गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार | right of arrested person in hindi

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| right of arrested person in hindi

गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार | right of arrested person in hindi

संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिनमें से कुछ अधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त है । ये अधिकार अत्यानतिक नहीं हैं, जिन पर कुछ निर्बंधन लगाए जा सकते हैं, लेकिन जब कोई व्यक्ति अपराध करता है और पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है तब यह प्रश्न आता है कि  ऐसी दशा में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के क्या अधिकार प्राप्त होंगे या और यदि होंगे भी तो भी कौन-कौन से अधिकार होंगे? आज के इस लेख मे गिरफ्तार व्यक्ति को संविधान एवं सीआरपीसी के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों को जानेगे। यदि आप जानना चाहते है गिरफ्तरी कैसे की जाती है ?

गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार मे सबसे पहला अधिकार होता है

गिरफ्तारी के आधार जानने का अधिकार-

    • यदि कोई व्यक्ति कोई अपराध करता है और उसे उस अपराध के संबंध में गिरफ्तार किया जाता है, तब उसे आधार जाने की जरूरत ही नहीं होती है, क्योंकि उसे स्वयं ही इस बात की जानकारी रहती है कि उसने कोई अपराध किया है, इसलिए गिरफ्तारी की जा रही है, इस कंडीशन में आधार जानने की जरूरत ही नहीं होती है क्योंकि उसे स्वयं ही यह जानकारी होती कि उसे क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है। लेकिन कभी-कभी ऐसी कंडीशन होती है जिसमें आपको पता ही नहीं होता और पुलिस गिरफ्तार कर लेती है, तब इस कंडीशन में संविधान के अनुच्छेद 22 का खंड 1 तथा दंड प्रक्रिया संहिता 1973  की धारा 50(1) और 75 के अंतर्गत यह प्रावधन हैं कि, जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उसे गिरफ्तारी के आधार अर्थात कारणों को तुरंत ही सूचित किया जाएगा।

यहां आपको बता दें कि गिरफ्तारी दो तरीके से हो सकती है

                1. मजिस्ट्रेट के वारंट से
                2. वारंट के बिना।

गिरफ्तारी की सूचना देना –

    • जब किसी व्यक्ति को उसके घर से बाहर किसी स्थान या  किसी दूसरे शहर या राज्य  में गिरफ्तार किया जाता है, तब ऐसी स्थिति में यदि उसके घर वालों को जानकारी ना दी जाए तो उसकी गिरफ्तारी का पता नहीं चल पाएगा। इसलिए जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तब ऐसी गिरफ्तारी और उस स्थान की, जहां पर उसे रखा जा रहा है, अपने परिवार वालों या मित्रों ये जिसको वह बताएं, तुरंत जानकारी देने का अधिकार होता है।
    • साथ ही यह भी राइट होता है, कि गिरफ्तारी की सूचना देने का जो राइट है जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके पुलिस थाने में लाएगी उसे इस अधिकार के बारे में बताएगी कि वह अपने परिवार वालों को सूचना देने का हकदार है। 

[सीआरपीसी की धारा 50 ]

जमानत के बारे में जानकारी पाने का अधिकार-

    • जब किसी व्यक्ति को पुलिस किसी जमानतीय अपराध में वारंट के बिना गिरफ्तार करती है , तब उसे यह जानकारी देगी कि वह जमानत पर छोड़े जाने का हकदार है और वह अपनी जमानत के लिए जमानतदार का इंतजाम करें।
    • जमानतीय अपराध वे होते हैं, जिनमें जमानत पर छोड़े जाने की मांग अधिकार पूर्वक की जाती है।
    • आजमानतीय अपराध अर्थात नॉन बेलेबल ऑफेंस वे होते हैं, जिनमें जमानत की मांग अधिकार पूर्वक नहीं की जाती। इन मामलों में जमानत देना या ना देना कोर्ट का स्वाविवेक होता है।

[सीआरपीसी की धारा 50 की उपधारा 2]

