आज के इस लेख में हम में बात करेंगे –
स्वीकृति क्या है?
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- “स्वीकृति का सामान्य अर्थ अपने द्वारा की गई किसी बात को या कार्य के किए जाने को मान लेना है ।”
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- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 17 के अनुसार स्वीकृति,– “स्वीकृति वह मौखिक या दस्तावेजी अथवा इलेक्ट्रॉनिक रूप में अंतर्विष्ट कथन है जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में कोई अनुमान इंगित करती है और जो ऐसे व्यक्तियों में से किसी के द्वारा ऐसी परिस्थितियों में किया गया है जो एतस्मिन पश्चात (धारा18 से 20 ) में वर्णित है।”
स्वीकृति आवश्यक शर्तें :
- कथन ऐसा होना चाहिए जो विवाद्यक या सुसंगत तथ्य के बारे में अनुमान इंगित करता हो।
- कथन मौखिक, दस्तावेजी या इलेक्ट्रॉनिक रूप में अंतर्विष्ट हो।
- कथन ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए जो धारा 18, 19, 20 में वर्णित है।
- कथन उक्त धाराओं में वर्णित परिस्थितियों में किया गया हो।
स्वीकृति के प्रकार :
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- (1).औपचारिक स्वीकृति या न्यायिक स्वीकृति– ऐसी स्वीकृतियां जो न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के दौरान की जाती है उन्हें औपचारिक या न्यायिक स्वीकृति कहते हैं। इन्हें साबित करने की आवश्यकता नहीं होती है। जैसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 58 में उपबंधित है, जिसके आधार पर न्यायालय विनिश्चय कर सकता हैं।
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- (2).अनौपचारिक या आकस्मिक स्वीकृति– ऐसी स्वीकृतिया जो न्यायालय से बाहर की जाती है, ये स्वीकृतिया जीवन या कारोबार या साधारण वार्तालाप के क्रम में हो सकती हैं। ऐसी स्वीकृति लिखित या मौखिक या इलेक्ट्रॉनिक रूप में हो सकती हैं। अनौपचारिक की आकस्मिक स्वीकृति भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 17 से 21 व 31 में बताई गई अर्थात इन्हीं धाराओं के अंतर्गत सुसंगत होती हैं।
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- (3).आचरण द्वारा स्वीकृति– कुछ परिस्थितियां ऐसी होती है जिनमें पक्षकार का आचरण स्वीकृति का साक्ष्य बन सकता है। कभी-कभी आचरण शब्दों से अधिक सत्यता को दर्शित करता है।
उदाहरण:– प्रश्न यह है कि क्या कुलदीप के प्रति सचिन 10,000 का लेनदार हैं? यह तथ्य की सचिन ने अनुपम से धन उधार मांगा और विवेक ने अनुपम से सचिन की उपस्थिति में कहा कि मैं तुम्हें सलाह देता हूं कि तुम एक सचिन पर भरोसा मत करो क्योंकि वह कुलदीप के प्रति ₹10000 का देनदार है। और यह कि सचिन कोई उत्तर दिए बिना वहां से चला जाता है।
आचरण के रूप में सुसंगत है। उक्त उदाहरण साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 में दृष्टांत (G) के रूप में निहित है,जो की मौन स्वीकृति को स्पष्ट करता है।
स्वीकृति कौन कर सकता है?
