Sunil lora vs sate of rajsthan [सुनील लोरा बनाम राजस्थान राज्य]
माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा यह कहा गया कि आर्य समाज के द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाण पत्र मान्य नहीं है एवं साथ ही यह भी कहा कि आर्य समाज को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है, यह केवल सक्षम प्राधिकारी के द्वारा ही जारी किया जा सकता है।
मामले के तथ्य
अभियुक्त के विरूद्ध, अवयस्क के व्यपहरण एवं दुष्कर्म के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366A, 384, 376(2)(n), 384 तथा पॉक्सो एक्ट की धारा 5(l) /6 के अधीन एफआईआर पंजीबद्ध की गई थी। अभियुक्त ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर कर जमानत की मांग की थी।
न्यायालय का विनिश्चय
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की वेकेशन बेंच ने व्यपहरण एवं दुष्कर्म के आरोपी अभियुक्त की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान अभियुक्त की ओर से पेश अधिवक्ता ने कोर्ट में कहा कि पीड़िता एवं अभियुक्त के बीच प्रेम संबंध है और दोनों ने भागकर आर्य समाज मंदिर में शादी की। विवाह के समय लड़की वयस्क थी और विवाह के सबूत के तौर पर आर्य समाज के द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाण पत्र पेश किया गया था। तब माननीय न्यायमूर्ति अशोक रस्तोगी के द्वारा आर्य समाज की ओर से जारी विवाह प्रमाण पत्र को अस्वीकार करते हुए कहा कि आर्य समाज का कार्य विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं है यह कार्य केवल इस हेतु सक्षम प्राधिकार द्वारा ही किया जा सकता है। यदि उनके पास विवाह के संबंध में सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी प्रमाण पत्र है तो पेश करें। अभियुक्त के अधिवक्ता द्वारा इस संबंध में कोई उत्तर नहीं दिया गया। इस प्रकार न्यायालय द्वारा यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी, कि “आर्य समाज को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकर प्राप्त नहीं है। “