KAUSHAL KISHOR Vs STATE OF UP & ORS. कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य

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KAUSHAL KISHOR Vs STATE OF UP & ORS.| कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य

रिट याचिका (आपराधिक) सं. 2016 का 113

कौशल किशोर

….. याचिकाकर्ता (एस)

बनाम

उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य

….. प्रत्यर्थी

विशेष अनुमति याचिका @ (डायरी) सं. 2017 का 34629

अवधरणीय प्रश्न

इसके पश्चात इस न्यायालय की संविधान पीठ ने दिनांक 24.10.2019 के एक आदेश द्वारा निम्नलिखित पांच प्रश्न विरचित किए:

    1. क्या अनुच्छेद 19(2) में विनिर्दिष्ट आधार हैं, जिसके संबंध में विधि द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है, अन्य मौलिक अधिकारों का आह्वान करके संपूर्ण, या स्वतंत्र भाषण के अधिकार पर अनुच्छेद 19(2) में न् बताए गए आधारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है ?
    2. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 या 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार का दावा ‘राज्य’ या उसके उपकरणों से अन्यथा किया जा सकता है?
    3. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत किसी नागरिक के अधिकारों की सकारात्मक रूप से संरक्षा करना राज्य का कर्तव्य है, भले ही किसी अन्य नागरिक या निजी अभिकरण(agency ) के कार्यों या लोपों से किसी नागरिक की स्वतंत्रता को खतरा हो?
    4. क्या एक मंत्री द्वारा दिया दिए गए बयान के लिए, राज्य के किसी भी मामले में या सरकार की रक्षा के लिए,विशेष रूप से सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सरकार को ही परोक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ?
    5. क्या किसी मंत्री द्वारा दिया गया बयान, संविधान के भाग तीन के अंतर्गत नागरिक के अधिकारों के साथ असंगत है, ऐसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा ‘संवैधानिक अपकृत्य’ के रूप में कार्रवाई योग्य है?

निर्णय :

उच्चतम न्यायालय के 5 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 4;1 बहुमत (जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत से भिन्न निर्णय दिया) के आधार पर उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर देते हुए निम्नानुसार निर्णय दिया :

1.क्या अनुच्छेद 19(2) में विनिर्दिष्ट आधार हैं, जिसके संबंध में विधि द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है, अन्य मौलिक अधिकारों का आह्वान करके संपूर्ण, या स्वतंत्र भाषण के अधिकार पर अनुच्छेद 19(2) में न् बताए गए आधारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है ?

पहले प्रश्न का उत्तर निम्न प्रकार किया –

“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिबंधित करने के लिए अनुच्छेद 19(2) में दिए गए आधार परिपूर्ण हैं। अन्य मौलिक अधिकारों का आह्वान(invoking) के रूप  में या दो मौलिक अधिकारों की रूप में एक-दूसरे के विरुद्ध प्रतिस्पर्धा का दावा करते हुए, किसी भी व्यक्ति पर अनुच्छेद 19(1) द्वारा प्रदत्त अधिकार के प्रयोग पर, अनुच्छेद 19(2) में के अंतर्गत वर्णित प्रतिबंधों के अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते हैं।” पैरा 45

जस्टिस बी वी नागरत्ना का प्रश्न क्र। 1 संबंध में निर्णय :

जहां तक ​​प्रश्न क्र. 1 का संबंध है, मैं लॉर्ड्शिप के तर्क एवं निष्कर्ष से सम्मानपूर्वक सहमत हूं

2.क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 या 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार का दावा ‘राज्य’ या उसके उपकरणों से अन्यथा किया जा सकता है?

प्रश्न क्रमांक 2 का उत्तर निम्न प्रकार से दिया –

“ अनुच्छेद 19/21 के तहत एक मौलिक अधिकार राज्य या उसके उपकरणों से अन्यथा ,अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध भी प्रवर्तित(लागू) किया जा सकता है।

अर्थात इस तरह से अनुच्छेद 19/21 के अधीन प्राप्त मौलिक अधिकार का प्रवर्तन/ दावा राज्य और उसके उपकरणों के अलावा अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध भी कराया जा सकता है ।

जस्टिस बी वी नागरत्ना का प्रश्न क्र.2 संबंध में निर्णय

सामान्य विधि के दायरे में अधिकार, जो अनुच्छेद 19/21 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों की अंतर्वस्तु के समान हो सकते हैं, क्षैतिज (horizontally) रूप से कार्य करते हैं; हालाँकि, अनुच्छेद 19 और 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार, उन अधिकारों के सिवाय नहीं हैं, जिन्हें सांविधिक रूप से भी मान्यता प्रदान की गई है। इसलिए, अनुच्छेद 19/21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार राज्य या उसके उपकरणों के सिवाय अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध लागू नहीं किया जा सकता है, हालांकि, वे सामान्य विधि उपचारों की मांग के लिए आधार हो सकते हैं । लेकिन बंदी प्रत्यक्षीकरण के रिट के रूप में उपचार, यदि संविधान के अनुच्छेद 21 के आधार पर प्राइवेट व्यक्ति के विरुद्ध मांगा जाता है, तो संवैधानिक न्यायालय के समक्ष हो सकता है, अर्थात, उच्च न्यायालय के समक्ष अनुच्छेद 226 के माध्यम से या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अनुच्छेद 32 सहपठित अनुच्छेद 142 के माध्यम से। जहां तक ​​गैर-राज्य संस्थाओं या उन संस्थाओं का संबंध है जो संविधान के अनुच्छेद 12 के दायरे में नहीं आते हैं, उनके विरुद्ध मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए रिट याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा। यह मुख्यतः इसलिए है क्योंकि ऐसे मामलों में तथ्य के विवादित प्रश्न शामिल होंगे।

3.क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत किसी नागरिक के अधिकारों की सकारात्मक रूप से संरक्षा करना राज्य का कर्तव्य है, भले ही किसी अन्य नागरिक या निजी अभिकरण(agency ) के कार्यों या लोपों से किसी नागरिक की स्वतंत्रता को खतरा हो?

