आज हम मूल अधिकारों के बारे में बात करेंगे
मूल अधिकारों का अर्थ क्या होता है?
मूल अधिकारों का उद्भव कैसे हुआ?
भारत में मौलिक अधिकार कितने हैं?
एवं मूल अधिकारों की विशेषताएं क्या है?
संविधान में मूल अधिकारों की कोई परिभाषा नहीं की गई है, लेकिन इसे समझने की दृष्टि से इस प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं –
“मूल अधिकार वे अधिकार हैं जो मानव को गरिमा पूर्ण जीवन जीने एवं उसके बौद्धिक नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अति आवश्यक ही नहीं वरन अपरिहार्य होते हैं।”
अर्थात वे मानव के बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक होते हैं एवं उनके बिना मानव का बहुमुखी विकास संभव नहीं है।
गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य
इस मामले में जस्टिस सुब्बाराव ने मूल अधिकारों को परिभाषित करते हुए कहा कि “मौलिक अधिकार नैसर्गिक तथा अप्रतिदेय अधिकार है।”
जस्टिस वेग के अनुसार – “मूल अधिकार स्वयं संविधान में समाविष्ट अधिकार है ।”
उपुर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि मूल अधिकार वे अधिकार हैं, जिनके बिना मानव अपना बहुमुखी विकास नहीं कर सकता है और यह अधिकार उसे संविधान से प्राप्त होते हैं।
मूल अधिकारों का उद्भव या विकास
सबसे पहले 1215 ईस्वी में इंग्लैंड के सम्राट जॉन ने अधिकार पत्र अर्थात मैग्नाकार्टा जारी कर नागरिकों के मूल अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की। मैग्ना कार्टा मूल अधिकारों से संबंधित विश्व का पहला लिखित दस्तावेज है।
बाद में 1789 ईस्वी में जब अमेरिका में संविधान बना तब अमेरिका ने सबसे पहले मूल अधिकारों को अपने संविधान में बिल ऑफ राइट्स (bill of right)के रूप में स्वीकार कर पूर्ण संवैधानिक प्रधान की।
भारत में मूल अधिकार
भारत में संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकारों को शामिल किया गया है इसी भाग 3 को अर्थात मौलिक अधिकारों को भारत का मैग्नाकार्टा कहा जाता है।
मूल अधिकार कितने हैं?
जब हमारा संविधान बना तो उसमें हमें 7 मूल अधिकार दिए गए थे किंतु 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 के द्वारा संपत्ति का अधिकार जो अनुच्छेद (article) 19(1)(f) व अनुच्छेद 31 में निहित था, इसे मूल अधिकारियों की सूची से बाहर कर एक नए अनुच्छेद 300A में शामिल करके संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।
संपति के अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से हट जाने के पश्चात अब वर्तमान में हमारे पास 6 मूल अधिकार हैं जो कि निम्न है –
1. समता का अधिकार ( Right to equality)
संविधान में अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक में समता का अधिकार निहित है। इस अधिकार से समाज में व्याप्त असमानता व भेदभाव को समाप्त कर समानता प्रदान करने की बात कही गई है।
2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
यह अधिकार अनुच्छेद 19 से लेकर 22 तक में निहित है, इन अनुच्छेदों के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करने का प्रयास किया गया है जिन में अनुच्छेद 21 में बड़े स्तर पर कई मूल अधिकारों को समाहित किया गया है।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार ( Right against exploitation)
अनुच्छेद 23 व 24 मैं निहित है इसमें स्वतंत्रता से पहले लोगों का जो शोषण, बंधुआ मजदूरी आदि तथा बालकों के प्रति होने वाले शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान कर समाप्त करने का प्रयास किया गया है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार right to religion)
यह अधिकार अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक में निहित है हमारा देश पंथनिरपेक्ष है और यहां भिन्न भिन्न धर्मों के लोग रहते हैं उन सभी को अपने-अपने धर्म को मानने व आचरण करने की स्वतंत्रता दी गई हैं।