- कार्यवाही के पक्षकार द्वारा– कार्यवाही के किसी पक्षकार द्वारा किए गए कथन स्वीकृतियां है। पक्षकार से वाद या कार्यवाही के वे व्यक्ति अभिप्रेत हैं जिनके द्वारा या विरुद्ध कार्यवाही संस्थित की जाती है। (धारा 18)
- अभिकर्ता द्वारा– पक्षकार द्वारा अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से मामले की परिस्थितियों में न्यायालय के समक्ष कथन करने के लिए प्राधिकृत किया गया हो अर्थात न्यायालय ऐसे कथन करने के लिए प्राधिकृत समझता हो। (धारा 18)
- प्रतिनिधिक हैसियत में वादकर्ता द्वारा– प्रतिनिधिक हैसियत में वाद लाते हुए ऐसी स्थिति को धारण करते हुए किए गए कथन स्वीकृतिया हैं। (धारा 18)
- विषयवस्तु में हितबद्ध पक्षकार द्वारा– ऐसे व्यक्तियो द्वारा किए गए कथन जिनका कार्यवाही की विषय वस्तु में संपत्ति या धन संबंधी हित है और जो इस प्रकार हितबद्ध व्यक्तियों की हैसियत में वह कथन करता है, स्वीकृतिया हैं। (धारा 18)
- उस व्यक्ति द्वारा जिससे हित व्युत्पन्न हुआ है– ऐसे व्यक्तियों द्वारा किए गए कथन स्वीकृतियां है, जिनसे वाद के पक्षकारों का वाद की विषय वस्तु में हित बना हुआ है, यदि वे कथन उन्हें करने वाले व्यक्तियों के हित चालू रहने के दौरान में किए गए हैं।(धारा 18)
- उन व्यक्तियों द्वारा जिनकी स्थिति वाद के पक्षकारों के विरुद्ध साबित की जानी हैं– वे कथन जो ऐसे व्यक्तियों द्वारा किए गए हैं ,जिनकी स्थिति या दायित्व वाद के किसी पक्षकार के विरुद्ध साबित किया जाना आवश्यक है, स्वीकृतियां है। (धारा 19)
- पक्षकारों ने निर्दिष्ट किया है– वे कथन जो उन व्यक्तियो द्वारा किए गए हैं जिनको वाद के किसी पक्षकार ने किसी विवादग्रस्त विषय के बारे में जानकारी देने के लिए अभिव्यक्त रूप से निर्दिष्ट किया है, स्वीकृतियां है। (धारा 20)
जैसे प्रश्न यह है कि क्या A द्वारा B को बेचा हुआ घोड़ा अच्छा है? B से A कहता है कि “जाकर C से पूछ लो वह इस बारे में सबकुछ जानता है।” C के द्वारा किए गए कथन स्वीकृति हैं।
स्वीकृति किसके विरूद्ध साबित की जाती है?-
भरत सिंह बनाम श्रीमती भगवती ए .आई .आर. 1962 एस. सी. 405 तथा विश्वनाथ बनाम द्वारिका प्रसाद एआईआर 1972 एस. सी.117
- प्रस्तुत वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि स्वीकृतिया उस साक्षी द्वारा साबित की जा सकती हैं जिसने कि उसे सुना था और स्वीकृतिकर्ता को पेश करने की आवश्यकता नहीं है। वह मौलिक साक्ष्य की प्रकृति की होती हैं।
स्वीकृति करने वाला कब अपने पक्ष में साबित कर सकेगा [अपवाद]
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- मृत्युकालिक कथन या जो कथन धारा 32 के अंतर्गत सुसंगत हो– कोई स्वीकृति उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसके ओर से तब साबित की जा सके कि जबकि वह इस प्रकृति की है उसे करने वाला व्यक्ति मर गया होता, तो वह अन्य व्यक्तियों के बीच में धारा 32 के अधीन सुसंगत होती।
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- मन या शरीर की दशा विद्यमान होने पर की गई स्वीकृति– कोई स्वीकृती उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से तब साबित की जा सकेगी जबकि इस प्रकृति की है कि यदि उसे करने वाला व्यक्ति मर गया होता, तो अन्य व्यक्तियों के बीच धारा 32 के अधीन सुसंगत होती।
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- स्वीकृति से अन्यथा सुसंगत कथन– कोई स्वीकृति उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से साबित की जा सकेगी, यदि वह स्वीकृति के रूप में नहीं किंतु अन्यथा सुसंगत हैं। अर्थात कोई व्यक्ति अपने कथन साबित कर सकता है जो धारा 6 से 55 के रूप में सुसंगत हो शिवाय शिवाय संस्कृति के रूप में सुसंगत हो, सिवाय संस्वीकृति के रूप में।
स्वीकृति का साक्ष्यिक मूल्य या महत्व
धारा 115 के अनुसार– “जब एक व्यक्ति ने अपनी घोषणा, कार्य या लोप द्वारा अन्य व्यक्तियों को विश्वास साशय कराया हैं या कर लेना दिया है कि कोई बात सत्य है और ऐसे विश्वास पर कार्य कराया है या करने दिया है तब ना तो उसे और उसके प्रतिनिधि को किसी बात या कार्यवाही में उस बात की सत्यता का प्रत्याख्यान करने दिया जाएगा।”