युक्तियुक्त संदेह से परे | Beyond reasonable Doubt
आज के इस लेख में हम दंड विधि के महत्वपूर्ण सिद्धांत “युक्तियुक्त संदेह से परे “अर्थात (Beyond Reasonable Doubt) पर चर्चा करेंगे। जानेगें यह क्या है, कौन सा पक्ष इसे साबित कर सकता है?
न्यायालय विधि द्वारा प्रदत किसी उपचार व अनुतोष को तब तक प्रदत नहीं करता, जब तक कि उसकी मांग या दावा करने वाले पक्षकार ने उसे उचित व युक्तियुक्त सबूतों के आधार पर साबित न किया हो।
सबूत के मानक (standard of proof)-
लगभग सभी देशों की न्याय व्यवस्था में मामले को साबित करने के लिए सबूत के मानक निर्धारित किए हैं।
- दांडिक विधि में – “युक्तियुक्त संदेह से परे ” अर्थात् “Beyond Reasonable Doubt”,
- सिविल विधि में – “संभावना बाहुल्य “अर्थात् “Preponderance of probability”.
इस लेख में हम केवल दंड विधि के beyond reasonable doubt पर ही चर्चा करेंगे,।
Beyond Reasonable doubt क्या होता है?
“beyond reasonable doubt दंड विधि में दोषसिद्धि प्रदान करने के लिए सबूत का एक विधिक मानक होता है, जिनको ध्यान में रखकर ही, किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति पर लगाए गए आरोपों को साबित करना होता है। “
किस पक्षकार को युक्तियुक्त संदेह से परे मामले को साबित करना होगा ?
दांडिक मामलो में सबूत के भार के विषय में भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 के अध्याय 7 में धारा 101 से लेकर 114 में प्रावधान किया गया है।
धारा 101 में मामले को स्थापित करने के लिए सबूत के भार के विषय में बताया गया है, जो कि स्थिर रहता है।
जब कि धारा 102 में मामले को साबित करने के भार के बारे बताया गया है जो कि पक्षकारों के असफल होने पर बदलता रहता है।
उपरोक्त धाराओं से स्पष्ट हो जाता है कि दांडिक मामलों में सबूत का भार अभियोजन पक्ष पर होता है।
अभियोजन पक्ष कौन होता है?
वह पक्ष जो आपराधिक कार्य किए जाने का अभियोग या आरोप लगाता है अर्थात पीड़ित और सामान्य शब्दों में कहा जाए तो वह पक्ष जो किसी अपराध होने का अभियोग लगात है, वह अभियोजन पक्ष कहलाता है।
अभियुक्त कौन होता है?
वह व्यक्ति अभियुक्त होगा, जिस पर आपराधिक कृत्य किए जाने का अभियोग लगाया जाता है।
अभियोजन पक्ष को अभियुक्त द्वारा किए गए अपराध हेतु दंड दिलाने के लिए अपने मामले को “युक्तियुक्त संदेह से परे” साबित/प्रमाणित करना होता है क्योंकि अभियुक्त के बारे में निर्दोष होने के उपधारणा की जाती है अर्थात न्यायालय अभियुक्त को अभिकथित अपराध के लिए दोषसिद्ध होने तक निर्दोष मानता है, इसलिए दंड विधि के सबूत के मानक को ध्यान में रखते हुए मामला युक्तियुक्त संदेह से परे साबित करना आवश्यक है।
युक्तियुक्त संदेह से परे मामला साबित न होने का परिणाम-
यदि अभियोजन पक्ष अभिकथित अपराध को युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित करने में सफल नहीं होता है तो अभियुक्त को उस अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता और अभियुक्त को संदेह के लाभ के आधार पर छोड़ दिया जाएगा।
क्योंकि प्राचीनतम एवं कॉमन लॉ का सर्वमान्य सिद्धांत है–
“न चे संदेह दण्ड कुर्यात”।
अर्थात जब तक संदेह हो, दंड नहीं दिया जाना चाहिए।
अत: स्पष्ट है कि संदेह का लाभ अभियुक्त को मिलना चाहिए।
संदेह से परे प्रमाणित कब माना जाता है?
न्यायालय, अभियोजन और अभियुक्त की ओर से मामले के विचारण के दौरान प्रस्तुत साक्ष्य, गवाहों एवं तर्कों के आधार पर देखता है कि, अभियोजन द्वारा मामला युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित किया गया है या नहीं। इसी आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध या दोषमुक्त किया जाता है।
सामान्य विधि में प्रचलित एक सूक्ति हैं–
“सौ दोषी भले ही छूट जाए पर निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। “
अत: इसलिए भी दांडिक न्याय व्यवस्था में मामले को युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित होना आवश्यक होता है “युक्तियुक्त संदेह से परे” साबित किया जाना, आपराधिक मामले को साबित करने की सीमा तथा सबूत का मानक बताता है।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि दंड विधि के अंर्तगत अभियुक्त को उसके अपराध के लिए दंड दिलाने के लिए दंड विधि के मानकों को ध्यान में रखते हुए मामला” beyond reasonable doubt अर्थात युक्तियुक्त संदेह से परे साबित करना होता है तभी, मजिस्ट्रेट दोषसिद्धि या दोषमुक्ति का निर्णय सुनाता है।
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