न्याय प्राप्त करना मौलिक अधिकार है, तथा ऋजु और निष्पक्ष विचारण के लिए लिए पीड़ित या उसके आश्रित मामले का अंतरण करा सकते हैं। : उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों जस्टिस एमआर शाह व जस्टिस एम.एम. सुंदरेश की पीठ ने कहा की जहा आपराधिक ममलों में ऋजु और निष्पक्ष विचारण न् होने की युक्तियुक्त प्रत्याशंका है, वहाँ मामले को अन्य स्थान पर अंतरित कराया जा सकता है ।
सुनीता नरेड्डी और अन्य बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य 29 NOVEMBER 2022 | Suneetha Narreddy & Another
Versus The Central Bureau of Investigation and Others
मामले के तथ्य:
इस मामले में श्री वाई.एस. विवेकानंद रेड्डी मृतक की दिनांक 14-15/03.2019 की दरम्यानी रात को उसके घर में निर्मम हत्या कर दी गयी। मृतक श्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी (संयुक्त राज्य आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री) के भाई तथा आंध्र प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी, के अंकल हैं। मृत्यु के बाद तत्समय की राज्य सरकार ne एक विशेष जांच दल(SIT) का गठन किया गया। हालांकि, बाद में, याची क्रमांक 2 और श्री वाई. जगनमोहन रेड्डी ने मामला की जांच सीबीआई को स्थानांतरित करने के लिए आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की ।
उसके बाद राज्य में 11.04.2019 को विधानसभा के चुनाव हुए और श्री वाई जगनमोहन रेड्डी मुख्यमंत्री बने और 30.05.2019 को शपथ ली। इसके बाद, दो बार एसआईटी का पुनर्गठन किया गया, लेकिन जांच में कोई प्रगति नहीं हुई और इसलिए याचिकाकर्ता नंबर 1 को सीबीआई को जांच स्थानांतरित करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। वाई. जगनमोहन रेड्डी ने अपनी याचिका वापस ले ली। हालाँकि हाई कोर्ट ने सीबीआई को मामला अंतरित करने की अनुमति दी ।
इसके बाद सीबीआई ने जांच की और पाँच अभियुक्तों को गिरफ्तार कर आरोप पत्र और पूरक आरोप पट न्यायालय के समक्ष पेश किया। आरोपपत्र में वाई.एस. अविनाश रेड्डी, जो आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी दल से सांसद हैं, का नाम प्रकाश आया और उनको एक संदिग्ध के रूप में तथा उन्होंने सबूतों को नष्ट करने और झूठी खबर फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि, मृतक की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई। तथा अभी वर्तमान में कई साक्षियों को धमकी और पलोभन दिया जिनमे कुछ प्रमुख साक्षियों ने अपना कथंन् परिवर्तित किए । इस वजह से भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के अधीन याचिकाकर्ताओं ने, जो की मृतक की बेटी और पत्नी हैं, उन्होंने कडप्पा, आंध्र प्रदेश से मामला हैदराबाद सीबीआई विशेष न्यायालय या दिल्ली सीबीआई विशेष न्यायालय को अंतरित किए जाने हेतु यह याचिका उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की है ।
निर्णय:
याचिकाकर्ताओं की ओर से यह आशंक जताई गई है कि मुख्य(star) साक्षियों/ साक्षियों को जान का खतरा है तथा कुछ साक्षी पहले से ही प्रभावित हैं। इसलिए, यह आशंका है कि इस बात की पूरी संभावना है कि गठन स्थल पर हत्या और सबूतों को नष्ट करने के षडयंत्र में ऋजु और निष्पक्ष विचारण तथा आगे की जांच भी नहीं हो सकती है क्योंकि अपराध पर अभियुक्त और राजतन्त्र का प्रभाव है।
अब्दुल नज़र मदनी बनाम टी.एन. राज्य, (2000) 6 एससीसी 204 के मामले में, पैरा 7 में, यह अवलोकन किया गया है, जो की निनन नुसार है :
आपराधिक मामलों का उद्देश्य बहाय विचारों से प्रभावित हुए बिना ऋजु और निष्पक्ष न्याय प्रदान करना है। जब यह दर्शित किया जाता है, कि मामले की ऋजुता में लोक का विश्वास गंभीर रूप से कम हो जाएगा, तो कोई भी पक्ष सीआरपीसी की धारा 407 के अंतर्गत राज्य के भीतर तथा धारा 406 के अंतर्गत देश में कहीं भी, मामले को स्थानांतरित करने की मांग कर सकता है। ऋजु और निष्पक्ष जांच या विचारण न होने की प्रत्याशंका का युक्तियुक्त होना आवश्यक है और कल्पनाओं तथा अनुमानों पर नहीं ।
