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CHANDRAPAL VS STATE OF CHHATTISGARH 2022 |चंद्रपाल बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

CHANDRAPAL VS STATE OF CHHATTISGARH[2022] [चंद्रपाल बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (पहले एमपी)

 

दांडिक अपील क्रमांक 375वर्ष 2015
निर्णय दिनाँक 27/05/2022
न्यामूर्तिगण: माननीयन्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ एवं माननीय न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी

 

 

मामले के तथ्य [Fact of the case]- 

अभियोजन के मामले केअनुसार मृतक कुमारी वृंदाबाई भागीरथी कुम्हार की बेटी थी,जो कुम्हार जाती की थी । मृतक कन्हैया सिद्धार पन्झार गांव का निवासी था और गौर जाती का था। दोनों मृतकों के बीच में प्रेम संबंध था, जो भागीरथी ने बताया और जिसे उसके भाई चन्द्रपाल स्वीकारने से मना कर दिया । 02/12/1994 को दोनो मृतक लापता हो गये थे |उन्हें ढूंढा गया था, हालांकि रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई| 11.12.1994 को लगभग बोधू ( PW – 2 ) काजू की नर्सरी गया और देखा कि मृतकों के शव काजू के पेड़ पर लटक रहे थे। वह वापस आया और सरंपच को सूचना दी। उनके शव सड़े हुए हालात में थे और पहचानने की स्थिति में नहीं थे, हालांकि शिकायतकर्ता चन्द्रपाल ने शवों को पहचाना था। इसके बाद 11/12/1994 को चन्द्रपाल और भोला सिंह ने मर्ग कायम कराया, जो कि क्रमांक 67/94 , व 68/94 के रूप में दर्ज किया गया। शवों को शव परीक्षण (पोस्टमार्टम) के लिए भेजा गया । मृतकों की शव परीक्षा डॉ . आर . के सिंह द्वारा की गई , जिसकी शव परीक्षण रिपोर्ट क्रमश : EX – P022 कुमारी वृन्दाबाई व Ex.p – 23 कन्हैया की थी। दोनों की रिपोर्ट में गले पर निशान होना तथा मृत्यु का फांसी लगाने से दम गुटने के कारण होना बताया। अभियोजन कहानी के अनुसार आगे बताया- 02/12 / 1994 को मृतक कन्हैया को पंचायत परिसर में देखा गया था, जहां टीवी पर कुछ कार्यक्रम चल रहे थे। इसके बाद वह हैंडपंप पर कुल्हाडी (गंडास) को साफ करने चला गया , इस समय चंद्रपाल ने आवाज लगाई और वह उसे उसके घर ले गया, उसे कमरे में बंद कर दिया तथा चारो अभियुक्तगण भागीरथी , चन्द्रपाल, मंगल सिंह और विदेशी ने की कन्हैया की गला दबा हत्या कर दी। इसके बाद अभियुक्त मंगल सिंह और विदेशी ने कुमारी वृंदा बाई की हत्या की उनकी हत्या करने के बाद 4/12/ 1994 तक अपने घर में रखा, उसके बाद शवों को काजूबाड़ी ले गए , जहां काजू के पेड़ पर गले में फंदा डालकर लटका दिया, जिससे कि यह बताने का प्रयास किया जा सके कि उन्होंने आत्महत्या की है। सेशन न्यायालय ने सभी चारों अभियुक्तगणों को आईपीसी की धारा 302/34 तथा धारा 201/34 के अधीन दोषसिद्ध किया। सेशन न्यायालय के दंडादेश से व्यथित होकर तीन अभियुक्तगणों ने साथ में तथा एक अन्य ने अलग से उच्च न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत की गई। उच्च न्यायालय ने चंद्रपाल से भिन्न सभी अभियुक्तगणों को आईपीसी की धारा 302/34 से दोषमुक्त कर दिया , लेकिन धारा 201/34 के अधीन दोषसिद्धि को बनाए रखा। तब अभियुक्त चंद्रपाल ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष यह दांडिक अपील प्रस्तुत की है।

 

अपील के आधार – 

नोट- यह आधार मामले को पढ़कर केवल समझने की दृष्टि से वर्णित किए गए हैं-

1. अभियुक्त की दोषसिद्ध सह- अभियुक्त की न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) पर अधारित है,जो की एक कमजोर प्रकृति का साक्ष्य है। 

2.इस मामले में धनसिंह द्वारा अभियुक्त को मृतक कन्हैया के साथ “अंतिम बार साथ देखे जाने ” का सिद्धांत वर्तमान मामले में लागू नहीं होता है।

 

