साक्ष्य क्या है एवं साक्ष्य के प्रकार | saakshy kya hai evam saakshy ke prakar
जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध अपराध को साबित करना होता है , तो वे कौन से साधन व मापदंड होंगे जिनके माध्यम से अपराध साबित को साबित होगा वे साक्ष्य कहलाते हैं।
साक्ष्य क्या है ? (what is evidence)
साक्ष्य अंग्रेजी भाषा के “Evidence” शब्द का हिन्दी रूपांतरण है , जो लैटिन भाषा के “Evidere” से उत्पन्न हुआ है, जिसका शब्दिक अर्थ, “स्पष्ट रूप से अन्वेषण करना ” या “साबित करना ” या पता लगाना या “साफ-साफ निश्चित करना” होता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 3 में साक्ष्य को परिभाषित किया गया है जो इस प्रकार है–
“साक्ष्य शब्द से अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आते हैं–
वे सभी कथन जिनके जांचाधीन तथ्य के विषयो के संबंध में न्यायालय अपने सामने साक्षियों द्वारा किए जाने की अनुज्ञा देता है या अपेक्षा करता है,
ऐसे कथन मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं,
न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश की गई सब दस्तावेजे (जिनमें इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख भी शामिल है)
ऐसी दस्तावेजे दस्तावेजी साक्ष्य कहलाती हैं।”
उपरोक्त परिभाषा के अनुसार साक्षी न्यायालय में हाजिर होकर स्वयं जो कुछ कहता है तथा ऐसे दस्तावेज जिनमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख भी शामिल है, जो न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किए जाते हैं, साक्ष्य कहलाते हैं।
स्टीफेन के अनुसार:-
“साक्ष्य विधि का उचित रूप से न्यायालयो में प्राप्त व्यावहारिक अनुभव को विवादग्रस्त तथ्य के प्रश्नों के विषय में, सत्य में जांच करने की समस्या को लागू करने के सिवा कुछ नहीं है।”
सामंड के अनुसार:-
“कोई भी तथ्य जिसमें प्रमाणकारी बल हो, साक्ष्य कहलाता है।”
बेंथम के अनुसार:-
“ऐसा तथ्य जिसके मस्तिष्क के सामने उपस्थित होने पर किसी दूसरे तथ्य के अस्तित्व या अनअस्तित्व का पता लगे साक्ष्य कहलाता है साक्षी न्याय के आंख और कान है।”
‘महाराष्ट्र राज्य बनाम प्रफुल्ल देसाई, AIR 2003 SC 2053
इस मामले में अवधारण किया कि साक्ष्य मौखिक एवं दस्तावेजी दोनों प्रकार का हो सकता है तथा इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को भी साक्ष्य में प्रस्तुत किया जा सकता है। इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी शामिल है।
क्या शपथ पत्र साक्ष्य हैं?
इस तथ्य पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय महत्वपूर्ण है जो कि इस प्रकार है–
‘सुधा देवी बनाम एम. पी. नारायण ए.आई.आर.1988 एस.सी.1381
इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि शपथ पत्र साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत साक्ष्य नहीं होते है। न्यायालय द्वारा किसी विशेष कारणवश सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 19 एवं दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 295 और 296 के अंतर्गत साक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
वे मामले जिनके संबंध में शपथ पत्र प्रस्तुत किया जा सकता है। सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 की धारा 139, आदेश 19 नियम 1,2,3 द्वारा और दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 295, 296, 297(1) के द्वारा परिभाषित है। शपथ पत्र को उन तथ्यों तक ही सीमित होना चाहिए जिन्हें शपथ लेने वाला अपने निजी ज्ञान के आधार पर सिद्ध कर सके।
साक्ष्य के प्रकार
साक्ष्य मुख्यता निम्नलिखित प्रकार के होते हैं–
1.प्रत्यक्ष साक्ष्य– प्रत्यक्ष साक्ष्य से अभिप्राय विवाध्यक तथ्यों के अस्तित्व या अनअस्तित्व के बारे में साक्षी के द्वारा न्यायालयो के समक्ष मौखिक साक्ष्य हैं। मामले से संबंधित घटना को आंखों से घटित होते हुए देखने वाले व्यक्ति का साक्ष्य प्रत्यक्ष कहलाता हैं। प्रत्यक्ष साक्ष्य का अर्थ तथ्यों को साबित करने के ढंग के साथ भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 60 के अंतर्गत समझाया गया है।
