शनिवार, मार्च 1, 2025
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परिवाद की खारिजी Dismissal of Complaint in Hindi

सीआरपीसी में परिवाद की खारिजी

Dissmissal  OF COMPLAINT Under CRPC

आज के इस लेख में हम बात करेंगे कि जब किसी अपराध के घटित होने की सूचना परिवाद के माध्यम से मजिस्ट्रेट को दी जाती है और मजिस्ट्रेट उस परिवाद को खारिज अर्थात डिसमिस कर देता है तब ऐसे खारिजी के विरुद्ध परिवादी को क्या उपचार प्राप्त होंगे और अभियुक्त को क्या उपचार क्या उपचार प्राप्त होंगे । सबसे पहले तो यह जान लेते हैं कि परिवाद कहां और क्यों खारिज किया जाता है इस प्रकार है इसे जानने के लिए सबसे पहले दंड प्रक्रिया संहिता1973, की धारा 203 को देख लेते हैं।

 

Section 203 of crpc

“धारा 203 यदि परिवादी के और साक्ष्यों के शपथ पर किए गए कथन पर और धारा 202 के अधीन जांच अन्वेषण के परिणाम पर विचार करने के पश्चात मजिस्ट्रेट की राय है कि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो परिवाद खारिज कर देगा और ऐसे प्रत्येक मामले में वह  ऐसा करने के कारण अभिलिखित करेगा।”

इस धारा के अनुसार निम्न दशा में ही परिवाद खारिज किया जा सकता है –

  1. जब मजिस्ट्रेट धारा 200 के अधीन परिवादी और हाजिर साक्षियों द्वारा दिए गए प्रश्नों के उत्तर पर और

  2. धारा 202 के अधीन की गई जांच या अन्वेषण के परिणाम पर विचार करने के पश्चात।

मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष  पर पहुंचता है कि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो  वह परिवाद ख़ारिज कर देगा।

धारा 203 के अधीन परिवाद तभी खारिज होता है जब अभियुक्त के विरुद्ध कोई समन या वारंट इश्यू नहीं किया गया है ।

परिवाद खरिजी का परिणाम (Effect of dismissal of complainant)

धारा 203 के अधीन कंप्लेंट को डिसमिस करने का क्या परिणाम होता है इसे भी जान लेते हैं । इस धारा के अधीन परिवाद के खारिज होने का आदेश ना तो उनमोचन(Discharge) प्रदान करता है ना ही दोषमुक्ति(acquittal) प्रदान करता है क्योंकि एक परिवाद के खारिज हो जाने पर दूसरा परिवाद दायर किया जा सकता है जिस पर आगे बात की गई है। इस सेक्शन पर धारा 300 में पूर्व दोषसिद्दी और पूर्व दोष मुक्ति का सिद्धांत लागू नहीं होता।

 

खरिजी के आदेश के विरूद्ध उपचार (Remedies Against Dissmissal order)

 अभी तक हमने ये जाना कि परिवाद कब व क्यों खारिज होता है एवं इसका परिणाम क्या होता है अब हम बात करेंगे कि ऐसे खारिजी के आदेश अर्थात Order of dismissal के विरूद्ध में परिवादी तथा अभियुक्त को क्या उपचार प्राप्त होते हैं  इन पर एक एक करके बात करेंगे। सबसे पहले बात करेंगे ।

परिवादी को प्राप्त उपचार

परिवादी अर्थात जिसने परिवाद दायर किया उसे क्या उपचार प्राप्त होते हैं उसे

1.पहला उपचार यह प्राप्त होता है कि वह ऐसे खारिजी के आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण फाइल कर सकता है लेकिन यह बात ध्यान रखना आवश्यक है कि जिस मजिस्ट्रेट ने परिवाद खारिज किया है तो उस परिवाद के संबंध में उसकी सभी अधिकारिता समाप्त हो जाती है अर्थात जिस मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया है उसे पुनरीक्षण उसे वापस लेने का अधिकार नहीं होगा ।

2. दूसरा उपचार प्राप्त होता है कि वह दूसरा अर्थत फिर से परिवाद दायर करें । दूसरा परिवाद कब  किया जाना चाहिए इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में

पूनम चंद जैन बनाम फजरू (2005) SCC

 मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि एक बार परिवाद खारिज कर दिए जाने पर उन्हीं तथ्यों के आधार पर दूसरा परिवाद किया जा सकेगा लेकिन ऐसा परिवाद अपवादित दशाओं में ही पोषणीय(maintainable) होगा। यानी दूसरा परिवाद केवल और केवल अपवादित दशाओं में किया जा सकता है।

 यह भी जानें – गवर्नर, प्रशासक और लेफ्टिनेंट कौन होते हैं और इनके मध्य क्या अंतर होता है।

खारिजी के आदेश के विरुद्ध अभियुक्त को प्राप्त उपचार –

अभियुक्त अर्थात  जिसके विरुद्ध परिवाद दायर किया गया है उसे खारिजी के आदेश के विरुद्ध उपचार जब अभियुक्त के विरुद्ध परिवाद कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार न होने के कारण खारिज कर दिया जाता है तब अभियुक्त को केवल एक उपचार प्राप्त होता है कि, वह भारतीय दंड संहिता की धारा 211 के अधीन मिथ्या आरोप(false charge) के लिए परिवादी को आभियोजित करे अर्थात मामला दर्ज कराएं जिससे कि परिवादी को उसके द्वारा किए गए अपराध की सजा मिल सके और समाज में किसी को झूठा परिवाद दायर करके बेवजह परेशान न किया जा सके।

 

अब एक प्रश्न यह उठता है कि क्या  अभियुक्त प्रतिकर प्राप्त नहीं कर सकता?

अभियुक्त परिवादी से धारा 250 के अधीन प्रतिकर प्राप्त कर नहीं कर सकता हैं क्यों कि संहिता की धारा 250 के अधीन प्रतिकर पाने के लिए अभियुक्त को उन्मोचित या दोषमुक्त होना जरूरी होता है, जबकि धारा 203 का प्रभाव न तो उन्मोचन होता है और न ही दोषमुक्ति इसलिए अभियुक्त किसी भी प्रकार का प्रतिकर पाने का हकदार नहीं होता है।

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