सिविल जज (जूनियर डिवीजन) परीक्षाओं में न्यूनत्तम 3 वर्ष की अनिवार्य प्रैक्टिस
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान विधान पीठ ने भारत में न्यायिक सेवा सुधारों पर व्यापक चर्चा करते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, अवर न्यायिक सेवाओं के अधीन सिविल जज (जूनियर डिवीजन) परीक्षाओं में शामिल होने वाले नए विधि स्नातकों के लिए न्यूनत्तम 3 वर्ष की अनिवार्य प्रैक्टिस की आवश्यकता एवं गणना सम्बधी प्रश्नों पर विचार किया गया।
न्यायालय ने न्यायिक सेवाओं की गुणवत्ता को सुदृढ़ करने के लिए सिविल जज (जूनियर डिवीजन) परीक्षाओं में शामिल होने वाले विधि स्नातकों को 3 वर्ष अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस को अनिवार्य कर दिया है ।
इस लेख में हम इस निर्णय से जुड़े प्रमुख बिंदुओं – जैसे न्यूनतम प्रैक्टिस अवधि, उसकी गणना, इसके पीछे की न्यायिक सोच, और संभावित प्रभावों – पर आसान भाषा में विस्तृत चर्चा करेंगे।
ऐतिहासिक संदर्भ: 3 वर्ष अनुभव का नियम
कब जोड़ा गया ?
वर्ष 1993 में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ (द्वितीय एआईजेए मामला) में इसमें कहा गया –
निम्नतम स्तर पर न्यायाधीशों(civil judge ) की भर्ती के संबंध में योग्यता और प्रक्रियाओं में राज्यों में काफी अंतर है तथा व्यावहारिक प्रशिक्षण के बिना नए विधि स्नातकों की नियुक्ति प्रभावपूर्ण नहीं रही है, इसलिए सभी राज्यों को प्रवेश स्तर के न्यायिक अधिकारियों अर्थात व्यवहार न्यायाधीश (civil judge ) की भर्ती के लिए समान प्रणाली अपनानी चाहिए, जिसके अधीन न्यूनतम 3 वर्ष का अधिवक्ता के रूप में अभ्यास (practice)अनिवार्य होना चाहिए। न्यायाधीशों के लिए जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के बारे में उचित निर्णय लेने के लिए व्यावहारिक अनुभव आवश्यक है, क्योंकि केवल पुस्तक का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं होता है। कई राज्यों ने पहले ही इसको लागू कर दिया है। सभी राज्यों में इस योग्यता को मानकीकृत करने से एक सक्षम और प्रभावी न्यायपालिका सुनिश्चित होगी।
क्यों हटाया गया?
वर्ष 2002) में,अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ (तृतीय एआईजेए मामला) में अवधारित किया गया –
निम्नतम स्तर पर न्यायाधीशों(civil judge ) की भर्ती के संबंध में योग्यता और प्रक्रियाओं में सर्वोच्च न्यायालय ने शेट्टी आयोग की इस सिफारिश पर बहुत अधिक भरोसा करते हुए, अनिवार्य अभ्यास की आवश्यकता को हटा दिया था, कि गहन प्रेरण प्रशिक्षण न्यायालय के अनुभव का विकल्प हो सकता है।
आयोग ने सिफारिश की
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- आधुनिक विधिक शिक्षा (विशेष रूप से 5-वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम) में पहले से ही न्यायालय का दौरा और नैदानिक प्रशिक्षण शामिल है।
- NLU जैसे संस्थान जूनियर अधिवक्ताओं की तुलना में बेहतर प्रशिक्षित स्नातक तैयार कर रहे है।
- लंबे अनुभव की आवश्यकता प्रतिभाशाली छात्रों को न्यायपालिका में शामिल होने से हतोत्साहित किया है।
इस चिंता को स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने इस आवश्यकता को हटाने के लिए शेट्टी आयोग के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और उच्च न्यायालयों तथा राज्य सरकारों को अपने नियमों में तदनुसार संशोधन करने का निर्देश दिया। हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि नए विधि स्नातक न्यायिक जिम्मेदारियों के लिए पर्याप्त रूप से तैयार हैं, न्यायालय ने प्रशिक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया और पदभार ग्रहण करने से पहले कम से कम एक वर्ष, अधिमानतः दो वर्ष की अवधि की सिफारिश की। ( पैरा 59-61)
3-वर्ष अनुभव के संबंध में विचारणार्थ प्रश्न
इस पृष्ठभूमि में, सिविल न्यायाधीश (जूनियर डिवीजन) भर्ती परीक्षा में तीन वर्षों के अधिवक्ता अनुभव की अनिवार्यता को लेकर पुनः विवाद उत्पन्न हुआ। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित मूलभूत प्रश्नों पर विचार किया-
- क्या सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम तीन साल की प्रैक्टिस की आवश्यकता को बहाल करने की आवश्यकता है, जिसे इस न्यायालय ने ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन एवं अन्य (सुप्रा) के मामले में समाप्त कर दिया था? और यदि हाँ, तो कितने वर्षों तक?(issue no.7)
- यदि सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की परीक्षा में शामिल होने के लिए कुछ न्यूनतम वर्षों के अभ्यास (practice) की आवश्यकता प्रत्यावर्तित की जाती है, तो क्या इसकी गणना अनंतिम नामांकन/पंजीकरण की तारीख से की जानी चाहिए या एआईबीई उत्तीर्ण करने की तारीख से?(issue no.8)
प्रत्यावर्तन के कारण
