सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितंबर 2020 को एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया जिसमे यह कहा गया कि वयस्क अविवाहित पुत्री दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के अधीन भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार है। पूर्ण निर्णय इस प्रकार है
अभिलाषा बनाम प्रकाश व अन्य
( दांडिक अपील क्रमांक 615 वर्ष 2020( उत्पन्न एस एल पी(दा.) क्रमांक 8260वर्ष 2018)
न्यायमूर्तिगण – न्यायमूर्ति अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी व एम. आर.शाह
वाद तथ्य-
अपीलार्थी प्रत्यर्थी क्रमांक 1 व 2 की पुत्री है। अपीलार्थी की माँ, प्रत्यर्थी क्रमांक 2 ने अपने दो पुत्रों, अपीलार्थी पुत्री व स्वयं के भरण-पोषण के हेतु अपने पति प्रत्यर्थी क्रमांक 1 के विरुद्ध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन दिनांक 17.022002 न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, रेवारी के समक्ष अपीलार्थी ने एक आवेदन प्रस्तुत किया था। उस समय वह (अपीलार्थी) अवयस्क थी। विद्वान न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दिनांक 16.02.2011 को अपने निर्णय में आवेदक क्रमांक 1,2 व 3 का आवेदन निरस्त कर दिया, किन्तु आवेदक क्रमांक 4, अर्थात् अपीलार्थी का आवेदन इस शर्त के साथ अनुज्ञात किया कि वह केवल अपनी वयस्कता प्राप्त होने तक ही भरण पोषण प्राप्त कर सकती है। 16/02/2011के निर्णय के विरुद्ध दुखी होकर चारों आवेदकों ने सत्र न्यायालय के समक्ष दाण्डिक पुनरीक्षण दायर कियाजो को अपर सत्र न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 17.02.2014 के द्वारा न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश की पुष्टि इस संशोधन के साथ करते हुए की पुनरीक्षणकर्ता क्रमांक 4 (अपीलार्थी) केवल 26.04.2005 तक ही जब तक की वयस्कता प्राप्त करे भरण पोषण की हकदार है और कहा कि धारा 125 द. प्र.स. के अधीन वे बच्चे भरण पोषण प्राप्त करने के हकदार होते हैं जिसने व्यस्कता प्राप्त कर ली है जहां ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असमानता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है। सभी अपीलार्थी को शामिल करते हुए सभी चारो आवेदकों ने सेशन न्यायालय के साथ ही साथ न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के आदेश को चुनौती देते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष आवदेन प्रस्तुत किया। उच्च न्यायालय ने आक्षेपित निर्णय द्वारा दिनांक 16 2 2018 के द्वारा आवेदन निरस्त कर दिया गया ।
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उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्मित विचारणीय प्रश्न
“(1) क्या अपीलार्थी यद्यपि जो वयस्कता प्राप्त कर चुकी है एवं अभी तक अविवाहित है, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की कार्यवाही में अपने पिता से भरण पोषण पाने की हकदार है भले ही वह किसी शारीरिक या मानसिक असमानता क्षति से ग्रसित ना हो ?
(2) क्या विद्वान न्यायिक मजिस्ट्रेट के साथ-साथ विद्वान पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा पारित आदेश अपीलार्थी के भरण-पोषण के दावे को उसके 26.04.2005 को वयस्कता प्राप्त करने तक सीमित करता है, इस निर्देश के साथ अपास्त किए जाने योग्य है कि प्रत्यर्थी क्रमांक 1 अपीलार्थी का 26.04.2005 के बाद भी, जब तक कि वह अविवाहित रहे, भरण पोषण करे ?”
निर्णय:
हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 20(3) के अधीन अविवाहित पुत्री वयस्कता प्राप्त करने के पश्चात भी अपने पिता से भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार है, यह उसका अधिनियम की धारा 203 के अधीन पूर्ण संविधिक अधिकार है, जिसे सिविल न्यायालय द्वारा ही परिवर्तित कराया जा सकता है किंतु अविवाहित पुत्री वयस्कता प्राप्त करने के पश्चात धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन भरण पोषण प्राप्त करने के लिए दावा करने की हकदार नहीं है।
कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1984 के अधिनियमित होने के पश्चात कुटुंब न्यायालय को द. प्र.स. के अध्याय 9 के अधीन प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट की भरण पोषण से संबंधित आदेश देने की अधिकारिता का प्रयोग करने की अधिकारिता होगी। कुटुंब न्यायालय को पास केवल उन शहरों व नगरों के संबंध में ही अधिकारिता प्राप्त है जिनकी जनसंख्या 10 लाख से ज्यादा है, जहां कुटुंब न्यायालय नहीं है वहां धारा 125 सीआरपीसी के अधीन कार्यवाही न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष होगी। कुटुंब न्यायालय धारा 125 सीआरपीसी के अधीन एवं हिंदू दत्तक ग्रहण व भरण पोषण अधिनियम 1956 के दोनों के अधीन अधिकारिता का प्रयोग कर सकता है और समुचित आदेश पारित कर सकता है , जहां की कुटुंब न्यायालय नहीं है वह न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी धारा 125 सीआरपीसी के अधीन कार्यवाही तो कर सकता है, हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 20 के अधीन कार्यवाही जिला न्यायालय या किसी अधीनस्थ व्यवहार न्यायालय के समक्ष ही होगी।
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दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 का प्रयोजन व उद्देश्य आवेदक को संक्षिप्त विचारों में तुरंत अनुतोष प्रदान करना है जबकि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 20(3) सहपठित धारा 3(b) द्वारा प्रदत्त अधिकार वृहद अधिकार है, जिसका निर्धारण व्यवहार न्यायालय द्वारा किया जाना आवश्यक है अतः इसके लिए धारा 125 के अधीन अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी को विधायिका ने कभी भी भारित करने का विचार नहीं किया है।
अपीलार्थी को अपने पिता के विरुद्ध भरण पोषण के लिए किसी भी दावे की अधिनियम की धारा 203 का उपचार प्राप्त करने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता दी जाती है।
उपयुक्त अनुसार अपील निरस्त की जाती है।
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संभावित प्रश्न- क्या वयस्क पुत्री अविवाहित रहते हुए सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी है ?
इंपोर्टेंट फॉर- प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार