कार्योत्तर विधियों से संरक्षण Protection From Ex Post Facto Law In Hindi
मानव समाज में मानवता को विद्यमान रखने तथा गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए विश्व के लगभग सभी देशों में व्यक्तियों को कुछ अधिकार प्रदान किए गए हैं। भारत में भी संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक 6 मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं, इन्हीं में से एक स्वतंत्रता का अधिकार है जिसके अंतर्गत व्यक्ति को अनुच्छेद 20 में तीन प्रकार के संरक्षण दिए गए हैं, उनमें सबसे पहला संरक्षण है,कार्योत्तर विधि से संरक्षण जो अनुच्छेद 20 (1) में निहित है।
कार्योत्तर विधि से संरक्षण का अर्थ
सबसे पहले हम कार्योत्तर विधि क्या होती हैं इसे समझ लेते हैं।
कार्योत्तर विधि वह विधि होती है, जो अपराध करने के बाद बनाई जाती हैं और ऐसे कार्य को अपराध घोषित करती है, जब वह कार्य किया गया था तब अपराध नहीं था।
उदाहरण– 1 जनवरी 2001 को एक व्यक्ति ने एक कार्य किया जो उस समय किसी विधि में अपराध नहीं था , बाद में विधायिका ने 1 जुलाई 2001 को एक कानून बनाकर उस कार्य को अपराध बना दिया, तब इस प्रकार की विधि कार्योत्तर विधि कहलाती है।
जैसे– पहचान की चोरी करना (identity theft) करना 17 अक्टूबर 2000 से पहले अपराध नहीं था। बाद में 17 अक्टूबर 2000 से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम लागू कर दिया गया, जिसकी धरा 66 C के अंतर्गत पहचान की चोरी करना अब अपराध है।
भारत में कार्योत्तर विधि से संरक्षण-
संविधान के अनुच्छेद 20(1) में दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण हेतु प्रावधान किया गया है जिसके अनुसार–
(1) कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक शास्ति का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी ।
अनुच्छेद 20 के खंड (1) में दो भाग है, जिनमें कार्योत्तर विधि से संरक्षण दिया गया है –
1. जो कार्य अपराध नहीं उसके लिए बाद में दोषी नहीं होगा तथा
2. अपराध करने के समय विद्यमान विधि में विहित शास्ति का भागी नहीं होगा।
1.जो कार्य अपराध नहीं उसके लिए बाद में दोषी नहीं होगा
अनुच्छेद 20(1) में दो परिस्थितियों में कार्योत्तर विधियों से संरक्षण प्रदान किया गया है जिनमें से पहली परिस्थिति है, जिसमें कोई व्यक्ति ऐसे किसी अपराध के लिए दोषी नहीं होगा,जब उसने में कार्य किया था तब वह अपराध नहीं था अर्थात जब कार्य किया गया तब वह कार्य अपराध की श्रेणी में नहीं आता था किंतु बाद में विधि बनाकर उस कार्य को अपराध बना दिया जाए तब पूर्व में किए गए कार्य के लिए ऐसी बनाई गई विधि के अधीन दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
उदाहरण – पूर्वोक्त उदाहरण में 17 अक्टूबर 2000 से पहले आइडेंटिटी थेफ्ट अपराध नहीं था, तब यदि किसी व्यक्ति ने उक्त दिनाँक से पहले अर्थात सितंबर 2000 में आइडेंटिटी थेफ्ट का कार्य किया था,तो उसे 17 अक्टूबर के बाद आईडेंटिटी थेफ्ट के लिऐ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 C के अधीन दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
महत्वपूर्ण निर्णय –
पारीद बनाम निलांबन AIR 1967
इस वाद में उस समय प्रवृत्त विधि के अनुसार पंचायत कर नहीं देना अपराध नहीं था बाद में एक कानून बनाकर उसे अपराध घोषित करने पर केरल उच्च न्यायालय ने इस संरक्षण को प्रदान करते हुए कार्योत्तर विधि को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
2. विधि में विहित शास्ति से अधिक का भागी नहीं होगा-
अनुच्छेद 20(1) दूसरा भाग दंड की मात्रा को बढ़ाने का प्रतिषेध करता है। इसके अनुसार कोई व्यक्ति उस दंड से अधिक दंड पाने के लिए दायी नहीं होगा जो अपराध किए जाने के समय किसी अपराधिक विधि के अधीन दिया जा सकता था।
