परक्राम्य लिखत अधिनियम,1881

(अधिनियम क्रमांक 26 सन् 1881)

[9 दिसम्बर, 1881]

वचन-पत्रों, विनिमय-पत्रों और चैकों से सम्बन्धित विधि को परिभाषित और संशोधित करने के लिये अधिनियम ।
वचन-पत्र, विनिमय-पत्रों और चैकों से सम्बन्धित विधि को परिभाषित और आदेशिका संशोधित करना समीचीन है; अतः एतद्द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित किया जाता है :-

अध्याय 1 प्रारम्भिक

1. संक्षिप्त नाम- यह अधिनियम परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 कहा जा सकेगा ।

स्थानीय क्षेत्र, हुण्डियों, आदि से सम्बन्धित प्रथाओं की व्यावृत्ति, प्रारम्भ– इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है, किन्तु इसमें अन्तर्विष्ट कोई भी बात इंडियन पेपर करेंसी एक्ट, 1871 इसका विस्तार (1871 का 3) की धारा 21 पर या किसी प्राच्य भाषा में की किसी भी लिखत से सम्बन्धित किसी भी स्थानीय प्रथा पर प्रभाव नहीं डालता:
परन्तु ऐसी प्रथाएं लिखत के निकाय के किन्हीं भी ऐसे शब्दों द्वारा, जिनसे यह आशय उपदर्शित हो कि उसके
पक्षकारों के विधिक सम्बन्ध इस अधिनियम द्वारा शासित होंगे, अपवर्जित की जा सकेगी; और यह पहली
मार्च, 1882 को प्रवृत्त होगा ।

2. अधिनियमितियों का निरसन-  संशोधनकारी अधिनियम, 1891 (1891 का 12) की धारा 2 तथा अनुसूची 1,
भाग 1 द्वारा निरसित।

3. निर्वाचन खण्ड- इस अधिनियम में-
बँकार; के अन्तर्गत बैंकार के तौर पर कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति और कोई भी डाक घर बचत बैंक आता है] ।

अध्याय 2 वचन-पत्रों, विनिमय-पत्रों और चेकों के विषय में

4.वचन-पत्र- वचन-पत्र (बैंक नोट या करेन्सी नोट न होने वाली) ऐसी लेखबद्ध लिखत है जिसमें एक निश्चित व्यक्ति को या उसके आदेशानुसार या उस लिखत के वाहक को धन की एक निश्चित राशि संदत करने का उसके रचयिता द्वारा हस्ताक्षरितु अशर्त वचन अन्तर्विष्ट हो।
                                                        दृष्टान्त
क निम्नलिखित शब्दों वाली लिखतों पर हस्ताक्षर करता है :-
(क) “मैं ख को या उसके आदेशानुसार 500 रुपये संदत्त करने का वचन देता हूँ।                                       (ख) मैं स्वीकार करता हूँ कि प्राप्त मूल्य के लिए मैं ख का एक हजार रुपये का ऋणी हूँ जो माँग पर संदत्त किए जाने हैं।(ग) “श्री ख मैं, आपका 1,000 रुपये का देनदार हूँ ।
(घ) “मैं ख को 500 रुपये, और वे अन्य सब राशियाँ, जो उसे शोध्य होगी, संदत करने का वचन देता हूँ ।
(ङ) “मैं ख को 500 रुपये, उसमें से पहले वह धन काटकर, जिसका वह मुझे देनदार हो, संदत करने का वचन
देता हूँ ।
(च) ग के साथ अपने विवाह के 7 दिन पश्चात् में ख को 500 रुपये संदत्त करने का वचन देता हूँ।                       (छ) “मैं घ की मृत्यु पर ख को 500 रुपये देने का वचन देता हूँ; परन्तु यह तब जब कि घ वह राशि संदत्त करने के
लिए पर्याप्त धन मेरे लिए छोड़ जाए ।                                                                                        (ज) मैं वचन देता हूँ कि मैं निकटतम आगामी पहली जनवरी को ख को 500 रुपये संदत्त  करूंगा और अपना काला घोड़ा उसे परिदत करूंगा ।
क्रमश: (क) और (ख) से अंकित लिखत वचन-पत्र हैं। क्रमशः (ग), (घ), (ङ), (च), (छ) और (ज) से अंकित
लिखत वचन-पत्र नहीं है।

5. विनिमय-पत्र- विनिमय पत्र ऐसी लेखबद्ध लिखत है जिसमें एक निश्चित व्यक्ति को यह निदेश देने वाला उसके रचयिता द्वारा हस्ताक्षरित अशर्त आदेश, अन्तर्विष्ट हो कि वह एक निश्चित व्यक्ति को या उसके आदेशानुसार या उस लिखत के वाहक को ही धन की एक निश्चित राशि संदत्त करे ।
संदाय करने का वचन या आदेश इस धारा और धारा 4 के अर्थ में इस कारण सशर्त नहीं है कि उस रकम या उसकी किसी किस्त के संदाय के समय के बारे में यह अभिव्यक्त है कि वह किसी ऐसी विनिर्दिष्ट घटना के होने के पश्चात् एक निश्चित कालावधि के बीत जाने पर होगा जो मामूली मानवीय प्रत्याशा के अनुसार अवश्यम्भावी है, यद्यपि उसके होने का समय अनिश्चित हो ।
देय राशि इस धारा और धारा 4 के अर्थ में निश्चित मानी जा सकेगी, यद्यपि उसके अन्तर्गत भावी ब्याज हो या वह विनिमय की उपदर्शित दर पर देय हो या विनिमय के अनुक्रम के अनुसार हो और यद्यपि लिखत में यह उपबंध हो कि किसी किस्त के संदाय में व्यतिक्रम होने पर अदत्त अतिशेष शोध्य हो जाएगा।                                                            वह व्यक्ति, जिसके बारे में यह स्पष्ट है कि उसे निदेश दिया गया है या संदाय किया जाना है, इस धारा और धारा 4 के अर्थ में एक निश्चित व्यक्ति माना जा सकेगा यद्यपि उसका नाम अशुद्ध दिया गया हो या वह केवल वर्णन द्वारा ही अभिहित हो ।

6.चैक- चैक एक ऐसा विनिमय-पत्र है जो विनिर्दिष्ट बँकार पर लिखा गया है और जिसका माँग पर से अन्यथा देय होना अभिव्यक्त नहीं है एवं उसमें इलेक्ट्रानिक रूपक से निकाला हुआ छंटित चैक तथा इलेक्ट्रानिक रूपक सम्मिलित है

स्पष्टीकरण 1 इस धारा के प्रयोजनों के लिये, अभिव्यक्त है-

(क) ‘इलेक्ट्रानिक रूप में चेक’ से किसी कंप्यूटर साधन का उपयोग करके इलेक्ट्रानिक माध्यम से लिखा गया और किसी सुरक्षित प्रणाली में डिजीटल चिह्नक (जैवमिति चिह्नक सहित या उसके बिना) सहित तथा, यथास्थिति, असममित गूढ़ प्रणाली या इलेक्ट्रानिक चिह्नक सहित लिखा गया कोई चेक अभिप्रेत है;

(ख) ‘छंटित चैक’ का आशय है ऐसा चैक जो कि समाशोधन गृह के द्वारा या बैंक के द्वारा चाहे अदायगी करते हुए या अदायगी प्राप्त करते हुए निकासी अवधि के अनुक्रम के दौरान छंटित किया जाता है जो तत्काल इलेक्ट्रानिक रूपक के उत्पादन पर पारेषित किया जाता है प्रतिस्थापन आगे शारीरिक संचलन से लिखित चैक है

स्पष्टीकरण II इस धारा के प्रयोजनों के लिए अभिव्यक्ति समाशोधन गृह का आशय है, समाशोधन गृह जो रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के द्वारा प्रबन्ध किया जाता है अथवा ऐसा समाशोधन गृह जो कि रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा मान्यता प्रदान किया गया है ।
स्पष्टीकरण III इस धारा के प्रयोजन के लिए, असममित गूढ़ प्रणाली कंप्यूटर साधन अंकीय चिह्नक इलेक्ट्रानिक रूप और इलेक्ट्रानिक चिह्नक के क्रमशः वही अर्थ होंगे जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) में उनके हैं।

7.लेखीवाल ,ऊपरवाल विनिमय-पत्र या चैक का रचयिता उसका लेखीवाल कहलाता है, संदाय करने
के लिए तद्द्द्वारा निर्दिष्ट व्यक्ति ऊपरवाल कहलाता है।

जिकरीवाल-  जब कि विनिमय पत्र में या उस पर के किसी पृष्ठांकन में ऊपरवाल के अतिरिक्त किसी व्यक्ति का नाम दिया हुआ है जिसके पास आवश्यकता पड़ने पर लेनगी के लिए माना जाना है तब ऐसा व्यक्ति जिकरीवाल कहलाता है ।

प्रतिगृहीता-  विनिमय-पत्र पर या यदि उसकी एक से अधिक मूल प्रतियाँ हों तो ऐसी मूल प्रतियों में से एक पर विनिमय-पत्र के ऊपरवाल द्वारा उसकी अनुमति हस्ताक्षरित कर दी जाने के पश्चात् और धारक को या तन्निमित्त किसी व्यक्ति को उसका परिदान करने के पश्चात् या ऐसे हस्ताक्षर की सूचना करने के पश्चात् विनिमय-पत्र का ऊपरवाल प्रतिगृहीता कहलाता है ।
आदरणार्थं प्रतिगृहीता- जब कि विनिमय-पत्र अप्रतिग्रहण के लिए या बेहतर प्रतिभूति के लिए टिप्पणित या प्रसाक्ष्यित हो गया है और लेखीबाल या उसके पृष्ठांककों में से किसी के आदरणार्थ उसे कोई व्यक्ति प्रसाक्ष्याधीन प्रतिगृहीत करता है तो ऐसा व्यक्ति आदरणार्थ प्रतिगृहीता कहलाता है ।
पानेवाला- लिखत में नामित वह व्यक्ति जिसे या जिसके आदेश पर धन संदत किया जाना है लिखत द्वारा निर्दिष्ट हो, पानेवाला कहलाता है।

8.धारक- वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक के धारक से कोई भी ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो स्वयं अपने नाम से उस पर कब्जा रखने का और उस पर शोध्य रकम उसके पक्षकारों से प्राप्त करने या वसूल करने का हकदार है ।
जहाँ कि वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक खो जाता है या नष्ट हो जाता है, वहाँ उसका धारक
वह व्यक्ति है जो कि ऐसे खो जाने या नष्ट होने के समय ऐसा हकदार था ।

9. सम्यक्- अनुक्रम-धारक- सम्यक् अनुक्रम-धारक से कोई भी ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक में वर्णित रकम के देय होने से पूर्व और यह विश्वास करने का कि जिस व्यक्ति से उसे अपना हक व्युत्पन्न हुआ है उस
व्यक्ति के हक में कोई त्रुटि वर्तमान थी पर्याप्त हेतुक रखे बिना, उस दशा में, जिसमें कि वह चाहक को देय है, उस पर प्रतिफलार्थ काबिज हो गया है,
अथवा उस दशा में, जिसमें कि वह [आदेशानुसार देय] है, उसका पानेवाला या पृष्ठांकिती हो गया है।

10. सम्यक्-अनुक्रम में संदाय- सम्यक् अनुक्रम में संदाय से लिखत पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को उस लिखत के प्रकट शब्दों के अनुसार सद्भावपूर्वक और उपेक्षा किए बिना ऐसी परिस्थितियों में किया गया संदाय अभिप्रेत है जिससे यह विश्वास करने के लिए युक्तियुक्त आधार नहीं पैदा होता कि वह उसमें वर्णित रकम का संदाय पाने का हकदार नहीं है ।

11.अन्तर्देशीय लिखत- भारत में लिखित या रचित और भारत में देय किया गया या 2 भारत में निवासी किसी व्यक्ति, पर लिखित वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक अन्तर्देशीय लिखत समझा जाएगा ।

12. विदेशी लिखत- ऐसी कोई लिखत, जो ऐसे लिखित रचित या देय रचित नहीं है विदेशी लिखत समझी जाएगी।

13. “परक्राम्य लिखत-  (1) परक्राम्य लिखत से या तो आदेशानुसार या वाहक को देय वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक अभिप्रेत है ।
स्पष्टीकरण (i) यह वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक आदेशानुसार देय है जिसका ऐसे देय होना अभिव्यक्त हो या जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति को देव होना अभिव्यक्त हो और जिसमें अन्तरण को प्रतिषिद्ध करने वाले शब्द या आशय उपदर्शित करने वाले शब्द कि वह अन्तरणीय नहीं है, अन्तर्विष्ट न हों।

स्पष्टीकरण (ii) वह वचन पत्र, विनिमय-पत्र या चैक वाहक को देय है जिसमें यह अभिव्यक्त हो कि वह ऐसे देय है या जिस पर एकमात्र या अन्तिम पृष्ठांकन निरंक पृष्ठांकन है।
स्पष्टीकरण (iii) जहाँ कि वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक का या तो मूलतः या पृष्ठांकन द्वारा विनिर्दिष्ट व्यक्ति के आदेशानुसार, न कि उसे या उसके आदेशानुसार देय होना अभिव्यक्त है वहाँ ऐसा होने पर भी वह उसके विकल्प पर उसे या उसके आदेशानुसार संदेय है ।
(2) परक्राम्य लिखत दो या अधिक पानेवालों को संयुक्ततः देय रचित की जा सकेंगी या वह अनुकल्पतः दो पानेवालों में से एक को या कई पानेवालों में से एक को या कुछ को देय रचित की जा सकेगी ।

14. परक्रामण- जब कि वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक किसी व्यक्ति को ऐसे अन्तरित कर दिया जाता है कि वह व्यक्ति उसका धारक हो जाता है, तब वह लिखत परक्रामित कर दी गई है, यह कहा जाता है ।

15. पृष्ठांकन- जब कि परक्राम्य लिखत का रचयिता या धारक ऐसे रचयिता के रूप में हस्ताक्षर करने से अन्यथा, परक्रामण के प्रयोजन के लिए उसके पृष्ठ पर या मुख-भाग पर या उससे उपाबद्ध कागज की परची पर हस्ताक्षर करता है या परक्राम्य लिखत के रूप में पूर्ति किए जाने के लिए आशयित स्टाम्प-पत्र पर उसी प्रयोजन के लिए ऐसे हस्ताक्षर करता है तब यह कहा जाता है कि वह उसे पृष्ठांकित करता है और वह पृष्ठांकक कहलाता है।

16. “निरंक” “पृष्ठांकन”और “पूर्ण” “पृष्ठांकन” “पृष्ठांकिती”- [((1)] यदि पृष्ठांकक केवल अपना नाम हस्ताक्षरित करता है तो पृष्ठांकन “निरंक” कहलाता है और यदि वह लिखत वर्णित रकम किसी विनिर्दिष्ट व्यक्ति को या उसके
आदेशानुसार संदत्त करने का निदेश जोड़ देता है तो “पृष्ठांकन” “पूर्ण” कहलाता है, और ऐसा विनिर्दिष्ट व्यक्ति लिखत का “पृष्ठांकिती” कहलाता है ।

(2) इस अधिनियम के जो उपबंध पाने वाले से सम्बन्धित हैं वे पृष्ठांकिती को आवश्यक उपान्तरों सहित लागू होंगे ।

17. संदिग्धार्थी लिखत- जहाँ कि लिखत का अर्थ वचन पत्र या विनिमय पत्र दोनों लगाया जा सकता है वहाँ धारक अपने निर्वाचन द्वारा उसे दोनों में से किसी भी रूप में बरत सकेगा और तत्पश्चात् वह लिखत तद्नुसार बरती जाएगी।

18. जहाँ कि रकम अंकों और शब्दों में भिन्नतः कथित है- यदि वह रकम, जिसके संदत्त किए जाने का वचन या आदेश दिया गया है, अंकों और शब्दों में भिन्नतः कथित है तो शब्दों में कथित रकम वह होगी जिसके संदत्त किए जाने का वचन या आदेश दिया गया है ।

19. माँग पर देय लिखत- वह वचन पत्र या विनिमयपत्र, जिसमें संदाय का कोई समय विनिर्दिष्ट नहीं है, और चैक, माँग पर देय होते हैं ।

20. स्टाम्पित अधूरी लिखत- जहाँ कि एक व्यक्ति भारत में परक्राम्य लिखत सम्बन्धी तत्समय प्रवृत्त विधि के अनुसार, स्टाम्पित और या तो पूर्णतः निरंक या उस पर अपूरित परक्राम्य लिखत लिखकर कोई कागज हस्ताक्षरित करता है और किसी दूसरे को परिदत्त कर देता है जहाँ वह उसके धारक को तद्द्वारा यह प्रथमदृष्टया प्राधिकार देता है कि वह किसी भी रकम के लिए, जो उसमें विनिर्दिष्ट हो, और उस रकम से अधिक न हो जिसके लिए वह स्टाम्प पर्याप्त है, परक्राम्य लिखत उस पर यथास्थिति रच ले या पूर्ण कर ले।
ऐसे हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति अपनी उस हैसियत में, जिसमें उसने उस पर हस्ताक्षर किया, किसी भी
सम्यक् अनुक्रम धारक के प्रति ऐसी रकम के लिए ऐसी लिखत पर दायी होगा, परन्तु सम्यक् – अनुक्रम-
धारक से भिन्न कोई भी व्यक्ति लिखत परिदत्त करने वाले व्यक्ति से उस रकम से अधिक कुछ वसूल न करेगा
तो उसके द्वारा तदधीन संदत्त की जाने के लिए आशयित थी ।

