं, जिसका अर्थ है कि राज्य भी इनका उल्लंघन नहीं कर सकता। इन्हें ‘मूल’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये व्यक्ति के जीवन और सर्वांगीण विकास के लिए अपरिहार्य हैं।

गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967sc)[[1]] में न्यायमूर्ति सुब्बाराव ने कहा –

 “मूल अधिकार नैसर्गिक और अप्रतिदेय अधिकार हैं। ” (Fundamental Rights are natural and inalienable rights.)[2]

अर्थात उपर्युक्त के आधार मूल अधिकारों की परिभाषा निम्नानुसार की जा सकती हैं :

“मौलिक अधिकार वे अधिकार होते हैं जो मानव के गरिमापूर्ण जीवन, उसके बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत  आवश्यक ही नहीं वरन्  अपरिहार्य  होते हैं।“[2]

(“Fundamental rights are not only essential but also indispensable for the dignified life of a human being and his intellectual, moral and spiritual development.”)[2]

मौलिक अधिकारों की उत्पत्ति: विश्व एवं भारत(Origin of Fundamental Rights: World and India)

वैश्विक उत्पत्ति:

मौलिक अधिकारों की अवधारणा की जड़ें पश्चिमी कानूनी इतिहास से  मिलती हैं।  जब इंग्लैंड के राजा जॉन ने मैग्ना कार्टा (1215)[[3]] मनमाने शाही अधिकार के विरुद्ध पहला औपचारिक दावा था। इसमें पहली बार नागरिकों कुछ अधिकार दिए गए। राजा को कानून के अधीन किया गया । इसके पश्चात अंग्रेजी अधिकार विधेयक (The Bill of Rights 1689)[[4]] आया, जिसने संसदीय लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता की नींव रखी।

संयुक्त राज्य अमेरिका अधिकार विधेयक (US Bill of Rights 1791) [[5]] ने भाषण, धर्म और सम्यक् प्रक्रिया जैसी स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले अधिकारों का एक चार्टर पेश किया। इसी तरह, मानव और नागरिक के अधिकारों की फ्रांसीसी घोषणा (1789) [6] ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को आवश्यक अधिकारों के रूप में महत्व दिया।

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात, मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR), 1948 [7] अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून की आधारशिला बन गई। इसने भारत समेत कई देशों को अपने संविधानों में लागू करने योग्य नागरिक स्वतंत्रताओं को शामिल करने के लिए प्रेरित किया।


जाने: भारत के संविधान के विभिन्न स्त्रोत क्या है । 


भारत में मूल अधिकारों की उत्पत्ति :

भारत के मौलिक अधिकारों को उसके औपनिवेशिक अनुभव और वैश्विक मानवाधिकार विकास दोनों ने प्रेरणा दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने 1931 के कराची अधिवेशन में आधारभूत नागरिक अधिकारों की मांग की, तथा नेहरू रिपोर्ट (1928)\[8] ने स्वतंत्रता से पूर्व ही संवैधानिक सुरक्षा उपायों का प्रस्ताव रखा।

भारत की संविधान सभा (1946-1949), डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नेतृत्व में, भारतीय संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35)\[9] को अमेरिकी अधिकार विधेयक, आयरिश संविधान एवं मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) जैसे अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों पर आधारित किया।

 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान के प्रवर्तन के साथ निम्नलिखित मूल अधिकार प्रतिभूत किये गए:

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
  5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

अनुच्छेद 13\[10] स्पष्ट रूप से बताता है कि मौलिक अधिकारों के साथ असंगत या उनका उल्लंघन करने वाला कोई भी कानून ऐसी असंगतता की सीमा तक शून्य है।

मूल अधिकार : भारतीय संविधान

भारतीय संविधान में मूल अधिकार (Mul adhikar /Fundamental Rights) भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 [11] तक में शामिल किए गए हैं ।

1.समानता का अधिकार(Right to Equality )- अनुच्छेद 14-18 :

यह मूल अधिकार व्यक्तियों को विधि के समक्ष समानता और संरक्षण प्रदान करता है, जिससे सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त हो सकें ।

    • अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता और विधि के समान संरक्षण की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद 15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
    • अनुच्छेद 16: राज्य के अधीन लोक नियोजन में  रोजगार के समान अवसर सुनिश्चित करता है।
    • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता (छुआछूत) का अंत करता है।
    • अनुच्छेद 18: सैन्य और शैक्षणिक उपाधियों को छोड़कर उपाधियों का समापन करता है।

2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) – अनुच्छेद 19-22 :

भारत में व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने एवं व्यक्तिगत विकास के लिए अनावश्यक अवरोध के बिना स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है।

