धारा 125 मे भरण पोषण | Dhara 125 mein bharan poshan
आज के इस लेख में हम भरण पोषण के प्रावधानों के बारे में बात करेंगे। जैसा कि प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में यह धारणा रही है कि प्रत्येक व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह अपने वृद्ध माता–पिता, पत्नी एवं अपने संतानों के भरण पोषण की व्यवस्था करें और यह केवल व्यक्ति का कर्तव्य ही नहीं बल्कि उसका सामाजिक दायित्व भी है। इसी सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए, भारत में कई विधियों के अंतर्गत भरण पोषण के उपबंध किए गए है, इस लेख मे हम दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 125 से 128 में भरण पोषण के संबंध दिए गए प्रावधानों को जानेगे इसका प्रयोजन व्यक्ति को दंडित करना कभी नहीं रहा है और ना ही इसमें दिए बताए गए उपबंध दांडिक प्रावधान की श्रेणी में आते हो हैं, बल्कि इनका उद्देश्य त्वरित अनुतोष प्रदान कर, व्यक्ति को स्वयं के परिवार के प्रति दायित्व का बोध कराना रहा है।
दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 125 के अंतर्गत पर्याप्त साधनों वाले प्रत्येक व्यक्ति पर निम्नलिखित के भरण पोषण का दायित्व आरोपित किया जा सकता है–
पहला– पत्नी जो स्वयं के भरण-पोषण में असमर्थ है,
दूसरा– धर्मज या अधर्म अवयस्क संतान चाहे भले ही वह विवाहित हो या अविवाहित बशर्ते कि वह अपना भरण-पोषण का स्वयं करने में असमर्थ हैं,
तीसरा– अपने धर्मज या अधर्मज संतान (जो विवाहिता पुत्री नहीं है) का जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, लेकिन ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है,
चौथा– पिता या माता।
पत्नी किसे माना गया है
इस तरह के संबंध में पत्नी के अंतर्गत वयस्क या अवयस्क पत्नी दोनों का ही समावेश है तथा इसमें ऐसी पत्नी भी सम्मिलित है जिसके पति ने उसे तलाक दे दिया है या जिसने अपने पति को तलाक दे दिया है लेकिन पुन: विवाह नहीं किया है।
शाहबानो बेगम एवं अन्य, (AIR 1985 SC 945)
इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि इस तरह के अंतर्गत शब्द पत्नी में तलाकशुदा पत्नी भी सम्मिलित है जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती। प्रत्येक मुस्लिम पति अपनी तलाकशुदा पत्नी का भरण पोषण करने के लिए उत्तरदाईं हैं। धारा 125 के प्रावधानों और मुस्लिम स्वीय विधि (Muslim Personal Law) में कोई विरोधाभास नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुरूप देश में एकरुप सिविल संहिता (Uniform Civil Code) की आवश्यकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा [125 (1D)] के अनुसार– प्रत्येक व्यक्ति को अपने माता व पिता के भरण-पोषण के लिए दायित्वाधीन माना गया है। माता–पिता शब्द के अंतर्गत सौतेले अथवा दत्तक माता-पिता भी आते हैं। यदि किसी व्यक्ति के एक से अधिक संतान हैं तो वह उनमें से किसी से भरण-पोषण की मांग कर सकता है।
भरण पोषण संबंधी धनराशि की अदायगी के बारे में निम्नलिखित शर्तें
- व्यक्ति जिसके विरुद्ध भरण पोषण का दावा किया गया है पर्याप्त साधनों वाला हो,
- भरण पोषण का दावा करने वाला व्यक्ति स्वयं का भरण पोषण करने में असमर्थ हो,
- भरण पोषण करने से इनकार किया गया हो।
भरण संबंधी संबंधी आदेश कौन दे सकता है
धारा 125 (1) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति भरण पोषण देने में उपेक्षा करता है या फिर इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ऐसा साबित हो जाने पर व्यक्ति को निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी संतान या माता-पिता के भरण पोषण के लिए मासिक धर्म पर जिसे भी मजिस्ट्रेट सही समझे संदाय करे।
नोट : यदि किसी क्षेत्र मे कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1984 के अधीन कुटुंब न्यायालय की स्थापना की जा चुकी है । वहाँ कुटुंब न्यायालय को अधिकारिता होगी ।
अंतरिम भरण-पोषण क्या है?