21. “दर्शन पर” “उपस्थापन पर” “दर्शनोपरांत”- वचन-पत्र या विनिमय-पत्र में दर्शन पर और उपस्थापन
पर शब्दों से माँग पर अभिप्रेत है। दर्शनोपरांत शब्द से वचन पत्र में दर्शनार्थ उपस्थापन के पश्चात् तथा विनिमय पत्र में प्रतिग्रहण के या अप्रतिग्रहण के लिए टिप्पण या अप्रतिग्रहण के लिए प्रसाक्ष्य के पश्चात् अभिप्रेत है ।

22.”परिपक्वता”- वचन-पत्र या विनिमय पत्र की परिपक्वता उस तारीख को होती है जिसको वह शोध्य हो जाता है ।
अनुग्रह दिवस- हर वचन पत्र या विनिमय-पत्र की, जिसका माँग पर दर्शन पर या उपस्थापन पर देय होना अभिव्यक्त नहीं है, परिपक्वता उस तारीख के तीसरे दिन होती है जिसको उसका देय होना अभिव्यक्त है ।

23. जो विनिमय-पत्र या वचन-पत्र तारीख या दर्शन से इतने मास के पश्चात् देय है उसकी परिपक्वता की गणना- उस तारीख की गणना करने में, जिसको वह वचन-पत्र या विनिमयपत्र, जो ऐसे रचित है कि वह तारीख या दर्शन से निश्चित मासों की संख्या या किसी निश्चित घटना के पश्चात् देय है, परिपक्व हो जाता है वह कथित कालावधि, मास के उसी दिन को, जो लिखत की तारीख का है या जिसको लिखत प्रतिग्रहण या दर्शन के लिए उपस्थापित की गई है या प्रतिग्रहण के लिए प्या के लिए प्रसाक्ष्यित की गई है या वह घटना होती है या जहाँ लिखत दर्शन के कथित संख्या के मास पश्चात् देय होने वाला विनिमय -पत्र है और आदरणार्थ प्रतिगृहीत किया गया है वहाँ उस तारीख वाले दिन को, जिसको वह ऐसे प्रतिगृहीत की गई थी,पर्यवसित समझी जाएगी। यदि जिस मास में यह कालावधि पर्यवसित होगी, उसमें वह तारीख वाला दिन नहीं है तो वह कालावधि ऐसे मास के अन्तिम दिन को पर्यवसित समझी जाएगी।

दृष्टान्त

(क) 29 जनवरी, 1878 तारीख की एक परक्राम्य लिखत ऐसे रचित है कि वह उस तारीख से एक मास के पश्चात् देय हलिखत 28 फरवरी, 1878 के पश्चात् तीसरे दिन परिपक्व हो जाती है।

(ख) 30 अगस्त, 1878 तारीख की एक परक्राम्य लिखत ऐसे रचित है कि वह उस तारीख के तीन मास पश्चात् देय है । लिखत 3 दिसम्बर, 1878 को परिपक्व हो जाती है ।

(ग) 31 अगस्त, 1878 तारीख का एक वचन पत्र या विनिमय-पत्र ऐसे रचित है कि वह उस तारीख के तीन मास पश्चात् देय है। लिखत 3 दिसम्बर, 1878 को परिपक्व हो जाती है।

24. जो विनिमय-पत्र या वचन-पत्र तारीख या दर्शन से इतने दिनों के पश्चात् देय है उसकी परिपक्वता की गणना- उस तारीख की गणना करने में, जिसको वह वचन पत्र या विनिमय पत्र जो ऐसे रचित है कि वह तारीख से वा दर्शन से या किसी निश्चित घटना से दिनों की निश्चित संख्या के पश्चात् देव है, परिपक्व हो जाता है, उस तारीख का या प्रतिग्रहण या  दर्शन के लिए उपस्थापित करने का या अप्रतिग्रहण के लिए प्रसाक्ष्य का दिन या वह दिन, जिस दिन वह घटना घटित होती है, अपवर्जित कर दिया जाएगा।

25. जब कि परिपक्वता का दिन लोक अवकाश दिन है- जब कि वह दिन, जिसको कोई वचन-पत्र या विनिमयपत्र परिपक्व हो जाएगा, लोक अवकाश दिन हो तब लिखत ठीक पूर्ववर्ती कारवार वाले दिन शोध्य समझी जाएगी।
स्पष्टीकरण – लोक अवकाश दिन पद के अन्तर्गत रविवार [***] आता है और ऐसा कोई भी अन्य दिन आता है जिसे भूकेन्द्रीय सरकार ने शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा लोक अवकाश दिन घोषित किया है ।

अध्याय 3 वचन-पत्रों, विनिमय-पत्रों और पैकों के पक्षकार

26. वचन-पत्र, आदि रचने आदि के लिए सामर्थ्य- ऐसा हर व्यक्ति, जो उस विधि के अनुसार, जिसके वह अध्यधीन है, संविदा करने के लिए समर्थ है, वचन-पत्र, विनिमयपत्र, या चैक की रचना, लेखन, प्रतिग्रहण, पृष्ठांकन, परिदान और परक्रामण करके अपने को आबद्ध कर सकेगा और आबद्ध हो सकेगा।

अप्राप्तवय – अप्राप्तवय ऐसी लिखत का लेखन, पृष्ठांकन, परिदान और परक्रामण ऐसे कर सकेगा कि स्वयं उसके
सिवाय सब पक्षकार आबद्ध हो जाएं ।
एतस्मिन अन्तर्विष्ट कोई भी बात किसी निगम को इस बात के लिए सशक्त करने वाली न समझी जाएगी कि वह ऐसी दशाओं के सिवाय, जिनमें वह तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन ऐसा करने के लिए सशक्त हो ऐसी लिख का लेखन, पृष्ठांकन या प्रतिग्रहण कर सके।

27. अभिकरण- ऐसा हर व्यक्ति, जो अपने को आबद्ध करने के लिए या आबद्ध होने के लिए इस प्रकार समर्थ है, जैसा द्वारा 26 में वर्णित है, सम्यक् रूप से ऐसे प्राधिकृत अभिकर्ता द्वारा अपने आपको आबद्ध कर सकेगा या आबद्ध हो सकेगा जो उसके नाम में काम कर रहा है।
कारबार संव्यवहृत करने और ऋणों को प्राप्त करने और उन्मोचित करने के लिए साधारण प्राधिकार से विनिमय-पत्र का ऐसा प्रतिग्रहण या ठांकन करने की शक्ति अभिकर्ता को प्राप्त नहीं होती जिससे उसका मालिक आबद्ध हो जाए । विनिमय-पत्रों के लिखने के प्राधिकार से स्वतः ही यह विवक्षित नहीं होता कि उसमें पृष्ठांकन करने का प्राधिकार है।

28. हस्ताक्षर करने वाले अभिकर्ता का दायित्व – वह अभिकर्ता, जो किसी वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक पर अपना नाम उस पर यह उपदर्शित किए बिना कि वह अभिकर्ता की हैसियत से हस्ताक्षर कर रहा है या यह कि उसका आशय एतद्वारा वैयक्तिक उत्तरदायित्व उपगत करने का नहीं है, हस्ताक्षरित करता है वह उस लिखत पर वैयक्तिक रूप से दायी है किन्तु वह उन लोगों के प्रति ऐसे दायी नहीं है, जिन्होंने उसे इस विश्वास पर हस्ताक्षर करने के लिए उत्प्रेरित किया कि केवल मालिक ही दायी ठहराया जाएगा ।

29. हस्ताक्षर करने वाले विधिक प्रतिनिधि का दायित्व- मृतक व्यक्ति को जो विधिक प्रतिनिधि वचन-पत्र, विनिमय पत्र या चैक या अपना नाम हस्ताक्षर करता है वह उस पर वैयक्तिक रूप से दायी है जब तक कि वह अपना दायित्व अपनी उस हैसियत में उसे प्राप्त आस्तियों के विस्तार तक अभिव्यक्ततः परिसीमित न कर ले।

30. लेखीवाल का दायित्व- विनिमय-पत्र या चैक का लेखीवाल उसके ऊपरवाल या प्रतिगृहीता द्वारा उसके अनादृत किए जाने पर उसके धारक को प्रतिकर देने के लिए आबद्ध है, परन्तु यह तब जब कि लेखीवाल को अनादर की सम्यक् सूचना एतस्मिन पश्चात् उपबंधित रूप में दे दी गई या प्राप्त की गई हो।

31. चैक के ऊपरवाल का दायित्व- चैक के लेखीवाल की ऐसी पर्याप्त निधियों, जो ऐसे चैक के संदाय के लिए उचित रूप में उपयोजित की जा सकती हो, अपने पास रखने वाले चैक के ऊपरवाल को अपने से ऐसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षा की जाने पर चैक का संदाय करना होगा और ऐसे संदाय में व्यतिक्रम होने पर ऐसे व्यतिक्रम से हुई किसी भी हानि या नुकसान के लिए प्रतिकर से लेखीवाल को देना होगा।

32. वचन-पत्र के रचयिता और विनिमय-पत्र के प्रतिगृहीता का दायित्व- तत्प्रतिकूल संविदा न हो तो वचन-पत्र का रचयिता और विनिमय पत्र के परिपक्व होने के पूर्व उसका प्रतिगृहीता क्रमशः वचन-पत्र या प्रतिग्रहण के प्रकट शब्दों के अनुसार उसकी परिक्वता पर उसकी रकम और विनिमय पत्र का प्रतिगृहीता उसकी परिपक्वता पर या परिपक्वता के पश्चात् आकर धारक को माँग पर संदर करने के लिए आबद्ध है।
पूर्वोक्त जैसे संदाय में व्यतिक्रम होने पर ऐसा रचयिता या प्रतिगृहीता वचपा के किसी भी पक्षकार को किसी ऐसी हानि या नुकसान के लिए प्रतिकर देने के लिए आबाद है जो उसे उठाना पड़ा है और ऐसे व्यतिक्रम से हुआ है।

33. केवल ऊपरवाल आवश्यकता में के या आदरणार्थ होने के सिवाय प्रतिगृहीता हो सकता है- विनिमय-पत्र के ऊपरवाल या कई ऊपरवाल में से सब या कुछ करीवाल या आदरार्थे प्रति के रूप में उनमें नामित व्यक्ति के सिवाय कोई भी व्यक्ति प्रतिग्रहण द्वारा अपने को आवद्ध नहीं कर सकता।

34. जो ऊपरवाल भागीदार नहीं हैं उन द्वारा प्रतिग्रहण- जहाँ कि विनिमय-पत्र के अनेक ऐसे ऊपरवाल हैं, जो
भागीदार नहीं हैं, वहाँ उनमें से हर एक उसे अपने लिए प्रतिगृहीत कर सकता है किन्तु उनमें से कोई भी उसे किसी दूसरे के लिए उसके प्राधिकार के बिना प्रतिगृहीत नहीं कर सकता ।

35. पृष्ठांकक का दायित्व- तत्प्रतिकूल संविदा न हो तो जो कोई किसी परक्राम्य लिखत की परिपक्वता से पूर्व उसे पृष्ठांकित और पारित ऐसे पृांकन में अपने स्वयं के को अपवर्जित या सशर्त किए बिना करता है यह तद्द्वारा उन दशा में, जिसमें ऊपरवाल, प्रतिगृहीता या कविता द्वारा उसे अनादृत किया जाए, हर एक पश्चात्वर्ती धारक के प्रति ऐसी हानि या नुकसान के लिए, जो ऐसे अनादर से उसे हुआ है, प्रतिकर देने के लिए आबद्ध है, परन्तु यह तब जब कि अनादर की सभ्य सूचना ऐसे पृष्ठांकक को एतस्मिन् पश्चात् उपबंधित रूप में दे दी गई हो या प्राप्त हो गई हो।
हर पृष्ठांकक अनादर के पश्चात् वैसे ही दायीं है जैसे वह माँग पर देय लिखत पर दावी होता है।

36. सम्यक् -अनुक्रम-धारक के प्रति पूर्विक पक्षकारों का दायित्व- परक्राम्य लिखत का हर पूर्विक पक्षकार सम्यक् अनुक्रम धारक के प्रति तब तक उसके आधार पर दायी है जब तक उस लिखत की सम्यक् रूप से तुष्टि न कर दी जाए।

37. रचयिता, लेखीवाल और प्रतिगृहीता मूल ऋणी होंगे- वचन-पत्र का चैक का रचयिता होंग विनिमय-पत्र का लेखीबाल प्रतिग्रण तक और प्रतिगृहीता उसके आधार पर क्रमशः मूल ऋणियों के रूप में, तत्प्रतिकूल संविदा न ते दावी है और उसके अन्य पक्षकार यथास्थिति, रचयिता, लेखीवाल या प्रतिगृहीता के प्रतिभुओं के रूप में उसके आधार पर दायी हैं।

38. हर एक पश्चिक पक्षकार की बाबत् पूर्विक पक्षकार मूल ऋणी होगा- प्रतिभुओं के रूप में ऐसे दायी पक्षकारों का जहाँ तक पारस्परिक सम्बन्ध है वहाँ तक हर एक पूर्विक पकार, तत्प्रतिकूल संविदा के अभाव में उसके आधार पर हर एक पाश्चिक पक्षकार के प्रति मूल ऋणी के में भी दावी है।

दृष्टान्त

क स्वयं अपने आदेशानुसार देय  विनिमय-पत्र पर लिख देता है, जो उसे प्रतिगृहीत कर लेता है; तत्पश्चात क विनिमय-पत्र को ग के नाम, ग, घ के नाम और घ, ङ नाम पृष्ठांकित कर देता है। जहाँ तक  ङ और ख का सम्बन्ध है, ख मूल ऋणी है और क, ग र घ उसके प्रतिभू हैं। जहाँ तक और क का सम्बन्ध है के मूल ऋणी है और ग और घ उसके प्रतिभू है। जहाँ तक ड़ और ग छ सम्बन्ध है, ग मूल ऋणी है और घ उसका प्रतिभू है।

39. प्रतिभूत्व- जब कि प्रतिगृहीत विनिमय-पत्र का था के प्रतिगृहीता से कोई ऐसी संविदा कर लेता है जिससे अन्य पक्षकार भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 134 वा 135 के अधीन  उन्मोचित हो जाते हों तब तक धारक अन्य पक्षकारों को भारित करने का अपना अधिकार अभिव्यक्ततः आरक्षित रख सकेगा और ऐसी दशा में वे उन्मोचित नहीं होते हैं।

40. पृष्ठांकक के दायित्व का उन्मोचन- जहाँ कि परक्राम्य लिखत का धारक किसी पूर्विक पक्षकार के विरुद्ध पृष्ठांकक के उपचार का नाश या हास पृष्ठांकक की सम्मति के बिना कर देता है, वहाँ पृष्ठांकक धारक के प्रति दायित्व से उस विस्तार तक उन्मोचित हो जाता है जहाँ तक वह हो जाता यदि परिपक्वता पर उस लिखत का संदाय कर दिया गया होता ।

दृष्टान्त

ख के आदेश पर देय रचित विनिमय-पत्र का धारक क है, जिसमें निम्नलिखित, निरंक पृष्ठांकन
प्रथम पृष्ठांकन, ख ।
द्वितीय पृष्ठांकन, पीटर विलियम्स ।
तृतीय पृष्ठांकन, राइट एण्ड कंपनी ।
चतुर्थ पृष्ठांकन, जान रोजारिओ ।
इस विनिमय पत्र पर क जान रोजारिओ के विरुद्ध बाद लाता है और पीटर विलियम्स और राइट एण्ड कम्पनी द्वारा पृष्ठांकन जान रोजारिओ की सम्मति के बिना काट देता है। क जान रोजारिओ से कुछ भी वसूल करने का हकदार नहीं है।

41. प्रतिगृहीता आबद्ध है यद्यपि पृष्ठांकन कूटरचित है- पहले से ही पृष्ठांकित विनिमय-पत्र का प्रतिगृहीता दायित्व से इस कारण से मुक्त नहीं हो जाता कि ऐसा पृष्ठांकन कूटरचित है यदि जब कि उसने विनिमय-पत्र प्रतिगृहीत किया था, वह जानता था या विश्वास करने का कारण रखता था कि वह पृष्ठांकन कूटरचित है।

42. कल्पित नाम में लिखे गए विनिमय-पत्र का प्रतिग्रहण- कल्पित नाम में लिखा गया और लेखीवाल के आदेश पर देय विनिमय-पत्र का प्रतिगृहीता, किसी ऐसे सम्यक् अनुक्रम-धारक के प्रति, जो लेखीवाल के हस्तक्षर जैसे ही हस्ताक्षर द्वारा और लेखीवाल द्वारा रचित तात्पर्यित पृष्ठांकन के अधीन दावा करता है, दायित्व से इस कारण मुक्त नहीं हो जाता कि ऐसा नाम कल्पित है ।