    • अनुच्छेद 19: यह छह स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है-
      • वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
      • शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन की स्वतंत्रता
      • संगठन या संघ या सोसायटी  बनाने की स्वतंत्रता
      • भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतंत्रता
      • भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने और बस जाने की स्वतंत्रता
      • कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने की स्वतंत्रता यह केवल भारतीय नागरिकों को ही प्राप्त है ।
    •  अनुच्छेद 20: व्यक्तियों को कार्योत्तर विधियों, दोहरे दंड एवं आत्म अभिशंसय  से संरक्षण प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 21: प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण सुनिश्चित करता है।
    • अनुच्छेद 21क: 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को सुनिश्चित करता है।
    • अनुच्छेद 22: मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और अभिरक्षा के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।

हालांकि, ये स्वतंत्रताएं पूर्ण नहीं हैं और राज्य लोक व्यवस्था, नैतिकता और भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में इन पर प्रतिबंध लगा सकता है।

3.शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against exploitation)- अनुच्छेद 23-24

यह अधिकार मानव दुर्व्यापार, बेगार और इसी प्रकार के अन्य बलात् श्रम के रूपों को प्रतिबंधित करके सभी प्रकार के शोषण का समाप्त करता है।

    • अनुच्छेद 23: मानव दुर्व्यापार एवं बेगार को प्रतिबंधित  करता है ।
    • अनुच्छेद 24: खतरनाक उद्योगों एवं कारखानों में बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to freedom of religion) – अनुच्छेद 25-28

भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है अर्थात राज्य का अपना कोई आधिकारिक धर्म नहीं है और सभी धर्मों को समान रूप से सम्मान दिया जाता है। यह अधिकार नागरिकों अपनी पसंद के धर्म को मानने और उसका प्रचार – प्रसार करने स्वतंत्रता देता है ।

    • अनुच्छेद 25: भारत के सभी नागरिकों को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।।
    • अनुच्छेद 26: धार्मिक कार्यों एवं अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
    • अनुच्छेद 27: धार्मिक प्रचार-प्रसार के लिए करों पर रोक लगाता है।
    • अनुच्छेद 28: राज्य द्वारा वित्त पोषित शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा को प्रतिबंधित करता है।

हालांकि, यह स्वतंत्रता लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।

5.सांस्कृतिक और शिक्षा का अधिकार (Right to Culture and Education) अनुच्छेद 29-30

भारत में विविधताओं से भरा देश है । जहाँ हर एक समुदाय की अपनी भाषा व संस्कृति है । उसे बनाए रखने की स्वतंत्रता है।

    • अनुच्छेद 29: भारत के निवासी नागरिकों को अपनी भाषा लिपि एवं सांस्कृति को बनाए रखने का अधिकर देता है।
    • अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यक वर्गों को शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार देता है।

संवैधानिक उपचार का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)- अनुच्छेद 32

भारतीय संविधान में मूल अधिकारों नागरिकों केवल दिए ही नहीं गए है, बल्कि उनके उल्लंघन होने पर सीधे उच्चत्तम न्यायालय के पास जाने के लिए  संवैधानिक उपचार का अधिकार भी मूल अधिकार के रूप में शामिल किया गया है ।

    • अनुच्छेद 32: नागरिकों को उनके अधिकारों का उल्लंघन होने पर उच्चत्तम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार देता है।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इसे “संविधान का हृदय और आत्मा” कहा है।

मूल अधिकार का निलंबन ( Suspension of Fundamental Rights)

भारतीय संविधान में मूल अधिकार असीमित नहीं हैं। हालांकि ये अधिकार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कुछ असाधारण परिस्थितियों में इनका निलंबन या सीमितकरण किया जा सकता है। यह निलंबन राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून व्यवस्था और विशेष प्रशासनिक आवश्यकताओं के आधार पर होता है।

अनुच्छेद 33:सशस्त्र बलों और सुरक्षा एजेंसियों के लिए मूल अधिकारों का सीमितकरण

भारत में सशस्त्र बल, अर्धसैनिक बल, पुलिस बल एवं खुफिया एजेंसियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा व कानून व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।

संसद अनुच्छेद 33 के अधीन विधि बनाकर इनके सदस्यों के संबंध में भाग 3 में  प्रदत मूल अधिकारों को सीमित या निरस्त कर सकती है,जिससे वे अपने कर्तव्यों का युक्तियुक्त निर्वहन कर सकें और अनुशासन बनाए रख सकें।

अनुच्छेद 34: सेना विधि लागू होने पर मूल अधिकारों का निलंबन

यदि भारत के किसी क्षेत्र में मार्शल लॉ अर्थात सेना विधि (सैन्य शासन) लागू किया जाता है, तो संसद विधि बनाकर मूल अधिकारों पर निर्बंधन लगा सकती है या उन्हें निलंबित कर सकती है।

इसका प्रयोग तब किया जाता है जब किसी क्षेत्र में गंभीर आंतरिक अशांति या संकट उत्पन्न हो जाता है।