यदि यह प्रतीत होता है कि आपराधिक न्याय व्यवस्था उद्देश्यपूर्ण और निष्पक्ष रूप से संभव नहीं है और बिना किसी पूर्वाग्रह के, किसी भी न्यायालय के समक्ष या यहाँ तक की किसी भी स्थान पर, समुचित न्यायालय मामले को किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित कर सकता है, जहां उसे लगता है कि ऋजु और उचित विचरण साध्य है। स्थानांतरण याचिका पर निर्णय लेने के लिए कोई सार्वभौमिक या कठोर और शीघ्र नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता है, जिसे हमेशा प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर विनिश्चित किया जाना चाहिए। विचरण में पेश किए जाने वाले साक्षियों सहित पक्षकारों की सुविधा भी स्थानांतरण याचिका पर निर्णय लेने के लिए एक सुसंगत विचार है।
जयेंद्र सरस्वती स्वामिगल (द्वितीय) बनाम तमिलनाडु राज्य, (2005) 8 एससीसी 771 के मामले में भी ऐसा ही विचार व्यक्त किया गया है
विधि की स्थापित स्थिति के अनुसार यह सही है कि और यहां तक कि इस न्यायालय द्वारा अमरिंदर सिंह (उपरोक्त) के एक आपराधिक मामले को स्थानांतरित करने के मामले में अवलोकित और अवधारित किया गया कि, मामले में पक्षकार की ओर से युक्तियुक्त आशंका होनी चाहिए कि न्याय नहीं किया जा सकता है। उक्त निर्णय में यह भी अवलोकित गया है कि न्याय प्रशासन का सिद्धांत मे से एक है यह भी है कि, “न्याय न् केवल किया ही जाना चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए।“ जैसा कि इस न्यायालय ने पूर्वोक्त निर्णय में अवलोकित किया है, हालांकि, न्यायालय को यह देखना है कि कथित आशंका युक्तियुक्त है अथवा नहीं। आशंका न केवल काल्पनिक होनी चाहिए, बल्कि न्यायालय को युक्तियुक्त आशंका के रूप में दिखाई देनी चाहिए।
अब विचार करते हैं कि क्या यह आशंका कि न्याय नहीं होगा और/या ऋजु विचारण नहीं होगा , युक्तियुक्त है अथवा नहीं
यहां ऊपर दिए गए तथ्यों से, यह उभर कर आता है कि प्रमुख साक्षियों में से एक, के. गंगाधर रेड्डी, हालांकि शुरू में उसने सीआरपीसी की धारा 164 के अंतर्गत अपना कथंन देने के लिए स्वेच्छा से अपनी इच्छा व्यक्त की थी। तथा सीबीआई ने धारा 164 Cr.P.C के तहत अपना कथन दर्ज करने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया, इसके बाद वह अपना बयान दर्ज कराने के लिए नहीं आया और इसके विपरीत उसने मीडिया के समक्ष बयान दिया कि उस पर सीबीआई द्वारा दबाव डाला जा रहा था। जिसके बाद रहस्यमय परिस्थितियाँ मे उसकी मौत हो गई है।
उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, यह नहीं कहा जा सकता है कि मृतक की बेटी और पत्नी याचिकाकर्ताओं के हक मे आशंका है कि ऋजु विचारण नहीं हो सकता है और यह कि बड़े षडयंत्र और घटना स्थल पर सबूतों को नष्ट करने पर आगे की जांच के संबंध में कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती है, यह काल्पनिक है और/या इसमें कोई सार नहीं है। याचिकाकर्ता मृतक की बेटी और पत्नी होने के नाते पीड़ित के रूप में न्याय पाने का मौलिक अधिकार है और उनकी वैध अपेक्षा है कि आपराधिक विचारण ऋजु और निष्पक्ष तरीके ढंग से चलाया जा रहा है तथा किसी भी बाहरी विचार से अप्रभावित है।
इन परिस्थितियों में, हमारी यह राय है कि आंध्र प्रदेश राज्य के अलावा किसी अन्य राज्य को बड़े षडयंत्र और सबूतों को नष्ट करने , विचारण और आगे अन्वेषण को स्थानांतरित करने के लिए यह एक उपयुक्त मामला है।
विधि की स्थापित स्थिति के अनुसार ” न केवल न्याय करना होता है, बल्कि न्याय होते हुए भी दिखाई देता है।” विधि की स्थापित स्थिति के अनुसार, स्वतंत्र और ऋजु विचारण संविधान के अनुच्छेद 21 की अनिवार्य शर्त है।
यदि दांडिक विचारण स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं है तथा यदि यह पक्षपातपूर्ण है, तो न्यायिक निष्पक्षता और दांडिक न्याय प्रणाली दांव पर लगेगी, जिससे न्याय व्यवस्था में जनता का विश्वास डगमगा जाएगा। हालांकि, साथ ही, विचारण के दौरान बड़ी संख्या में साक्षियों की परीक्षा की जानी है और उन साक्षियों को कोई कठिनाई नहीं होती है, इसे देखते हुए, हमारी राय है कि मामले को नई दिल्ली में स्थानांतरित करने के बजाय, इसे हैदराबाद में सीबीआई विशेष न्यायालयको स्थानांतरित किया जा सकता है।