43. परक्राम्य लिखत प्रतिफल के बिना रचित इत्यादि- प्रतिफल के बिना, या ऐसे प्रतिफल के लिए, जो निष्फल हो जाता है, रचित, लिखित, प्रतिगृहीत, पृष्ठांकित या अन्तरित परक्राम्य लिखत उस संव्यवहार के पक्षकारों के बीच संदाय को कोई बाध्यता सृष्ट नहीं करती। किन्तु यदि ऐसे किसी पक्षकार ने किसी प्रतिफलार्थ धारक को वह लिखत पृष्ठांकन सहित या रहित अन्तरित कर दी है तो ऐसा धारक और उससे हक व्युत्पन्न करने वाला हर पाश्चिक धारक ऐसी लिखत पर शोध्य रकम प्रतिफलार्थ अन्तरक से या उस लिखत के किसी भी पूर्विक पक्षकार से वसूल कर सकेगा ।
अपवाद I  जिस पक्षकार के सौकर्य के लिए परक्राम्य लिखत रची गई, लिखी गई, प्रतिगृहीत की गई या पृष्ठांकित की गई है, यदि उसने उसकी रकम का संदाय कर दिया है तो वह किसी भी ऐसे व्यक्ति से, जो उसके सौकर्य के लिए ऐसे लिखत का पक्षकार बना है, उस लिखत पर ऐसी रकम वसूल नहीं कर सकता ।
अपवाद II लिखत का कोई भी पक्षकार, जिससे किसी अन्य पक्षकार को ऐसे प्रतिफल के लिए, जिसे देने में या जिसका पूर्णतः पालन करने में वह असफल रहा है उसे अपने हक में रचने, लिखने, प्रतिगृहीत करने या पृष्ठांकित या अन्तरित करने के लिए उत्प्रेरित किया है, उस प्रतिफल के (यदि कोई हो) जो उसने वस्तुतः दिया है, या जिसका उसने वस्तुतः पालन किया है, मूल्य से अधिक रकम वसूल न करेगा ।

44. धन के रूप में प्रतिफल का भागतः अभाव या निष्फल हो जाना- जबकि वह प्रतिफल, जिसके लिए किसी व्यक्ति ने वचन-पत्र, विनिमयपत्र या चैक को हस्ताक्षरित किया है, धन के रूप में या और प्रारंभ में भागतः विद्यमान न था या तत्पश्चात्, भागतः निष्फल हो गया है, तब वह राशि, जिसे ऐसे हस्ताक्षरकर्ता से अव्यवहित सम्बन्ध में स्थित धारक उससे पाने का हकदार होगा अनुपाततः कम हो जाती है।
स्पष्टीकरण- विनिमय-पत्र का लेखीवाल प्रतिगृहीता से अव्यवहित सम्बन्ध में स्थित होता है। वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक का रचयिता पाने वाले से और पृष्ठांकक अपने पृष्ठांकिती से अव्यवहित सम्बन्ध में स्थित होता है। अन्य हस्ताक्षरकर्ता धारक से अव्यवहित सम्बन्ध में करार द्वारा स्थित हो सकेंगे।

दृष्टान्त

क अपने आदेशानुसार देय 500 रुपये का विनिमय-पत्र ख पर लिखता है। ख विनिमय-पत्र को प्रतिगृहीत कर
लेता है, किन्तु तत्पश्चात् संदाय न करके उसे अनादृत कर देता है। क विनिमय-पत्र के आधार पर ख पर बाद
लाता है। ख साबित कर देता है कि 400 रुपये के लिए तो वह मूल्यार्थ प्रतिगृहीत किया गया था और अवशिष्ट
के लिए वादी के सौकर्य के लिए प्रतिगृहीत किया गया था। के केवल 400 रुपये वसूल कर सकता है ।

45. जो प्रतिफल धन के रूप में नहीं है, उसका भागतः निष्फल होना- जहाँ कि उस प्रतिफल का, जिसके लिए,
किसी व्यक्ति ने वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक हस्ताक्षरित किया था, कोई भाग यद्यपि धन के रूप में नहीं है, तथापि सम्पार्शिवक जांच के बिना धन के रूप में अभिनिश्चित किया जा सकता है और उस भाग की निष्फलता हुई है वहाँ वह राशि, जो उस हस्ताक्षरकर्ता से अव्यवहित सम्बन्ध में स्थित धारक उससे वसूल करने का हकदार है, अनुपाततः कम हो जाती है ।

45क. खोए हुए विनिमय-‍ पत्र की दूसरी प्रति पाने का धारक का अधिकार- जहाँ कि विनिमय-पत्र अतिशोध्य होने के पूर्व खो गया है वहाँ जो व्यक्ति उसका धारक था वह उसके लेखीवाल को इस बात के लिए कि जिस विनिमय-पत्र का खो जाना अभिकथित है, उसके पुनः पाए जाने की दशा में सब व्यक्तियों के विरुद्ध, चाहे वे कोई भी हो, लेखीवाल की क्षतिपूर्ति की जाएगी प्रतिभूति यदि वह अपेक्षित की जाए देकर अपने को वैसा ही दूसरा विनिमय-पत्र देने के लिए आवेदन कर सकेगा ।                                                                                                                  यदि लेखीवाल पूर्वोक्त जैसी प्रार्थना पर विनिमय-पत्र की ऐसी दूसरी प्रति देने से इंकार करे तो वह ऐसा करने के लिए विवश किया जा सकेगा ।

अध्याय 4 परक्राम्य के विषय मे 

46. परिदान- वचन-पत्र विनिमय-पत्र या चैक की रचना, या उसका प्रतिग्रहण या पृष्ठांकन, वास्तविक या आन्वयिक, परिदान द्वारा पूरा हो जाता है।
इसलिए कि जहाँ तक उन पक्षकारों के बीच, जो अव्यवहित सम्बन्ध में स्थित हैं, परिदान प्रभावी हो वह परिदान उस लिखत को स्वयं रचने, प्रतिगृहीत करने या पृष्ठांकित करने वाले पक्षकार के द्वारा या उसके द्वारा तन्निमित्त प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा किया जाएगा।
ऐसे पक्षकारों के और लिखत के ऐसे धारक के बीच, जो सम्यक् अनुक्रम-धारक नहीं है, यह दर्शित किया जा सकेगा कि लिखत सशर्त या विशेष प्रयोजन के लिए ही न कि उसमें की संपत्ति को आत्यन्तिकतः अन्तरित करने के प्रयोजन के लिए, परिदत्त की गई थी। वाहक को देय वचन-पत्र, विनिमय पत्र या चैक उसके परिदान द्वारा परक्राम्य है ।
आदेशानुसार देय वचनपत्र, विनिमय-पत्र या चैक, धारक द्वारा उसके पृष्ठांकन और परिदान द्वारा परक्राम्य है।

47. परिदान द्वारा परक्रामण- वाहक को देय वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक धारा 58 के उपबंधों के अध्यधीन
रहते हुए उसके परिदान द्वारा परक्राम्य है।
अपवाद इस शर्त पर परिदत्त वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक कि अमुक घटना घटित होने के सिवाय वह प्रभावशाली नहीं होना है उस दशा के सिवाय जब कि वह ऐसे मूल्यार्थ धारक के हाथ में हो, जिसे इस शर्त की सूचना नहीं थी तब तक परक्रामित नहीं होता जब तक कि ऐसी घटना घटित न हो जाए।

दृष्टान्त

(क) वाहक को देय परक्राम्य लिखत का धारक क उसे ख के अभिकर्ता को ख के लिए रखने को परिदत्त करता है। लिखत परक्राम्य हो गई है।

(ख) वाहक को देय उस परक्राम्य लिखत का धारक क, जो लिखत क के बैंकार के हाथ में है, जो उस समय ख का भी बैंकार है । बैंकार को निदेश देता है कि वह उस लिखत को उस बैंकार ख के खाते में रख के नाम अन्तरित करके जमा कर दे। बैंकार ऐसा करता है और तदनुसार अब वह लिखत ख के अभिकर्ता के रूप में उसके कब्जे में है। वह लिखत परक्रामित हो गई है और रख उसका धारक हो गया है।

48. पृष्ठांकन द्वारा परक्रामण- धारा 58 के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि आदेशानुसार देय वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक धारक द्वारा उसके पृष्ठांकन और परिदान द्वारा परक्रामित होता है ।

49. निरंक पृष्ठांकन का पूर्ण पृष्ठांकन में संपरिवर्तन- निरंक पृष्ठांकित परक्राम्य लिखत का धारक पृष्ठांकक के हस्ताक्षर के ऊपर निदेश लिखकर कि पृष्ठांकिती के रूप में किसी अन्य व्यक्ति को उसका संदाय किया जाए, अपना नाम हस्ताक्षरित किए बिना निरंक पृष्ठांकन को पूर्ण पृष्ठांकन में संपरिवर्तित कर सकेगा और वह धारक तद्द्वारा पृष्ठांकक का उत्तरदायित्व उपगत नहीं करता ।

50. पृष्ठांकन का प्रभाव- परक्राम्य लिखत का पृष्ठांकन तत्पश्चात् परिदान होने पर उसमें की सम्पत्ति पृष्ठांकिती को आगे के परक्रामण के अधिकार सहित अन्तरित कर देता है किन्तु पृष्ठांकन अभिव्यक्त शब्दों द्वारा ऐसा अधिकार निर्बन्धित या
अपवर्जित कर सकेगा अथवा पृष्ठांकिती को लिखत का पृष्ठांकन करने का या पृष्ठांकक के लिए या किसी अन्य विनिर्दिष्ट व्यक्ति के लिए उसकी अन्तर्वस्तुएं प्राप्त करने को केवल अभिकर्ता बना सकेगा ।

दृष्टान्त

ख वाहक को देय विभिन्न परक्राम्य लिखतों पर निम्नलिखित पृष्ठांकन हस्ताक्षरित करता है-
(क) “अन्तर्वस्तुओं का संदाय केवल ग को करो ।”

(ख) मेरे उपयोग के लिए ग को संदाय करो ।”

(ग) “ख के लेखे ग को या आदेशानुसार संदाय करो ।”

(घ) “इसकी अन्तर्वस्तुएं ग के नाम जमा कर दो ।”

ग द्वारा आगे के परक्रामण का अधिकार इन पृष्ठांकनों से अपवर्जित है ।
(ङ) “ग को संदाय करो ।”

(च) “ओरिएंटल बैंक में ग के खाते में इनका मूल्य जमा कर दो ।”

(छ) “पृष्ठांकक और अन्यों को ग ने जो समनुदेशन विलेख निष्पादित किया है उसके प्रतिफल के भागस्वरूप
ग को इसकी अन्तर्वस्तुओं का संदाय करो।”

ग द्वारा आगे के परक्रामण के अधिकार को ये पृष्ठांकन अपवर्जित नहीं करते हैं।

51. परक्रामण कौन कर सकेगा- परक्राम्य लिखत का हर एकल रचयिता, लेखीवाल, पानेवाला या पृष्ठांकिती या कई संयुक्त रचयिताओं, लेखीवालों, पानेवालों या पृष्ठांकितियों में से सब उसे पृष्ठांकित और परक्रामित कर सकेंगे यदि ऐसी लिखत की परक्राम्यता धारा 50 में वर्णित रूप में निर्बन्धित या अपवर्जित नहीं की गई है।

स्पष्टीकरण- इस धारा में की कोई भी बात रचयिता या लेखीवाल को लिखत को पृष्ठांकित या परक्रामित करने के लिए समर्थ नहीं बनाती जब तक कि वह उस पर विधिपूर्ण कब्जा न रखता हो या वह उसका धारक न हो, और न वह पाने वाले या पृष्ठांकिती को, लिखत को पृष्ठांकित या परक्रामित करने के लिए समर्थ बनाती है, जब तक कि यह उसका धारक न हो।                                                   दृष्टान्त
विनिमय-पत्र क को या आदेशानुसार देय लिखा गया है। क उसे ख के नाम पृष्ठांकित करता पृष्ठांकन में या आदेशानुसार शब्द या कोई समतुल्य शब्द अन्तर्विष्ट नहीं है। ख लिखत को परक्रामित कर सकेगा ।

52. पृष्ठांकक जो अपने स्वयं के दायित्व को अपवर्जित करता है या सशर्त करता है- लिखत का पृष्ठांकक, पृष्ठांकन में अभिव्यक्त शब्दों द्वारा, उस पर का अपना स्वयं का दायित्व अपवर्जित कर सकेगा या ऐसे दायित्व को या उस लिखत पर शोध्य रकम को प्राप्त करने के पृष्ठांकिती के अधिकार को किसी विनिर्दिष्ट घटना के घटित होने पर, चाहे ऐसी घटना कभी भी घटित न हो, आश्रित कर सकेगा।
जहाँ कि कोई पृष्ठांकक अपने दायित्व को ऐसे अपवर्जित करता है और तत्पश्चात् लिखत का धारक हो जाता है वहाँ सब मध्यवर्ती पृष्ठांकक उसके प्रति दायी होते हैं।

दृष्टान्त

(क) परक्राम्य लिखत का पृष्ठांकक दायित्व रहित ये शब्द जोड़ कर अपना नाम हस्ताक्षरित करता है।
इस पृष्ठांकन के आधार पर वह कोई दायित्व उपगत नहीं करता ।

(ख) क परक्राम्य लिखत का पानेवाला और धारक है। दायित्व रहित इस पृष्ठांकन द्वारा वैयक्तिक दायित्व को अपवर्जित करके वह लिखत ख को अन्तरित करता है और ख उसे ग को पृष्ठांकित करता है जो उसे क को पृष्ठांकित कर देता है। क न केवल अपने पूर्ववर्ती अधिकारों में ही पुनःस्थापित हो जाता है वरन् उसे ख और ग के विरुद्ध पृष्ठांकिती के अधिकार भी प्राप्त हो जाते हैं।

53. सम्यक्-अनुक्रम-धारक से हक व्युत्पन्न करने वाला धारक-परक्राम्य लिखत का वह धारक, जिसे सम्यक्- अनुक्रम-धारक से हक व्युत्पन्न हुआ है, उस लिखत पर उस सम्यक् अनुक्रम धारक के अधिकार रखता है ।

54. निरंक पृष्ठांकित लिखत- क्रॉस की हुई चैकों के बारे में जो उपबंध एतस्मिन् पश्चात् अन्तर्विष्ट हैं उनके अध्यधीन रहते हुए यह है कि निरंक पृष्ठांकित परक्राम्य लिखत उसके वाहक को देय होती है यद्यपि यह मूलतः आदेशानुसार देय थी।

55. निरंक पृष्ठांकन का पूर्ण पृष्ठांकन में संपरिवर्तन- यदि परक्राम्य लिखत निरंक पृष्ठांकित की जाने के पश्चात् पूर्ण पृष्ठांकित की जाए तो जिस व्यक्ति के पक्ष में वह पूर्ण पृष्ठांकित की गई है या जिसका हक ऐसे व्यक्ति के माध्यम द्वारा व्युत्पन्न हुआ है उसके द्वारा किए जाने के सिवाय उसकी रकम का दावा पूर्ण पृष्ठांकन करने वाले से नहीं किया जा सकता।

56. शोध्य राशि के भाग के लिए पृष्ठांकन- परक्राम्य लिखत पर का कोई भी लेख, यदि उससे यह तात्पर्यित हो कि वह उस लिखत पर शोध्य प्रतीत होने वाली रकम के किसी भाग को ही अन्तरित करता है, परक्रामण के प्रयोजन के लिए विधिमान्य न होगा। किन्तु जहाँ कि ऐसी रकम का संदाय भागतः कर दिया गया है वहाँ उस आशय वाला टिप्पण उस लिखत पर पृष्ठांकित किया जा सकेगा जो तब बाकी के लिए परक्रामित की जा सकेगी।

57. मृतक द्वारा पृष्ठांकित लिखत को विधिक प्रतिनिधि केवल परिदान द्वारा परक्रामित नहीं कर सकता- आदेशानुसार देय और मृतक द्वारा पृष्ठांकित किन्तु अपरिदत्त वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक सकता को मृतक का विधिक प्रतिनिधि केवल परिदान द्वारा परक्रामित नहीं कर सकता ।

58. विधि-विरुद्ध साधनों द्वारा या विधि-विरुद्ध प्रतिफलार्थ अभिप्राप्त- लिखत परक्राम्य लिखत खो गई है या उसके किसी रचयिता, प्रतिगृहीता या धारक से अपराध या कपट द्वारा या विधि-विरुद्ध प्रतिफल के लिए अभिप्राप्त की गई है तब जिस व्यक्ति ने लिखत को पाया था या ऐसे जब कि अभिप्राप्त किया था उससे व्युत्पन्न अधिकार से दावा करने वाला कोई कब्जाधारी या पृष्ठांकिती उस पर शोध्य रकम को ऐसे रचयिता, प्रतिगृहीता या धारक से या ऐसे धारक के पूर्विक किसी भी पक्षकार से उस दशा के सिवाय प्राप्त करने का हकदार नहीं है जिसमें कि ऐसा कब्जाधारी या पृष्ठांकिती या यह कोई
व्यक्ति, जिससे व्युत्पन्न अधिकार से वह दावा करता है, उसका सम्यक् अनुक्रम-धारक है या था।