5. संस्कृति व शिक्षा का अधिकार( cultural and educational rights)
यह अधिकार अनुच्छेद 29 व 30 में समाहित है। हमारे यहां विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं जिनकी अपनी अपनी संस्कृति एवं भाषा है, उसको बनाए रखने तथा उनसे संबंधित शिक्षा आदि के संबंध में प्रावधान इस अधिकार के अंतर्गत किया गया है।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
( Right to constitutional remedies)
यह अधिकार अनुच्छेद 32 से लेकर 35 तक में प्रावधान किया गया है, हमें जो मूल अधिकार भाग तीन में दिए गए हैं उनके उल्लंघन होने पर उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार दिया गया है,।
मूल अधिकारों की विशेषताएं
मूल अधिकारों की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है
1. संविधान द्वारा प्रत्याभूत-
हमें जो मूल अधिकार संविधान द्वारा मिले हैं तथा राज्य इनके विरुद्ध कोई ऐसा कानून नहीं बना सकता और और इनकी रक्षा हेतु सीधे अनुच्छेद 32 व अनुच्छेद 226 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट तथा उच्च न्यायालय में जाने की व्यवस्था की गई है ।
2. यह राज्य की वृद्धि प्राप्त है-
मूल अधिकार प्राप्त है राज्य से तात्पर्य अनुच्छेछेद 12 के अनुसार
“अनुच्छेद 12- भारत की सरकार, भारत की संसद, राज्य की सरकारें, राज्यो के विधान मंडल और भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय प्राधिकारी और अन्य प्राधिकारी सम्मिलित है।”
किन्तु उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली
डोमेस्टिक डिफेंस वर्किंग फॉर्म बनाम भारत संघ(1994)
“इस मामले में अभिनिर्धारित किया कि मूल अधिकार प्राइवेट संस्था व व्यक्ति के विरुद्ध भी लागू किए जा सकते है।”
3. न्यायालय द्वारा प्रवर्तनिय-
इसका तात्पर्य हुआ कि जब भी किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का उल्लंघन होगा तो वह उन्हें लागू करवाने के लिए अनुच्छेद 32 के अधीन उच्चतम न्यायालय तथा अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में जा सकेगा और अपने अधिकारों के उल्लंघन का उपचार में प्राप्त कर सकेगा।
4. यह आत्यंतिक नहीं है अर्थात पूर्ण नहीं है-
हमें संविधान के द्वारा जो मूल अधिकार प्राप्त है वे पूर्ण नहीं है इन पर निर्बंधन लगाए जा सकते हैं जैसे कुछ निर्बंधन अनुच्छेद 19 के उपखंड (2) में बताए गए हैं तथा धार्मिक स्वतंत्रता के संबंध में कुछ निर्बंधन अनुच्छेद 25 में बताए गए हैं ,साथ ही अनुच्छेद 20 व 21 को छोड़कर बाकी सभी मूल अधिकार आपातकाल के दौरान निलंबित किए जा सकते हैं, इसलिए मूल अधिकार सीमित अधिकार है पूर्ण अधिकार नहीं है।
5. सेना के संबंध में सीमित-
भाग तीन द्वारा प्रदत मूल अधिकार सेना के संबंध में उनमें अनुशासन बनाए रखने व कर्तव्य की उचित निर्वहन के लिए सीमित किए जा सकते हैं।
6 सेना विधि लागू होने पर-
जिन क्षेत्रों में सेना विधि लागू होती है वहां भाग 3 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार संसद द्वारा विधि बनाकर कम किए जा सकते हैं।
7 संशोधित किए जा सकते हैं – भाग तीन में प्रदत्त मूल अधिकार में संसद के द्वारा अनुच्छेद 368 के अधीन अपने संशोधन करने की शक्ति का प्रयोग करके संशोधन किया जा सकता है।
उपयुक्त बिंदु 5 से लेकर 7 तक कि जो विशेषताएं बताई गई हैं वह मूल अधिकारों पर निर्बंधन में भी आते हैं।
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संभावित प्रश्न – मूल अधिकारों से आप क्या समझते हैं ? मूल अधिकारों के उद्भव एवं विकास को समझाते हुए भारतीय संविधान में प्रदत्त मूल अधिकारों का वर्णन करते हुए उनकी विशेषताओं को समझाइए ?
इंपोर्टेंट फॉर – प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार हेतु।