जनहित बनाम भारत संघ | JANHIT ABHIYAN vs UNION OF INDIA | ews judgment in hindi
उच्चतम न्यायालय
आरंभिक /सिविल अपीलीय क्षेत्रियाधिकारिता
रिट याचिका (सिविल)क्रमांक 2019 का 55
पीठ: सीजेआई उदय उमेश ललित,न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ,न्यायमूर्ति स. रवींद्र भट ,न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति जे.बी. परदीवाला
मामले के तथ्य :
स्थानांतरण याचिकाओं, रिट याचिकाओं और अपील के लिए विशेष अनुमति याचिका के, अंतरित मामलों के इस बैच में , संविधान के एक सौ तीन वे (संशोधन)अधिनियम, 2019 को चुनौती दी गई है, जो 14.01.2019 को लागू हुआ , जिसके द्वारा संसद ने संविधान के अनुच्छेद 15 व अनुच्छेद 16 में दो नए खंड अर्थात अनुच्छेद 15 मे खंड (6) को स्पष्टीकरण के साथ और अनुच्छेद 16 में खंड (6) को जोड़कर भारत के संविधान मे संशोधन किया है और इसके द्वारा राज्य को,अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग(नॉन क्रीमी लैअर ) से भिन्न आर्थिक रूप से दुर्बल नागरिकों को अतिरिक्त अधिकतम दस प्रतिशत आरक्षण के लिए सशक्त किया गया है। आरंभ मे, यह कहा जाना चाहिए कि प्रश्न में संशोधन अनिवार्य नहीं है, लेकिन ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण को सक्षम बनाता है और अधिकतम दस प्रतिशत की सीमा निर्धारित करता है। और इससे एससी एसटी ओबीसी को बाहर करता है इसलिए यह असंवैधानिक है ।
अवधार्य प्रश्न :
इस पीठ के द्वारा शुरुआत में इन मामलों में उत्तर दिए जाने वाले तीन मुख्य विषयों पर ध्यान दिया गया है। इन विषयों का उत्तर देने और प्रस्तुत करने के आग्रह की विविधता के साथ-साथ विषय-वस्तु को देखते हुए, निर्धारण के लिए निम्नलिखित प्रमुख बिंदु उत्पन्न होते हैं:
(a) क्या आरक्षण सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का एक साधन है तथा इसलिए, आर्थिक मापदंडों पर एकमात्र संरचित आरक्षण भारत के संविधान की आधारभूत संरचना का उल्लंघन करता है?
(b) क्या आर्थिक रूप से दुर्बल वर्गों के रूप में आरक्षण का लाभ प्राप्त करने से अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) के अधीन वाले वर्गों का अपवर्जन समता संहिता का उल्लंघन करता है और इस प्रकार से, आधारभूत संरचना के सिद्धांत का ?
(c) क्या आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग के नागरिकों के लिए, विद्यमान आरक्षण के अतिरिक्त दस प्रतिशत तक आरक्षण, पचास प्रतिशत की उच्चतम सीमा के उल्लंघन के कारण आधारभूत ढांचे का उल्लंघन करता है।
पैरा 31
निर्णय: इन विषयों पर 5 न्यायाधीशों की पीठ मे जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप दुर्बल नागरिकों को 10 प्रतिशत आरक्षण के पक्ष में निर्णय दिया तथा मुख्य न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने असहमति व्यक्त की ।
यहाँ क्या चर्चा की गई है और क्या अभिनिर्धारित किया गया है, इस हेतु पैरा 31 मे अवधारण के लिए निर्मित प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार हैं:
a ) आरक्षण राज्य के द्वारा सकारात्मक कार्रवाई का एक साधन है ताकि असमानताओं का सामना करते हुए एक समतावादी समाज के लक्ष्यों की ओर सर्व-समावेशी मार्च (सीमा) सुनिश्चित की जा सके; यह न केवल सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्य धारा मे शामिल करने का एक साधन है बल्कि किसी कमजोर वंचित वर्ग या अनुभाग के कमजोर वर्ग के लिए भी उत्तर देना है । इस पृष्ठभूमि में, आरक्षण को आर्थिक मापदंड पर ही संरचित किया गया है, यह भारत के संविधान की किसी भी आवश्यक विशेषता का उल्लंघन नहीं करता है और न ही संविधान के आधरभूत ढांचे को कोई नुकसान कारित करता है।
b) अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) के अधीन आने वाले वर्गों को, आर्थिक रूप से कमजोर (ews) के रूप में आरक्षण का लाभ प्राप्त करने से अपवर्जित करना, गैर-भेदभाव और प्रतिपूरक भेदभाव की आवश्यकताओं को संतुलित करने की प्रकृति में होने के कारण, समता संहिता का उल्लंघन नहीं करता है और न् ही किसी भी तरह से भारत के संविधान की आधारभूत संरचना को नुकसान कारित करता है।
c ) आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के नागरिकों लिए विद्यमान आरक्षण के अतिरिक्त दस प्रतिशत तक आरक्षण से , भारत के संविधान की किसी भी आवश्यक विशेषता का उल्लंघन नहीं होता है तथा पचास प्रतिशत की उच्चतम सीमा के उल्लंघन के कारण, भारत के संविधान की आधारभूत संरचना को नुकसान कारित करता है, क्योंकि यह सीमा अपने आप में अनम्य नहीं है और किसी भी मामले में, केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) द्वारा परिकल्पित आरक्षणों पर लागू होती है।
निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के प्रश्न पर संशोधन के प्रभाव के संबंध में अधिक तर्क नहीं दिए गए हैं. हालाँकि, यह एक बार स्पष्ट किया जा सकता है कि प्रश्न में संशोधन को चुनौती देने के मुख्य भाग के संबंध में यहाँ क्या अवधारित किया गया है, प्रमती ट्रस्ट के निर्णय के साथ पड़ने पर, इस संबंध में जो वाद विषय बनाया गया है, उसका जवाब भी चुनौती के खिलाफ होगा. 103
तदनुसार, तथा उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए,इन मामलों में तैयार किए गए वाद विषयों के उत्तर इस प्रकार हैं:
- राज्य को आर्थिक मापदंडों के आधार पर आरक्षण सहित विशेष उपबंध करने की अनुमति देकर 103वें संविधान संशोधन को संविधान के आधारभूत ढांचे को भंग करने वाला नहीं कहा जा सकता है।
- 103वें संविधान संशोधन को निजी गैर सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के संबंध में राज्य को विशेष उपबंध करने की अनुमति देकर संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।
- 103वें संविधान संशोधन को एसईबीसी/ओबीसी/एससी/एसटी को ईडब्ल्यूएस आरक्षण के दायरे से बाहर करने से संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।
पैरा 104
इसलिए , स्थानांतरित मामले, स्थानांतरण याचिकाएं, रिट याचिकाओं और मामलों के इस बैच का भाग होने वाली अपील के लिए विशेष अनुमति याचिका खारिज कर की जाती है। पैरा 105
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