माननीय उच्चतम न्यायालय का निर्णय

यह न्यायालय अभियोजन द्वारा विश्वसनीय, आपत्तिजनक साक्ष्य को परीक्षण के लिए लेता है, जोकि अभियुक्त विदेशी द्वारा की गई न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) है। अभियोजन के अनुसार अभियुक्त विदेशी ने चंद्रशेखर, बदन सिंह, व दुकालू राम तथा वर्तमान अपीलार्थी को शामिल करते हुए अन्य अभियुक्तों के समक्ष स्वयं को दोषी स्वीकारने वाली संस्कृति की थी। अभियोजन ने विदेशी ( Ex p11) नोटरी के अधिकतम की पुष्टि करने वाला शपथ पत्र भी पेश किया। यद्यपि यद्यपि सेशन न्यायालय ने विदेशी के नयायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) के उक्त साक्ष्य पर भरोसा करते हुए, सभी चारों अभियुक्तों को दोषसिद्ध किया है, उच्च न्यायालय ने उक्त न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) पर आंशिक रूप से भरोसा करते हुए, तीनों अभियुक्तगण भागीरथी, मंगल सिंह और विदेशी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 सहपठित धारा 34 के अधीन उन पर लगाए गए आरोपों से दोषमुक्त किया। हालांकि उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 201 सहपाठी धारा 34 के अधीन यह मानते हुए दोषसिद्ध किया कि उक्त अभियुक्तगणों ने साक्ष्य को विलोपित किया। [पैरा 10]

 

इस इस बिंदु पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 30 के अनुसार यह अंकित किया जा सकता है कि, जबकि एक से अधिक व्यक्ति एक ही अपराध लिए संयुक्त रूप से विचारित हैं, तथा ऐसे व्यक्तियों में से किसी एक के द्वारा, अपने को और ऐसे व्यक्तियों में से किसी अन्य को प्रभावित करने वाली की गई संस्वीकृति को साबित किया जाता है, तब न्यायालय ऐसी संस्वीकृति को ऐसे अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध तथा ऐसी संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध विचार में ले सकेगा । इस न्यायायल ने लगातार यह अवधारित किया है कि न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) एक कमजोर प्रकार की साक्ष्य है तथा जब तक कि यह विश्वसनीय प्रतीत नहीं होती है तथा इसी प्रकृति के अन्य साक्ष्यों के द्वारा पूर्ण रूप से संपुष्टि नहीं की जाती है सामान्यतः हत्या के अपराध के लिए दोषसिद्धि केवल न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) के आधार पर नहीं की जानी चाहिए। जैसा कि स्टेट ऑफ मध्य प्रदेश सीबीआई के माध्यम से अन्य व नाम पलटन मल्लाह अन्य 2005 तीन एसईसी के मामले में अवधारित किया गया। सह अभियुक्त के द्वारा की गई न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) को केवल संपुष्टि कारक साक्ष्य के भाग के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। अभियुक्त के विरुद्ध किसी भी सारभूत साक्ष्य की अनुपस्थिति में, सह अभियुक्त के द्वारा की गई न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) अपनी महत्ता को देती है तथा वहां सह अभियुक्त की ऐसी न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) के आधार पर कोई दोषसिद्धि नहीं हो सकती है। (पैरा 11)

शाह देवन व अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य 2012 एसईसी –

इस मामले के पैरा 14 में अपहृत किया गया यह आपराधिक न्याय शास्त्र का स्थापित सिद्धांत है कि न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) साक्ष्य का कमजोर भाग है, जहां कहीं न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) के आधार पर दोषसिद्ध करने का आशय रखता है, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह समान विश्वास प्रेरित करता है तथा अभियोजन के अन्य साक्ष्य के द्वारा संपुष्ट किया गया है। यदि, तथापि, न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) तात्विक विसंगतियों या अंतर्निहित असंभवता से ग्रसित है तथा अभियोजन पक्ष के अनुसार अकाट्य प्रतीत नहीं होता है, ऐसी संस्वीकृति के आधार पर दोषसिद्ध करना न्यायालय के लिए कठिन हो सकता है। ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय के लिए ऐसे साक्ष्य को विचार से बाहर करना पूर्णता न्यायोचित होगा।( पैरा 12)

वर्तमान मामले में अभियुक्त विदेशी के द्वारा की गई न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ), हमारे विचार में यदि सह अभियुक्त विदेशी की साक्ष्य ऐसी कमजोर साक्ष्य के भाग है, सह अभियुक्त गणों को मृतक वृंदा और कन्हैया की हत्या के लिए दोषी आधारित करने के लिए विश्वसनीय या सम्यक रूप से साबित नहीं हुई थी, उच्च न्यायालय अभिकथित अपराध के लिए दोषी ठहराने के प्रायोजन से वर्तमान अपीलार्थी के विरुद्ध उक्त साक्ष्य का उपयोग नहीं कर सकता था। पैरा13