धारा 60 में यह प्रावधान करता है कि “मौखिक साक्ष्य प्रत्यक्ष ही होना चाहिए।”
उदाहरणार्थ– किसी विस्फोट के अंतर्गत तथ्य को इस तथ्य से सिद्ध किया जा सकता है कि किसी व्यक्ति ने उसके धमाके को सुना हो। विस्फोट के तथ्य का यह प्रत्यक्ष साक्ष्य है इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति ने धमाके को देखा तो वहां विस्फोट के तथ्य का प्रत्यक्ष साक्ष्य होता।
प्रत्यक्ष साक्ष्य किसी ऐसे तथ्य का साक्ष्य होता है जिसे साक्षी ने स्वयं अपने इन्द्रियों द्वारा अनुभव किया हो।
2.पारिस्थितिक साक्ष्य– जब किसी तथ्य को साबित करने के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है तो कुछ परिस्थितियों का सहारा लिया जाना आवश्यक हो जाता है और यह परिस्थितियां घटना के इर्द-गिर्द घूमने वाले तथ्य या सबूत होती हैं। जिनका अवलोकन करने से यह पता चलता है कि कोई घटना वास्तव में घटी है या नहीं। इसी को पारिस्थितिक साक्ष्य कहते हैं।
प्रकाश बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान ए.आई.आर. 2013 एस.सी. 1474
के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया की परिस्थिति जन्य साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जा सकता है।लेकिन इसके लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना जरूरी है–
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- परिकल्पना ऊपर आधारित ना हो,
- निष्कर्षात्मक प्रकृति की हो,
- वह सभी संभावित परिकल्पना को अर्जित करने वाली हो,
- साक्षी की संबद्धता हो।
जैसे हरदयाल बनाम स्टेट ऑफ यूपी AIR 1976 SC 2055
प्रस्तुत वाद में उच्चतम न्यायालय ने एक बच्चे की हत्या के मामले में अपराधियों को केवल परिस्थितियों के आधार पर ही मौत की सजा को उचित बताया। अभियुक्त पर बाल हत्या का आरोप था लेकिन हत्या के समय कोई भी स्वयं देखने वाला गवाह नहीं था। लेकिन परिस्थितियों की जंजीर इतनी संपूर्ण थी कि उसे केवल एक ही निष्कर्ष निकलता था कि बच्चे को घर से दौड़ाना और उसको मारना तथा कुएं में फेंकना अभियुक्त के अलावा किसी अन्य व्यक्ति का कार्य नहीं था। अभियुक्त अपनी पत्नी को पीटता था और इसलिए वह अपने मैके चली गई थी। अभियुक्त ने उसे वापस लाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह नहीं आई। एक बार निराश हो कर ससुराल से निकलते समय लोगों ने उससे यह कहते हुए सुना कि वह साले और ससुर आदि को देख लेगा। कुछ दिन बाद लोगों ने उसे अपने साले का 10 वर्षीय बच्चा ले जाते देखा। बच्चा उस समय घर में अकेला था। कुछ दिन तक बच्चे की कोई खबर नहीं मिली। जब अभियुक्त अपने गांव में पकड़ा गया और उसे उस बच्चे के पिता और अन्य लोगों ने घेरा तो उसने माना कि बच्चा उसके पास में है और वह उसे वापस कर देगा। इस बहाने वह गायब हो गया। एक गांव निवासी की सूचना के अनुसार बच्चे का शव कुएं में मिला और सामाजिक तथा वैज्ञानिक रूप से उसके पहचान हो गई। उच्चतम न्यायालय ने अभियुक्त की सजा-ए-मौत को कायम रखा।
3.भौतिक या वास्तविक साक्ष्य– भौतिक साक्ष्य वह साक्ष्य है जो उन भौतिक पदार्थों द्वारा प्रस्तुत होता है जो कि जांच के अधीन संव्यवहार से संबंधित है,
जैसे– हत्या के मामले में चाकू या छुरा जो कि हत्या में प्रयोग किया गया है जब वह न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किया जाता है तब वह उस मुकदमे में भौतिक साक्ष्य होगा।
ऐसा कोई भी विषय, जिसको न्यायालय स्वयं इंद्रियों द्वारा ज्ञात कर सकता है जैसे किसी व्यक्ति के चेहरे के भाव जो भी न्यायाधीश के समक्ष खड़ा है वास्तविक साक्ष्य से आशय ऐसे साक्ष्य से हैं जिनका स्रोत कोई वस्तु हो, जैसे लाठी, बंदूक, चाकू, छुरा आदि।
4. अनुश्रुत साक्ष्य– अनुश्रुत साक्ष्य वह साक्ष्य है जिसे साक्षी दूसरे की सूचना से देता है, जिसने खुद तथ्य को घटित होते ना देखा हो या ना जाना हो और ना सुना हो बल्कि दूसरों के द्वारा जाना या समझा हो।
बाबूराम अग्रवाल बनाम बिहार राज्य व अन्य ए.आई.आर. 1997 सु. को.