59. अनादर के या अतिशोध्य होने के पश्चात् अर्जित लिखत- परक्राम्य लिखत के उस धारक को जिसने उसे अप्रतिग्रहण या असंदाय द्वारा उसके अनादर के पश्चात् उसकी सूचना सहित या परिपक्वता के पश्चात् अर्जित किया है,
उस पर अन्य पक्षकारों के विरुद्ध केवल वे ही अधिकार प्राप्त हैं जो उसके अंतरक के थे ।                                सौकर्य पत्र या विपत्र; परन्तु जो कोई भी व्यक्ति सद्भावपूर्वक और प्रतिफलार्थ किसी ऐसे वचन-पत्र या विनिमय-पत्र का धारक उनकी परिपक्वता के पश्चात् हो जाता है जो प्रतिफल के बिना इस प्रयोजन से रचा, लिखा या प्रतिगृहीत किया गया था कि उसका कोई पक्षकार उसके आधार पर धन ले सकने के लिए समर्थ हो जाए वह किसी भी पूर्विक पक्षकार से उस वचन-पत्र या विनिमय-पत्र की रकम वसूल कर सकेगा ।

दृष्टान्त

एक विनिमय-पत्र के प्रतिगृहीता ने उस समय, जबकि उसने उसे प्रतिगृहीत किया था, लेखीवाल के पास कुछ माल उस विनिमय-पत्र के संदाय के लिए साम्पार्श्विक प्रतिभूति के रूप में लेखीवाल को यह शक्ति देकर निक्षिप्त कर दिया था कि यदि उस विनिमय पत्र की परिपक्वता पर विनिमय-पत्र का संदाय न किया जाए, तो वह माल को बेच दे और उसके आगमों को विनिमय पत्र के चुकाने में लगा दे परिपक्वता पर विनिमय-पत्र का संदाय न किए जाने पर लेखीवाल ने माल को बेच दिया और आगमों को प्रतिधृत कर लिया किन्तु विनिमय- पत्र क को पृष्ठांकित कर दिया । क का हक उसी आक्षेप के अध्यधीन है, जिसके अध्यधीन लेखीवाल का हक है।

60. संदाय या तुष्टि होने तक लिखत परक्राम्य है- परक्राम्य लिखत तब तक परक्रामित की जा सकेगी, जब तक रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिगृहीता द्वारा उसका संदाय या तुष्टि परिपक्वता पर या के पश्चात् न कर दी गई हो किन्तु ऐसे संदाय या तुष्टि के पश्चात् नहीं; परन्तु परिपक्वता के पश्चात् वह उसके रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिगृहीता द्वारा परक्रामित न की जा सकेगी ।

अध्याय 5 उपस्थापन के विषय में

61. प्रतिग्रहण के लिए उपस्थापन- यदि दर्शनोपरांत देय विनिमय-पत्र में उसके उपस्थापन के लिए कोई समय या स्थान विनिर्दिष्ट नहीं है तो उस व्यक्ति द्वारा जो उसके प्रतिग्रहण की माँग करने का हकदार है, उसके लिखे जाने के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अंदर और कारबार के दिन कारबार के समय में प्रतिग्रहण के लिए उसके ऊपरवाल को यदि वह युक्तियुक्त तलाश के पश्चात् पाया जा सके, उपस्थापित किया जाएगा। ऐसे उपस्थापन में व्यतिक्रम होने पर उसका कोई भी पक्षकार ऐसा व्यतिक्रम करने वाले पक्षकार के प्रति उस पर दायी न होगा।

यदि ऊपरवाल युक्तियुक्त तलाश के पश्चात् न पाया जा सके तो विनिमय-पत्र अनादृत हो जाता है । यदि विनिमय-पत्र ऊपरवाल को किसी विशिष्ट स्थान पर निर्दिष्ट है तो वह उस स्थान पर ही उपस्थापित किया जाना चाहिए और यदि उपस्थापित करने के लिए सम्यक् तारीख को युक्तियुक्त तलाश के पश्चात् यह यहाँ न पाया जा सके तो विनिमय-पत्र अनादृत हो जाता है; जहाँ कि करार या प्रथा से ऐसा करना प्राधिकृत है यहाँ रजिस्ट्रीकृत चिट्ठी से डाकघर के माध्यम
द्वारा उपस्थापन पर्याप्त है ।

62. वचन-पत्र को दर्शन के लिए उपस्थापित करना- दर्शनोपरांत निश्चित कालावधि पर देव वचन-पत्र उसके रचयिता के समक्ष (यदि वह युक्तियुक्त तलाश के पश्चात् पाया जा सके) उसके रचे जाने के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अंदर उस व्यक्ति द्वारा, जो संदाय की माँग करने का हकदार है, और कारवार के दिन कारबार के समय दर्शन के लिए उपस्थापित किया जाना चाहिए। ऐसे उपस्थापन में व्यतिक्रम होने पर उसका कोई भी पक्षकार ऐसा व्यतिक्रम करने वाले व्यतिक्रम के प्रति उस पर दायी न होगा

63. ऊपरवाल को विचार विमर्श करने के लिए समय- यदि उस विनिमय-पत्र का ऊपरवाल, जो प्रतिग्रहण के लिए उसके समक्ष उपस्थापित किया गया है, धारक से ऐसी अपेक्षा करे तो वह ऊपरवाल को यह विचार करने के लिए कि क्या
वह उसे प्रतिगृहीत करेगा, अड़तालीस घंटे का समय (लोक अवकाश दिनों का अपवर्जन करके) देगा ।

64. संदाय के लिए उपस्थापन- वचन-पत्र, विनिमय-पत्र और चैक क्रमशः उसके रचयिता, प्रतिगृहीता या ऊपरवाल को एतस्मिन् पश्चात् उपबंधित तौर पर संदाय के लिए धारक द्वारा या उसकी ओर से उपस्थापित किए जाने होंगे। ऐसे उपस्थापन में व्यतिक्रम होने पर उसके अन्य पक्षकार ऐसे धारक के प्रति उस पर दायी न होंगे।
जहाँ कि करार या प्रथा से ऐसा करना प्राधिकृत है वहाँ रजिस्ट्रीकृत चिट्ठी से डाकघर के माध्यम
द्वारा उपस्थापन पर्याप्त है ।
अपवाद- जहाँ कि वचन-पत्र माँग पर देय है और विनिर्दिष्ट स्थान पर देय नहीं है वहाँ उसके — रचयिता को
भारित करने के लिए कोई उपस्थापन आवश्यक नहीं है।
(2) धारा 6 में अन्तर्विष्ट कोई बात के होते हुए भी, जब इलेक्ट्रानिक रूपक का छंटित चैक अदायगी के लिये प्रस्तुत किया जाता है, तो ऊपरवाल बैंक छंटित चैक के सम्बन्ध में कोई आगे की सूचना उस बैंक से जो छंटित चैक धारण करता है, किसी युक्तिसंगत संदेह के मामले में लिखत के प्रत्यक्ष प्रकट शब्द के असलियत के बारे में जानकारी माँगने का अधिकारी है, यदि लिखत पर कोई कपट-जाली छेड़छाड़ करने या नाशकरण का संदेह है, तब वह स्वयं के सत्यापन के लिये छंटित चैक को आगे पेश करने की माँग करने हेतु अधिकारी है
परन्तु यह तब जब कि उस माँगे गये छंटित चैक को वह रोकेगा, यदि ऊपरवाल बैंक के द्वारा तद्नुसार अदायगी किया जाता है ।

65. उपस्थापन के लिए समय- संदाय के लिए उपस्थापन कारबार के प्रायिक समय के दौरान और यदि यह किसी बैंक के यहाँ किया जाना है तो बैंक कारबार के समय के अंदर करना होगा।

66. तारीख के पश्चात् या दर्शनोपरांत देय लिखत के संदाय के लिए उपस्थापन- जो वचन पत्र या विनिमय-पत्र उसमें दी हुई तारीख के पश्चात् या उसके दर्शनोपरांत एक विनिर्दिष्ट कालावधि पर देय रचा गया है उसे परिपक्वता पर संदाय के लिए उपस्थापित करना होगा ।

67. किस्तों में देय वचन-पत्र के संदाय के लिए उपस्थापन-  किस्तों में देय वचन-पत्र हर एक किस्त के संदाय के लिए नियत तारीख के पश्चात् तीसरे दिन संदाय के लिए उपस्थापित करना होगा और ऐसे उपस्थापन पर अंसदाय का यही प्रभाव होगा जो परिपक्वता पर वचन-पत्र के अंसदाय का होता है ।

68. विनिर्दिष्ट स्थान में, न कि अन्यत्र, देय लिखत के संदाय के लिए उपस्थापन- जो वचन पत्र, विनिमय-पत्र या चैक किसी विनिर्दिष्ट स्थान में, न कि अन्यत्र देय रचित, लिखित या प्रतिगृहीत है, उसके किसी पक्षकार को भारित करने के लिए उसे उसी स्थान में संदाय के लिए उपस्थापित करना होगा ।

69. विनिर्दिष्ट स्थान में देय लिखत- जो वचन पत्र या विनिमय-पत्र किसी विनिर्दिष्ट स्थान में देव रचित, लिखित या
प्रतिगृहीत है, उसे उसके रचयिता या लेखीवाल को भारित करने के लिए उसी स्थान में संदाय के लिए उपस्थापित करना होगा ।

70. जहाँ कि कोई अनन्य स्थान विनिर्दिष्ट नहीं है वहाँ उपस्थापन- जो वचन पत्र या विनिमय-पत्र धारा 68 और धारा 69 में वर्णित तौर पर देय रचित नहीं है, उसे, यथास्थिति, उसके रचयिता, लेखीवाल या प्रतिगृहीतों के कारबार के स्थान में (यदि कोई हो) या प्रायिक निवास स्थान में संदाय के लिए उपस्थापित करना होगा ।

71. जब कि रचयिता आदि के कारबार या निवास का कोई ज्ञात स्थान नहीं है तब उपस्थापन- यदि परक्राम्य लिखत के रचयिता, लेखीवाल या प्रतिगृहीता का कोई कारबार का ज्ञात स्थान या नियत निवास स्थान नहीं है और लिखत में प्रतिग्रहणार्थ या संदायार्थ उपस्थापन के लिए कोई स्थान विनिर्दिष्ट नहीं है तो ऐसा उपस्थापन स्वयं उसको किसी ऐसे स्थान में किया जा सकेगा जहाँ कि वह पाया जा सके।

72. लेखीवाल को भारित करने के लिए चैक का उपस्थापन- धारा 84 के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि इसलिए कि चैक लेखीवाल को भारित करे उसे उस बैंक में, जिस पर वह लिखा गया है, इसके पूर्व उपस्थापित करना होगा कि लेखीवाल और उसके बैंकार के बीच का सम्बन्ध ऐसे परिवर्तित हो जाए कि जिससे लेखीवाल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा हो ।

73. किसी अन्य व्यक्ति को भारित करने के लिए चैक का उपस्थापन-  इसलिए कि चैक लेखीवाल के सिवाय किसी अन्य व्यक्ति को भारित करे, ऐसे व्यक्ति को यह उसके परिदान के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अंदर उपस्थापित करना होगा ।

74. माँग पर देय लिखत का उपस्थापन- धारा 31 के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि माँग पर देय परक्राम्य लिखत धारक द्वारा उसे प्राप्त करने के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अंदर संदाय के लिए उपस्थापित करनी होगी ।

75. अभिकर्ता, मृतक के विधिक प्रतिनिधि या दिवालिया के समनुदेशिती द्वारा या को उपस्थापन- प्रतिग्रहण या संदाय के लिए उपस्थापन, यथास्थिति, ऊपरवाल, रचयिता, या प्रतिगृहीता के सम्यक् रूप से प्राधिकृत अभिकर्ता को था जहाँ कि ऊपरवाल, रचयिता या प्रतिगृहीता मर गया है वहाँ उसके विधिक प्रतिनिधि को, या जहाँ कि यह दिवालिया घोषित किया जा चुका है यहाँ उसके समनुदेशिती को
किया जा सकेगा ।

75-क प्रतिग्रहण या संदाय के लिए में विलम्ब के लिए प्रतिहेतु – प्रतिग्रहण या संदाय के लिए उपस्थापन मे विलंब के यदि धारक के नियंत्रण के परे की परिस्थितियों से हुआ है और उसके व्यतिक्रम, अवचार या उपेक्षा के कारण होने का दोष नहीं लगाया जा सकता तो यह माफी योग्य होगा। जब बिलम्ब के कारण का परिविराम हो जाता है तब उपस्थापन युक्तियुक्त समय के अंदर करना होगा ।

76. उपस्थापन कब अनावश्यक होता है- निम्नलिखित दशाओं में से किसी भी दशा में संदाय के लिए उपस्थापन आवश्यक नहीं है और लिखत उस तारीख पर अनादृत हो जाती है, जो उपस्थापन के लिए नियत है, अर्थात् :

(क) यदि रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिगृहीता लिखत का उपस्थापन साशय निवारित करता है, या उसके कारबार के स्थान में देय लिखत की दशा में, यदि यह कारबार के दिन कारबार के प्रायिक समय के दौरान में ऐसा स्थान बन्द कर देता है, या किसी अन्य विनिर्दिष्ट स्थान में देय लिखत की दशा में यदि न तो यह और न उसका संदाय करने के लिए प्राधिकृत कोई व्यक्ति कारबार के प्रायिक समय के दौरान में ऐसे स्थान में हाजिर रहता है, या किसी विनिर्दिष्ट स्थान में देय लिखत न होने की दशा में यदि वह सम्यक् तलाशी के पश्चात् नहीं पाया जा सकता ।

(ख) जहाँ तक कि किसी ऐसे पक्षकार का सम्बन्ध है, जिसे उससे भारित किया जाना ईप्सित है। यदि वह अनुस्थापन की दशा में भी संदाय करने के लिए वचनबद्ध हुआ है;

(ग) जहाँ तक कि किसी पक्षकार का सम्बन्ध है, यदि वह यह ज्ञान रहते उपस्थापित नहीं की गई है, परिपक्वता के पश्चात् लिखत पर शोध्य रकम मद्धे भागतः संदाय कर देता है; कि लिखत या उस पर शोध्य रकम को पूर्णतः या भागतः संदाय करने का वचन दे देता है;या संदाय के लिए उपस्थापन में किसी व्यतिक्रम का फायदा उठाने का अपना अधिकार अन्यथा अधित्यक्त कर देता है;

(घ) जहाँ तक कि लेखीवाल का प्रश्न है यदि लेखीवाल को ऐसे उपस्थापन के अभाव से नुकसान नहीं पहुंच सकता

77. संदाय के लिए उपस्थापित विनिमय पत्र से उपेक्षा बरतने के लिए बैंकार का दायित्व- जब कि किसी विनिर्दिष्ट बैंक पर देय प्रतिगृहीत विनिमय-पत्र वहाँ संदाय के लिए सम्यक् रूप से उपस्थापित कर दिया गया है और अनादृत कर दिया गया है तब यदि बैंकार ऐसे विनिमय-पत्र को ऐसे उपेक्षापूर्ण वा अनुचित तौर पर रखे, बरते या वापिस परिदत्त करे कि धारक को उससे हानि पहुंचे तो वह धारक को ऐसी हानि के लिए प्रतिकर देगा ।

अध्याय 6 संदाय और ब्याज के विषय में

78. संदाय किसको किया जाना चाहिए- धारा 82 के खण्ड (ग) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि इस
गरज से कि रचयिता या प्रतिगृहीता को उन्मोचित किया जाए, वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक पर शोध्य रकम का संदाय लिखत के धारक को करना होगा ।

79. ब्याज जब कि दर विनिर्दिष्ट है- जब कि वचन पत्र या विनिमय-पत्र पर ब्याज विनिर्दिष्ट दर से अभिव्यक्ततः देय कर दिया गया है तब ब्याज की गणना उस पर शोध्य मूलधन की रकम पर लिखत की तारीख से ऐसी रकम के निविदत्त, या आप्त किए जाने तक या ऐसी रकम की वसूली के लिए वाद की संस्थिति के पश्चात् ऐसी तारीख तक, जैसी न्यायालय निर्दिष्ट करे, उस विनिर्दिष्ट दर से की जाएगी।

80. जबकि कोई दर विनिर्दिष्ट नहीं है तब ब्याज- जबकि लिखत में ब्याज की कोई दर विनिर्दिष्ट नहीं है तब उस पर शोध्य रकम मद्धे ब्याज की गणना लिखत के किन्हीं पक्षकारों के बीच ब्याज सम्बन्धी किसी करार के होते हुए भी उस तारीख से, जिसको भारित पक्षकार द्वारा उसका संदाय किया जाना चाहिए, उस तारीख तक जब उस पर शोध्य रकम निविदत्त या आप्त हो या ऐसी रकम के लिए वाद की संस्थिति के पश्चात् ऐसी तारीख तक, जैसी न्यायालय निर्दिष्ट करे, प्रतिवर्ष अठारह प्रतिशत की दर से की जाएगी।

स्पष्टीकरण; जबकि भारित पक्षकार संदाय न करने से अनादृत किसी लिखत का पृष्ठांकक है तब वह ब्याज देने के लिए दायी केवल उसी समय से होगा जबकि उसे अनादर की सूचना प्राप्त होती है।

81. संदाय पर लिखत का परिदान या खो जाने की दशा में क्षतिपूर्ति- वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक पर शोध्य रकम संदत्त करने का दायी और उसके धारक द्वारा संदाय के लिए अपेक्षित किया गया कोई भी व्यक्ति संदाय से पूर्व इस बात का हकदार है कि वह उसे दिखाया जाए तथा संदाय कर दिए जाने पर इस बात का हकदार है कि वह उसे परिदत्त कर दिया जाए अथवा यदि लिखत खो गई है या पेश नहीं की जा सकती तो इस बात का हकदार है कि उस लिखत के आधार पर उसके विरुद्ध किसी आगे के दावे की बाबत उसकी क्षतिपूर्ति की जाए।