धारा 125 के द्वितीय परंतुक के अंतर्गत अंतरिम भरण- पोषण के संबंध मे उपबंध किया गया है। इसके अनुसार जब धारा 125 के अधीन भरण पोषण के लिए आवेदन किया जाता है, तब इस आवेदन के लंबित रहने अर्थात निपटारा होने के दौरान यदि मजिस्ट्रेट को अंतरिम भरण पोषण के सम्बध मे आवेदन करने पर समाधान हो जाता है , तब वह अंतरिम भरण पोषण के लिए मासिक भत्ता तथा कार्यवहियों के व्यय के लिए समय समय पर आदेश कर सकता है।
अंतरिम भरण पोषण का आवेदन मजिस्ट्रेट द्वारा आवेदन की तमिल हो जाने की तारीख से 60 दिन के भीतर निपटाया जाएगा ।
भरण पोषण का प्रारंभ या भरण पोषण का आदेश कब से लागू होगा ?
धारा 125(2) में यह उल्लेखित है कि भरण-पोषण के भुगतान का प्रारंभ – “मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आदेश की दिनांक से माना जाएगा और अगर मजिस्ट्रेट चाहे तो वह भरण पोषण के आवेदन दिए जाने की तारीख से भी निदेशित कर सकता है।” अर्थात भरण पोषण का आदेश निम्न तारीख से लागू होगा –
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- जिस दिन आदेश दिया गया अर्थात आदेश की तारीख से
- आदेश किया जाए तो आवेदन करने की तारीख से
- इस प्रावधान को दंड प्रक्रिया (संशोधन) अधिनियम, 2001 द्वारा जोड़ा गया है।
भरण पोषण की राशि भुगतान करने में व्यतिक्रम पर दांडिक उपबंध
धारा 125 (3) में भरण पोषण की राशि के भुगतान में व्यक्ति द्वारा जानबूझकर उपेक्षा या व्यतिक्रम के लिए दांडिक प्रावधान किए गए हैं।
कोई व्यक्ति, जिसको भरण पोषण करने का आदेश दिया है । यदि वह आदेश के अनुसार भरण पोषण करने मे असफल रहता है तब ऐसे हर एक भंग के लिए दी जाने वाली रकम को वसूल करने के वारंट जारी करेगा और जुर्माने की भांति वसूल की जाएगी । इस प्रकार से वारंट जारी हो जाने बाद इसके लिए दोषी व्यक्ति को प्रत्येक माह के भुगतान की उपेक्षा के लिए एक माह का साधारण कारावास दिया जा सकता है ।
मजिस्ट्रेट इस धारा के अधीन देय किसी रकम की वसूली के लिए वारंट तब तक जारी नहीं करेगा जब तक कि उस रकम को उद्ग्रहीत करने के लिए, उस तारीख से जिसको वह देय हुई 1 वर्ष की अवधि के अंदर न्यायालय से आवेदन नहीं किया गया है।
भरण पोषण के लिए आवेदन कहा होगा ?
भरण पोषण के सम्बध मे प्रक्रिया धार 126 मे बताई गई है । इसके अनुसार भरण पोषण के लिए कोई भी कार्यवाही निम्न स्थानों मे से किसी भी स्थान मे अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट/ कुटुंबह न्यायालय मे की जा सकती है –
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- जहा वह है
- जहा पर वह या उसकी पत्नी रहती है
- जहा वह अपनी पत्नी के साथ मे अंतिम बार रहा था या अधर्मज बच्चों की माता के साथ निवास किया था
अगले भाग मे भरण पोषण के बारे मे सामान्य जानकारी को जाना । पत्नी को मिलने वाले भरण पोषण के बारे बात करेंगे