प्रश्न क्रमांक 3 का उत्तर निम्न प्रकार से दिया:

“राज्य का कर्तव्य है कि वह अनुच्छेद 21 के अंतर्गत किसी व्यक्ति के अधिकारों की सकारात्मक रूप से रक्षा करे, जब भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए खतरा हो, यहां तक कि गैर राज्य कर्ता द्वारा भी।”

जस्टिस बी वी नागरत्ना का प्रश्न क्र.3 संबंध में निर्णय

अनुच्छेद 21 के अंतर्गत राज्य पर अधिरोपित कर्तव्य एक नकारात्मक कर्तव्य है, वह विधि के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं  दैहिक स्वतंत्रता से वंचित न करे। हालांकि संवैधानिक एवं संविधि के अंतर्गत राज्य पर अधिरोपित  दायित्वों को पूरा करना राज्य का सकारात्मक कर्तव्य है। ऐसे दायित्वों के लिए राज्य द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है जहां एक प्राइवेट पक्ष के कृत्यों से दूसरे व्यक्ति के प्राण या स्वतंत्रता को खतरा हो सकता है। इसलिए, एक नागरिक के अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक एवं सांविधि के अंतर्गत राज्य पर अधिरोपित कर्तव्यों को पूरा करने में असफलता, एक नागरिक को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित करने का प्रभाव हो सकता है। जब कोई नागरिक अपने प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार से इतना वंचित होता है, तो राज्य ने अनुच्छेद 21 के अंतर्गत उस पर अधिरोपित नकारात्मक कर्तव्य का उल्लंघन होगा।

4.क्या एक मंत्री द्वारा दिया दिए गए बयान के लिए, राज्य के किसी भी मामले में या सरकार की रक्षा के लिए,विशेष रूप से सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सरकार को ही परोक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ?

चतुर्थ प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि ;

अमीश देवगन के मामले में राज्य के किसी भी मामले से संबंधित, मंत्री के बयान पर ध्यान नहीं दिया, हालांकि एक मंत्री “प्रभावशाली व्यक्ति” की श्रेणी में आएगा। इसके अतिरिक्त, मामलों में मंत्रियों के लिए जिम्मेदार बयान, अभद्र भाषा की श्रेणी में नहीं आ सकते हैं। इसलिए अमीश देवगन के मामले  में जिन प्रश्नों  के उत्तर दिए गए थे, उन  प्रश्नों में जाकर हम इस रेफरेंस का दायरा बढ़ाना नहीं चाहते हैं। इसलिए प्रश्न 4 का उत्तर निम्न होगा

 “एक मंत्री द्वारा दिया गया एक बयान भले ही राज्य के किसी भी मामले या सरकार की रक्षा के लिए पता लगाए जाने योग्य है, सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को लागू करके सरकार को  जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।“

जस्टिस बी वी नागरत्ना का प्रश्न क्र.4 संबंध में निर्णय

किसी मंत्री द्वारा दिया गया बयान यदि राज्य के किसी मामले या सरकार की रक्षा के लिए दिया जा सकता है, तो , सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को लागू करके सरकार को  जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।“, जब तक कि ऐसा बयान सरकार के दृष्टिकोण का भी प्रतिनिधित्व करता है। यदि ऐसा बयान सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप नहीं है, तो यह व्यक्तिगत रूप से मंत्री की ही जिम्मेदार है।

    1. क्या किसी मंत्री द्वारा दिया गया बयान, संविधान के भाग तीन के अंतर्गत नागरिक के अधिकारों के साथ असंगत है, ऐसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा ‘संवैधानिक अपकृत्य’ के रूप में कार्रवाई योग्य है?

प्रश्न क्र.5 के संबंध में बहुमत का निर्णय यह है कि :

“ संविधान के भाग III के तहत एक नागरिक के अधिकारों से असंगत, मंत्री द्वारा दिया गया बयान, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो सकता है और न ही संवैधानिक अपकृत्य के रूप में कार्रवाई योग्य हो सकता है। लेकिन यदि  ऐसे  बयान के परिणामस्वरूप, अधिकारियों द्वारा कोई कार्य  या लोप किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति/नागरिक को अपहानि या हानी होती है, तो यह एक संवैधानिक अपकृत्य के रूप में कार्रवाई योग्य हो सकता है।“

जस्टिस बी वी नागरत्ना का प्रश्न क्र.5 संबंध में निर्णय

उन कार्यों या लोपों को परिभाषित करने के लिए एक उचित विधिक रूपरेखा आवश्यक है, जो संवैधानिक अपकृत्य की रकम होगी, तथा जिस तरीके से न्यायिक पूर्व निर्णय के आधार पर उसका निवारण या उपचार किया जाएगा। यह बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं है कि ऐसे सभी मामलों को संवैधानिक अपकृत्य के रूप में माना जाए, जिनमें सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा दिए गए बयान के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति/नागरिक को अपहानि या हानि  हुई हो। लोक पदाधिकारियों के विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से कार्यवाही की जा सकती है, यदि उनका बयान सरकार के विचारों के साथ असंगत है। यदि, हालांकि, ऐसे विचार के विचारों के अनुरूप हैं

सरकार, या सरकार द्वारा समर्थित हैं, तो सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत के आधार पर इसके लिए राज्य को अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और विधिक न्यायालय के समक्ष समुचित उपचार की मांग की जा सकती है।

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