न्यायालय ने सिविल जज के लिए 3 वर्ष अधिवक्ता के रूप में अभ्यास कई कारणों पर विचार किया जिन्हें संक्षेप इस प्रकार संक्षेप में समझा जा सकता है ।
न्यायिक कार्य में संवेदनशील, वास्तविक जीवन का प्रभाव –
न्यायालय ने कहा कि सिविल जज पहले दिन से ही,स्वतंत्रता, संपत्ति, परिवार और दांडिक विधि से संबंधित मामलों का विनिश्चय करते हैं। न्यायालय ने माना कि: न्यायिक कार्य में संवेदनशील, वास्तविक जीवन का प्रभाव समाहित होता है । यह “न तो किताबों से प्राप्त ज्ञान और न ही सेवा-पूर्व प्रशिक्षण न्यायालय-प्रणाली तथा न्याय प्रशासन के प्रत्यक्ष अनुभव का पर्याप्त विकल्प हो सकता है।”(पैरा 83)
अधिकत्तर उच्च न्यायालयों ने नियम को पुन: लागू करने का समर्थन किया
सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए राष्ट्रव्यापी परामर्श के दौरान, उच्च न्यायालयों के बहुमत ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) भर्ती के लिए अनिवार्य अधिवक्ता प्रैक्टिस की आवश्यकता को पुन: लागू करने के लिए समर्थन व्यक्त किया। आंध्र प्रदेश, पटना, केरल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, मणिपुर, मद्रास, उत्तराखंड, इलाहाबाद और कलकत्ता जैसे उच्च न्यायालयों ने स्पष्ट रूप से तीन वर्ष की प्रैक्टिस आवश्यकता के प्रत्यावर्तन करने की सिफारिश की। गौहाटी, कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा, जम्मू और कश्मीर और गुजरात जैसे अन्य ने न्यूनतम दो वर्ष की की प्रैक्टिस का समर्थन किया, जबकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने कम से कम एक साल का व्यावहारिक अनुभव का सुझाव दिया । मात्र राजस्थान व सिक्किम के उच्च न्यायालयों ने इस पात्रता शर्त को पुन: लागू करने का विरोध किया। ( पैरा 64-75)
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सर्वोच्च न्यायालय का निष्कर्ष एवं दिशा निर्देश :
3 वर्ष की प्रैक्टिस के संबंध में
- देश के सभी उच्च न्यायालय और राज्य सरकारें संबंधित सेवा नियमों में संशोधन करें, जिससे सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद के लिए परीक्षा में शामिल होने के इच्छुक उम्मीदवारों को उक्त परीक्षा के लिए पात्र होने के लिए न्यूनतम 3 वर्ष की अवधि तक प्रैक्टिस करनी होगी।
- उक्त आवश्यकता की पूर्ति के लिए, नियमों में यह अनिवार्य होगा कि उम्मीदवार उस न्यायालय के प्रधान न्यायिक अधिकारी या उस न्यायालय के किसी अधिवक्ता द्वारा विधिवत प्रमाणित प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें, जिसका न्यूनतम 10 वर्ष का अनुभव हो तथा जो ऐसे जिले के प्रधान न्यायिक अधिकारी या ऐसे स्थान पर प्रधान न्यायिक अधिकारी द्वारा सम्यक रूप से समर्थित हो।
- यदि ऐसे अभ्यर्थी जो उच्च न्यायालयों या उच्चत्तम न्यायालय में प्रैक्टिस कर रहे हैं, उन्हें उस अधिवक्ता द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिए, जिसके पास उस उच्च न्यायालय या इस न्यायालय द्वारा नामित अधिकारी द्वारा विधिवत रूप से समर्थित न्यूनतम 10 वर्ष का अनुभव हो।
- देश में किसी भी न्यायाधीश या न्यायिक अधिकारी के साथ विधि क्लर्क के रूप में कार्य करने वाले अभ्यर्थियों ने जो अनुभव प्राप्त किया है, उसे भी उनके प्रैक्टिस के कुल वर्षों की गणना करने में ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- यह भी अनिवार्य होगा कि परीक्षा के माध्यम से चयन के पश्चात सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद पर नियुक्त होने वाले अभ्यर्थियों को न्यायालय में नियमित बोर्ड मिलने से पूर्व कम से कम 1 वर्ष का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से प्राप्त करना होगा।
3 वर्ष की प्रैक्टिस की गणना
- सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद के लिए परीक्षा में शामिल होने के इच्छुक उम्मीदवार द्वारा पूर्ण किए गए अभ्यास के वर्षों की संख्या की गणना संबंधित राज्य अधिवक्ता परिषद के साथ उनके अस्थायी नामांकन/पंजीकरण की तारीख से की जाएगी।
जारी भर्तियों पर प्रभाव
- न्यूनतम वर्षों के अभ्यास की उक्त आवश्यकता उन मामलों में लागू नहीं होगी, जहां संबंधित उच्च न्यायालय ने इस निर्णय की दिनांक से पूर्व ही सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद के लिए चयन प्रक्रिया आरंभ कर दी है (जारी भर्तियों पर ) और यह केवल अगली भर्ती प्रक्रिया से ही लागू की जाएगी ।
निर्णय कब लागू होगा
सभी संशोधन उच्च न्यायालयों द्वारा इस निर्णय की तिथि से तीन माह की अवधि के भीतर किए जाएंगे और संबंधित राज्य सरकारें तीन माह की अतिरिक्त अवधि के भीतर इस पर विचार करेंगी और अनुमोदन करेंगी।
उद्धरण (Citation ):
केस का शीर्षक: अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य
पीठ: संविधान पीठ
निर्णय दिनांक : 20 मई 2025
उद्धरण: [रिट याचिका (सिविल) संख्या 1022/1989]