(2) जब चैक इलेक्ट्रानिक रूपक छंटित चैक है तब भी अदायगी के बाद भी बैंकार जिसने अदायगी प्राप्त किया है, छंटित चैक को रोकने के लिये अधिकारी होगा ।
(3) बैंकार के द्वारा इलेक्ट्रानिक रूपक का छंटित चैक के नीचे के भाग में एक प्रमाण-पत्र जारी किया जायेगा कि लिखत की अदायगी जिसने किया ऐसी अदायगी का प्रथम दृष्टया प्रमाण होगा ।

अध्याय 7 वचन-पत्रों, विनिमय-पत्रों और पैकों पर दायित्व से उन्मोचन के विषय में

82. दायित्व से उन्मोचन-  परक्राम्य लिखत के रचयिता, प्रतिगृहीता या पृष्ठांकक का अपने अपने दायित्व से उन्मोचन-
(क) रद्दकरण द्वारा- उसके उस धारक के प्रति, जो ऐसे प्रतिगृहीता या पृष्ठांकक का नाम उसे उन्मोचित करने के आशय से रद्द कर देता है, और ऐसे धारक से व्युत्पन्न अधिकार के अधीन दावा करने वाले सब पक्षकारों के प्रति हो जाता है;

(ख) निर्मुक्ति द्वारा उसके उस धारक के प्रति, जो ऐसे रचयिता, प्रतिगृहीता या पृष्ठांकक को अन्यथा उन्मोचित कर देता है और ऐसे उन्मोचन की सूचना के पश्चात् ऐसे धारक के अधीन हक व्युत्पन्न करने वाले सब पक्षकारों के प्रति हो जाता है;

(ग) संदाय द्वारा उसमें के सब पक्षकारों के प्रति उस दशा में हो जाता है जिसमें कि वह लिखत वाहक को संदेय है, या उस पर निरंक पृष्ठांकन कर दिया गया है और ऐसे रचयिता, प्रतिगृहीता या पृष्ठांकक ने उस पर शोध्य रकम का सम्यक् अनुक्रम में संदाय कर दिया है ।

83. ऊपरवाल को प्रतिग्रहण के लिए [अड़तालीस ] घण्टे से अधिक समय अनुज्ञात करने से उन्मोचन- यदि विनिमय-पत्र का धारक ऊपरवाल को यह विचार करने के लिए कि वह उसे प्रतिगृहीत करेगा या नहीं, लोक अवकाश दिनों को छोड़कर अली घटे से अधिक अनुश कर देता है तो ऐसी अनुज्ञा से सम्मत न होने वाले सब पूर्विक पक्षकार ऐसे धारक के प्रति दायित्व से तदद्वारा उन्मोचित हो जाते हैं ।

84. जबकि चैक सम्यक् रूप से उपस्थापित नहीं किया गया और लेखीवाल को तद्द्वारा नुकसान हुआ- (1) जहाँ कि चैक, उसके काटे जाने से युक्तियुक्त समय के अंदर संदाय के लिए उपस्थापित न किया जाए और जहाँ तक लेखीवाल या जिस व्यक्ति लेखे वह लिखा गया है उस व्यक्ति और बैंकार के बीच का सम्बन्ध है, वहाँ तक लेखीवाल या ऐसे व्यक्ति को उस समय, जबकि वह उपस्थापित किया जाना चाहिए था, यह अधिकार प्राप्त था कि चैक का संदाय किया जाए और वह विलम्ब के कारण वास्तव में नुकसान उठाता है वहाँ वह ऐसे नुकसान की मात्रा तक उन्मोचित हो जाता है, अर्थात् उस मात्रा तक जिस तक ऐसा लेखीवाल या व्यक्ति उस रकम से अधिक के लिए बैंकार का लेनदार है, जिस रकम का लेनदार वह होता यदि चैक का संदाय कर दिया गया होता ।

(2) यह अवधारण करने के लिए कि युक्तियुक्त समय क्या है लिखत की प्रकृति को, व्यापार और बैंकारों की प्रथा को और उस विशिष्ट मामले के तथ्यों को ध्यान में रखा जाएगा।

(3) उस चैक का धारक, जिसकी बाबत् ऐसा लेखीवाल या व्यक्ति ऐसे उन्मोचित हो गया है, ऐसे लेखीवाल या व्यक्ति के बदले में ऐसे बैंकार का ऐसे उन्मोचन की मात्रा तक लेनदार और उससे उस रकम को वसूल करने का हकदार होगा ।

दृष्टान्त

(क) क 1,000 रुपये के लिए चैक लिखता है, और जब उपस्थापित किया जाना चाहिए था उस समय बैंक में उसके संदाय के लिए उसका रुपया है। चैक उपस्थापित किए जाने से पूर्व बैंक फैल हो जाता है। लेखीवाल उन्मोचित हो जाता है किन्तु धारक चैक की रकम के लिए बैंक के विरुद्ध अपना दावा साबित कर सकता है।

(ख) क अम्बाले में एक चैक कलकत्ते के एक बैंक पर लिखता है। चैक के सम्यक्- अनुक्रम में उपस्थापित किए जाने से पूर्व बैंक फैल हो जाता है क उन्मोचित नहीं होता क्योंकि चैक के उपस्थापित करने में किसी विलम्ब से उसे वास्तविक नुकसान नहीं उठाना पड़ा।

85. आदेशानुसार देय चैक- जहाँ कि आदेशानुसार देय चैक पाने वाले के द्वारा या निमित्त पृष्ठांकित होना तात्पर्यित है वहाँ सम्यक् अनुक्रम में संदाय करने से ऊपरवाल का उन्मोचन हो जाता है।
(2) जहाँ कि चैक का वाहक को देय होना मूलतः अभिव्यक्त है वहाँ ऊपरवाल उसके बाहक को सम्यक् अनुक्रम में संदाय द्वारा उन्मोचित हो जाता है, यद्यपि उस पर कोई पृष्ठांकन पूर्णतः वा निरंक दर्शित हो और यद्यपि आगे के परक्रामण का निर्बन्धित या अपवर्जित होना ऐसे किसी भी पृष्ठांकन से तात्पर्यित है।

85क. आदेशानुसार देय ड्राफ्ट जो बैंक की एक शाखा ने दूसरी शाखा पर लिखे हैं- जहा कि कोई ड्राफ्ट अर्थात् धन
संदत्त करने का आदेश, जो कि बैंक के एक कार्यालय द्वारा उसी बैंक के दूसरे जहाँ कि कार्यालय पर माँग पर आदेशानुसार देव धन की राशि के लिए लिखा गया है, पानेवाले के द्वारा या निमित पृष्ठांकित होना तात्पति है, यहाँ बैंक सम्यक् -अनुक्रम में संदाय द्वारा उन्मोचित हो जाता है ।

86. सम्मत न होने वाले पक्षकार विशेषित या सीमित प्रतिग्रहण द्वारा उन्मोचित हो जाते हैं- यदि विनिमय-पत्र का धारक ऐसे प्रतिग्रहण से उपमत हो जाता है जो विशेषित है, या विनिमय राशि के एक भाग तक सीमित है या जो संदाय के लिए कोई भिन्न स्थान या समय प्रतिस्थापित करता प-पत्र में वर्णित है या जो उस दशा में जहाँ कि ऊपरवाल भागीदार नहीं है, उन सब के द्वारा हस्ताक्षरित नहीं है तो जब तक कि वे सब पूर्विक पक्षकार, जिनकी ऐसे प्रतिग्रहण के लिए सम्मति अभिप्राप्त नहीं की गई है, धारक द्वारा सूचना दी जाने पर ऐसे प्रतिग्रहण के लिए अपनी अनुमति नहीं दे देते, वे जहाँ तक कि धारक और उनसे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन दावा करने वालों का सम्बन्ध है, उन्मोचित हो जाते हैं।

स्पष्टीकरण; प्रतिग्रहण वहाँ विशेषित होता है-
(क) जहाँ कि वह सशर्त है अर्थात् यह घोषित करता है कि संदाय उसमें कथित घटना के होने पर निर्भर करेगा;
(ख) जहाँ कि वह संदत्त की जाने के लिए आदिष्ट राशि के केवल भाग के संदाय का वचन देता है;
(ग) जहाँ कि आदेश में संदाय के लिए कोई स्थान विनिर्दिष्ट न होते हुए वह विनिर्दिष्ट स्थान में, न कि अन्यथा या अन्यत्र, संदाय का वचन देता है अथवा जहाँ कि आदेश में संदाय का स्थान विनिर्दिष्ट होते हुए वह किसी दूसरे स्थान में, न कि अन्यथा या अन्यत्र संदाय का वचन देता है;
(घ) जहाँ कि वह उस समय से भिन्न समय पर संदाय का वचन देता है जिस समय पर आदेश के अधीन वह वैध
रूप से शोध्य होगा ।

87. तात्विक परिवर्तन का प्रभाव- परक्राम्य लिखत में का कोई भी तात्विक परिवर्तन उसे किसी के विरुद्ध भी, जो कि ऐसे परिवर्तन के समय उसका पक्षकार और उसके प्रति सम्मत नहीं हुआ है, तब के सिवाय शून्य कर देता है जब कि वह परिवर्तन मूल पक्षकारों के सामान्य आशय को पूरा करने के लिए किया गया हो;

पृष्ठांकिती द्वारा परिवर्तन- और यदि ऐसा कोई परिवर्तन पृष्ठांकिती द्वारा किया गया है, तो वह उसके प्रतिफल की बाबत उसके सब दायित्व से उसके पृष्ठांकक को उन्मोचित कर देता है। इस धारा के उपबंध धाराएँ 20, 49, 86 और 125 के उपबंधों के अध्यधीन हैं ।

88. पूर्विक परिवर्तन के होते हुए भी प्रतिगृहीता या पृष्ठांकक आबद्ध रहता है- लिखत में किसी पूर्विक परिवर्तन के होते हुए भी परक्राम्य लिखत का प्रतिगृहीता या पृष्ठांकक अपने प्रतिग्रहण या पृष्ठांकन से आबद्ध रहता है ।

89. जिस लिखत पर परिवर्तन दृश्यमान नहीं है उसका संदाय-  जहाँ कि वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक तात्विक रूप में परिवर्तित किया गया है किन्तु यह प्रतीत नहीं होता है कि वह ऐसे परिवर्तित किया गया है, या जहाँ कि ऐसा चैक, जो कि उपस्थापन के समय ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वह क्रॉस किया। हुआ है अथवा उस पर क्रासिंग थी जो मिटा दी गई है, संदाय के लिए उपस्थापित किया जाता है,
यहाँ संदाय के लिए दायी व्यक्ति और या बँकार द्वारा उसका संदाय और संदाय के समय उसके इकट शब्दों के अनुकूल संदाय और सम्यक् अनुक्रम में अन्यथा उसके ऐसा व्यक्ति या बँका उसके सब दायित्व से उन्मोचित हो जाएगा और ऐसा संदाय लिखत के परिवर्तित किए जाने या पैक के क्रॉस किये जाने के कारण प्रश्नगत न किया जाएगा ।
(2) जब चैक इलेक्ट्रानिक रूपक छंटित चैक है, ऐसे इलेक्ट्रानिक रूपक के प्रत्यक्ष प्रकट एवं छंटित चैक में कोई अंतर तत्पर्यित परिवर्तन है, तब बैंक या समाशोधन गृह जैसी हो, का कर्तव्य होगा कि छटित चैक की इलेक्ट्रानिक रूपक के प्रत्यक्ष प्रकट शब्द की निश्चिताको सुनिश्चित करे, जब वह इलेक्ट्रानिक रूपक को छंटित और पारेषित करता है ।
(3) कोई बैंक या समाशोधन गृह जो पषित इलेक्ट्रानिक रूप चैक प्राप्त करता है, वह उस पक्षकार से सत्यापित करेगा, जिसने उसका रूपक पारेषित किया है, उसका पारेषित रूपक और उसे प्राप्त हुआ वह, सुनिश्चित एक समान है ।

90. प्रतिगृहीता के हाथों में के विनिमय-पत्र पर कार्यवाही करने के अधिकारों का निर्वापन-  जो विनिमय पत्र परक्रामित किया गया है, परिपक्वता के समय या पश्चात् यदि वह प्रतिगृहीता द्वारा स्वयं अपने अधिकार से धारित है तो उस पर कार्यवाही करने के सब अधिकार निर्वापित हो जाते हैं।

अध्याय 8 अनादर की सूचना के विषय में

91. अप्रतिग्रहण द्वारा अनादर- विनिमय-पत्र अप्रतिग्रहण द्वारा अनादृत हुआ तब कहा जाता है जब उस विनिमय-पत्र के प्रतिग्रहण के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किए जाने पर ऊपरवाल या कई ऊपरवालों में से, जो भागीदार नहीं हैं, एक प्रतिग्रहण में व्यतिक्रम करता है या जहाँ कि उपस्थापन करने से अभिमुक्ति दे दी गई हो और विनिमयपत्र प्रतिगृहीत न किया जाए।
जहाँ कि ऊपरवाल संविदा करने के लिए अक्षम है या प्रतिग्रहण विशेषित है वहाँ बिनिमय-पत्र अनादृत कर दिया गया माना जा सकेगा ।

92. असंदाय द्वारा अनादर- वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक असंदाय द्वारा अनादृत हुआ तब कहा जाता है जबकि ऊपरवाल, वचन पत्र का रचयिता, विनिमय-पत्र का प्रतिगृहीता या चैक का ऊपरवाल उसका संदाय करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किए जाने पर संदाय में व्यतिक्रम करता है।

93. सूचना किसके द्वारा और किसको दी जानी चाहिए- जब कि वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक अप्रतिग्रहण या असंदाय द्वारा अनादृत हो गया है तब उसके धारक को या उसके किसी पक्षकार को, जो उस पर दायी बना रहता है, उन सब अन्य पक्षकारों को, जिन्हें कि धारक उस पर अलग-अलग दायी बनाना चाहता है, और उन कई पक्षकारों में से किसी एक को, जिन्हें कि वह उस पर संयुक्ततः दायी बनाना चाहता है, यह सूचना देगा कि लिखत ऐसे अनादृत कर दी गई है । इस धारा की कोई भी बात यह आवश्यक नहीं करती है कि अनादृत वचन-पत्र के रचयिता को या अनादृत विनिमय-पत्र या चैक के ऊपरवाल या प्रतिगृहीता को सूचना दी जाए ।

94. वह रीति जिसमें सूचना दी जा सके- अनादर की सूचना उस व्यक्ति के, जिसको उसका दिया जाना अपेक्षित है, सम्यक् रूप से प्राधिकृत अभिकर्ता को या जहाँ कि यह व्यक्ति मर गया है वहाँ उसके विधिक प्रतिनिधि को या जहाँ कि वह दिवालिया घोषित कर दिया गया है यहाँ उसके समुनुदेशी को दी जा सकेगी; वह मौखिक या लिखित हो सकेगी; यदि वह लिखित है तो डाक द्वारा भेजी जा सकेगी और किसी भी प्ररूप में हो सकेगी, किन्तु जिस पक्षकार को वह दी जाए उसको या तो अभिव्यक्त शब्दों में या युक्तियुक्त अर्थान्वयन से यह जानकारी देगी कि लिखत अनादृत हो गई है और किस प्रकार अनादृत हो गई है और यह कि वह उस पर दायी ठहराया जाएगा और वह अनादर के पश्चात् युक्तियुक्त समय के भीतर उस पक्षकार के, जिसके लिए कि वह आशयित है, कारबार के स्थान में या (उस दशा में, जिसमें ऐसे पक्षकार का
कोई कारबार का स्थान नहीं है) उसके निवास स्थान पर देनी होगी यदि सूचना डाक द्वारा ठीक पते पर भेजी जाती और गलत जगह चली जाती है तो ऐसी गलत जगह चली जाने से वह सूचना अविधिमान्य नहीं हो जाती ।

95. अनादर की सूचना पानेवाला पक्षकार उसे पारेषित करेगा- अनादर की सूचना पानेवाले किसी भी पक्षकार को इस गरज से कि वह किसी पूर्विक पक्षकार को अपने प्रति दायी करे अनादर की सूचना ऐसे पक्षकार को युक्तियुक्त समय के अंदर उस दशा के सिवाय देनी होगी जिसमें कि ऐसे पक्षकार को धारा 93 में उपबंधित सम्यक् सूचना अन्यथा प्राप्त हो गई है।

96. उपस्थापन के लिए अभिकर्ता- जबकि लिखत उपस्थापन के लिए अभिकर्ता के पास निक्षिप्त कर दी गई है तब अभिकर्ता अपने मालिक को सूचना देने के लिए उतने ही समय का हकदार है मानो वह अनादर की सूचना देने वाला धारक हो और मालिक अनादर की सूचना देने के लिए आगे उतनी ही कालावधि का हकदार हो जाता है ।

97. जबकि वह पक्षकार जिसे सूचना दी गई है, मर गया है- जबकि वह पक्षकार, जिसे कि अनादर की सूचना भेजी गई है, मर गया है, किन्तु सूचना भेजने वाले पक्षकार को उसकी जानकारी नहीं है तब वह सूचना पर्याप्त है।