इस मामले में पिता का यह कथन कि पड़ोसियों से उसे सूचना मिली कि उसके मृतक पुत्र की घर से चीखने की आवाज आ रही थी। पिता का साक्ष्य अनुश्रूत साक्ष्य माना गया क्योंकि उसने स्वयं अपने कान से कोई चीख नहीं सुनी थी।
अनुश्रुत साक्ष्य को असंगत माना गया है और इसलिए वह अग्राह्य है। साक्षी को वही साक्ष्य देना चाहिए जिसको उन्होंने स्वयं अपनी इंद्रियों द्वारा अनुभव किया हो।
5.प्राथमिक साक्ष्य– प्राथमिक साक्ष्य सर्वोच्च साक्ष्य माना गया है। प्राथमिक शिक्षा से स्वयं मूल दस्तावेज अभिप्रेत है, जो न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश की जाती है। दस्तावेज का अस्तित्व या उसकी अंतर्वस्तु हमेशा प्राथमिक या सर्वोत्तम साक्ष्य द्वारा साबित किया जाना चाहिए।
उदाहरणार्थ– यदि अमित यह कहता है कि उसने अमुक मकान को दीपक से एक विक्रय विलेख द्वारा खरीदा था और उक्त विक्रय को साबित करने के लिए यह विक्रय विलेख पेश करता है तो यह विक्रय का प्राथमिक साक्ष्य होगा।
6.द्वितीयक साक्ष्य– मूल या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में पेश किया जाने वाला साक्ष्य द्वितीयक साक्ष्य कहलाता है। यह निम्नतर कोटि का साक्ष्य होता है, तथा विशेष परिस्थितियों में ही न्यायालय ऐसे साक्ष्य को प्रस्तुत करने की अनुमति देता है।
द्वितीयक साक्ष्य के प्रकार
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 63 के अनुसार पांच प्रकार के द्वितीयक साक्ष्य होते हैं–
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- प्रमाणित प्रतियां
- मूल दस्तावेज की यांत्रिक प्रतियां
- मूल प्रति से तैयार या तुलना की गई प्रतियां
- यदि कोई दस्तावेज प्रतिलेखों में तैयार किया गया है तो वहां हस्ताक्षर न करने वाले पक्षकार के विरुद्ध द्वितीयक साक्ष्य होगा।
- यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसने मूल दस्तावेज को देखा हो तो उसके द्वारा दस्तावेज के बारे में दिया गया मौखिक वृतांत भी द्वितीयक साक्ष्य होगा।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 में अवस्थाओं का उल्लेख किया गया है जिनके अंतर्गत द्वितीयक साक्ष्य ग्राह्य होता है। निम्न परिस्थितियां –
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- मूल दस्तावेज प्रतिपक्षी के कब्जे में होने पर
- मूल दस्तावेज के अस्तित्व, दशा या अंतर्वस्तु को लिखित में स्वीकार कर लिए जाने पर
- मूल दस्तावेज खो जाने पर या नष्ट हो जाने पर
- मूल दस्तावेज को आसानी से स्थानांतरित नहीं किए जा सकने पर
- जब मूल दस्तावेज लोक दस्तावेजों हो
- जब मूल दस्तावेज की प्रमाणित प्रतिलिपि विधि द्वारा अनुज्ञात हो
- मूल दस्तावेज के अनेक लेखाओं के संगठित होने पर।
7. मौखिक साक्ष्य– मौखिक साक्ष्य से अभिप्राय उस साक्ष्य से है जिसे गवाह ने स्वयं न्यायालय में उपस्थित होकर अभिव्यक्त किए हो इसके अंतर्गत वे बयान सम्मिलित हैं जिन्हें न्यायालय अपने समक्ष जाचाधीन तथ्य के संबंध में साक्षी द्वारा कहे जाने की आज्ञा देता है या अपेक्षा करता है।
उदाहरण– सुमित के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा दायर किया। वादपत्र में उसने यह आरोप लगाया कि मयंक ने कहा है कि सुमित ने कोलकाता में चोरी की है। इस मामले में सुमित के साक्षी यह आकर कह सकते हैं कि मयंक ने उसकी उपस्थिति में कहा है कि सुमित ने चोरी की है और उन लोगों ने सुना है।
8. दस्तावेजी साक्ष्य– भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 61 में कहा गया है कि “दस्तावेजों की अंतर्वस्तु या तो प्राथमिक व द्वितीयक साक्ष्य द्वारा साबित की जा सकेगी।”
साक्ष्य विधि में इसका महत्वपूर्ण स्थान है जब कोई साक्ष्य दस्तावेज के माध्यम से न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है तो वह दस्तावेजी साक्ष्य कहलाता है। ‘समस्त दस्तावेज जो न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किए जाते हैं दस्तावेजी साक्ष्य कहलाते हैं।’ ऐसे साक्ष्य जो लिखित में होते हैं और इसलिए अधिक विश्वसनीय होते हैं।
कोई भी विषय जिसमें अक्षरों, चिन्हों अथवा इसमें से एक के द्वारा कागज या किसी अन्य वस्तु पर वर्णित किया गया है, उसे दस्तावेज कहते हैं। यह दो प्रकार से प्रमाणित किया जा सकता है–
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- प्राथमिक साक्ष्य के द्वारा और
- द्वितीयक साक्ष्य के द्वारा
संदर्भ साभार :- भारतीय साक्ष्य अधिनियम टेक्स्ट बुक
राजा राम यादव एण्ड अवतार सिंह
बेयर एक्ट :- भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872