चिकित्सीय परीक्षण अर्थात मेडीकल एग्जामिनेशन कराने का अधिकार-

    • पहले पुलिस व्यक्ति को आरेस्ट कर लेती थी, तब गिरफ्तार व्यक्ति के साथ मारपीट करना आम बात थी । उसके बाद कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने ले जाती थी,लेकिन अब पुलिस थाने में आपके साथ मारपीट बिल्कुल भी नहीं कर पाएगी, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 54 के अंतर्गत  मेडिकल एग्जामिनेशन कराने का राइट दिया गया है । इस अधिकार के अनुसार जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है उसके तुरंत बाद पुलिस अधिकारी गवर्नमेंट मेडिकल ऑफिसर के पास ले जाएगी और उसका मेडिकल एग्जामिनेशन कराया जाएगा यानि पुलिस जब भी किसी व्यक्ति को किसी भी मामले में गिरफ्तार करती है, तो उसकी गिरफ्तारी के तुरंत बाद  मेडिकल एग्जामिनेशन कराया जाना चाहिए।

सीआरपीसी की धारा 54 

वकील से मिलने का अधिकार

    • पुलिस गिरफ्तार करने के बाद, जब  पूछताछ करती है, तब यह अधिकार होता है कि, कि आपको पूछता से पहले वकील से बात करनी है अर्थात वकील से परामर्श करने का अधिकार होता है । हालांकि इस अधिकार के अंतर्गत जरूरी नहीं कि पूरी पूछताछ के दौरान मिलने दिया जाए।

[संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड 1 तथा सीआरपीसी की धारा 41 ]

स्लिप पाने का अधिकार-

जब पुलिस गिरफ्तार करने के बाद किसी व्यक्ति की तलाशी लेती है, तो गिरफ्तार व्यक्ति के शरीर से या उसके पास से जिन भी चीजों को पुलिस लेती है और अपने पास रख लेती है। ऐसी कंडीशन में गिरफ्तार व्यक्ति को स्लिप पाने का अधिकार होता है। इस स्लिप में उन सभी चीजों की जानकारी होती है जो आपके शरीर से या आपके पास से पुलिस ने ली है।

[सीआरपीसी की धारा 51 ]

हाजिर होने का अधिकार-

    • कभी-कभी पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति को कई दिनों तक थाने में बैठा कर रख लेती है, लेकिन ऐसा करना बिल्कुल ही गलत है। क्योंकि जब भी पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो गिरफ्तारी के समय से 24 घंटे के भीतर ,जो भी नजदीकी मजिस्ट्रेट है, उसके सामने पेश करेगी। इस 24 घंटे के टाइम में यात्रा आदि के समय को नहीं गिना जाता है।
    • यदि पुलिस 24 घंटा में मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं करती है, तब ऐसी कंडीशन में उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट के लिए याचिका दायर की जा सकती है।

[संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड 2 तथा सीआरपीसी के सेक्शन 57 और 76 ]

अनावश्यक अवरोध ना करना- 

    • पुलिस जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो उसे अनावश्यक अवरोध नहीं लगाएगी। इसका मतलब यह हुआ कि जब तक कि उसेके भागने से रोकने के लिए आवश्यकता ना हो तो हथकड़ी आदि का प्रयोग नहीं किया जाएगा। इसलिए आपने देखा होगा कि, अब पुलिस रस्सी से हाथ बांधकर ले जाती है या बिना हाथ बांधे ही ले जाती है। 

[ सीआरपीसी की धारा 49 ]

स्वास्थ्य और सुरक्षा का अधिकार-

    • जब गिरफ्तार व्यक्ति को अभिरक्षा में रखा जाता है। तब  जिस पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में रखा जाता है, उसकी यह ड्यूटी होती है, कि वह गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के स्वास्थ्य की तथा  उसकी सुरक्षा की युक्तियुक्त देखरेख करें।
    • यानी पुलिस की कस्टडी में गिरफ्तार व्यक्ति बीमार हो जाए, तो उसका इलाज कराया जाएगा तथा उसकी सुरक्षा भी की जाएगी। जिससे कोई व्यक्ति, गिरफ्तार व्यक्ति के साथ मारपीट , हमला आदि या उसे परेशान ना करें। यह जिम्मेदारी स्वयं पुलिस की होगी।