98. अनादर की सूचना कब अनावश्यक है- अनादर की कोई भी सूचना:-

(क) तब आवश्यक नहीं है जब कि उसके हकदार पक्षकार को उसके दिए जाने से अभिमुक्ति दे दी गई है;

(ख) लेखीवाल को भारित करने के लिए तब आवश्यक नहीं है, जब कि उसने संदाय प्रत्यादिष्ट कर दिया है;

(ग) तब आवश्यक नहीं है जब कि भारित पक्षकार को कोई नुकसान सूचना के अभाव से नहीं हो सकता था;

(घ) तब आवश्यक नहीं है जब कि सूचना का हकदार पक्षकार सम्यक् तलाश के पश्चात् नहीं पाया जा सकता या सूचना देने के लिए आबद्ध पक्षकार अपनी किसी त्रुटि के बिना उसे देने में अन्य कारणवश असमर्थ है;

(ङ) लेखीवालों को भारित करने के लिए तब आवश्यक नहीं है जब कि प्रतिगृहीता उसका लेखीवाल भी है;

(च) उस वचन-पत्र के बारे में आवश्यक नहीं है जो परक्राम्य नहीं है;

(छ) तब आवश्यक नहीं है जब कि सूचना का हकदार पक्षकार लिखत पर शोध्य रकम देने का अशर्त वचन तथ्यों को जानते हुए दे देता है ।

अध्याय 9 टिप्पण और प्रसाक्ष्य के सम्बन्ध में

99. टिप्पण- जब कि वचन-पत्र या विनिमय-पत्र अप्रतिग्रहण द्वारा या असंदाय द्वारा अनादृत हो गया है तब धारक ऐसे अनादर का टिप्पण नोटरी पब्लिक से ऐसी लिखत पर या संलग्न कागज पर या भागतः एक पर और भागतः दूसरे पर करवा सकेगा ।
ऐसा टिप्पण अनादर के पश्चात् युक्तियुक्त समय के भीतर किया जाना चाहिए और उसमें अनादर की
तारीख, ऐसे अनादर के लिए दिया गया कारण, यदि कोई हो, या यदि लिखत अभिव्यक्ततः अनादृत नहीं की
गई है तो वह कारण जिसके लिए धारक से अनादृत मानता है और नोटरी पब्लिक के प्रभार विनिर्दिष्ट किए
जाने चाहिए।

100. प्रसाक्ष्य- जबकि वचन-पत्र या विनिमय-पत्र अप्रतिग्रहण या असंदाय द्वारा अनादृत हो गया है तब धारक
ऐसे अनादर को नोटरी पब्लिक द्वारा युक्तियुक्त समय के भीतर टिप्पणित और प्रमाणित करा सकेगा ।
ऐसा प्रमाण प्रसाक्ष्य कहलाता है ।
बेहतर प्रतिभूति के लिए प्रसाक्ष्य – जबकि विनिमय-पत्र का प्रतिगृहीता दिवालिया हो गया है या विनिमय-पत्र की परिपक्वता से पूर्व उसका प्रत्यय खुले आम अधिक्षेपित किया गया है तब धारक प्रतिगृहीता से बेहतर प्रतिभूति की माँग नोटरी पब्लिक से युक्त समय के अंदर कर सकेगा और प्रतिभूति दिए जाने से इंकार किए जाने पर ऐसे तथ्यों को युक्तियुक्त समय के भीतर पूर्वोक्त जैसे टिप्पणित और प्रमाणित करवा सकेगा ऐसा प्रमाण बेहतर प्रतिभूति के लिए प्रसाक्ष्य कहलाता है ।
101. प्रसाक्ष्य की अन्तर्वस्तुएं- धारा 100 के अधीन प्रसाक्ष्य में अन्तर्विष्ट होने चाहिए-
(क) या तो स्वयं लिखत या लिखत की और जिसके ऊपर लिखी या मुद्रित हर बात की अक्षरशः अनुलिपि;
(ख) उस व्यक्ति का नाम जिसके लिए और जिसके विरुद्ध लिखत प्रसाक्ष्यित की गई है;

(ग) यह कथन कि, यथास्थिति, संदाय या प्रतिग्रहण वा बेहतर प्रतिभूति की मांग नोटरी पब्लिक द्वारा ऐसे व्यक्ति से की गई है; यदि उस व्यक्ति का कोई उत्तर है तो उस उत्तर के शब्द या यह कथन कि उसमें कोई उत्तर नहीं दिया था या वह
पाया नहीं जा सका;
(घ) जब कि वचन पत्र या विनिमय-पत्र अनादृत किया गया है तब अनादर का स्थान और समय और जब कि बेहतर प्रतिभूति देने से इंकार किया गया है तब इंकार का स्थान और समय;
(ङ) प्रसाक्ष्य करने वाले नोटरी पब्लिक के हस्ताक्षर

(च) आदरणार्थ प्रतिग्रहण या आदरणार्थ संदाय की दशा में उस व्यक्ति का नाम, जिसके द्वारा उस व्यक्ति का नाम, जिसके लिए, और वह रीति, जिससे ऐसा प्रतिग्रहण या संदाय प्रस्थापित किया गया था और दिया गया था। नोटरी पब्लिक इस धारा के खण्ड (ग) में वर्णित माँग या तो स्वयं अपने लिपिक द्वारा या, जहाँ कि करार या प्रथा से यह प्राधिकृत है वहाँ रजिस्ट्रीकृत चिट्ठी द्वारा कर सकेगा ।] 102. प्रसाक्ष्य की सूचना जब कि वचन-पत्र या विनिमय-पत्र का प्रसाक्ष्यित कराया जाना विधि द्वारा अपेक्षित है तब ऐसे प्रसाक्ष्य की सूचना उसी रीति में और उन्हीं शर्तों के अध्यधीन रहते हुए अनादर की सूचना के बदले में देनी होगी किन्तु वह सूचना उस नोटरी पब्लिक द्वारा दी जा सकेगी जो प्रसाक्ष्य करता है।

103. अप्रतिग्रहण द्वारा अनादर के पश्चात् असंदाय के लिए प्रसाक्ष्य – ये सब विनिमयपत्र, जो ऊपरवाल के निवास-स्थान के तौर पर वर्णित स्थान से भिन्न किसी अन्य स्थान में देय लिखे गये हैं, और जो अप्रतिग्रहन द्वारा अनादृत हो गए हैं, ऊपरबाल को आगे कोई और उपस्थापन के बिना उस स्थान में, जो संदाय के लिए विनिर्दिष्ट है. असंदाय के लिए प्रसाक्ष्यित किए जा सकेंगे यदि उसका सदाम परिक्वता के पूर्व या परिपक्वता पर न कर दिया गया हो ।

104. विदेशी विनिमय-पत्रों का प्रसाक्ष्य- विदेशी विनिमय-पत्र उस दशा में अनादर के लिए प्रसाक्ष्यित होंगे जिसमें कि ऐसा प्रसाक्ष्य उस स्थान की विधि द्वारा अपेक्षित है, जहाँ वे लिखे गए हैं।

104क. टिप्पण कब प्रसाक्ष्य के समतुल्य होता है-  इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए जहाँ कि विनिमय- पत्र या वचन-पत्र के लिए यह अपेक्षित है कि वह एक विनिर्दिष्ट समय के अंदर या आगे कोई और कार्यवाही की जाने से पूर्व प्रसाक्ष्यित कराया जाए वहाँ यह पर्याप्त है कि वह विनिमय पत्र विनिर्दिष्ट समय के अवसान से पूर्व या कार्यवाही करने के पूर्व प्रसाक्ष्य के लिए टिप्पणित कर दिया जाए और तत्पश्चात् किसी भी समय प्ररूपित प्रसाक्ष्य टिप्पण की तारीख को किए गए के तौर पर पूरा किया जा सकेगा ।

अध्याय 10 युक्तियुक्त समय के विषय में

105. युक्तियुक्त समय- प्रतिग्रहण या संदाय के लिए उपस्थापन के लिए, अनादर की सूचना देने के लिए और टिप्पण के लिए युक्तियुक्त समय कौन-सा है यह अवधारण करने में लिखत की प्रकृति और वैसी ही लिखतों के बारे में व्यवहार की प्रायिक चर्या को ध्यान में रखा जाएगा, और ऐसे समय की गणना करने में लोक अवकाश दिनों को अपवर्जित किया जाएगा ।

106. अनादर की सूचना देने का युक्तियुक्त समय- यदि धारक और वह पक्षकार, जिसे अनादर की सूचना दी जाती है, यथास्थिति, विभिन्न स्थानों में कारबार करते हों या रहते हों तो यदि ऐसी सूचना अगली डाक से या अनादर के दिन के पश्चात् अगले दिन भेज दी गई हो तो वह युक्तियुक्त समय के अंदर दी गई है। यदि उक्त पक्षकार एक ही स्थान में कारबार करते हों या रहते हों तो यदि ऐसी सूचना इतने समय में भेज दी गई हो कि वह अनादर के दिन के पश्चात् अगले दिन अपने गंतव्य स्थान पर पहुँच जाए तो वह युक्तियुक्त समय के अंदर दी गई है।

107. ऐसी सूचना के पारेषण के लिए युक्तियुक्त समय- अनादर की सूचना पानेवाला जो पक्षकार किसी पूर्विक पक्षकार के विरुद्ध अपने अधिकार को प्रवृत्त करना चाहता है, यदि उसने उसकी प्राप्ति के पश्चात् उतने ही समय के अंदर उसे पारेषित कर दिया हो जितना सूचना देने के लिए उसे मिलता, यदि वह धारक होता, तो उसने सूचना युक्तियुक्त समय के अंदर पारेषित कर दी है।

अध्याय 11 आदरणार्थ प्रतिग्रहण और संदाय के विषय में तथा आवश्यकता की दशा में निर्देशन के विषय में

108. आदरणार्थ प्रतिग्रहण- जब कि विनिमय-पत्र अप्रतिग्रहण या बेहतर प्रतिभूति के लिए टिप्पणित या प्रसाक्ष्यित कर दिया गया है तब ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो उस पर पहले से दायी पक्षकार नहीं है, विनिमय-पत्र पर लेख द्वारा उसे धारक की सम्मति से उसके किसी भी पक्षकार के आदरणार्थ प्रतिगृहीत कर सकेगा।

109. आदरणार्थ प्रतिग्रहण कैसे करना चाहिए- जो व्यक्ति आदरणार्थं प्रतिग्रहण करना चाहता है उसे [विनिमय-पत्र पर अपने हस्ताक्षर करके लिखित रूप में] घोषणा करनी होगी कि वह प्रसाक्ष्यित  विनिमय पत्र का प्रतिग्रहण लेखीवाल के या किसी विशिष्ट पृष्ठांकक के, जिसका यह नाम दे, आदरणार्थ या असाधारणतः आदरणार्थ प्रसादयाधीन करता है।

110. यह विनिर्दिष्ट किए बिना कि प्रतिग्रहण किसके आदरणार्थ किया गया है, प्रतिग्रहण- जहाँ कि प्रतिग्रहण यह अभिव्यक्त नहीं करता कि वह किसके आदरणार्थ किया गया है वहाँ यह लेखीवाल के आदरणार्थ किया गया समझा जाएगा।

111. आदरणार्थ प्रतिगृहीता का दायित्व- आदरणार्थ प्रतिगृहीता उन सब पक्षकारों के प्रति, जो उस पक्षकार के पश्चात्वर्ती है, जिसके आदरणार्थ उसने उसे प्रतिगृहीत किया है, अपने को इस बात के लिए आबद्ध करता है कि यदि ऊपरवाल विनिमय-पत्र की रकम का संदाय न करे तो वह उसका संदाय करेगा, और ऐसा पक्षकार और उससे पूर्विक सब पक्षकार उसे उस सब हानि या नुकसान के लिए, जो आदरणार्थ प्रतिगृहीता ने वैसे प्रतिग्रहण के परिणामस्वरूप उठाया है, अपने क्रमिक हैसियतों में प्रतिकर देने के दायी हैं ।
किन्तु आदरणार्थ प्रतिगृहीता विनिमय-पत्र के धारक के प्रति तब के सिवाय दायी न होगा जब कि विनिमय- पत्र का उपस्थान या उस दशा में, जिसमें कि प्रतिगृहीता ने विनिमय-पत्र पर जो पता दिया है वह स्थान उस स्थान से भिन्न है जहाँ कि विनिमय-पत्र देय होना रचित है, विनिमय-पत्र का उपस्थापन के लिए अग्रेषण उसकी परिपक्वता के दिन के पश्चात् के अगले दिन से परवर्ती न होने वाले दिन कर दिया जाता है।

112. आदरणार्थ प्रतिगृहीता कब भारित किया जा सकेगा- आदरणार्थ प्रतिगृहीता भारित नहीं किया जा सकेगा जब तक कि विनिमय-पत्र उसकी परिपक्वता पर संदाय के लिए ऊपरवाल को उपस्थापित न किया गया और तद्द्द्वारा अनादृत न कर दिया गया हो और ऐसे अनादर के लिए टिप्पणित या प्रसाक्ष्यित न किया गया हो ।

113. आदरणार्थ संदाय- जबकि विनिमय-पत्र असंदाय के लिए टिप्पणित या प्रसाक्ष्यित किया जा चुका है, तब कोई भी व्यक्ति ऐसे किसी पक्षकार के आदरणार्थ उसका संदाय कर सकेगा जो उसका संदाय करने का दायी है, परन्तु यह तब जब कि ऐसा संदाय करने वाले व्यक्ति ने [या तन्निमित्त उसके अभिकर्ता] ने नोटरी पब्लिक के समक्ष उस पक्षकार की पूर्व में ही घोषणा कर दी हो जिसके आदरणार्थ वह संदाय करता है और ऐसी घोषणा उस नोटरी पब्लिक द्वारा अभिलिखित कर दी गई हो ।

114. आदरणार्थ संदाय करने वाले का अधिकार- ऐसे संदाय करने वाला कोई भी व्यक्ति विनिमय-पत्र के बारे में उन सब अधिकारों का हकदार है जो ऐसे संदाय के समय धारक के हैं और उस पक्षकार से, जिसके आदरणार्थ उसने संदाय किया है, इस भाँति संदत्त सब राशियों को उन पर ब्याज सहित और ऐसा संदाय करने में समुचित रूप से उपगत सब व्ययों सहित वसूल कर सकेगा ।

115. जिकरीवाल- जहाँ कि विनिमय-पत्र में या उस पर के किसी पृष्ठांकन में जिकरीवाल नामित है वहाँ जब तक विनिमय-पत्र ऐसे जिकरीवाल द्वारा अनादृत कर दिया गया हो, वह अनादृत नहीं होता ।

116. बिना प्रसाक्ष्य के प्रतिग्रहण और संदाय-  जिकरीवाल पूर्व प्रसाक्ष्य के बिना विनिमय-पत्र का प्रतिग्रहण और संदाय कर सकेगा।

अध्याय 12 प्रतिकर के विषय में

117. प्रतिकर के बारे में नियम- धारक या किसी पृष्ठांकिती के प्रति दायित्वाधीन किसी भी पक्षकार द्वारा वचन- पत्र, विनिमय-पत्र या चैक का अनादर किए जाने की दशा में देय प्रतिकर निम्नलिखित नियमों द्वारा अवधारित किया जाएगा :
(क) धारक लिखत पर शोध्य रकम, उसे उपस्थापित करने, और टिप्पणित और प्रसाक्ष्यित कराने में उचित तौर पर उपगत व्ययों सहित पाने का हकदार है;
(ख) जब कि भारित व्यक्ति उस स्थान से भिन्न स्थान में रहता है जिसमें कि लिखत देय थी तब धारक ऐसी रकम दोनों स्थानों के बीच विनिमय की चालू दर पर पाने का हकदार है;

(ग) जिस पृष्ठांकक ने दायित्वाधीन होते हुए उस पर शोध्य रकम का संदाय किया है वह ऐसी संदत्त रकम संदाय की तारीख से उसके निविदान या आपन की तारीख तक [अठारह प्रतिशत ] प्रतिवर्ष ब्याज सहित तथा अनादर और संदाय के कारण हुए सब व्ययों सहित पाने का हकदार है;

(घ) जब कि भारित व्यक्ति और ऐसा पृष्ठांकक विभिन्न स्थानों में निवास करते हैं, तब पृष्ठांकक ऐसी रकम दोनों स्थानों के बीच विनिमय की चालू दर पर पाने का हकदार है;

(ङ) प्रतिकर का हकदार पक्षकार अपने को देय प्रतिकर के दायित्वाधीन पक्षकार पर, दर्शन पर या माँग पर संदेय विनिमय-पत्र अपने द्वारा उचित तौर पर उपगत सब व्ययों सहित अपने को शोध्य रकम के लिए लिख सकेगा। ऐसे विनिमय-पत्र के साथ अनादृत लिखत और उसका प्रसाक्ष्य (यदि कोई हो) होना चाहिए। यदि ऐसा विनिमय-पत्र अनादृत किया जाता है तो उसका अनादर करने वाला पक्षकार उसके लिए प्रतिकर उसी प्रकार से देने के लिए दायित्वाधीन है जैसा कि वह मूल विनिमय पत्र की दशा में होता है ।

