सोमवार, मार्च 10, 2025
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सीआरपीसी की धारा १२५| section 125 of crpc | पत्नी, सन्तान और माता – पिता के भरण पोषण के लिए आदेश

धारा 125,पत्नी, सन्तान और माता -पिता के भरण पोषण के लिए आदेश-

(1) यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति 
 
    • (क) अपनी पत्नी का, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या 
    • (ख) अपनी धर्मज या अधर्मज अवस्यक सन्तान का चाहे विवाहित हो या न हो, जो अपना भरण – पोषण करने में असमर्थ है, या
    •  (ग) अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है), जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है, या  
    • (घ) अपने पिता या माता का, जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है,
    • भरण-पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरणपोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इनकार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी सन्तान, पिता या माता के भरणपोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निदेश दे ,
    •  परन्तु मजिस्ट्रेट खण्ड (ख) में निर्दिष्ट अवयस्क पुत्री के पिता को निदेश दे सकता है कि वह उस समय तक ऐसा भत्ता दे जब तक वह वयस्क नहीं हो जाती है यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि ऐसी अवयस्क पुत्री के, यदि वह विवाहित हो, पति के पास पर्याप्त सांधन नहीं है ; 
परन्तु यह और कि इस उपधारा के अधीन भरणपोषण के लिए मासिक भत्ते से सम्बन्धित कार्यवाही के लंबित दौरान, ऐसे व्यक्ति को निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी सन्तान, पिता या माता के अन्तरिम भरणपोषण के लिए जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे मासिक भत्ता और ऐसी कार्यवाहियों का व्यय दे और ऐसे व्यक्ति को उसका संदाय करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय- समय पर निदेश दे 
परन्तु यह और भी कि द्वितीय परन्तुक के अधीन अन्तरिम भरण पोषण के लिए मासिक भत्ते और कार्यवाहियों के व्ययों का कोई आवेदन यथासंभव ऐसे व्यक्ति पर आवेदन की सूचना की तामील से साठ दिन के भीतर, निपटाया जायेगा । 
 
स्पष्टीकरण – इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए:-
    •  (क) “अवयस्क” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके बारे में भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 (1875 का 9) के उपबन्धों के अधीन यह समझा जाता है कि वयस्कता प्राप्त नहीं की है, 
    • (ख) ” पत्नी ” के अन्तर्गत ऐसी स्त्री भी है जिसके पति ने उससे विवाह-विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है और जिसने पुनर्विवाह नहीं किया है ।
 
(2) भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के लिए कोई भत्ता और कार्यवाही के लिए व्यय, आदेश की तारीख से या, यदि ऐसा आदेश दिया जाता है तो यथास्थिति, भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण और कार्यवाही के व्ययों के लिए आवेदन की तारीख से 
 
(3) यदि कोई व्यक्ति जिसे आदेश दिया गया हो, उस आदेश का अनुपालन करने में पर्याप्त कारण के बिना असफल रहता है तो उस आदेश के प्रत्येक भंग के लिए ऐसा कोई मजिस्ट्रेट देय रकम के ऐसी रीति से उद्गृहीत किए जाने के लिए वारण्ट जारी कर सकता है जैसी रीति जुर्माने उद्गृहीत करने के लिए उपबंधित है, और उस वारण्ट के निष्पादन के पश्चात् की प्रत्येक मास के न चुकाए गए यथास्थिति भरणपोषण या अन्तरिम भरणपोषण के लिए पूरे भत्ते और कार्यवाही के व्यय या उसके किसी भाग के लिए ऐसे व्यक्ति को एक मास तक की अवधि के लिए, अथवा यदि वह उससे पूर्व चुका दिया जाता है तो चुका देने के समय तक के लिए , कारावास का दण्डादेश दे सकता है : 
 
परन्तु इस धारा के अधीन देय रकम की वसूली के लिए कोई वारण्ट तब तक जारी न किया जाएगा जब तक उस रकम को उद्गृहीत करने के लिए, उस तारीख से जिसको वह देय हुई एक वर्ष की अवधि के अंदर न्यायालय से आवेदन नहीं किया गया है : 
परन्तु यह और कि यदि ऐसा व्यक्ति इस शर्त पर भरणपोषण करने की प्रस्थापना करता है कि उसकी पत्नी उसके साथ रहे और वह पति के साथ रहने से इंकार करती है तो ऐसा मजिस्ट्रेट उसके द्वारा कथित इंकार के किन्हीं आधारों प्रस्थापना के किए जाने पर भी वह इस धारा के अधीन आदेश दे सकता है यदि उसका पर विचार कर सकता है और समाधान हो जाता है कि ऐसा आदेश देने के लिए न्यायसंगत आधार है । 
 
स्पष्टीकरण –– यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखैल रखता है तो उसके साथ रहने से इंकार का न्यायसंगत आधार माना जाएगा । 
 
(4) कोई पत्नी अपने पति से इस धारा के अधीन यथास्थिति भरणपोषण या अन्तरिम भरणपोषण के लिए भत्ता और कार्यवाही के व्यय प्राप्त करने की हकदार न होगी, यदि वह जारता की दशा में रह रही है अथवा यदि वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है अथवा यदि वे पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे हैं। 
 
(5) मजिस्ट्रेट यह साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकता है कि कोई पत्नी, जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है वह जारता की दशा में रह रही है अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है अथवा वे पारस्परिक सम्मति से पृथक् रह रहे हैं।
 

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