[सीआरपीसी की धारा 55]

बचाव करने का अधिकार-

    • यदि गिरफ्तार व्यक्ति के विरुद्ध अपराध किए जाने के लिए कार्यवाही की जाती है तब उसे अधिकार होता है कि वह अपनी पसंद के अधिवक्ता अर्थात वकील से अपना बचाव कराए। यह राइट आपको नेचुरल जस्टिस के प्रिंसिपल के आधार पर प्राप्त होता है।

[सीआरपीसी की धारा 303 ]

मुफ्त विधिक सहायता का अधिकार- 

    • इस अधिकार के अनुसार आप यदि अपना वकील करने में असमर्थ हैं। यानी आप वकील की फीस नहीं दे सकते हैं, तब आपको सरकार अपने खर्च पर मुफ्त में वकील उपलब्ध कराएगी। इसे ही मुफ्त विधिक सहायता यानी फ्री लीगल एड का अधिकार  कहते हैं। यानी जब यदि कोई व्यक्ति वकीलों की फीस नहीं दे सकता तो, इस अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं।
    • इस अधिकार के बारे में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने

एमएच हॉस्कॉट बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में कहा था कि असमर्थ व्यक्ति को राज्य के खर्च पर वकील उपलब्ध कराना राज्य की ड्यूटी है, और राज्य के द्वारा व्यक्तियों को मुफ्त विधिक सहायता प्रदान करना राज्य की ओर से दान नहीं है।

इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को निशुल्क विधिक सहायता का अधिकार है, जिससे कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित ना हो पाए। 

[संविधान के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 304 ]

 

शीघ्र विचारण का अधिकार-

    • आपने सुना होगा कि व्यक्ति वर्षों तक अपने ट्रायल के इंतजार में जेल में ही बंद रहे । ज्यादातर मामलों में ऐसा तभी होता है, जब पुलिस वर्षों तक चालान ही पेश नहीं करती है।  लेकिन पहले की तुलना में अब ऐसा कम ही होता है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1979 में

हुसैन आरा खातून बनाम बिहार राज्य के मामले में

    • अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को शीघ्र चारण का अधिकार निहित माना  तथा घोषणा की थी कि प्रत्येक व्यक्ति को शीघ्र विचारण का अधिकार है।
    • शीघ्र विचारण का अधिकार सभी स्टेज पर प्राप्त होता है।  चाहे वह इन्वेस्टिगेशन हो इंक्वायरी हो ट्रायल हो अपील हो रिव्यू या रिवीजन हो।

[इसे सीआरपीसी की धारा 309 मे निहित माना जाता है । ]

प्रतिकर पाने का अधिकार-

    • यदि कोई व्यक्ति पुलिस से  किसी अन्य व्यक्ति को गिरफ्तार करवाता है। मामला सुनने के वाले मजिस्ट्रेट को ऐसा लगता है कि, गिरफ्तारी कराने के लिए  कोई आधार अर्थात कारण नहीं थे, तब मजिस्ट्रेट गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसके समय और हानि के लिए ₹1000 तक का प्रतिकर दिलवा सकता है। यदि एक से ज्यादा व्यक्ति हैं तब हर एक व्यक्ति को ₹1000 तक का प्रतिकर पाने का अधिकार होगा।
    • यानी यह कहा जा सकता है कि, झूठे आधार पर यदि कोई व्यक्ति गिरफ्तार करवाता है तब गिरफ्तार करवाने वाले व्यक्ति से प्रति कर पाने का हक होता है।

[सीआरपीसी की धारा 358]

संविधान और सीआरपीसी के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति के यही प्रमुख अधिकार हैं।  इसके अलावा भी कई और अधिकार हो सकते हैं जो किसी विशेष विधि या किसी निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिया गया हो।

 

 

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