कानून में किसी तथ्य को साबित करने के लिए साक्ष्य का विशेष महत्व होता है । अपराध विधि के अधीन जब किसी व्यक्ति ने कोई कथन किए होते है तो वे साक्ष्य में उस व्यक्ति की दोषसिद्दी या निर्दोषिता में अहम भूमिका निभाते है। ऐसे व्यक्ति द्वारा अपनी मृत्यु के बारे में किए हो और उसकी मृत्यु का कारण न्यायालय के सामने प्रश्नगत हो। तब ऐसे कथन भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) के अधीन मृत्युकालिक कथन के रूप में सुसंगत होकर साक्ष्य में ग्राह्य होते हैं।
मृत्युकालिक कथन कौन अभिलिखित कर सकता है ?
समान्यता यह प्रश्न अवश्य ही हमारे समक्ष आता है कि, मृत्यु कालिककथन किसके द्वारा रिकार्ड किए जाने चाहिए जिससे उसे अधिक विश्वशनीय माना जाए। इस संबंध में भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है। इसका तात्पर्य यह है कि मृत्युकालिक कथन किसी भी व्यक्ति के द्वारा अभिलिखित किए जा सकते हैं।
यानि मजिस्ट्रेट डॉक्टर, पुलिस, मित्र, नातेदार कोई भी व्यक्ति मृतक के मृत्युकालिक कथन अभिलिखित कर सकता है। हालाँकि विभिन्न व्यक्तियों द्वारा अभिलिखित कथन की विश्वसनीयता भिन्न-भिन्न हो सकती है।
समान्यता मजिस्ट्रेट(कार्यपालक) ही ऐसे कथनों को अभिलिखित करता है और उसके द्वारा लिखे मृत्युकालिक कथनों का महत्व अधिक होता है।
आशा बाई बनाम महाराष्ट्र राज्य (AIR2013 SC) इस मामले में माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने कहा कि मृत्युकालिक जरूरी नहीं मजिस्ट्रेट द्वारा ही लेखबद्ध किए जाएं।
कर्नाटक राज्य बनाम शरीफ़ (2003) 2 एससीसी 473 एवं भागीरथ बनाम हरियाणा राज्य (1997) 1 एससीसी 481 के इन मामलों मे न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया। इस आशय का कोई नियम नहीं है कि, मृत्युकालिक कथन अग्राह्य हैं, यदि वह मजिस्ट्रेट के बजाय एक पुलिस अधिकारी द्वारा अभिलिखित किया गया है।
झारखंड राज्य बनाम शैलेंद्र कुमार राय (2022 SC): इस मामले में माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने कहा हालाँकि यदि संभव हो तो मृत्युकालिक कथन आदर्श रूप से मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित किया जाना चाहिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि,मृत्युकालिक पुलिस कर्मियों द्वारा अभिलिखित किए गए हैं, मात्र इस कारण से अग्राह्य हैं।