उदाहरण – एक व्यक्ति A को बलात्कार के लिए दोषी पाया गया उसने यह अपराध वर्ष 2016 में किया था, तब रेप के लिए न्यूनतम दंड 7 वर्ष का कारावास था जिसे दंड विधि (संशोधन) अधिनियम 2018 के द्वारा बढ़ा कर 10 वर्ष न्यूनतम कर दिया गया, तब इस प्रकार बढ़ा हुआ दंड A को नहीं दिया जा सकता है।
संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय –
केदारनाथ नाम वेस्ट बंगाल राज्य AIR 1953
इस मामले में अभियुक्त ने 1947 में एक अपराध किया, उस समय प्रवृत्त विधि के अंतर्गत इस अपराध के लिए कारावास व अर्थदंड (जुर्माना) या दोनों दिया जा सकता था। उसके बाद में 1949 में संशोधन करके उस अपराध के लिए दंड को बढ़ा दिया गया। तब तक माननीय उच्चतम न्यायालय ने निर्णय लिया कि सन 1947 में किए गए अपराध के लिए सन 1949 में सजा की मात्रा नहीं बढ़ाई जा सकती और बड़े हुए जुर्माने को पूर्व प्रवृत्त विधि के अनुसार घटाने का आदेश दिया।
कार्योत्तर विधियों से संरक्षण के अपवाद-
अनुच्छेद 20(1) में प्रदत कार्योत्तर विधियों से संरक्षण निम्नलिखत दशाओं में प्राप्त नहीं होता है –
1.जहां सजा कम की जाती है –
कार्योत्तर विधियों से संरक्षण उन मामलो में लागू नहीं होता है, जिनमें सजा की मात्रा को बढ़ाने के बजाय कम किया जाती है।
रत्नलाल बनाम पंजाब राज्य AIR 1965SC444
इस मामले में अपीलार्थी अभियुक्त 16 वर्ष का एक बालक था जिस पर घर अनाधिकृत रूप से प्रवेश कर 7 वर्षीय बालिका के शीलभंग का आरोप था और जिसके लिए अधीनस्थ न्यायालय ने उसे दोषी करार देते हुए 6 माह का कठोर कारावास की सजा दी और उस पर जुर्माना भी लगाया।अपील लंबित रहने के दौरान संसद ने अपराधी परिवीक्षा अधिनियम (The Probation of Offenders Act), 1958 पारित कर दिया जिसके अंतर्गत 20 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को कारावास का दंड देने को निषेध कर दिया गया था, तब माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपीलार्थी अधिनियम का लाभ उठा सकता है और उसकी सजा को कम कर दिया।
टी बराई बनाम हेनरी आ हो 1983(1)SCC 177
इस वाद में खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 की धारा 16(1)A के अंतर्गत प्रत्यर्थी के विरुद्ध 1975 में एक अपराध करने का आरोप था। उस समय उस अपराध के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान था बाद में 1976 में संशोधन करके उसको घटाकर 3 वर्ष का कारावास का प्रावधान कर दिया। इस केस में निर्णय दिया गया कि अभियुक्त लाभकारी उपबंधो का फायदा प्राप्त करने का हकदार है।
2. सिविल मामलों में –
अनुच्छेद 20(1) के अधीन प्राप्त संरक्षण सिविल मामलों में प्राप्त नहीं होता है, क्यों की अनुच्छेद 20(1) में अपराध शब्द का प्रयोग किया गया है। आर्थत सिविल विधियां भूतलक्षी प्रभाव से लागू की जा सकती हैं।
3. निवारक निरोध करने वाली विधि-
अनुच्छेद 20(1) में प्राप्त संरक्षण निवारक निरोध विधि के संबंध में लागू नहीं होता है, क्योंकि यह विधियां किसी गंभीर अपराध को किए जाने से रोकने के लिए बनाई जाती हैं। निवारक निरोध दंडात्मक व्यवस्था नहीं है, यह केवल निवारक अर्थात उपचारात्मक व्यवस्था होती है ।
4. निरासित विधियां
अनुच्छेद 20(1) में प्राप्त कार्योत्तर विधियों से संरक्षण उस दशा में लागू नहीं होता है जहां किसी विधि या उसका कोई प्रावधान निरसित किया जाता है।
निष्कर्ष –
कार्योत्तर विधि से संरक्षण व्यक्तियों को प्राप्त एक मौलिक अधिकार है ,जो संसद को अपनी विधि बनाने की शक्ति पर एक सीमा निर्धारित करती है। तथा व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी सुनिश्चित करती है।
संभावित प्रश्न-
संविधान में अनुच्छेद 20(1) प्रदत कार्योत्तर विधियों से संरक्षण के सिद्धांत की व्याख्या करें?
It is very clear n helpful
Kindly add some new judgements
Thank you so much 😊and we will try for this