अध्याय 13 साक्ष्य के विशेष नियम

118. परक्राम्य लिखत के बारे में उपधारणाएँ – जब तक कि प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता,
निम्नलिखित उपधारणाएँ की जाएंगी-
(क) प्रतिफल के विषय में- यह कि हर परक्राम्य लिखत प्रतिफलार्थ रचित या लिखी गई थी और यह कि हर ऐसी लिखत जब प्रतिगृहीत, पृष्ठांकित, परक्रामित या अन्तरित हो चुकी हो, तब वह प्रतिफलार्थ, प्रतिगृहीत, पृष्ठांकित, परक्रामित या अन्तरित की गई थी;
(ख) तारीख के बारे में- यह कि ऐसी हर परक्राम्य लिखत जिस पर तारीख पड़ी है, ऐसी तारीख को रचित या लिखी गई थी;

(ग) प्रतिग्रहण के समय के बारे में- यह कि हर प्रतिगृहीत विनिमय-पत्र उसकी तारीख के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अंदर और उसकी परिपक्वता के पूर्व प्रतिगृहीत किया गया था;
(घ) अन्तरण के समय के बारे में- यह कि परक्राम्य लिखत का हर अन्तरण उसकी परिपक्वता के पूर्व किया गया था;

(ङ) पृष्ठांकनों के क्रम के बारे में. – यह कि परक्राम्य लिखत पर विद्यमान पृष्ठांकन उस क्रम में किए गए थे जिसमें वे उस पर विद्यमान हैं;
(च) स्टाम्प के बारे में-  यह कि खोया गया वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक सम्यक् रूप से स्टाम्पित था;

(छ) यह कि धारक सम्यक्-अनुक्रम-धारक है- यह कि परक्राम्य लिखत का धारक सम्यक् अनुक्रम धारक है; परन्तु जहाँ कि लिखत उसके विधिपूर्ण स्वामी से या उसकी विधिपूर्ण अभिरक्षा रखने वाले किसी व्यक्ति से अपराध या कपट द्वारा अभिप्राप्त की गई अथवा उसके रचयिता या प्रतिगृहीता से अपराध या कपट द्वारा अभिप्राप्त या विधि विरुद्ध प्रतिफल के लिए अभिप्राप्त की गई है, वहाँ यह साबित करने का भार कि धारक सम्यक्- अनुक्रम-धारक है, उस पर है ।

119. प्रसाक्ष्य के साबित होने पर उपधारणा-  उस लिखत के आधार पर जो अनादृत कर दी गई है, बाद में न्यायालय प्रसाक्ष्य के साबित हो जाने पर अनादर के तथ्य की उपधारणा करेगा यदि और जब तक कि ऐसा तथ्य नासाबित नहीं कर दिया जाता ।

120. लिखत की मूल विधिमान्यता का प्रत्याख्यान करने के विरुद्ध विबन्ध- वचन-पत्र का कोई भी रचयिता और विनिमय-पत्र या चैक का कोई भी लेखीवाल और लेखीवाल के आदरणार्थ विनिमय-पत्र का कोई भी प्रतिगृहीता सम्यक् अनुक्रम-धारक द्वारा उसके आधार पर किए गए बाद में लिखत की, जैसी कि वह मूलतः रची या लिखी गई थी, विधिमान्यता का प्रत्याख्यान करने के लिए अनुज्ञात न होगा ।

121. पानेवाले की पृष्ठांकन की सामर्थ्य का प्रत्याख्यान करने के विरुद्ध विबन्ध- वचन-पत्र का कोई भी रचयिता और [आदेशानुसार देय] विनिमय-पत्र का कोई प्रतिगृहीता सम्यक्-अनुक्रम-धारक द्वारा  उसके आधार पर किए गए बाद में उस वचन-पत्र या विनिमय पत्र की तारीख पर उसे पृष्ठांकित करने की पाने वाले की सामर्थ्य का प्रत्याख्यान करने के लिए अनुज्ञात न होगा ।

122. पूर्विक पक्षकार के हस्ताक्षर या सामर्थ्य का प्रत्याख्यान करने के विरुद्ध विबन्ध- परक्राम्यलिखत का कोई भी पृष्ठांकक किसी पश्चात्वर्ती धारक द्वारा उसके आधार पर किए गए बाद में उस लिखत के किसी भी पूर्विक पक्षकार के हस्ताक्षर या उसकी संविदा करने की सामर्थ्य का प्रत्याख्यान करने के लिए अनुज्ञात न होगा ।

अध्याय 14 क्रॉस पैकों के विषय में

123. साधारणत: क्रॉस किया हुआ चैक- जहाँ कि चैक पर उसके मुख भाग को काटती हुई दो समानान्तर आड़ी रेखाओं के बीच और कंपनी शब्द या उनका कोई संक्षेपाक्षर या केवल दो समानान्तर आड़ी रेखाएँ परक्राम्य नहीं है शब्दों के सहित या बिना बढ़ा दिए गए हैं वहाँ ऐसा बढ़ाना क्रॉस करना समझा जाएगा और वह चैक साधारणतः क्रॉस किया हुआ समझा जाएगा।

124. विशेषतः क्रॉस किया हुआ चैक- जहाँ कि चैक पर उसके मुख भाग को काटते हुए बैंकारं का नाम “परक्राम्य नहीं है” शब्दों के सहित या बिना बढ़ा दिया गया है यहाँ ऐसा बढ़ाना क्रॉस करना समझा जाएगा और यह समझा जाएगा कि वह चैक विशेषतः क्रॉस किया गया है और उस बँकार के पक्ष में क्रॉस किया गया है।

125. चैक काटने के पश्चात् उसे क्रॉस करना- जहाँ कि बैंक क्रॉस किया हुआ नहीं है यहाँ धारक उसे साधारणतः या विशेषत: क्रॉस कर सकेगा। जहाँ कि चैक साधारणतः क्रॉस किया हुआ है यहाँ धारक से विशेष करा | जहाँ कि चैक साधारणतः वा विशेषतः फ्रांस किया हुआ है यहाँ धारक नहीं है शब्द बढ़ा सकेगा ।
जहाँ कि पैक विशेषत: क्रॉस किया हुआ है यहाँ यह बैंकार जिसके पक्ष में यह प्रकिया है, उसे संग्रह करने के लिए अपने अभिकर्ता के रूप में दूसरे कार के पक्ष में पुनः विशेषकर

126. साधारणत: क्रॉस किए हुए चैक का संदाय- जहाँ कि बैंक साधारण है यहाँ वह बैंकार, जिस पर यह लिखा
हुआ है, संदाय किसी कार को करने से अन्यथा न करेगा।
विशेषत: क्रॉस किए हुए चैक का संदाय- जहाँ कि चैक विशेषत: क्रॉस किया हुआ है, वहा वह बैंकार, जिस पर वह लिखा गया है, उसका संदाय उस बँकार को जिसके पक्ष में यह क्रॉस किया हुआ है, या संग्रह करने के लिए उसके अभिकर्ता को करने से अन्यथा न करेगा |

127. एक से अधिक बार विशेषतः क्रॉस किए गए चैक का संदाय- जहाँ कि बैंक एक से अधिक बैंकरों के पक्ष में विशेषत: फ्रांस किया गया है यहाँ तब के सिवाय जब कि यह संग्रह करने के प्रयोजन के लिए अभिकर्ता को क्रॉस किया गया है, यह बैंकर, जिस पर यह लिखा गया है, उसका संदाय करने से इंकार करेगा ।

128. क्रॉस चैक का सम्यक्-अनुक्रम में संदाय- जहाँ कि उस बँकार ने, जिस पर क्रॉस चैक लिखा गया है, उसका
सम्यक्-अनुक्रम में संदाय कर दिया है वहाँ चैक का संदाय करने वाला बैंकार और (ऐसा चैक पानेवाले के हाथ में आ जाने की दशा में) उसका लेखीवाल क्रमश: उन्हीं अधिकारों के हकदार होंगे और सभी पहलुओं से उसी स्थिति में रख दिए जाएंगे जिनके वह क्रमशः हकदार होते और रखे गए, होते. यदि चैक की रकम चैक के सही स्वामी को दे दी गई होती और उस द्वारा प्राप्त कर ली गई होती ।

129. क्रॉस चैक का सम्यक्-अनुक्रम के बाहर संदाय- कोई भी बैंकार, जो साधारणतः क्रॉस किए गए चैक का संदाय किसी बँकार को करने से अन्यथा करता है या विशेषतः क्रॉस किए हुए चैक का संदाय उस कार को, जिसके पक्ष में यह क्रॉस किया गया है, या संग्रहण करने के लिए उसके अभिकर्ता को, जो स्वयं बैंकार है, करने से अन्यथा करता है, वह चैक के सही स्वामी के प्रति उस हानि के लिए दायी होगा जो ऐसा स्वामी चैक का संदाय ऐसे किए जाने के कारण उठाए ।

130. “परक्राम्य नहीं है” यह शब्द वाला चैक-  साधारणतः या विशेषतः क्रॉस किए हुए ऐसे चैक को, जिस पर परक्राम्य नहीं हैं शब्द लिखे हैं, लेने वाला व्यक्ति उस चैक पर उससे बेहतर हक न रखेगा और न देने के लिए समर्थ होगा जैसा उस व्यक्ति का था, जिससे उसने उसे लिया है।

131. चैक का संदाय प्राप्त करने वाले बैंकार का अदायित्व- जिस बँकार ने अपने पक्ष में साधारणतः या विशेषतः क्रॉस किए हुए चैक का संदाय अपने व्यवहारी लेखे सद्भावपूर्वक और उपेक्षा बिना प्राप्त किया है वह बैंकार उस चैक पर हक के त्रुटिपूर्ण साबित होने की दशा में सही स्वामी के प्रति कोई दायित्व ऐसा संदाय प्राप्त करने के कारण ही उपगत न करेगा ।

स्पष्टीकरण 1 बैंकार क्रॉस चैक का संदाय अपने किसी व्यवहारी लेखे इस धारा के अर्थ में प्राप्त करता है यद्यपि चैक का संदाय प्राप्त करने के पूर्व वह चैक की रकम अपने व्यवहारी खाते में जमा कर देता है ।

स्पष्टीकरण 2 यह बैंकार का कर्त्तव्य होगा, जो अदायगी इलेक्ट्रानिक रूपक छंटित चैक पर आधारित
प्राप्त करता है, उसने धारण किया है प्रथम दृष्टया चैक की असलियत का सत्यापन करने के लिये कि छंटित
योग्य है एवं लिखत के साक्ष्य में के भाग पर कपट, जाली या छेड़छाड़ करने का सम्यक् तत्परता एवं सामान्य
सतर्कता के साथ सत्यापन कर सकता है ।

131क. ड्राफ्टों को अध्याय का लागू होना- इस अध्याय के उपबंध धारा 85-क में यथा परिभाषित किसी भी ड्राफ्ट को ऐसे लागू होंगे मानो ड्राफ्ट चैक हो ।]

अध्याय 15 जो विनिमय-पत्र संवर्ग में हैं उनके विषय में

132. विनिमय-पत्रों का संवर्ग- विनिमय पत्र ऐसी मूल प्रतियों में लिखे जा सकेंगे जिनमें से हर एक संख्यांकित हो और जो यह उपबंध अन्तर्विष्ट रखता हो कि वह केवल उसी समय तक देय बना. रहेगा जब तक कि अन्य असंदत्त रहते हैं। सब मूल प्रतियाँ मिलकर एक संवर्ग गठित करती हैं, किन्तु पूरे संवर्ग से केवल एक विनिमय- पत्र गठित होता है और वह तब निर्वापित हो जाता है जब उन प्रतियों में से कोई यदि एक पृथक् विनिमय-पत्र होता तो निर्वापित हो जाता ।
अपवाद जब कि कोई व्यक्ति विनिमय-पत्र की विभिन्न मूल प्रतियों को विभिन्न व्यक्तियों के पक्ष में प्रतिगृहीत करता या पृष्ठांकित करता है और तब वह और हर एक मूल प्रति का पश्चात्वर्ती पृष्ठांकक ऐसी मूल प्रति पर ऐसे दायी होते हैं मानो वह पृथक् विनिमय-पत्र हों ।

133. प्रथम अर्जित मूल प्रति का धारक सबका हकदार होता है- एक ही संवर्ग की विभिन्न मूल प्रतियों के सम्यक् – अनुक्रम-धारकों के बीच का जहाँ तक सम्बन्ध है उनमें से वह, जिसने अपनी मूल प्रति का हक सबसे पहले अर्जित किया, अन्य मूल प्रतियों का और विनिमय- -पत्र के धन का हकदार होता है।

अध्याय 16 अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विषय में

134. विदेशी लिखत के रचयिता, प्रतिगृहीता या पृष्ठांकक के दायित्व को शासित करने वाली विधि- तत्प्रतिकूल संविदा न हो तो विदेशी वचन-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक के रचयिता या लेखीवाल का दायित्व सब आवश्यक बातों में उस स्थान की विधि द्वारा विनियमित होता है जहाँ उसने वह लिखत रची थी तथा प्रतिगृहीता और पृष्ठांकक के अपने-अपने दायित्व उस स्थान की विधि से विनियमित होते हैं जहाँ लिखत देय की गई है।

दृष्टान्त

क द्वारा एक विनिमय-पत्र केलीफोर्निया में लिखा गया, जहाँ ब्याज की दर पच्चीस प्रतिशत है और वाशिंगटन
में देय, जहाँ ब्याज की दर छह प्रतिशत है, ख द्वारा प्रतिगृहीत किया गया। विनिमय में पृष्ठांकित किया गया है, और वह अनादृत हो गया। विनिमय-पत्र पर ख के विरुद्ध [भारत] में अनुयोजन लाया जाता है। वह केवल छह प्रतिशत की दर से ब्याज देने के दायित्व के अधीन है; किन्तु यदि क लेखीवाल के रूप में भारित किया जाता है तो वह पच्चीस प्रतिशत की दर से ब्याज देने के दावित्य के अधीन है।

135. संदाय के स्थान की विधि अनादर को शासित करती है- जहाँ कि वचन-पत्र, विनिमय पत्र या चैक उस स्थान से भिन्न स्थान में देय किया गया है, जिसमें वह रचित या पृष्ठांकित किया गया है वहाँ उस स्थान की विधि, जहाँ वह देय किया गया है, अवधारित करती है कि अनादर किस बात से गठित होता है और अनादर की कैसी सूचना प्राप्त होती है ।

दृष्टान्त

एक विनिमयपत्र, जो [भारत] में लिखा और पृष्ठांकित किया गया, किन्तु फ्रांस में देव के तौर पर प्रतिगृहीत
किया गया था, अनादृत हो जाता है। पृष्ठांकिती से अनादर के लिए उसका प्रसाक्ष्य कराता है और फ्रांस की
विधि के अनुसार उसकी सूचना दे देता है यद्यपि जो विनिमय पत्र विदेशी नहीं है उनके बारे में एतस्मिन्
अन्तर्विष्ट नियमों के अनुसार वह सूचना नहीं है । तथापि वह सूचना पर्याप्त है ।

136. भारत के बाहर किन्तु भारत की विधि के अनुसार रचित आदि लिखत- यदि परक्राम्य लिखत  [भारत के बाहर], किन्तु [भारत की विधि के अनुसार], रचित, लिखित प्रतिगृहीत या पृष्ठांकित है तो इस बात से कि ऐसी लिखत जिस करार की साक्ष्य है वह उस देश की विधि के अनुसार अविधिमान्य है जिसमें वह किया गया था, उस पर [ भारत में] किया गया कोई पश्चात्वर्ती प्रतिग्रहण या पृष्ठांकन अविधिमान्य नहीं हो जाता ।

137. विदेशी विधि में उपधारणा- वचन-पत्रों, विनिमय-पत्रों और चैक सम्बन्धी किसी भी विदेश की विधि के बारे में यह उपधारणा की जाएगी कि वह वैसी ही है जैसी कि [भारत] की है, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए ।

                                                  अध्याय 17
लेखों में जमा राशि अपर्याप्त होने के कारण कतिपय चैकों के अनादृत हो जाने की दशा में शास्तियाँ

138. लेखों में जमा राशि अपर्याप्त होने आदि के कारण चैकों का अनादृत हो जाना- जहाँ  किसी व्यक्ति द्वारा किसी बैंक में संधारित अपने खाते में से अपने किसी ऋण अथवा अन्य दायित्व से भागतः या पूर्णतः उन्मोचित होने के लिए कोई चैक दिया जाता है और वह चैक खाते में अपर्याप्त राशि होने के कारण अथवा पहले से ही उस खाते में से किन्हीं अन्य व्यक्तियों को संदाय करने का करार कर दिये जाने के कारण बैंक द्वारा बिना भुगतान किये पुनः लौटा दिया जाता है, वहाँ यह समझा जायेगा कि उस व्यक्ति ने अपराध कारित किया है और उसे इस अधिनियम के अन्य उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उतनी अवधि के कारावास से [जो कि दो वर्ष तक की हो सकेगी] अथवा उतनी राशि के जुर्माने से जो चैक की राशि से दुगुनी तक हो सकेगी अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकेगा :
परन्तु इस धारा की कोई बात तब तक लागू नहीं होगी, जब तक कि :

