शनिवार, मार्च 1, 2025
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अपराध एवं अपराध के आवश्यक तत्व what is offence and it’s essential elements in Hindi

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आज के इस लेख में हम बात करने वाले हैं अपराध क्या होता है और अपराध से संबंधित उसके आवश्यक तत्व क्या है

 

प्राचीन समय में लोग कुछ कार्यों को बुराई के रूप में देखते हैं और यदि इन कार्यों में से कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता था, तो उसको पाप का भागीदार माना जाता था। तत्पश्चात कालांतर में राजा भी अपने राज्य में कुछ कार्यों को निषिद्ध कर देते थे, जो भी कोई यदि निषेध कार्यों को करता था, तो दंड के लिए भागीदार होता था। जैसे कि दंड स्वरूप कोड़े मारने की सजा  बहुत प्रचलित हुआ करती थी धीरे धीरे अपराध अपराध करने के ढंग में काफी बदलाव हुआ और  वर्तमान स्वरूप की परिस्थितियों के हिसाब से उसे परिभाषित  किया गया।

अपराध  का  शाब्दिक अर्थ

अपराध शब्द अंग्रेजी भाषा offence का हिंदी रूपांतरण है जोकि लैटिन भाषा के OFFENDERE   से मिलकर बना है ,जिसका अर्थ होता है “के विरुद्ध हड़ताल (strike against) अर्थात किसी कार्य के प्रति हड़ताल करना।
विधि के परिपेक्ष में अपराध शब्द की बात करें तो सामान्य अपराध से तात्पर्य ऐसे कार्य से लिया जाता है जो की विधि के विरुद्ध हो या विधि का उल्लंघन करने वाला हो  अपराध शब्द की विधिवेताओ द्वारा कि गई परिभाषा-

सर विलियम ब्लेकस्टोन  नेे अपनी पुस्तक “कमेंट्री ऑन द लॉस ऑफ इंगलैंड ” मैं अपराध को इस प्रकार से परिभाषित किया कि -“निषिद्ध या समावेशित करने वाली सार्वजनिक विधि के उल्लंघन में किया गया कार्य या लोप अपराध कहलाता है।”

केनी के अनुसार– “अपराध ऐसे दोष हैं जिनमें अनुशास्ति दंडात्मक होती है, जो किसी सामान्य व्यक्ति के द्वारा  क्षम्य नहीं है और यदि क्षम्य है तो केवल सम्राट के द्वारा।”

सर जेम्स स्टीफेन के अनुसार-अपराध 

विधि द्वारा निषिद्ध तथा समाज के नैतिक मूल्यों के लिए अरुचिकर एक कार्य है।”
 

भारत में अपराध को भारतीय दंड संहिता एवं दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में परिभाषित किया गया है जो कि निम्नानुसार है 

भारतीय दंड संहिता धारा 40 के अनुसार-

इस धारा के खंड 2 और  3 में वर्णित (अध्यायो) और धारा के सिवाय अपराध शब्द इस संहिता द्वारा दंडनीय की गई किसी बात का द्योतक है।
उपरोक्त परिभाषा के अनुसार केवल वह कार्य   ही अपराध है जो भारतीय दंड संहिता में दंड  बतलाए गए हैं। किंतु यह परिभाषा भारतीय दंड संहिता के अधीन निषिद्ध कार्यों को दंडित करने की बात करती है।

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 2 (n )के अनुसार

धारा 2(n)– इस संहिता में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित ना हो, “अपराध से कोई ऐसा कार्य  या लोप अभिप्रेत है, जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के द्वारा दंडनीय बना दिया गया है और इसके अंतर्गत कोई ऐसा कार्य भी है, जिसके बारे में पशु अतिचार अधिनियम 1871 (1871का 1)  की धारा 20 के अधीन परिवाद किया जा सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन की गई उपयुक्त परिभाषा अपराध के संबंध में अधिक  उचित एवं स्पष्ट प्रतीत होती है।

 

अपराध के आवश्यक तत्व-

किसी भी अपराध घटित होने के लिए निम्नलिखित तत्वों का विद्यमान होना आवश्यक है-

1.मानव/व्यक्ति( person) –  

अपराध के लिए आवश्यक है कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया हो तभी उसे विधि द्वारा  किए गए अपराध के लिए दायी ठहराया जा सकता है, व्यक्ति  शब्द के अंतर्गत कोई भी कंपनी संगम या व्यक्ति निकाय आता है , चाहे वह निगमित हो या ना हो।

2. दुराश्य (intension)

 किसी व्यक्ति को किसी आपराधिक कार्य के लिए तब तक दंडित नहीं किया जा सकता जब तक कि उसका आशय उस अपराध को करने का ना हो अर्थात उसका मन दोषी ना हो। दुराश्य  से तात्पर्य  निम्न सूक्तियों के आधार पर लिया जाता है-

Actus non facit reum nisi mens sit ria
अर्थात मात्र कार्य किसी को दोषी नहीं बनाता जब तक कि उसका मन भी दोषी ना हो।
इस प्रकार अपराध के लिए कार्य के साथ-साथ आशय का होना बेहद आवश्यक होता है। इसी सूक्ति से एक और सूक्ति  “ACtus me invito factus non est mens actus” अर्थात मेरी इच्छा के विरुद्ध किया गया कार्य मेरा नहीं है। अतः अपराध के गठन व अपराधी को दंडित करने के लिए अपराध भावना का होना आवश्यक होता है।

3.कार्य या लोप(act or omission)- 

 अपराध के लिए आशय के साथ-साथ कार्यालय का किया जाना भी आवश्यक होता है अर्थात अपराधिक आशय भले ही हो जब तक कोई कार्य लोक नहीं किया जाता तब तक अपराध नहीं किया जा सकता ।

केनी के अनुसारअपराधिक कृत्य मानव आचरण का वह परिणाम है जिसे विधि ने  निषिद्ध करना चाहता है या किया किया गया है या लोपित कार्य निश्चिता विधि द्वारा निषिद्ध या आदेशित होना ही चाहिए।

रसेल के अनुसार- अपराधिक कृत्य मानव आचरण का भौतिक परिणाम है।

4. क्षति (injury)-  

अपराध  का अंतिम आवश्यक तत्व  क्षति कारित होना होता है, क्षति शब्द किसी  प्रकार की  अपहानि का द्योतक है , जो किसी के व्यक्ति शरीर, मन, ख्याति  या  संपत्ति को अवैध रूप से कार्य करते हुई हो सकती है

 कोई कार्य अपराध तभी हो सकता है जब उसमें उपरोक्त चारों तत्व विद्यमान हों, चारों में से एक भी तत्व के अनुपस्थित रहता है ,तो वह अपराध नहीं हो सकता है।
संभावित प्रश्न अपराध को परिभाषित करते हुए , अपराध के आवश्यक तत्वों को समझाइए हैं? 
 
इंपोर्टेंट फॉर – मुख्य परीक्षा

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