अब यह न्यायालय अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तावित ” अन्तिम बार साथ देखे जाने ” के सिद्धांत को परिक्षण के लिए लेता है। अभियोजन के मामले के अनुसार धनसिंह (pw1) ने चंद्रपाल को मृतक कन्हैया को बुलाते देखा था तथा वह उसे उसके घर ले गया। इसके अलावा तथ्य यह है कि उक्त धनसिंह ने उस समय या तारीख के बारे में नहीं बताया था जब उसने कन्हैया को चंद्रपाल के साथ देखा था, यह मान भी ले कि जब ग्राम पंचायत के परिसर में बैठा था, तब उसने चंद्रपाल को कन्हैया को अपने घर बुलाते देखा था, उक्त भी जिस दिन मृतक के शव मिले उससे दस दिन पहले हुआ था। दोनों घटनाओं के बीच समय अंतराल यानी जिस दिन धनसिंह ने चंद्रपाल को कन्हैया को अपने घर बुलाते देखा और जिस दिन कन्हैया का शव मिला ,काफी अधिक है। वर्तमान अपीलकर्ता को अभिकथित अपराध के साथ जोड़ना कठिन है, विशेषकर जब अभियोजन के द्वार कोई अन्य कड़ी तथा ठोस सबूत पेश नहीं किया गया है। इस संबंध में अंतिम बार साथ देकर जाने के सिद्धांत के संबंध में इस न्यायालय के द्वारा अपहृत विधि को फिर से देखना भी सुसंगत होगा। 

Bodhraj & Ors. Vs. State of Jammu and Kashmir[2002 SCC]

इस मामले में इस न्यायालय ने पैरा 31 में आधारित किया कि

31.अन्तिम बार साथ देखे जाने का सिद्धांत तब क्रियाशीलता में आता है जहां समय-अंतराल के बीच उस समय जब आरोपी और मृतक अंतिम बार जीवित देखे गए थे और जब मृतक मृत पाया जाता है, यह बहुत कम संभावना हो कि अभियुक्त से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति का अपराध का लेखक होना असंभव हो जाता है।

Jaswant Gir Vs. State of Punjab[2005SCC]

इस ममले में न्यायलय ने निर्धारित किया की परिस्थितिजन्य साक्ष्य की चैन में किसी अन्य कड़ी की अनुपस्थिति में, अभियुक्त अकेले “अंतिम बार साथ देकर जाने” के आधार पर दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता है, भले ही इस संबंध में अभियोजन के गवाहों पर भरोसा किया जाए।

 

जैसा कि यहां ऊपर कहा गया है, आईपीसी की धारा 302 के अधीन अपराध के लिए दोषी ठहराने हेतु, हत्या का तथ्य अभियोजन द्वारा सर्वप्रथम साबित किया जाने वाला पहलू है। यदि अभियोजन के साक्ष्य मृतक की मृत्यु को मानववध प्रमाणित करने में असफल रहते है तथा आत्महत्या की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस न्यायालय की राय में, अपीलकर्ता- अभियुक्त को केवल ” अंतिम बार साथ देखे जाने” के सिद्धांत के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता था।

उच्च न्यायालय ने अपीलार्थी अभियुक्त को न्यायिकेत्तर / बाह्य संस्वीकृति ( Extra – Judicial Confession ) तथा धनसिंह द्वारा अंतिम बार साथ देखे जाने जाने साक्ष्य पर भरोसा करते हुए आईपीसी की धारा 302 के अधीन दोषसिद्ध करके घोर त्रुटि कारित की। यह अवधारित किया जाना आवश्यक है कि अभियोजन, लगाए गए आरोपों को अपीलार्थी-अभियुक्त के विरुद्ध युक्तियुक्त संदेह से परे साबित करने में बुरी तरह विफल रहा।

उपर्युक्त कारणों से, अपील स्वीकार किए जाने योग्य है, तदनुसार अनुमति दी। अपीलकर्ता-अभियुक्त चंद्रपाल को उसके खिलाफ लगाए गए आरोप से उसे अविलंब दोषमुक्त किया जाता है।

 

CHANDRAPAL VS. STATE OF CHHATTISGARH[2022] [चंद्रपाल बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (पहले एमपी) एमपी)

 

 

 

 

 

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