(क) वह चैक जारी होने की तिथि से छः मास के अंदर अथवा उसके विधिमान्य के अंदर, जो भी पूर्व हो, बैंक में पेश नहीं कर दिया जाता; रहने की अवधि
(ख) चैक के अधीन राशि पाने वाला अथवा सामान्य अनुक्रम में चैक का धारक, यथास्थिति, बैंक से चैक के अनादृत होकर लौटने की तिथि से [तीस दिवस के अंदर ] चैक के लेखीवाल को शोध्य राशि का संदाय करने के आशय की लिखित सूचना नहीं दे देता; और
(ग) लेखीवाल उस सूचना की प्राप्ति के पन्द्रह दिन के अंदर उस व्यक्ति को जो चैक के अधीन
राशि प्राप्त करने वाला हो अथवा जो सामान्य अनुक्रम में चैक का धारक हो, उस राशि
का संदाय करने में असफल नहीं रहता ।
स्पष्टीकरण इस धारा के प्रयोजनार्थ ऋण अथवा अन्य दायित्व से अभिप्राय विधितया प्रवर्तनीय ऋण अथवा अन्य दायित्व से है ।

139. धारक के पक्ष में उपधारणा- जब तक कि अन्यथा साबित न कर दिया जाये, यह उपधारणा की जायेगी कि चैक के धारक ने वह चैक धारा 138 में निर्दिष्ट किसी ऋण अथवा अन्य दायित्व के भागतः या पूर्णतः उन्मोचन के लिए प्राप्त किया है ।

140. धारा 138 के अधीन ऐसा बचाव जो किसी अभियोजन में अनुज्ञात नहीं होगा- धारा के अधीन किसी अपराध के अभियोजन में यह बचाव नहीं होगा कि चैक जारी करते समय लेखीवाल के पास यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं था कि वह चैक पेश किये जाने पर उस धारा में वर्णित कारणों से अनादृत हो जायेगा ।

141. कम्पनियों द्वारा अपराध- (1) धारा 138 के अधीन अपराध कारित करने वाला व्यक्ति यदि कम्पनी है तो ऐसा व्यक्ति जो अपराध कारित होने के समय उस कम्पनी का प्रभारी था और कम्पनी के कारबार के संचालन के लिए उत्तरदायी था, तो वह तथा कम्पनी उस अपराध के लिए दोषी समझे जायेंगे और तदनुसार दण्डित किये जा सकेंगे

परन्तु इस उपधारा की कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को दण्ड के लिए उत्तरदायी नहीं बनायेगी जो यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के अभाव में कारित किया गया था अथवा उसने ऐसे अपराध के कारित होने को निवारित करने के लिए सम्यक् तत्परता बरती थी :
परन्तु यह और कि जब एक व्यक्ति कम्पनी के निदेशक के रूप में केन्द्र सरकार या राज्य सरकार या वित्तीय निगम के द्वारा कोई अधिकार, पद अथवा नियोजन के आधार पर नामांकित किया जाता है, जो केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के द्वारा मालिकी की या नियंत्रित, जैसी भी स्थिति, वह इस अध्याय के अधीन अभियोजन के लिये उत्तरदायी नहीं होगा ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध कम्पनी द्वारा कारित किया गया हो और यह साबित हो जाये कि अपराध उस कम्पनी के किसी संचालक, प्रबन्धक, सचिव या किसी अन्य अधिकारी की सहमति से अथवा मौनानुकूलता से अथवा लापरवाही से कारित हुआ था तो वह संचालक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी उस अपराध के लिए दोषी माना जायेगा और उसे तद्नुसार दण्डित किया जा सकेगा ।

स्पष्टीकरण:  इस धारा के प्रयोजनार्थ,-
(क) “कम्पनी” से अभिप्रेत है कोई भी निगमित निकाय, और इसमें सम्मिलित है कोई भी फर्म अथवा
व्यक्तियों का कोई संगम, और
(ख) फर्म के सम्बन्ध में “संचालक” से अभिप्रेत है उस फर्म का कोई भागीदार |

142. अपराधों का प्रसंज्ञान- (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी :-
(क) धारा 138 के अधीन किसी अपराध के लिए, कोई भी न्यायालय चैक के अधीन राशि प्राप्त करने वाले अथवा सामान्य अनुक्रम में चैक के धारक के लिखित परिवाद के सिवाय, प्रसंज्ञान नहीं लेगा;

(ख) ऐसा परिवाद धारा 138 के परन्तुक के खण्ड (ग) के अधीन बाद हेतुक उत्पन्न होने की तिथि से एक माह के अंदर पेश कर दिया जाना चाहिए :
परन्तु न्यायालय के द्वारा वर्णित अवधि के पश्चात् परिवाद का प्रसंज्ञान लिया जा सकता है, यदि परिवादी न्यायालय को सन्तुष्ट करता है, कि ऐसे अवधि के दौरान उसके पास परिवाद पेश नहीं करने के लिए पर्याप्त कारण था ।
(ग) महानगर मजिस्ट्रेट अथवा प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट से निम्न पंक्ति के न्यायालय द्वारा धारा 138 के
अधीन दण्डनीय किसी अपराध का विचारण नहीं किया जायेगा ।

(2) धारा 138 के अधीन दंडनीय अपराध की जांच और उसका विचारण, केवल ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर-
(क) यदि चेक किसी खाते के माध्यम से संग्रहण के लिए परिदत्त किया जाता है तो, बैंक की शाखा जहां पर, यथास्थिति, सम्यक् अनुक्रम में, पाने वाला या धारक खाता बनाए रखता है, स्थित है; या
(ख) चदि चेक, सम्यक् अनुक्रम में, पाने वाले या धारक द्वारा, संदाय के लिए खाते के माध्यम से अन्यथा प्रस्तुत किया जाता है, उपरवाल की बैंक की शाखा, जहां पर लेखीवाल खाता बनाए रखता है, स्थित है।
स्पष्टीकरण खण्ड (क) के प्रयोजनों के लिए, जहां कोई चेक सम्यक् अनुक्रम में पाने वाले धारक के बैंक की किसी शाखा में संग्रहण के लिए परिदत्त किया जाता है वहां चेक बैंक की उस शाखा में परिदत्त किया गया समझा जाएगा जिसमें, यथास्थिति, पाने वाला या धारक, सम्यक् अनुक्रम में, खाता बनाए रखता है।

142क. लंबित मामलों के अंतरण का विधिमान्यकरण- (1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) या किसी न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री, आदेश वा निदेशों में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, परक्राम्य लिखत (संशोधन) अध्यादेश, 2015 द्वारा क्या संशोधित, धारा 142 की उपधारा (2) के अधीन अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को अंतरित सभी मामले, इस अधिनियम के अधीन ऐसे अंतरित किये गए समझे जाएंगे जैसे मानो वह उपधारा सभी तात्विक समयों पर प्रवृत्त थी ।

(2) धारा 142 की उपधारा (2) या उपधारा (1) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहां सम्यक् अनुक्रम में, यथास्थिति, पाने वाले ने या धारक ने, धारा 142 की उपधारा (2) के अधीन अधिकारिता रखने वाले न्यायालय में किसी चेक के लेखीवाल के विरुद्ध कोई परिवाद फाइल किया है  या उपधारा (1) के अधीन मामला उस न्यायालय को अंतरित किया गया है और ऐसा परिवाद उस  न्यायालय में लंबित है, वहां उसी लेखीवाल के विरुद्ध धारा 138 से उद्भूत होने वाले सभी पश्चात्वर्ती  परिवाद, इस बात पर विचार किए बिना कि क्या वे चेक उस न्यायालय की क्षेत्रीय अधिकारिता के  भीतर संग्रहण के लिए परिदत्त या संदाय के लिए प्रस्तुत किए गए थे, उसी न्यायालय के समक्ष फाइल किए जाएंगे ।

(3) यदि परक्राम्य लिखत (संशोधन) अधिनियम, 2015 के प्रारंभ की तारीख को, यथास्थिति, उसी पाने वाले या धारक द्वारा सम्यक् अनुक्रम में चेकों के उसी लेखीवाल के विरुद्ध फाइल किए गए  एक से अधिक अभियोजन भिन्न-भिन्न न्यायालयों के समक्ष लंबित हैं, तो न्यायालय की अवेक्षा में उक्त तथ्य लाए जाने पर, वह न्यायालय परक्राम्य लिखत (संशोधन) अध्यादेश, 2015 द्वारा यथा संशोधित धारा 142 की उपधारा (2) के अधीन अधिकारिता रखने वाले ऐसे न्यायालय को, जिसके समक्ष पहला मामला फाइल किया गया था और लंबित है, वह मामला इस प्रकार अंतरित कर देगा, मानो वह उपधारा सभी तात्विक समयों पर प्रवृत्त थी ।

143. प्रकरणों का संक्षेपतः विचारण करने की न्यायालय की शक्ति- (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी इस अध्याय के अन्तर्गत सभी अपराधों का विचारण न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के द्वारा किया जाएगा, एवं जहाँ तक हो सके उक्त संहिता की धारा 262 से 265 (दोनों सम्मिलित) के उपबंधों का ऐसे विचारण पर प्रवृत्त होगा :

परन्तु इस धारा के अधीन संक्षिप्ततः विचारण में मजिस्ट्रेट के लिये यह विधिक होगा कि किसी दोषसिद्धि के प्रकरण में एक साल की अवधि से अनधिक कारावास की सजा और पाँच हजार रुपये से अधिक जुर्माना की राशि का दण्डादेश पारित करे;
परन्तु यह और कि जब प्रारंभ होने पर संक्षिप्ततः विचारण के दौरान इस धारा के अन्तर्गत मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि प्रकरण का सारभाव ऐसा है कि प्रकरण का संक्षिप्ततः विचारण अवांछनीय है, एक वर्ष से अधिक के कारावास की सजा पारित किये जाने के योग्य है, अथवा अन्य कोई कारण है, प्रकरण में मजिस्ट्रेट पक्षों को सुनने के पश्चात् उसके प्रभाव के लिये आदेश अभिलिखित कर एवं तत्पश्चात् किसी साक्षी को पुनः आहूत करता है, जिसे परीक्षित किया गया है, तथा सुनवाई या पुनः सुनवाई के लिये अग्रसर होता है, जैसा कि उक्त संहिता के द्वारा उपबंधित है ।
(2) इस धारा के अधीन स्थायी तौर पर न्याय के हित में प्रकरण का विचारण जहाँ तक व्यवहार्य है, जब तक उसका निष्कर्ष न हो, दिन प्रतिदिन होगा। न्यायालय प्रकरण का विचारण अगला दिन से आगे के लिये स्थगन आवश्यक है, तो लिखित तौर पर ऐसे कारण को अभिलिखित करेगा ।

(3) इस धारा के अन्तर्गत प्रत्येक विचारण यथासंभव यथाशीघ्र नियमित होगा, एवं परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से छः माह के अंदर विचारण का निष्कर्ष के लिये प्रयास किया जाएगा ।

143क. अंतरिम प्रतिकर का निदेश देने की शक्ति- (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, धारा 138 के अधीन किसी अपराध का विचारण करने वाला न्यायालय चेक के लेखीवाल को
(क) संक्षिप्त विचारण या समन मामले में, जहां परिवाद में उसने किए गए अभियोग का दोषी
नहीं होने का अभिवाक् किया हो; और

(ख) अन्य किसी मामले में आरोप विरचित किए जाने पर, परिवादी को अंतरिम प्रतिकर का संदाय करने का आदेश दे सकेगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन अंतरिम प्रतिकर चेक की रकम के बीस प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

(3) अंतरिम प्रतिकर का, उपधारा (1) के अधीन जारी आदेश की तारीख से साठ दिन के भीतर या चेक के लेखीवाल द्वारा पर्याप्त कारण दर्शित किए जाने पर तीस दिन से अनधिक की ऐसी और अवधि के भीतर जिसका न्यायालय द्वारा निदेश दिया जाए, संदाय किया जाएगा।

(4) यदि चेक के लेखीवाल को दोषमुक्त कर दिया जाता है, तो न्यायालय परिवादी को प्रतिकर की अंतरिम रकम लेखीबाल को, आदेश की तारीख से साठ दिन के भीतर या परिवादी द्वारा पर्याप्त कारण दर्शित किए जाने पर तीस दिन से अनधिक की ऐसी और अवधि के भीतर, जिसका न्यायालय द्वारा निदेश दिया जाए, सुसंगत वित्तीय वर्ष के प्रारंभ पर प्रचलित भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यथा प्रकाशित बैंक दर से ब्याज सहित प्रतिसंदाय करने का निदेश देगा ।

(5) इस धारा के अधीन संदेय अंतरिम प्रतिकर इस प्रकार वसूल किया जा सकेगा, मानो यह दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 421 के अधीन कोई जुर्माना था ।

(6) धारा 138 के अधीन अधिरोपित जुमनि की रकम या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 357 के अधीन अधिनिर्णीत प्रतिकर की रकम में से इस धारा के अधीन अंतरिम प्रतिकर के रूप में संदत्त या वसूल की गई रकम घटा दी जाएगी ।

144. सम्मन के तामील की रीति- (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, एवं
इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, मजिस्ट्रेट, अभियुक्त या साक्षी को सम्मन जारी करते हुए निदेश कर सकता है कि उस स्थान में सम्मन की एक प्रति, जहाँ कि ऐसा अभियुक्त या साक्षी सामान्य तौर पर निवास करता है, या व्यवसाय करता है या वैयक्तिक तौर पर प्राप्ति के लिये कार्य करता है, स्पीड पोस्ट या ऐसे कूरियर सर्विसेस, जो सत्र न्यायालय द्वारा अनुमोदित किया गया है, के द्वारा तामील हो ।

(2) जहाँ अभिस्वीकृति अभियुक्त साथी के द्वारा हस्ताक्षर होना है के द्वारा अधिकृत या कूरियर सर्विसेस के
किसी व्यक्ति के द्वारा बनाया गया है, कि प्राप्त किये गये सम्मन के वितरण को लेने से अभियुक्त या साक्षी के
द्वारा इंकार किया गया है, न्यायालय ऐसे जारी किये गये सम्मन को घोषित कर सकता है, कि सम्मन
सम्यकरूपेण तामील हो गया है।

145. शपथ पर साक्ष्य- (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी परिवादी का साक्ष्य उसके द्वारा शपथ पत्र दिया जा सकता है, एवं समस्त न्याय संगत अपवादों के अध्यधीन रहते हुए उक्त संहिता के
अंतर्गत किसी जाँच, विचारणा अन्य किसी में पढ़ा जा सकता है ।

(2) न्यायालय यदि उचित समझता है, अभियोजन या अभियुक्त के आवेदन पत्र पर किसी व्यक्ति को सम्मन कर सकता है, एवं परीक्षण करेगा, जिस व्यक्ति के द्वारा शपथ-पत्र पर दिये गये साक्ष्य तथ्यों के रूप में उसमें अन्तर्विष्ट है ।

146. बैंक स्लिप प्रथम दृष्टया कतिपय तथ्यों का साक्ष्य- इस अध्याय के अधीन न्यायालय प्रत्येक कार्यवाही के सम्बन्ध में बैंक के स्लिप को पेश करने पर या ज्ञापन उस पर प्राधिकृत चिन्ह रहने पर, सूचित करते हुए कि चैक अनादृत किया गया है, ऐसे चैक का अनादरण के तथ्य का उपधारण करेगा, जब तक ऐसे तथ्य अप्रमाणित न है ।

147. अपराधों का शमनीय होना- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय प्रत्येक अपराध, रामनीय होगा ।

148. दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील के लंबित रहते संदाय का आदेश करने की अपील न्यायालय की शक्ति- (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, धारा 138 के अधीन दोषसिद्धि के विरुद्ध लेखीवाल द्वारा की गई अपील में अपील न्यायालय अपीलार्थी को ऐसी राशि जमा कराने का आदेश कर सकेगा, जो विचारण न्यायालय द्वारा अधिनिर्णीत जुर्माना या प्रतिकर के न्यूनतम बीस प्रतिशत होगी :

परन्तु इस धारा के अधीन संदेय रकम, धारा 143क के अधीन अपीलार्थी द्वारा संदत्त किसी भी अंतरिम प्रतिकर के अतिरिक्त होगी।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट रकम, आदेश की तारीख से साठ दिन के भीतर या अपीलार्थी द्वारा पर्याप्त कारण दर्शित किए जाने पर तीस दिन से अनधिक की ऐसी और अवधि के भीतर, जिसका न्यायालय द्वारा निदेश दिया जाए, जमा कराई जाएगी।

(3) अपील न्यायालय अपील के लंबित रहने के दौरान किसी भी समय अपीलार्थी द्वारा जमा की गई रकम को परिवादी को देने का निदेश दे सकेगा

परंतु यदि अपीलार्थी दोषमुक्त कर दिया जाता है, तो न्यायालय परिवादी को आदेश की तारीख से साठ दिन के भीतर या परिवादी द्वारा पर्याप्त कारण दर्शित किए जाने पर तीस दिन से अधिक की ऐसी और अवधि के भीतर जिसका न्यायालय द्वारा निदेश दिया जाए, सुसंगत वित्तीय वर्ष के प्रारंभ पर प्रचलित भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यथा प्रकाशित बैंक दर पर ब्याज सहित इस प्रकार दी गई रकम का अपीलार्थी को प्रतिसंदाय करने का निदेश देगा ।

   अनुसूची

अधिनियमितियाँ निरसित – ( संशोधनकारी अधिनियम, 1891 (1891 का 12) की धारा 2 तथा अनुसूची 1, भाग 1 द्वारा निरसित ।

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