संसद इस शक्ति के द्वारा मूल अधिकारों पर पूर्णतः या आंशिक रूप से निर्बन्धन  लगा सकतीहै, जिससे कानून-व्यवस्था को बनाए रखा जा सके।

राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)

जब राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि, भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण खतरे में हो, तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 358 के अधीन, अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रताएं स्वतः ही निलंबित हो जाती हैं। राष्ट्रपति अन्य मूल अधिकारों (अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर) के निलंबित करने का आदेश जारी कर सकते हैं।

संविधान संशोधन द्वारा (अनुच्छेद 368 ) : संसद अनुच्छेद 368 के अधीन अपनी संविधान संशोधन की शक्ति का प्रयोग करके मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है ।हालांकि संसद ऐसा कोई भी संशोधन नहीं कर सकती है,  जिससे संविधान का आधारभूत ढांचा ( Basic sturcture ) प्रभावित हो ।

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – इस मामले में उच्चत्तम न्यायालय ने आधारभूत ढांचे का सिद्धांत(Doctrine of basic structure ) प्रतिपादित किया। इसे संसद अपनी संशोधन की शक्ति द्वारा बदल नहीं सकती।अर्थात संविधान में ऐसा कोई भी संशोधन नहीं किया जा सकता है जो  संविधान के आधारभूत ढाँचे को नष्ट करता है ।

निष्कर्ष:

मौलिक अधिकार भारतीय संविधान की नींव हैं और हमारे लोकतंत्र की आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये अधिकार प्रत्येक नागरिक को सम्मान और स्वतंत्रता के साथ जीने का अवसर देते हैं, ताकि वे अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकें। ये केवल अधिकार ही नहीं हैं, बल्कि नागरिकों के लिए सुरक्षा कवच भी हैं, जो राज्य की शक्ति को सीमित करके मनमानी कार्रवाई के खिलाफ सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

इन अधिकारों का ऐतिहासिक विकास, उनकी विविधता और विशिष्ट विशेषताएं उन्हें भारतीय कानूनी प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती हैं। हालांकि असाधारण परिस्थितियों में इन्हें अस्थायी रूप से निलंबित किया जा सकता है, लेकिन जैसे ही स्थिति सामान्य हो जाती है, ये अधिकार फिर से पूरी तरह प्रभावी हो जाते हैं।

भारतीय संविधान के भाग III में निहित ये अधिकार वास्तव में भारतीय नागरिकों के लिए एक अनमोल धरोहर हैं। इनकी रक्षा और सम्मान करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है ताकि लोकतंत्र के इस बुनियादी ढांचे को हमेशा मजबूत और जीवंत रखा जा सके।

स्रोत व संदर्भ (source & reference)

[1] उच्चत्तम न्यायालय डिजिटल अभिलेख- https://digiscr.sci.gov.in/view_judgment?id=MjE4MTk=

[2] भारत का संविधान डॉ जे एन पाण्डेय -[https://amzn.to/3F1yIqv]

[3] मैग्ना कार्टा, यूके संसद अभिलेखागार – [https://www.parliament.uk/about/living-heritage/evolutionofparliament/magnacarta](https://www.parliament.uk/about/living-heritage/evolutionofparliament/magnacarta)

[4]  यूके बिल ऑफ़ राइट्स 1689 – [https://www.legislation.gov.uk/aep/WillandMarSess2/1/2](https://www.legislation.gov.uk/aep/WillandMarSess2/1/2)

[5] यूनाइटेड स्टेट्स बिल ऑफ़ राइट्स – [https://www.archives.gov/founding-docs/bill-of-rights-transcript](https://www.archives.gov/founding-docs/bill-of-rights-transcript)

[6] फ़्रांसीसी अधिकार घोषणा (1789) – [https://avalon.law.yale.edu/18th\_century/rightsof.asp](https://avalon.law.yale.edu/18th_century/rightsof.asp)

 

[7] मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) – [https://www.un.org/en/about-us/universal-declaration-of-human-rights](https://www.un.org/en/about-us/universal-declaration-of-human-rights)

[8] नेहरू रिपोर्ट (1928) सारांश  – [https://www.constitutionofindia.net/historical\_constitutions/nehru-report-1928/]

 

[9] भारत का संविधान – भारत सरकार आधिकारिक वेबसाइट – [https://legislative.gov.in/constitution-of-india](https://legislative.gov.in/constitution-of-india)

[10] भारत का संविधान – भारत सरकार आधिकारिक वेबसाइट – [https://legislative.gov.in/constitution-of-india](https://legislative.gov.in/constitution-of-india)

[11]भारत का संविधान (हिन्दी) [https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s380537a945c7aaa788ccfcdf1b99b5d8f/uploads/2025/03/202503201580504504.pdf]

 

 

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