आज कल बाजार में आसानी एक चीज के जैसी दूसरी चीज आसानी से मिल जाती है जिसे हम नकली या सेकंड कॉपी आदि के नाम से जानते असल में वह कूटकृत होती । आज के लेख में हम कूूटकरण के बारे में बात करेंगे , ।
कूटकरण का अर्थ कैंब्रिज डिक्शनरी के अनुसार “सामान्यता बेईमानी या विधि विरुद्ध उद्देश्य के लिए किसी चीज को मूल चीज के जैसा दिखने वाला बनाना।”
कूट करण को भारतीय दंड संहिता की धारा 28 में परिभाषित किया गया है जो कि निम्न अनुसार है-
धारा 28. कूटकरण- “–जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश इस आशय से करता है कि वह उस सदृश से प्रचना करे,
या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि तद्धारा प्रवंचना की जाएगी. वह “कुटकरण” करता है, यह कहा जाता है।
स्पष्टीकरण 1-कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो।
स्पष्टीकरण 2 जबकि कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश कर दे और सादृश्य ऐसा है कि तदद्वारा किसी व्यक्ति को प्रवंचना हो सकती हो, तो जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि जो व्यक्ति एक
चीज को दूसरी चीज के इस प्रकार सदृश बनाता है उसका आशय उस सादृश्य द्वारा प्रवंचना करने का था या वह यह सम्भाव्य
जानता था कि तदद्वारा प्रवंचना की जाएगी।
कूटकरण के आवश्यक तत्व- कूटकरण के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है –
1. एक चीज को दूसरी चीज के सदृश किया हो-
कूटकरण के लिए यह आवश्यक है कि किसी व्यक्ति ने एक चीज को दूसरे चीज के सदृश किया हो और यह बात मायने नहीं रखती है की नकल ठीक वैसी ही हो ।
2 सदृश्य प्रवचना करने के आसन से किया गया हो- कूटकरणके लिए आवश्यक है कि एक चीज को सदृश इस आशय से किया गया हो कि ऐसा सदृश करने वाला व्यक्ति उससे किसी अन्य व्यक्ति को प्रवंचित करें।
3. प्रवचना किया जाना संभव जानता हो –
कूट करण के लिए यह आवश्यक होता है कि कूट करण करने वाला व्यक्ति यह जानता हूं कि संभाव्य है एक चीज को दूसरी चीज के सदृश करने से किसी को प्रवंचाना की जाएगी।
कूटकरण के लिए उपयुक्त तीनों तत्वों का विद्यमान होना आवश्यक होता है।
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कूट करण के बारे में उपधारणा
कूटकरण के अपराध के लिए आवश्यक नहीं होता है कि नकल में ठीक उसी प्रकार से की जाए जिस प्रकार से की मूल है ,इसके लिए बस इतना ही पर्याप्त होता है कि उससे यानी कि नकल से किसी को धोखा हो सकता है।
यदि कूटक्रत चीज से धोखा हो सकता है, तब उस व्यक्ति के बारे में जिसने कूटकरण किया है उसके बारे यह धारणा की जाएगी कि उसने ऐसा सदृश्य अर्थात नकल किसी व्यक्ति को या तो प्रवंचना देने का आशय से किया है यह वह जानता है कि उसके द्वारा प्रवंचना की जाएगी।
कूटकरण अपराध के रूप में दंडनीय है
भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत कूटकरण अपराध के रूप में निम्नलिखित धाराओं के अधीन अपराध के रूप में दंडनीय होता है –
1. धारा 231 व 233 के अधीन सिक्के एवं भारतीय सिक्कों का कूट करण के रुप में।
2. धारा 233 एवं धारा 234 के अधीन सिक्कों के एवं भारतीय सिक्कों के कूट करण के उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को बनाने या बेचने के रूप में।
3. धारा 235 के अधीन सिक्के की कूट करण के लिए उपकरण या सामग्री उपयोग में लाने के प्रायोजन से कब्जे में रखना।
4. धारा 233 से लेकर 243 तक सिक्कों के या भारतीय सिक्कों के कूट करण करने ,उपकरण बनाना, बेचना या कब्जे में रखना या कूटकृत सिक्कों को कब्जे में रखना आदि ।
5.धारा 255 से 260 तक सरकारी स्टांप का कूट करन करना ,उनके लिए उपकरण रखना, बनाना ,बेचना ,कूटकृत स्टाम्पों का विक्रय , कब्जे में रखना उपयोग करना आदि।
6. धारा 489A से लेकर 489E तक करेंसी नोटों और बैंक नोटों के विषय में कूटकरण करना ।
उपयुक्त धाराओं के अंतर्गत ही भारतीय दंड संहिता में कूटकरण का अपराध दंडनीय होता है।
संभावित प्रश्न- कूटकरण से आप क्या समझते हैं इसके आवश्यक तत्व बताते हुए समझाइए?
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